Srimad Bhagavatam HADAPSAR-25-31-Day-5
25-12-2022
ISKCON Pune

राधा वृंदावनचंद्र की जय! 

राधा कुंजबिहारी लाल की जय! 

श्री श्री जगन्नाथ बलदेव सुभ्रद्रा की जय! 

श्री श्री गौर निताई की जय! 

ग्रंथराज श्रीमद् भागवतम की जय!

इस्कॉन प्रतिष्ठाता आचार्य श्रील प्रभुपाद की जय! 

निताई gaure प्रेमानंदे हरि हरि बोल! 

समस्त उपस्थित वैष्णववृंद की जय! 

अनंतकोटि वैष्णव वृंद की जय! 

कितने भक्तवृन्द? अनंत कोटि होजाए। उनसे भी अधिक “वैकुण्ठ” में हैं, वहाँ की आबादी बहुत अधिक है, बहुत बड़ा साम्राज्य है, अलौकिक, दिव्य है वैकुंठ धाम। उससे भी ऊपर “महेश धाम” भी है,शिवजी का धाम जो आधा इस जगत में है और आधा वैकुण्ठ धाम में है। फिर “हरिधाम” मतलब भगवान् के जो नाना अवतार हैं मतलब एक-एक अवतार एक-एक  वैकुण्ठ में है। अनंत कोटि ब्रह्माण्ड भी हैं, अनंत कोटि ब्रह्माण्डनायक श्रीकृष्ण कन्हैया लाल की जय! 

वैकुण्ठ से ऊपर है “साकेत या अयोध्या धाम”  और उसके ऊपर है “गोलोक धाम” ,गोलोक धाम की जय!  गोलोक मे भी तीन विभाग हैं:-  एक है द्वारका धाम, दूसरा है मथुरा धाम और तीसरा है वृन्दावन धाम। फिर वृन्दावन के भी दो विभाग हैं:- एक श्वेतद्वीप या नवद्वीप कहलाता है जहाँ श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की जय! ये पंच तत्व, उनके परिकर, उनकी लीलाएं और अधिकतर 

 “हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
 हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे”।। 

वहाँ भी होता है।  दूसरा विभाग है, “ गोलोकेर वैभव लीला प्रकाश करीला “ गोकुल वृन्दावन या वृन्दावन- वृन्दावन। हरि हरि! हम जिन लीलाओं को जानते हैं या केवल लीलाओं को ही नहीं, 

“श्री-राधिका-माधवयोर अपरा

-माधुर्य-लीला गुण-रूप-नामनाम

प्रति-क्षणास्वादन-लोलुपास्य

वन्दे गुरोः श्रीचरणराविंदम्! “ 

या जो हम भगवान् के नाम को ,रूप को जानते हैं, लीला को जानते हैं, उनके परिकर को जानते हैं,उनके धाम को जानते है हैं। श्रील प्रभुपाद कहते थे कि हम जो भी जानना चाहते हैं कृष्ण के सम्बन्ध में वो सब जानकारी, “ कृष्ण कैला वेद पुराण” भगवान् ने शास्त्रों में उसकी रचना की हुई है श्रील व्यास देव के रूप में। जिन लीलालो को कृष्ण यहाँ करते हैं , प्रदर्शित करते हैं, उसकी रचना भी भागवत में और पुराणों में भी है। लेकिन भागवतम कृष्ण पर अधिक फोकस्ड है। उस दिन ट्रेलर की बात हुई कि श्रीमदभागवतम के प्रथम स्कंध के तीसरे अध्याय में 22 अवतारों का उल्लेख किया श्रील व्यासदेव ने। ये ट्रेलर था, फिर आगे नरसिंह भगवान् की जय! नरसिंह लीला सातवें स्कंध में है। फिर वामन भगवान् की जय! वामन भगवान् की लीला है। यहाँ तक कि  रामायण आपको नवें स्कंध में कम से कम  दो अध्यायों में मिलेगी। ग्रंथराज का एक विषय वस्तु याने १० में से १ विषय वस्तु का नाम है ‘आश्रय’ और वे आश्रय हैं श्रीकृष्ण। श्रीकृष्ण कन्हैया लाल की जय!  और हम उनके आश्रित हैं।  श्रीमद भागवतम में 335 अध्याय हैं, इनको दूसरी बार हम कह रहे हैं, याद रखोगे ? आपको हम प्रेरित तो कर ही रहे हैं कि इस कथा का प्रचार और प्रसार होना चाहिए। कथा के प्रचार-प्रसार का ठेका केवल हमने ही नहीं लिया है, आपको भी योगदान देना है। “ इथं भूत गुणों हरी”  भगवान् है ही वैसे। जब हम सुनते कृष्ण के सम्बन्ध में, “ श्रंवंति गायन्ति गृणन्ति साधवः”।  जिसे प्रेम होता है, शुरुआत में तो हम छिप-छिप के प्रेम करते होंगे ताकि किसी को पता ना चले।  लेकिन फिर ऐसा समय आता है कि इतना प्रेम हो जाता है कि  हमसे रहा नहीं जाता और हम उस व्यक्ति का फिर नाम ही नहीं लेते,उसका काम भी,जॉब भी, ये भी वो भी, वे ऐसे सुन्दर है, वे वैसे हैं, ऐसी चर्चा शुरू हो होती है। 

श्रोतव्यादिनि राजेंद्र नृणां सन्ति सहस्रश:।
अपश्यतमात्मत्त्वं गृहेषु गृहमेधिनाम् ॥ 2॥  (ŚB 2.1.2)

अनुवाद: हे सम्राट! जो लोग भौतिकता में लिप्त हैं, तथा परम सत्य के ज्ञान के प्रति अंधे हैं, उनके लिए मानव समाज में सुनने के लिए बहुत से विषय हैं। 

शुकदेव गोस्वामी कहे कि जहाँ तक बोलने के विषय है, कितने विषय हैं लोगो के पास ? संसार के लोगो के पास हज़ारों विषय हैं बोलने के लिए किन्तु वहाँ तो काम की बात है परन्तु हमें कृष्ण प्रेम की बात करनी है। 

“मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्त: परस्परम् |
कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ||BG 10.9||” 

अनुवाद: मेरे भक्तजन मुझमें मन लगाकर और अपना जीवन मुझे समर्पित करके सदैव मुझमें संतुष्ट रहते हैं। वे एक-दूसरे को मेरे विषय में ज्ञान देने और मेरी महिमा का बखान करने में परम संतोष और आनंद प्राप्त करते हैं।।

एक  दूसरे को बोध करवाओ कि कृष्ण ने ये कहा, नारद जी ऐसा कहे,हमें चर्चा करनी चाहिए कि इस महाजन ने ये कहा। श्रील प्रभुपाद की जय! प्रभुपाद कहे,” तुकामने माझे ये ची सर्वसुख:”, कृष्ण की बातें या कृष्ण के सम्बन्ध में औरों द्वारा कही हुई,ऋषियों- संतो – मुनियों ने कृष्ण के सन्दर्भ में कही गयी,आप इसकी चर्चा कीजिये।  ग्वालबाल कृष्ण के सखा दिनभर कृष्ण के साथ बिताते हैं और कई सारी लीला के वे अंग होते ही हैं जैसे अघासुर का वध हुआ, ये हुआ फिर वो हुआ। हरि हरि! 

“ग्वालबाल संग धेनु चरायों” ग्वालबाल दिनभर कृष्ण के साथ गाय चराते हैं।  आप भी चाहोगे कि आप कृष्ण के साथ गाये चराने केलिए जाए या फिर आपकी फैक्ट्री/इंडस्ट्री/उद्योग ही ठीक है ? ग्वाले जब सायंकाल को पहुंचते हैं तो अपने माता-पिता से मिलते हैं। यहाँ इस जगत में मम्मी और डैडी कहते है लेकिन वहाँ नहीं कहते ये सब, वे मैया कहते हैं, बाबा कहते हैं। अपने माता-पिता को बिठा करके दिनभर की जो सारी लीलाएं व  बाते हैं वे अपने परिवार के सदस्यों को सुनाते हैं, कभी-कभी पड़ोसियों को बुलाकर के भी सुनाते  हैं कि ‘आज यह हुआ, आज हमने ये देखा ये सुना’ । इस प्रकार पूरे ब्रज में फिर बातें होती ही हैं। कृष्ण की उस दिन की खेली हुई लीलाएं सारे ब्रजमंडल के हर नगर आदि ग्राम में पहुँच जाती हैं। वैसे ही हम सोच रहे थे कि जैसे यहाँ जो हडपसर में भोंसले गार्डन है। कहाँ है गार्डेन? आप वैसे  फूल तो हो, एक एक फूल। हरि हरि! आपको यहाँ सुनी हुई कथा फिर आपको औरों को सुनानी हैं। आप सुनाएंगे कथा या फिर आप कथा को दे भी सकते हैं श्रीमद भागवतम के रूप में , ज्ञान का दान करो या फिर सुनी हुई कथा को कहोगे तो आपका ज्ञान घटेगा नहीं। “ दानेन वर्धते “  ये ज्ञान की विशेषता है कि ज्ञान देने से बढ़ता है, घटता नहीं है। वैसे धन देने से भी, भगवान को या उनके भक्तों को आध्यात्मिक कार्यकलापों के लिए, आपका धन कभी घटेगा नहीं। यहाँ देनेवाले कुछ अपनी मुंडी भी हिला रहे हैं, अपना अनुभव बता रहे हैं। एक माताजी हैं इतनी दूर से दिल्ली-नॉएडा से यहाँ कथा-श्रवण  केलिए आयी हैं और खूब दान देती भी रहती हैं। हरि हरि! और वैसे देने में जो आनंद है वो देनेवाले को ही पता है और वो आनंद भगवान् ही देते हैं। भगवान् की सेवा की, उनकी कथा सुनाई, भगवद गीता और  भागवतम अपने लिए भी लिया, फिर बाकी सबको भी दिया। “ चैरिटी बिगिंस ऐट होम “ । यहाँ देखिये इस चित्र में श्रील प्रभुपाद लाइफ मेंबर को ग्रंथो का सेट दे रहे है। श्रील प्रभुपाद की जय!

वैसे कृष्ण कहे है जो देता है वो :-

“न च तस्मान्मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तम: ।
भविता न च मे तस्मादन्य: प्रियतरो भुवि ॥”  ६९ ॥
(श्रीमद भगवद गीता 18.69)

मुझे संसार में उससे अधिक प्रिय कोई सेवक नहीं है और न ही कभी कोई उससे अधिक प्रिय होगा। किससे ? जो औरों को गीता के बारे में (यहाँ कृष्ण अर्जुन के संवाद की बात कर रहे हैं) सुनाता है। खुद पढ़ता है, ‘पहले पठन फिर पाठन’  फिर सुनाता है या फिर पूरा ग्रन्थ ही ले लो।

तो ऐसा ग्रंथ का वितरण करने वाले व्यक्ति,इस ज्ञान-भक्ति का प्रचार-प्रसार करने वाले व्यक्ति भगवान को अति प्रिय हैं। आप प्रिय बनना चाहते हो? कृष्ण के प्रिय बनना चाहते हो? अभी मैं सोच तो रहा ही हूँ कि आपको कृष्णलीला सुनाऊँ। मेरे बोलने से पहले हमारे पास एक शॉर्ट  वीडियो है जिसमें भगवान के गुणों का वर्णन है। उसको देखना चाहोगे? कृष्ण में कितने गुण हैं? ६४ गुण हैं। इसको  एक छोटा-सा सैंपल कहो या लिस्ट, कृष्ण तो गुणों की ख़ान हैं और उसमें से मोटे-मोटे नाम गुणों के यहाँ लिए जा रहे हैं। रूप गोस्वामी प्रभुपाद सुनाएँ हैं। क्या आप तैयार हैं? चलो देखते हैं ये कैसे कार्य करता है। इसमें थोड़ा अंग्रेज़ी में लिखा है हम अनुवाद नहीं कर पाए। गुण नीचे लिखे हैं अंग्रेज़ी में। पहला है सुंदरता ,दूसरा सर्व आकर्षक, ओजस्वी, तेजस्वी , शक्तिमान, सदैव युवक रहते हैं, बहुभाषी, सत्यवचनी, मधुरभाषी, मुरली वादक, विद्वान, बुद्धिमान-जीनियस, कलाकार-कलाबाज़, चतुर-चालाक, कुशल-एक्सपर्ट, ग्रेटफुल- कृतज्ञ, जज-सही निर्णय सही समय पर लेनेवाले, वे प्रमाण हैं, पवित्र, इन्द्रिय निग्रह, स्थिर-स् स्थैर्य,सहनशील, क्षमाशील, गंभीर, आत्मसंतुष्ट- आत्मा राम, दयालु,परोपकारी, धार्मिक, हीरोइक, दयालु , कृपालु, औरों का सम्मान करने वाले, जेंटल-जेंटलमैन अगर कोई है तो कृष्ण हैं, लिबरल, दानी, कभी-कभी शर्माते भी हैं, भक्त वत्सल, सदैव सुखी रहते हैं , अपने भक्तों के शुभचिंतक, प्रेम के वशीभूत-”मम भक्त पराधीन”अपने भक्त के पराधीन, मांगल्य से पूर्ण मंगलमय, सर्वशक्तिमान, प्रसिद्ध, निष्पक्ष, स्त्रियों के मनों को भी आकृष्ट करने वाले, आराध्य देव-सभी के आराध्य, वैभव से पूर्ण, सम्माननीय, नियंत्रक-कंट्रोलर, अपरिवर्तनशील, हमेशा फ़्रेश- ताज़े, सच्चिदानंद विग्रह- उनका  विग्रह सत्+चित्त+आनंद से पूर्ण है, उनके विग्रह से अनंत कोटि ब्रह्माण्ड उत्पन्न होते हैं, वे शत्रुओं को भी मुक्ति प्रदान करनेवाले मुक्तिदाता हैं। ये ६० हुए और ४ गुण और हैं कृष्ण की या चार माधुर्य—लीला माधुर्य(बाल लीला माधुर्य), रूप माधुर्य, वेणु माधुर्य और प्रेम माधुर्य।  तो कैसे हैं कृष्ण ? आपको पसंद हैं? हम जानते नहीं हैं यही परेशानी है। इसलिए न तों उनकी शरण में आते हैं, न उनसे प्रेम करते हैं, न उनकी प्रेममयी सेवा करते हैं,न तो उनके धाम लौटने की तैयारी करते हैं, यह सब हमारे अज्ञान के कारण है, अज्ञान।

“ज्ञाग्यो” एक शब्द है, उत्तर भारत में कहते हैं ज्ञाग्यो । इसमें दो शब्दों का उल्लेख है। केवल ‘ज्ञ’ मतलब भगवान होता है, ज्ञ मतलब जानकार। भगवान ज्ञ हैं और हम अज्ञ हैं । तो ज्ञ और अज्ञ साथ में कहें तो २ हो गए, द्विवचन, तो ज्ञाग्यो ऐसा होता है । यह समस्या है इसलिए ये भागवत कथा हो रही है और इस्कॉन भगवान की कथा को फैला रहा है,भगवान के संदेश को फैला रहा है,भगवान के नाम को फैला रहा है,जॉइन अस। अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ के  सदस्य बनिए। ये पार्टी कौन सी है? आम आदमी पार्टी नहीं है, आम आत्मा पार्टी । यह कौन सा पक्ष है? पक्ष की बात करें कौन सा पक्ष है? कृष्ण पक्ष । 

“अपली मते कौण आला।” ऐसा दो-चार बार कहा है, किसको?कौणाला ? रावणाला या रावण राज करना रा ला। राम राज्य ची आवश्यकता आहें। कृष्ण राज्य ची आवश्यकता आहें। हरि हरि! तो हम से जुड़ जाइये, इसलिए हम से सुन रहे हो। इस्कॉन की नज़र बहुत समय से हड़पसर पर थी, पहले तो हम आते-जाते थे लेकिन अभी जो हम आए हैं, हम यहाँ रहने के लिए आए हैं। हम लोग अब विज़िटर नहीं रहेंगे। हमारी केशव एंड कंपनी, कई सारे भक्त कृष्णभावना की स्थापना पूना के इस तरफ़ करना चाहते हैं। आप जॉइन करोगे? और ये गीत है उसमें भी कई लीलाओं का या कृष्ण के कई गुणों का उल्लेख है तो उसी के माध्यम से भी कुछ कथा-लीला आपको सुनाएंगे। आप भी सुनिए और पीछे गाइए भी। “अधरम मधुरम्”, यहाँ स्क्रीन पर है।

भजन :

अधरं मधुरम् वदनं मधुरम् नयनं मधुरम् हसितं मधुरम् ।
हृदयं मधुरम् गमनं मधुरम् मधुराधिपते रखिलं मधुरम् ॥१॥

भगवान के अधर मधुर हैं, समस्या यह है कि इसके कुछ शब्द हम लोग नहीं जानते । ‘अधर’ क्या होता है? होठ। ‘वदन’ क्या होता है? मुख। ‘नयन’ क्या होते हैं? आँखें। हसितम तो जानते ही होंगे। तो यह सब मधुर हैं, यहाँ का हर आइटम जो कहा है ये कैसा है ? मधुर है ।

इसलिए हर पंक्ति के अंत में मधुर कहा है। इसका नाम ही है “श्रीमधुराष्टकम “ वल्लभाचार्य की रचना है। वल्लभाचार्य, पुष्टिमार्ग के वल्लभाचार्य  मधुराष्टकम्  लिखे

“अधरम् मधुरम् वदनम् मधुरम् नयनं मधुरम् हसितं मधुरम्
ह्रदयं मधुरम् गमनं मधुरं  मधुराधिपते रखिलं मधुरम्”
मतलब वे माधुर्य के पति हैं, स्वामी हैं। हर बात मधुर है। 

“वचनं मधुरम चरितम मधुरम्  वसनं मधुरम् चलितं मधुरम्
भ्रमितं मधुरम्  मधुराधिपते रखिलं मधुरम्।।
इसको थोड़ा और मधुर बना दो आप वादन से, वाद्य से।

“वेणुर् मधुरो  रेणुर् मधुर”

मतलब वेणु मधुर और रेणु क्या  होता है? भगवान के चरणों की धूल को रेणु कहते हैं। वृंदावन की  वेणु, रेणु और  धेनु  भी प्रसिद्ध हैं। धेनु भी जानते हो ना? 

“पाणिर् मधुरः पादो मधुरो”

पाणी मतलब पीने का पानी नहीं, पाणी मतलब क्या? हाथ।चक्रपाणी मतलब  जिसके हाथ में चक्र है।

पादौ मधुरं मतलब दोनों पैर मधुर हैं। 

“नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं
गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरं”

भगवान् जब भोजन करते हैं या भगवान को जब हम भोग लगाते हैं और भगवान उसका आस्वादन करते हैं तो भुक्तं भी मधुर है। फिर भोजन के उपरांत सुप्तं याने उनका सोना भी मधुर है। 

“रूपम मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरम्, 

करणं मधुरम् तरणं मधुरम् हरणं मधुरम् रमणं मधुरम्”

कृष्ण ने जो कुछ हर लिया तो वो भी मधुर है, गोपियों के वस्त्र हरण करते हैं या कई घरों से माखन की चोरी करते हैं मतलब माखन को हर लेते हैं। 

उनका रमण मधुर है। वृंदावन रमणीय है,रमण रेती भी है वृन्दावन में ही जहाँ रमण करते हैं। वृंदावन में इस्कॉन का मंदिर कृष्ण-बलराम मंदिर रमणरेती में है, जिस धूल/रेती में कृष्ण रमण किए हैं राधा के साथ। राधा-रमण या गोपी- रमण या और भक्तों के साथ ग्वालबालों के साथ रमण, गायों के साथ रमण या विहार। 

“वमितं मधुरम् शमितं मधुरम् मधुराघिपते रखिलं मधुरम्”

गुंजा मधुरा माला मधुरा “ 

गुंजा के बीज आते हैं और उसकी माला भी बनती है, गुंजमाला। माला वैसे पुष्प की माला, फिर वे पुष्प यदि पद्म के हैं, तो पद्ममाली कहते हैं भगवान को। अगर कुछ ऐसे वन के फूलों का चयन करके उसकी माला बनायी तो भगवान् वनमाली बन जाते हैं। जब अलग-अलग पाँच प्रकार के फूल, जो पाँच अलग-अलग रंग के भी हैं उसकी जब माला बनाते हैं वो काफ़ी लंबी होती हैं, जो भगवान के घुटनों तक पहुँच जाती है, उस माला को वैजयंती  माला कहते हैं। वो अभिनेत्री वैजंतीमाला नहीँ, बल्कि वैजयंती माला। फिर कृष्ण और भी सुंदर लगते हैं। यह मैनें ठीक नहीं कहा वैसे क्युकी उस माला का सौंदर्य बढ़ता है कृष्ण के पहनने से। वस्त्र भी जो कृष्ण पहनते हैं उससे कृष्ण अधिक सुंदर नहीं दिखते,बल्कि वे वस्त्र ही अधिक सुंदर दिखने लगते हैं। कृष्ण इतने सुंदर हैं, हम तो इतना ही कह सकते हैं कि इतने सुंदर हैं। आगे ज़्यादा कुछ कह तो नहीं सकते कि कितने सुंदर हैं? उतने सौंदर्य कहा हम पान भी नहीं कर सकते। बृज के कुछ भक्त/आचार्य गण कहते हैं भगवान के सौंदर्य को छिपाने के लिए उनको वस्त्र पहनाए जाते है। क्योंकि कौन डाइजेस्ट करेगा? इतना सुंदर ये कौन देखेगा? 

“यमुना मधुरा वीचो मधुरा”

यमुना मईया  की जय! जमुना भी मधुर है,जमुना में जो लहरें- तरंगे उठती है वे भी मधुर हैं। 

“सलिलम् मधुरम् कमलं मधुरम्”

देखिए कैसे शब्दों को वापर रहे हैं। ‘सलिलम कमलम’ सलिल क्या होता है? सलिल मतलब जल, वो भी मधुर है। कमलम मतलब कमल का पुष्प, इसलिए अम्बुज कहते हैं कमल को।  ‘अंबू’ मतलब जल, मतलब जो जल में जन्म लेता है वो अंबुज। 

“मधुराधिपते रखिलं मधुरम्… . 

गोपी मधुरा लीला मधुरा  युक्तं मधुरम् भुक्तम् मधुरम्

हर्ष्टम मधुरम् श्लिष्टं मधुरम् मधुराधिपते रखिलं मधुरम्”

गोपी मधुरा गावो मधुरा… 

जैसे एक एक का नाम जब लिया जा रहा है, कृष्ण के माधुर्य का, तो उसका हमें स्मरण करना है। 

“गोपी मधुरा लीला मधुरा” 

 ये देखिए गोपियों का हाल, कृष्ण की मुरली की नाद सुनी  

तो दौड़ पड़ीं कृष्ण की ओर जिस वन से कृष्ण मुरली को ध्वनित किए। सर्वोपरी प्रेमी भक्त तो गोपियाँ है और फिर उनकी लीडर राधा महाभावा ठाकुरानी। कैसी हैं राधा? राधा महाभावा ठाकुरानी। उसकी जो आराधना है, राधा का नाम राधा क्यों है? क्युकी वो आराधना करती है। प्रधान आराध्या तो राधा रानी ही है। 

“गोपी मधुरा गावो मधुरा”

गाएं भी मधुर हैं। ऐसे हरेक का जहाँ-जहाँ उल्लेख हो रहा है एक-एक आइटम का खूब वर्णन हो सकता है,उपलब्ध भी है। गायों के बारे में बोलते रहो,कृष्ण के कितनी गाए हैं? नौ लाख गाएं हैं और उनके नाम भी हैं। हर गाय का कम-से-कम एक नाम,फिर निक-नेम भी हो सकते हैं। कृष्ण सभी गायों के नाम जानते हैं। सायंकाल को, गोधूलि बेला जिसको कहते हैं गाएं लौट रही हैं। कृष्ण, बलराम,ग्वालबाल भी नन्दीग्राम की ओर लौट रहे हैं, अपने-अपने गाँव को घर को लौट रहे हैं। गाय जब चलती हैं तो उनके चलने से वृन्दावन की रज, बृजरज आसमान में बड़ी हल्की-फुल्की रज उड़ती है तो उस समय को गोधूलि बेला कहते हैं। गाएं जब चलती है तो धूल उड़ती है।  बेला मतलब समय, द टाइम। भगवान की जो अष्टकालीय लीला हैं। अष्ट मतलब आठ;  काल मतलब २४ आवर्स को आठ कालों में,पीरियड्स में उसका विभाजन हुआ है।

भिन्न-भिन्न प्रकार की या तो सख्य-रस वाली लीलाएं(अपने मित्रों के साथ) या वात्सल्य-रसपूर्ण लीला (नंदबाबा यशोदा के साथ) या माधुर्य लीला (गोपियों और राधा रानी के साथ)। ऐसे अलग-अलग समय पर अलग-अलग लीलाएं होती हैं जब कृष्ण घर वापस आते हैं। देखिए नंदबाबा और यशोदा स्वागत कर रहे हैं कन्हैया का । गायों से प्रेम करते हैं और उनकी प्रेममई सेवा करते हैं कृष्ण, इसलिए “गोपाल” कहलाते हैं।

“यष्टि मधुरा”, यष्टी मतलब छड़ी;

“सृष्टि मधुरा” भगवान की सृष्टि भी मधुर है।

“दलितम मधुरम्”, “फलितं मधुरम्” – उनके हर कार्य, हर भाव मधुर है ।

“मधुराधिपते रखिलं मधुरम्” :- मधुरता के स्वामी, सब कुछ मधुर है। 

“हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे”। 

मेरा यह आईडिया है, मैं इतना आइडिया-बाज तो नहीं हूं, लेकिन सोच रहा हूं कि हम लीला अलग से रखें। वैसे जो भी बात कर रहे हैं वो सब कृष्ण कथा ही है,कृष्ण का गीत है भी कृष्ण कथा ही है। थोड़ा विस्तार से कहने का विचार भी था, किंतु इतनी सारी लीलाएं हैं— किसको कहें, किसको ना कहें और किसको कितना विस्तार से कहें ? किस लीला को संक्षिप्त में कहें? हमने एक पीपीटी बनाया है, आपको दिखाते हैं कृष्ण को। आप देखना चाहोगे? तो आप देख सकते हो। “आई वान्ना सी यू लॉर्ड”। एक-एक करके लीला में आगे बढ़ेंगे। यथासंभव मैं कुछ कमेंट करूंगा। उतना समय भी नहीं है, लेकिन आप समझ लीजिए और दर्शन कीजिए।

पहली स्लाइड:-

यह चित्र को तो आप जानते हो, वसुदेव-देवकी के विवाह के समय कंस ने जब सुना(अब मैं विस्तार से कह रहा हूं) इसका “आठवां पुत्र मृत्यु का कारण होगा” तो देवकी की हत्या का प्रयास तो किया। वासुदेव ने उनको समझाया-बुझाया और फिर विवाह हुआ। उसके बाद, एक-एक करके छह पुत्रों का वध किया। बदमाश कंस मथुरा नरेश! मथुरा का राजा जो था। सातवें पुत्र बलराम की जय! उनका गर्भान्तरण हुआ था। एक गर्भ से दूसरे गर्भ में (देवकी के गर्भ से रोहिणी के गर्भ में) पहुंचा दिया ताकि वह सुरक्षित रहे । आठवें पुत्र थे कृष्ण! कृष्ण कन्हैया लाल की जय! 

दूसरी स्लाइड:- यहाँ कृष्ण का जन्म हो गया।

”वसुदेव ऐक्षत:”,  ऐसा भागवत में कहा गया है । जब वसुदेव ने देखा तब कृष्ण ने कहा,”मुझे गोकुल ले जाओ”। जमुना को पार करके वसुदेव “वासुदेव” को गोकुल ले,जा रहे हैं । 

तीसरी स्लाइड:-

यहां कृष्ण-बलराम का नामकरण हो रहा है, ‘नेम-गिविंग सेरेमनी’ गौशाला में, एकांत में। गौशाला में आप गाय देख रहे हो, कोई गाजा-बाजा नहीं है। छिप-छिप के किया गया ताकी कंस को पता नहीं चल पाये या उसके मन में कोई शंका उत्पन्न न हो कि यह बालक कौन है जिसका गर्गाचार्य जी नामकरण करते हैं,इसलिए युक्तिपूर्वक गौशाला में श्रीकृष्ण बलराम का नामकरण हुआ ।

चौथी स्लाइड:- 

यहाँ पूतना का वध हो रहा है। कृष्ण जब 6 दिन के थे, तो पूतना का वध हुआ। हरि बोल! आप नहीं कह रहे हो ‘हरि बोल’। क्या आपको यह बात अच्छी नहीं लगी? आप पूतना के कुछ लगते हो क्या? सम रिलेटिव्स। देवता तो स्तुति करते हैं, पुष्प की वृष्टि (पुष्प वर्षा) करते हैं जब-जब कृष्ण 

“विनाशाय च दुष्कृताम् “ करते हैं, भगवान दुष्टों का संहार करते हैं ।

पांचवा स्लाइड:- 

यह शकटासुर है,कृष्ण जब 3 महीने के थे। ‘शकट’ मतलब बैलगाड़ी। एक राक्षस ही बैल गाड़ी के रूप में वहाँ पर आया था, भगवान ने उसका वध किया।

छटवां स्लाइड:-

यहाँ तृणावर्त राक्षस एक आंधी की तरह आया और कृष्ण को उठाके आसमान में लेकर के चला गया। भगवान ने उसका भीवध किया। 

सातवां स्लाइड:-

यहाँ पर आप देख रहे हो– “ब्रह्मांड घाट”

इस नाम का एक घाट है क्यूकी यहाँ कृष्ण ने यशोदा को अपने मुख में पूरे ब्रह्मांड का दर्शन कराया। 

आठवा स्लाइड:- 

 दीपावली के दिन यह दामोदर लीला हुई थी। उसी दिन कृष्ण ने नंद बाबा के आंगन में जो दो वृक्ष थे ( नलकूबर और मणिग्रीव नाम के कुबेर के दो पुत्र थे) उनको उखाड़ दिया ऊखल की मदद से और उनका उद्धार भी किया। यहाँ यशोदा ने कृष्ण को उखल के साथ बांध दिया। 

नवां स्लाइड:-

यहां कृष्ण का श्रृंगार हो रहा है यशोदा के द्वारा।

दसवाँ स्लाइड:-

यहाँ अघासुर आ गया। पूतना का एक भाई था बकासुर और एक भाई था अघासुर। देखिए कैसा परिवार है? पूतना, अघासुर और बकासुर। तो अघासुर का भी वध हुआ है । 

ग्यारहवां स्लाइड:-

मेरे लेफ्ट साइड में जैसे कि मैं देख रहा हूं, यहाँ कृष्ण यमुना के तट पर भोजन कर रहे हैं। वे मध्य में है, यह भोजन लीला है,भोजन स्थली नामक यह स्थान है।

बारहवां स्लाइड:-

यह ब्रह्म विमोहन लीला, जो श्रीमद् भागवत के 13 एवं 14 अध्याय में वर्णित है। यह बड़ी प्रसिद्ध लीला है, जहां ब्रह्मा ने चोरी की थी भगवान के मित्रों की, गायों की, बछड़ों की। 

ब्रह्मा ने ऐसा सोचा था कि सारी लीला समाप्त हो जाएगी, लेकिन कृष्ण स्वयं ही बन गए— सारे ग्वाल बाल और बछड़े!  एक वर्ष के उपरांत ब्रह्मा वापस आकर लौटके देखते है तो बिज़नेस हमेशा की तरह चालू है। सब भगवान् की लीला है जो यथावत चल ही रही है। फिर ब्रह्मा समझ गये कि उन्होंने खूब अपराध किया था,अब उसके लिए वह क्षमा मांग रहे है और भगवान् की स्तुति भी कर रहे है।

तेरहवें चित्र में:- 

यहाँ गर्धवासुर या  धेनुकासुर का वध हो रहा है, वृन्दावन के एक तालवन में।

 चौदहवे चित्र में:-

यहाँ कालिया दमन लीला हो रही है, यमुना के किनारे। यमुना से  सटके एक कालिया  हृद् या कालिया दह/ डोह स्थान है जहाँ कालिया का दमन किया है, वध तो नहीं किया है पर वहाँ से भगा दिया, ‘गैट आउट, निकल जाओ यहाँ से’। अब वह फिजी के पास के सागर में रहता है। इसलिए श्रील प्रभुपाद ने फिजी में जो मंदिर बनाया इस्कॉन का, वह कालिया-कृष्ण का मंदिर बनाया है। हम भी गए है फ़िजी और  कई बार दर्शन भी किया है।

पंद्रहवे स्लाइड में:- 

 ये है प्रलम्बासुर भांडीर वन में। भांडीर नाम का एक वन है वहाँ बलराम ने प्रलम्ब को मारा। ये छोटा बन के आया था, लेकिन फिर लम्बा हुआ, इसलिए इसको प्रलंभ कहते हैं। शुरुवात में तो चल रहा था ,फिर चलते-चलते  उसने उड़ान भरा। बलराम का वध करने का उसका उदेश्य था लेकिन बलराम ने ही प्रलम्बासुर का वध किया। हरी  बोल! 

सोलाहवां स्लाइड:-

एक समय वन में आग लगी थी और गाय तथा भगवान के मित्र वहाँ फंसे थे। फिर भगवान् ने कहा कि, “आँखे बंद करो और भय मत करो”। सभी मित्रों ने आँखे बंद करी तो कृष्ण ने क्या किया? अग्नि का पान किया।  इसी के साथ सारी अग्नि को बुझाये और अपने मित्रों तथा अपनी गायों की रक्षा किये। ऐसा कृष्ण कर सकते हैं।

न मे भक्त: प्रणश्यति” भगवान् ने कहा है कि मेरे भक्तों की रक्षा करने की मेरी जिम्मेदारी है। बस हमें भक्त बनना है, फिर हम सुरक्षित हैं कृष्ण के हाथो में। 

सत्रहवां स्लाइड:- 

गिरिराज गोवेर्धन की जय!  इस चित्र में गोवेर्धन की तलहटी में कृष्ण-बलराम भी हैं, मयूर नृत्य कर रहे हैं,कल्प वृक्ष भी हैं,कई सारे जलाशय हैं। इसको टूरिस्ट् स्पॉट या रमणीय स्थल कह सकते हो आप वृन्दावन का। बड़ी ही प्रेक्षणीय, दर्शनीय, शोभनीय स्थली है गिरिराज गोवेर्धन, वहाँ गोचारण लीला हो रही है। 

अठारहवाँ स्लाइड:- 

गोपियों के साथ हर मध्याह्न के समय कृष्ण राधाकुंड जाते है। राधा कुंड की जय! इस कुंड में गोपी-कृष्ण,  राधा-कृष्ण की जलक्रीडायें, झूलन यात्रा इत्यादि-इत्यादि यात्राएं होती हैं और रात्रि के समय रास होता है। दो काल गोपियों के लिए हैं.

एक मध्यान्ह के समय और एक मध्यरात्रि के समय।

उनिस्वी स्लाइड:- 

 यहाँ रास हो रहा है। वृन्दावन में प्रतिदिन पूर्ण चन्द्रमा होता है, पूर्णिमा होती है अतः कृत्रिम प्रकाश की जरुरत नहीं होती है।

बीसवीं स्लाइड:- 

 यहाँ भगवान्  गोपियों के वस्त्रों की चोरी करके ऊपर कदम के पेड़ पर जाकर बैठे हैं, गोपी वस्त्र हरण लीला। चिर नाम काएक घाट है, चिर मतलब वस्त्र।  

इक्कीसवीं लीला:-

यहाँ कृष्ण-बलराम लौट रहे है सायंकाल के समय। गोपियाँ, जिनको दिन में मिले थे, वे पुनः दर्शन के लिए अपने-अपने घरों की छतों पर खड़ी हैं या  अपने-अपने भवनों के आगे। 

बाईस्वी लीला:-

गिरिराज गोवेर्धन की जय!  यह बड़ी मधुर लीला है। कृष्ण 7 दिन और 7 रात गोवेर्धन को धारण किये। ब्रज के सभी भक्त उस गिरिराज की छात्रछाया में कृष्ण का सानिध्य, संगति,  ध्यान, दर्शन, स्मरण कर रहे थे। ये जो कथा का  पंडाल है जैसे कोई छत हो जिसको कृष्ण उठाये हुए हैं और हम पिछले 6-7 दिनों से कृष्ण को देख रहे हैं, कृष्ण की लीला सुन रहे हैं, कृष्ण हमारी रक्षा कर रहे हैं। यह एक सेफ, सुरक्षित जगह है।

तेवीस्वी लीला:-

 यहाँ गोवर्धन लीला के साथ-साथ इंद्र के गर्व को चूर-चूर किया या, चूर्ण बनाया और अब इंद्र क्षमा मांग रहे हैं  क्यूंकि उनके कारण ही तो ये सब हुआ। उन्होंने इतनी वर्षा की इसीलिए कृष्ण ने फिर छाता ही उठाया, गोवेर्धन को छाता बनाया और सब सुरक्षित बच गए । फिर इंद्र आते हैं, क्षमा याचना मांगते हैं और कृष्ण का अभिषेक भी करते हैं। वे स्वर्ग से जल लाये हैं, यहाँ ऐरावत है जो सुरभि गाय के दूध से अभिषेक कर रहा है । ये सुरभि गाय का दूध और जल एक कुंड में इकट्ठा हुआ है, उससे कहे हैं गोविन्द कुंड। गोविन्द कुंड की जय! ये गोवेर्धन की तलहटी में ही है। 

चौबीसवां स्लाइड:-

कृष्ण-बलराम पहुंचे हैं वरुण देव के पास क्यूंकि वरुण देव नन्दबाबा को अपहरण करके ले गए थे। तो इसीलिए कृष्ण- बलराम उनको बचाने गए हैं और  नन्दबाबा को लेकर पुनः वृन्दावन आये हैं।

पच्चीसवी लीला:-

 गोपियों का  कृष्ण के साथ पुनः मिलन हो रहा है, रस नृत्य ये होली खेल रहे हैं कुंजो में। 

“निकुंज में विराजे घनश्याम राधे राधे” हम गाएंगे नहीं इस भजन को। जहाँ माधुर्यलीला संपन्न होती है उसको निकुंज कहते हैं, जहाँ कुञ्ज में विहार करते हैं। 

“जय राधा माधव कुञ्ज बिहारी”। 

छब्बीसवां चित्र:-

इसमें अरिष्टासुर है। असुर कोई गधा बनके आता है, कोई घोड़ा बनके तो कोई बैल बनके आता है। क्या-क्या बनके ये सब असुर आते रहे  और इन सबका कृष्ण कल्याण करते रहे, उद्धार करते रहे। स्वाहा! 

सत्ताइस्वे चित्र में:- 

 जब कंस ने अक्रूर को भेजा वृंदावन  कृष्ण-बलराम को लेकर आने के लिए। जब रास्ते में अक्रूर जी ने भगवान् के चरण चिन्ह देखे तो रथ से धड़ाम से गिरे और भगवान् की चरण चिन्हों का दर्शन और स्पर्श करके चरणधूलि को अपने माथे पर ले रहे हैं। 

अठ्ठाइसवी लीला:-  

दूसरे दिन जब अक्रूरजी कृष्ण-बलराम को लेकर जा रहे थे तो सब गोपियाँ ने घेराव किया या चक्का जाम किया इस रथ का। उन्होंने कहा, “अक्रूर तुम बहुत क्रूर हो, हमारे प्राणनाथ को ले जा रहे हो, हमारे प्राण भी जा रहे हैं कृष्ण बलराम के साथ”। 

उन्नतीवी  स्लाइड:-

जब कृष्ण बलराम को ले गए, अब कृष्ण बलराम दोनों मथुरा में है , यहाँ कंस का वध होना है। उसके पहले कृष्ण-बलराम मथुरा नगरी का भ्रमण कर रहे हैं।  यहाँ कुवलयापीड नाम का एक विशेष बलशाली हाथी का भी वध किये कृष्ण और उसके दांतों को उखाड़ के बलराम को दे दिया। दोनों ने अपने-अपने कंधों पर एक-एक दांत को रखा और उसको लेकर कुश्ती के जंगी मैदान में गए। वहाँ कंस मामा भी बैठे थे और कंस ने जैसे ही देखा कृष्ण-बलराम को,किसके साथ? दांतो के साथ। तो वह समझ गया  कि ये मेरे हाथी के ही दांत हैं। फिर कंस कांपने लगा ये सोचके कि अगला नंबर मेरा है। उसे समझ में आरहा है कि कितने बलवान हैं कृष्ण-बलराम।  

बीसवीं स्लाइड:- 

इसमें कुब्जा है। वह टेड़ी थी ३ जगह से लेकिन कृष्ण ने क्या किया? जब उसने कृष्ण के अंग पर चन्दन लेपन किया सर्वांग में, तो कृष्ण प्रसन्न हुए। कृष्ण ने अपने चरण कुब्जा के पैर पर रखे हैं (जैसा कि आप देख रहे हो) और ठोड़ी से उठाके उसको सीधा कर दिया। हरि बोल! 

इक्किस्वी स्लाइड:- 

कृष्ण-बलराम जा रहे है कंस टीला पर, जहाँ कंस वध हुआ और जो कुश्ती का मैदान भी था। वहाँ पर हज़ारों लाखों प्रेक्षक उपस्थित थे। इस बदमाश ने वसुदेव और देवकी को भी वहाँ लाके रखा था इस विचार से कि “वसुदेव और देवकी को  देखने दो,कृष्ण बलराम का आज वध होगा। कुश्ती खेलते- खेलते इनकी जान लेंगे, ये सब उनको देखने दो”। यहाँ धनुरयज्ञ हो रहा था, कृष्ण-बलराम उस धनुष को उठाये हैं और उसके दो टुकड़े किये। उसी के साथ कृष्ण बलराम ने एक-एक टुकड़ा लिया, सभी दुष्टों को मारा और उनकों यमपुरी भेजा। 

बाईस्वी लीला:- 

रास्ते में एक माली ने भगवान् केलिए एक माला अर्पित की, उसका नाम भी शायद सुदामा ही था। फिर कंस का वध हो गया। मथुरा में पहली लीला तो ये कंस वध की ही है। अब दोनों मथुरा में ही रह रहे हैं।  अब तक लेकिन उनकी पढ़ाई  नहीं हुई थी, सिर्फ गाय चराने ही जाते थे। कृष्ण अब ग्यारह वर्ष के थे और बलराम बारह वर्ष के। माता-पिता ने, वसुदेव देवकी ने उनको उज्जैन भेजा अवन्तिपुर में। वहाँ सान्दिपुनि मुनि का आश्रम था, वे ही वहाँ के आचार्य थे और वही कृष्ण-बलराम के गुरु बने। उन्होंने 64 दिनों में 64 कलाएं या विज्ञान,आर्ट्स इत्यादि-इत्यादि खूब सिखाया। 

 तेईसवां चित्र:- 

इसमें दक्षिणा के रूप में कृष्ण-बलराम ने अपने गुरु के पुत्र,      जिसकी पहले मृत्यु हुई थी, उसको लौटा दिया था, यमराज से वापस लाकर। 

चौबीसवां चित्र:- 

इसमें कृष्ण ने भेजा है उद्धव को। इसमें जो मूर्ति है या  व्यक्तित्व है, ये दिखते है की नहीं कृष्ण जैसे? मैंने कहा था आपको कि उद्धव कृष्ण जैसे ही दिखते हैं। इसको स्वरूपसिद्धि कहते हैं। कृष्ण का जैसा स्वरुप है वैसे स्वरुपवाले कुछ भक्त भी हैं।  जैसे शुकदेव गोस्वामी कृष्ण के जैसे ही दिखते हैं और ये उद्धव भी कृष्ण के जैसे ही दिखते हैं। उद्धव-संदेश , इसमें उद्धव कृष्ण के पत्र को पढ़ कर सुना रहे है गोपियों को और वहाँ राधा रानी भी हैं।  जय श्री राधे! 

पच्चिस्वां चित्र:- 

 ये है द्वारका का दृश्य। 

अब हमें रुकना चाहिए। अब तक वृन्दावन और मथुरा की लीला पूरी नहीं हुई हैं, इतना ही देखे हैं। आज की कथा को, अपनी वाणी को और आपके कानों को विराम देते हैं। 


जय निताई गौर प्रेमानन्दे हरि हरि बोल!