Nityananda Trayodashi
Day 1
03-02-2023
ISKCON Pune

दाऊजी का भैया! कृष्ण कन्हैया!

पुनः प्रकट हुई वही टीम, दाऊजी का भईया और कृष्ण कन्हैया। व्हाट हैपेंड? कैसे हो आप? आर यू हैप्पी? हैप्पी बर्थडे टू …नित्यानंद प्रभु की जय! नित्यानंद त्रयोदशी महोत्सव की जय! नित्यानंद, वैसे आनंद के स्रोत वहीं हैं और वही आज प्रकट होने जा रहे हैं। प्रकट हुए भी और वैसे होते ही रहते हैं- यह प्राकट्य की नित्य लीला है नित्यानंद प्रभु की। वैसे औरों की भी नित्य लीला होती ही है- गौरांग की कहो या कृष्ण कन्हैया लाल की कहो या दाऊजी का भैया की कहो। यहाँ पर, राइट हियर, नित्यानंद प्रभु 10 वर्ष पूर्व प्रकट हुए। आपको को कुछ हुआ जब हमने कहा कि प्रकट हुए? ये टैन्थ एनीवर्सरी ऑफ टेम्पल ओपनिंग भी आज हम मना रहे  हैं। इसको ब्रह्मोत्सव अब भी कहते हैं। अगर टेक्निकल भाषा में कहो तो ये 10वाँ ब्रह्मोत्सव है। इसीके साथ दसवें ब्रह्मोत्सव के अवसर पर नित्यानंद प्रभु के साथ ,औरों को भी एक विशेष आल्टर आपने भेंट दिये या ऑल्टर की व्यवस्था की तो  ये न्यू ऑल्टर का भी उद्घाटन हो रहा है। कुछ दिन पहले हुआ ही और प्रेम संकीर्तन की जय ला! उसका भी प्राकट्य और प्रारंभ आज होने वाला है। कैसा कीर्तन?

प्रेम संकीर्तन। हरि हरि! ये कठिन है। कीर्तन तो सभी करते ही हैं, वो कठिन नहीं है लेकिन प्रेम संकीर्तन कठिन है। फिर भी कुछ प्रयास तो किया ही जाएगा, कई सारे  कीर्तनीयाज़ यहाँ पहुँचे हैं संसार भर से ।  मायापुर से भी,वृन्दावन से भी, यह कीर्तन मेला कहो या प्रेम संकीर्तन भी,आज है और कल भी होगा। कई सारी नई बातें, नया ऑल्टर,नया कीर्तन, प्रेम कीर्तन, अभी अभी मैंने सुना ये व्यास आसन भी नया है, इसका भी उद्घाटन है। आप भी नये हो, यस? कल के आप नहीं रहे आज, उस दृष्टि से नये, वी चैंज,परिवर्तन होते रहते हैं। होना चाहिये रेवोल्यूशन इन कॉन्शसनेसकान्शसनेस, विचारों की/भावों की क्रान्तिm हर दिन भी नया हैं हमारे लिए और हम भी नये बन जाते हैं हर दिन। तो आप सभी का भी स्वागत है।

कीर्तन:- 

“नदिया गोद्रुरुमें नित्यानंद महाजन

पतियाचे नाम हट्ट जीवेरे कारण”….. 

 

यह गीत एक अनाउंसमेंट हैं। अनाउंसमेंट हो रही, अनाउंसमेंट कहते ही आप तैयार हो गये थे सुनने केलिये। कुछ घोषणा/सूचना है जिसकी घोषणा करनेवाले श्री भक्तिविनोद ठाकुर हैं। इस गीत में वे अनाउंस कर रहे हैं,क्या  अनाउसमैन्ट?

“ नदियाँ गोद्रुमे नित्यानंद महाजन” 

नदिया गोद्रुम में याने नदिया में है एक नवद्वीप और उस नवद्वीप में एक द्वीप है गोद्रुम द्वीप। उस गोद्रुम द्वीप में नित्यानंद प्रभु, ‘पतियाछे नामहटट्  जीवेर कारण’, नित्यानंद प्रभु नामहट्ट  प्रारम्भ किये हैं। जैसे  बाज़ार हाट  होता है वैसे नाम हाट होता है। किसका हाट? हाट मतलब  मार्किट प्लेस। नाम हट्ट- यहाँ केवल एक प्रोडक्ट मिलता है, वो कौनसा ? “हरेर नाम एव केवलम”  नाम हाट और फिर आगे भक्तिविनोद ठाकुर कह रहे हैं, “श्रद्धावान जन हे!  श्रद्धावान जन हे!” यहाँ श्रद्धावान लोगों के लिए अनाउंसमेंट हैं, क्योंकि जो मार्केट प्लेस आंफ द होली नेम, ‘नाम हाट’  जो प्रारंभ हो चुका है। इस नाम को कैसे प्राप्त कर सकते हो? श्रद्धा मूल्ये। क्या मूल्य चुकाना होगा? श्रद्धा है तो आ जाओ अंदर ला, अदर वांइस  गेट आउट, हरिनाम प्राप्त नहीं होगा। हरि हरि! 

“प्रभुर आज्ञाय भाइ  मागि एइ भिक्षा… 

बोलो कृष्ण भज कृष्ण कर कृष्ण शिक्षा… 

अपराध शून्ये  हय लह कृष्ण नाम…

कृष्ण माता , कृष्ण पिता, कृष्ण धनप्राण ।। 

 नित्यानंद राम जय नित्यानंद राम! 

गौरा निताई श्री श्री गौरा निताई। 

“कृष्णेर संसार कर छाडि अनाचार 

जीवे दया कृष्णनाम सर्व धर्म  सार। .. 

महाराज का कीर्तन :

 

गौरा निताई श्री श्री गौरा निताई! 

 

“हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे 

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे”

 

ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया।

चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः॥

श्री चैतन्यमनोऽभीष्टं स्थापितं येन भूतले।

स्वयं रूपः कदा मह्यं ददाति स्वपदान्तिकम्॥

 

वन्देऽहं श्रीगुरोः श्रीयुतपद-कमलं श्रीगुरुन्‌ वैष्णवांश्च

श्रीरूपं साग्रजातं सहगण-रघुनाथान्वितं तं सजीवम्।

साद्वैतं सावधूतं परिजन सहितं कृष्ण-चैतन्य-देवम्‌

श्रीराधा-कृष्ण-पादान्‌सहगण-ललिता-श्रीविशाखान्विताश्च॥

 

वाञ्छा-कल्पतरुभ्यश्च कृपा-सिन्धुभ्य एव च।

पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः॥

 

हरेर नाम हरेर नाम हरेर नामैव केवलं

कलौ नास्त्य एव नास्त्य एव नास्त्य एव गतिर अन्यथा ॥

 

नमो महावदान्याय कृष्णप्रेम प्रदायते

कृष्णाय कृष्ण चैतन्ये नाम्ने गौरत्विषे नमः।। 

 

वंदे श्रीकृष्ण-चैतन्य-नित्यानंदौ सहोदितौ

गौड़ोदये पुष्पवन्तौ चित्रौ शन्-दौ तमो-नुदौ।। 

 

नमः ॐ विष्णु-पादाय कृष्ण-प्रेष्ठाय भू-तले

श्रीमते भक्तिवेदांत-स्वामिन् इति नमिने

नमस्ते सरस्वतेदेवै गौर-वाणी-प्रचारिणे

निर्विशेष-शून्यवादी-पश्चत्य-देश-तारिणे।। 

 

श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानन्द

श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि-गौरभक्तवृन्द॥

 

हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे।

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥

 

आजानु-लंबित-भुजौ कनकवदातौ

संकीर्तनेक-पितरौ कमलायताक्षौ 

विश्वम्भरौ द्विज-वरौ युग-धर्म-पालौ

वन्दे जगत् प्रियकरौ करुणावतारौ ॥

 

जय जय श्रीचैतन्य जय नित्यानंद

जय अद्वैतचंद्र जय गौरभक्तवृंद।। 

 

जय ॐ विष्णु-पाद परमहंस परिव्राजकाचार्य अष्टोत्तर-शत श्री श्रीमद्  हिस् डिवाइंन ग्रेस श्रील ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद की जय! 

जय ॐ विष्णु-पाद परमहंस परिव्राजकाचार्य अष्टोत्तर-शत श्री श्रीमद् श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर प्रभुपाद की जय! 

 

अनंत-कोटि वैष्णव-वृंद की जय! 

नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर की जय! 

प्रेम से कहो

“श्रीकृष्ण-चैतन्य प्रभु नित्यानंद

श्रीअद्वैत गदाधर, श्रीवासदि-गौर-भक्त-वृंद की जय! 

श्री-श्री-राधा-कृष्ण गोप-गोपीनाथ, श्याम कुंड, राधा कुंड, गिरिगोवर्धन की जय! 

वृन्दावन-धाम की जय! 

मथुरा-धाम की जय! 

द्वारका धाम की जय! 

जगन्नाथ पुरी धाम की जय! 

मायापुर धाम की जय! 

एकचक्र ग्राम धाम की जय! 

गंगा-माई यमुना-माई की जय! 

भक्तिदेवी तुलसी महारानी की जय! 

समवेत-भक्त-वृंद की जय! 

हरिनाम संकीर्तन की जय! 

श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की जय! 

नित्यानंद प्रभु की जय! 

नित्यानंद त्रयोदशी महोत्सव की जय! 

श्री श्री ग़ौर निताई की जय! 

श्री श्री जगन्नाथ बलदेव सुभद्रा की जय! 

ललिता विशाखा राधा वृंदावनचंद्र की जय! 

इस्कॉन प्रतिष्ठाता आचार्य श्रील प्रभुपाद की जय! 

इस्कॉन NVCC पुणे की जय! 

10 वें ब्रह्मोत्सव की जय! 

निताई गोरा प्रेमानंदे! 

ऑल ग्लोरीज़ टू द असेंबल्ड डिवोटिस! 

सभी उपस्थित भक्तों की जय! 

श्री गुरु गौरांग की जय! 

हरि हरि! 

आनंद भयो….. आनंद हुआ।

हड़ाई पंडित के घर आनंद भयो!

भयो से कुछ भय लग रहा आपको? ‘भयो’ मतलब ‘होना’, 

ये ब्रजभाषा है। जैसे नंद के घर आनंद भयो एक समय( 5000 साल पूर्व), ऐसे ही आज के दिन 500 से भी अधिक वर्ष पूर्व गौरांग महाप्रभु और नित्यानंद आये। गौरांग भगवान  प्रगट हुए थे 536 वर्ष पूर्व । इसमें 20 वर्ष और जोड़ दीजिए तो बनेंगे 556 वर्ष। हम थोड़ा विश्वास के साथ कह सकते हैं कि 556 साल पहले आज के दिन नित्यानंद प्रभु प्रकट हुए। हरि बोल! दुर्दैव से उस समय हम वहाँ नहीं थे, पर अगर होते तो फिर हम यहाँ नहीं होते इस समय। हम यहीं के यहीं रह गए, खैर कोई परवाह नहीं है, अब तो हैं ना हम और आज हम मना रहे हैं नित्यानंद प्रभु का आविर्भाव दिवस। नित्यानंद प्रभु की प्राकट्य स्थली एकचक्र ग्राम है, जिसको राड देश भी कहा गया है। राड देश इसलिए कहा गया क्योंकि वहाँ से गंगा नहीं बहती है, शायद जमुना बहती है।हरि हरि! 

“वो आनंद नाहीं अमीरी में, जो आनंद फकीर करें”, आप सब लकीर-फकीर बन रहे हो, तो आपको भी अधिकार है। नित्यानंद प्रभु ने हमको भी भाग्यवान बनाया है। नित्यानंद प्रभु के आविर्भाव या जन्मदिन के अवसर पर, उनकी बर्थडे पार्टी में हमें भी बुलावा आया है और हम पहुंच चुके हैं नित्यानंद प्रभु का आविर्भाव/ जन्मदिन मनाने के उद्देश्य से। ये कुछ कम भाग्य की बात है क्या? आपकी लॉटरी वगैरह तो नहीं लगी? हरि हरि! हमारा यहाँ होने के पीछे नित्यानंद प्रभु का हाथ है या नित्यानंद प्रभु कारण है, “सर्व कारण कारणम” है। अद्भुत घटना घटी है आज के दिन, आज से 536 वर्ष पूर्व,”बलराम होईलो निताई” । बलराम बन जाते हैं नित्यानंद प्रभु। 

“वंदे श्रीकृष्ण चैतन्य नित्यानंदो सहोदितो
गौडोंदये पुष्पवन्तो चित्रो शमदो तमोनुदो “

इस प्रार्थना में कहा है कि चैतन्य महाप्रभु और नित्यानंद महाप्रभु नामक एक सूर्य और एक चंद्र का उदय हुआ। ‘चित्रौ’ मतलब अद्भुत, दोनों का उल्लेख होरहा है इसलिए चित्रौ। ‘शमदो’  मतलब शांति देने वाले, “ शांताकारम भुजग शयनं”। गौर निताई क्या करेंगे? ये चित्र-विचित्र अद्भुत हैं ही। वे किस लिए प्रकट हुए? सारे संसार को शांति देने के लिए, पीस ऑफ माइंड भी कहो।

 “निताई पदकमल कोटी चंद्र सुशीतल” नित्यानंद प्रभु के चरणों का आश्चर्य लेने से (आश्रय मतलब छत्रछाया) उनके चरण कमल की छत्रछाया कितनी शीतलता प्रदान करेगी? ‘कोटीचंद्र सुशीतल’। एक समय गुरुकुलों में शिखा को ऊपर बांधकर रखने की व्यवस्था थी, जैसे नींद आ जाए तब। ऐसे हैं नित्यानंद प्रभु, ज्यादा कहा तो नहीं लेकिन  फिर कह भी रहे हैं कि कैसे हैं नित्यानंद प्रभु? ऐसे कैसे-कैसे हैं यह कहा तो नहीं,थोड़ा ही कहा है। हमारे पास सात दिवस तो नहीं हैं कथा के लिए, अगर होते तो फिर बात भी सकते थे कि कैसे-कैसे ऐसे-वैसे। नित्यानंद प्रभु की जय! 

 इतना तो समझ रहे हैं आप कि नित्यानंद प्रभु भगवान हैं, “बलराम होयले निताई” या “नंदनंदन जेई शचिसुत होईलो सेई” जो नंदनंदन थे वो शचिसुत बन गए, और बलराम जी नित्यानंद प्रभु बन गए। क्योंकि दशरथ ही बने थे हड़ाई पंडित और सुमित्रा ही बनी थी पद्मावती। हरि हरि! यहाँ तो फिर और भी कनेक्शन जुड़ गया। त्रेतायुग में प्रकट होने वाले राम और लक्ष्मण द्वापर में प्रकट होते हैं कृष्ण-बलराम के रूप में और उन्हीं का प्राकाट्य कलयुग में गौरांग-नित्यानंद प्रभु के रूप में होता है। यह सब सत्य है लेकिन इस सत्य का उतना प्रचार नहीं हुआ है। गौर निताई को कौन जानता है? या फिर गौर को जानने वाले कुछ लोग मिलेंगे लेकिन नित्यानंद प्रभु को जानने वाले बहुत कम है। लेकिन इतनों को भी कुछ 30-40 वर्ष पूर्व ये सब पता नहीं था। आपको कहोगे कि हम थे ही नहीं। हरि हरि! जब हम छोटे थे तो बंगाल में,उड़ीसा में कुछ लोग ये जानते होंगे या राधा कुंड में या मणिपुर में जानते होंगे गौर निताई को। तमोगुण से मुक्ति हेतु भी ये गौर निताई प्रकट हुए। निश्चित ही धीरे-धीरे जो अज्ञान है, “ अज्ञान जम तमः “ अज्ञान का अंधेरा जो फैला हुआ है  पूरे संसार भर में जिसके कारण गौर निताई को लोग नहीं जानते। इतनों को पता चला तो फिर औरों को भी धीरे-धीरे पता चल जाएगा। लेकिन कौन बताएगा उनको? कौन बता देगा? हम। आप ‘तुम’ नहीं हो? आप अगर ‘मैं’ कहते तो अच्छा होता, “मैं बताऊंगा या मैं अपना पार्ट निभाऊँगा, योगदान दूंगा या मैं भी अपनी भूमिका निभाऊँगा “ ।

नित्यानंद प्रभु की जय!

गौर नित्यानंद की कथा उनकी लीला उनके धाम का प्रचार-प्रसार हो। 

“हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे’

गौर निताई का जब परिचय होगा दुनिया को, उसीके साथ हरि नाम का भी प्रचार होना ही है। यह नहीं कि लोगों को गौर निताई का पता चला और हरे कृष्ण महामंत्र के कीर्तन का पता नहीं चला, ऐसा तो नहीं हो सकता। लेकिन ऐसा अगर हो रहा है तो फिर हमने पूरा परिचय नहीं दिया, गौरांग महाप्रभु और नित्यानंद महाप्रभु का। क्योंकि वे है ही कौन? “संकीर्तनेक पितरौ”  फाउंडिंग फादर्स। इस हरेकृष्ण आंदोलन के फाउंडिंग फादर्स दो हैं इसलिए वहाँ पर फादर्स चल रहा है। पितरौ मतलब दो- गौरांग और नित्यानंद प्रभु ही इस हरेकृष्ण आंदोलन के संस्थापक हैं फाउंडिंग फादर्स हैं। वैसे श्रील प्रभुपाद भी आगे हमारे संस्थापक आचार्य हुए, लेकिन उसके पहले चैतन्य महाप्रभु और  नित्यानंद महाप्रभु फाउंडिंग फादर्स हुए। स्वयं भगवान ने ही इस हरेकृष्ण आंदोलन का उद्घाटन किया उनके प्राकट्य के साथ ही। 

नित्यानंद प्रभु एकचक्र ग्राम में प्रगट हुए। हरि हरि! फिर भी मैं ऐसे कुछ कहता हूं ताकि आप जग जाओ, यह उद्देश्य है। बात अच्छी तो नहीं है, उनका कथा में सोना भी अच्छा नहीं और मेरा कहना भी अच्छा नहीं है। गौरांग नित्यानंद कुछ करो। 

“हा हा प्रभु नित्यानंद, प्रेमानंद सुखी

कृपा अवलोकन करि आमि बड़ों दुखी”

हम बड़े दुखी हैं-खाते हैं पीते हैं सोते हैं;  आहार निद्रा भय मिथुन ही वैसे हमारे दुख का कारण है। “आमी बड़ों दुखी  निताई मोरे कर सुखी” , हे निताई! मुझे भी और औरों को भी क्या करो? सुखी करो। आईये वही प्रार्थना हम सभी करें, सोचते हैं उसके संबंध में। उनके प्राकट्य का दिन है तो कुछ प्रार्थना करते हैं, भिक्षा मांगते हैं। आप तो नित्यानंद हैं, आपका नाम ही है नित्यानंद, नित्य+आनंद। नित्यानंद राम में  ‘राम’ मतलब आराम, इसमें ‘रम’ धातु जो होता है जिसका   मतलब, “ य रामयति च इति रामः “। चाहे वो बलराम हैं या नित्यानंद राम हैं, दोनों यही करते हैं- आराम देते हैं, आत्मा को आराम देनेवाले। “ गोलोकम च परित्यज्य लोकानाम त्रांकारणात्”  भगवान जानते हैं कि हम दुखी ही होंगे क्योंकि यह कौनसा स्थान है? दुखालय है तो दुखालाय में दुख का ही अनुभव तो होगा। भगवान को आती है दया, यह नहीं कि पहले दया नहीं थी फिर आती है दया ।  वे नित्य दयालु भी होते हैं। हरि हरि! लेकिन फिर समय-समय पर जब “धर्मस्य ग्लानिर्भवति” होती है तो “अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृजम्याहम “ । यह नित्यानंद प्रभु को भी लागू होता है जो अभी  गीता में कृष्ण ने कहा है कि मैं कब प्रकट होता हूं? तो नित्यानंद प्रभु वैसे ही प्रकट हुए जैसे मैं कह रहा था। हरि हरि! संसार के लोग तो भगवान के ही लोग हैं, भगवान के खुदके जीव हैं। 

“हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे

हरे राम हरे राम राम हरे हरे “

ये थोड़ा प्रवचन शुरू हो जाता है, कथा रह जाती है। यहां के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा भी हुई थी 10 वर्ष पहले आज के दिन। नित्यानंद प्रभु शांतिपुर से जगन्नाथ पुरी जा रहे थे चैतन्य महाप्रभु के साथ, महाप्रभु ने अभी भी सन्यास लिया हुआ है। वे शचि माता तथा औरों से मिले हैं वहीं शांतिपुर में। वृंदावन धाम की जय! सन्यास के पश्चात महाप्रभु वृंदावन धाम की ओर जाना चाहते थे, इसलिए पूछ भी रहे थे कि “क्या आप लोग जानते हैं वृंदावन जाने का रास्ता कौन सा है?” वहाँ के जो ग्वाले थे, गाय चराने वाले छोटे बालक, उनसे पूछते हैं। लेकिन नित्यानंद प्रभु ने कहा था आगे जाकर उन लोगों को कि “अगर महाप्रभु आपको पूछते हैं तो सही रास्ता नहीं दिखाना। क्योंकि संन्यास लेकर घरवालों को, गांव वालों को, अपनी बूढ़ी माता को और अपनी युवति पत्नी को छोड़कर वे जा रहे हैं, यह अच्छा है क्या?” ।  बालक बोले, “ नहीं नहीं अच्छा तो नहीं है।”  फिर नित्यानंद प्रभु बोले,” इसलिए आप क्या करो, उनको वृंदावन के रास्ता के बजाय, आप दूसरा रास्ता दिखाओ।”  नित्यानंद प्रभु ऐसे चैतन्य महाप्रभु को गुमराह करना चाहते थे, ही वांटेड टू मिस गाइड और वैसे सफल भी हुए। बच्चों ने कहा, “आप वृंदावन में जाना चाहते हैं तो इस रास्ते से जाएं “( गलत रास्ता दिखाया क्युकी नित्यानंद प्रभु ने उनका ब्रेनवाश किया था)। चैतन्य महाप्रभु जब पहुंचे गंगा के तट पर तो बोले, “ मैं वृंदावन जाना चाहता था” , तो नित्यानंद प्रभु ने कहा, “ यह जमुना है, आप तो पहुंच गए।”  चैतन्य महाप्रभु बोले, “ यमुना मैया की जय!” और ऐसा बोल के नदी में कूद पड़े और गोते लगा रहे हैं। इतने में उन्होंने अद्वैत्य आचार्य को भी देखा एक नौका में और यह भी नित्यानंद प्रभु की व्यवस्था थी। कुछ एसएमएस भेजा कुछ एडवांस में बताया था कि,”आप आ जाओ बोट के साथ”। लेकिन जब चैतन्य महाप्रभु ने अद्वैत आचार्य को देखा तो पूछे, “ आप वृंदावन में कैसे? “ । उन्होंने कहा, “ नहीं शांतिपुर यहां पर है।” चैतन्य महाप्रभु समझ गए यह सब नित्यानंद प्रभु की करतूत है, तो वहाँ से प्रस्थान किया और शचि माता से भी मिलन हुआ। शचि माता ने फिर परिवर्तन भी किया, “आप वृंदावन नहीं बल्कि जगन्नाथ पुरी जाओ”। तो चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथ पुरी जा रहे थे नित्यानंद प्रभु, मुकुंद दत्त, जगदानंद पंडित और दामोदर पंडित के साथ, ये पांच लोग जा रहे थे। ये यात्रा करते हुए जब कटक पहुंचे, तो उसके पहले वैसे रेमुणा पहुँचे थे। वहाँ महाप्रभु ने  क्षीरचोर गोपीनाथ के विग्रह की लीलाकथा सुनाई  थी।(यहाँ विग्रह की स्थापना भी हुई आज के दिन तो इसलिए हम कुछ इसके संबंध में बोले) । जब क्षीरचोर गोपीनाथ से आगे बढ़े तो कटक आए । वहाँ नित्यानंद प्रभु ने माइक्रोफोन लिया और उन्होंने कथा सुनाई। कौनसी कथा? साक्षी गोपाल की। वृंदावन के गोपाल साक्षी बनना चाहते थे, ऐसी इच्छा थी उस यंग ब्राह्मण की जिसने भगवान् से कहा था, “ आपके सामने तो उसे ब्राह्मण ने वचन दिया था, लेकिन अब वो मना कर रहा है तो आप चलिए। यू प्लीज कम, आप साक्षी बनिए क्युकी आपने सुनी थी बात/वचन या प्रोमिस। “

तो उस समय कथा के अंतर्गत भगवान् कहे, “ क्या कह रहे हो, मैं और उड़ीसा जाऊँ? मैं तो चल नहीं सकता।” ब्राह्मण ने कहा, “प्रभु आप बोल सकते हो तो क्या चल नहीं सकते? और अगर बोल सकते हो तो आप चल भी सकते हो “। भगवान् फिर आगे चलके, तो वे विग्रह हैं। 

“श्रीविग्रह राधन नित्य नाना शृंगार तन मंदिर मार्जनादौ 

युक्तश्च भक्तान्सश्च नियुन्जतोsअपि वंदे गुरु श्री चरणारविंदम “

भगवान अर्चाविग्रह रूप में हैं, ये भी अवतार होता है भगवान का। नित्यानंद प्रभु का प्राकट्य दिन है, उन्होंने पूरी साक्षी गोपाल विग्रह की कथा सुनाई। उसी के साथ भगवान् के विग्रह के महात्मय या तत्व को भी समझाया-बुझाया। हरि हरि! एक समय गौरांग और नित्यानंद प्रभु एक साथ में अंबिका कालना में थे, आप नाम सुने हैं? नवद्वीप से कुछ ही दूरी पर है, वैसे वहाँ पर शांतिपुर है गंगा के उस पार, नदी पार करके है अंबिका कालना। चैतन्य महाप्रभु भी वहाँ से बोट में बैठके, स्वयं ही छोटी नौका को चलाके वहाँ पहुँचे थे। जब ये दोनों वहाँ पहुँचे तो गौरी दास पंडित का वो स्थान था जो भगवान् के सुबल सखा रहे हैं। अद्भुत बातें हैं जिनका लोगों को पता भी नहीं होता। सुबल सखा प्रगट होके बने हैं गौरीदास पंडित। वहाँ गौरीदास जी के घर जाके रहे दोनों, खूब आतिथ्य हुआ, लॉजिंग बोर्डिंग, सारी सुख-सुविधा अर्पित की, सेवा की गौरांग और नित्यानंद प्रभु की और फिर कुछ दिनों के उपरांत दोनों आगे बढ़ना चाहते थे। किंतु गौरीदास ऐसा नहीं चाहते थे कि ये दोनों जाएँ। वे उनको कहते थे “यहीं रहो, यहीं रहो, अभी नहीं जाओ” । फिर गौरांग और नित्यानंद वहाँ विग्रह बन जाते हैं, क्युकी गौरीदास बोले थे वहीं रहने को , तो वे दोनों विग्रह रूप में वहीं रह गए। विग्रह बनने के पश्चात गौर निताई दोनो वहाँ से जाने भी लगे। गौरीदास फिर दौड़े उनके पीछे और कहे “आप भी यहीं रहो “। ऐसा निवेदन करने पे फिर गौर निताई खुद भी विग्रह बन गए, और पहले वाले जो विग्रह बने थे वो चलके जाने लगे। गौरीदास फिर पीछे दौड़े और कहे  “आप रहो, आप रहो! “ फिर गौर निताई बोले, “ठीक है हम रह जाते हैं” और जो विग्रह बने थे वे चलने लगते हैं। समझ में आरहा है कुछ? पल्ले पड़ रहा है? दे आर नॉन डिफरेंट, विग्रह ही भगवान हैं। जब प्राण प्रतिष्ठा होती है जो विग्रह एक फुल फ्लेज़ड भगवान् बन जाते हैं। उसी अंबिका कालना के गौरीदास पंडित के पाठ या मन्दिर ( बंगला में पाठ कहते) में वो विग्रह आज भी वहाँ हैं( जो विग्रह स्वयं गौर निताई से बने थे)। आज भी आप जाके दर्शन कर सकते हो । गौरीदास पंडित ने भी आराधना की , फिर आगे जाके  जाह्नवा माता ने भी उन्हीं विग्रहों की आराधना की। हरि हरि!  वैसे हम तो जानते हैं कि महाप्रभु के विग्रह की आराधना कौन करती थी? शांतिप्रिया। वो विग्रह का नाम है ‘धामेश्वर् महाप्रभु’। 

गौर निताई की जय! जगन्नाथ बलदेव सुभद्रा की जय!

ललिता विशाखा राधा वृंदावनचंद्र की जय! 

पहले स्पेशली गौरे निताई की, फिर स्पेशली नित्यानंद प्रभु की जय! क्युकी उनका बर्थडे है। वे दस वर्ष पूर्व प्रगट हुए और आज के दिन वे दस साल के हो गए। हाउ ओल्ड इज़ आवर गौर निताई? 10 इयर्स ओल्ड। ओल्ड तो होते नहीं, “ओल्ड इज़ गोल्ड”। “ अद्यम पुराण पुरुषम अवयव वलं “। अद्यम मतलब आदी, ओल्डेस्ट। अगर कोई ओल्डेस्ट है तो वो भगवान हैं। लेकिन ओल्ड वो होते भी नहीं, ओल्ड होते हुए भी नए, फ्रेश,ताज़े होते  हैं। “ आद्यम पुराण पुरुषम नवयौवनम च” हरि हरि! उस दिन और उसके पहले से भी इस पुण्य नगरी के कल्याण हुआ। पुणे का पहले नाम पुण्य नगरी था, पुण्य से फिर पुणे हुआ, फिर अंग्रेज़ों ने पुणा कर दिया। फिर कोई पुणावाला भी होगया। कितने अच्छे-अच्छे नाम हुआ करते थे,अपभ्रंश कराते-कराते हम लोग कहाँ आगये। हरे कृष्ण! इस नगरी का कल्याण हुआ, जब भगवान् अपने विग्रह की रूप में यहाँ प्रगट हुए, नित्यानंद त्रयोदशी के दिन। पिछले 10 वर्षों में बहुत कुछ प्रचार- प्रसार होचुका है। 

“हरे कृष्ण  हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे “

मन्दिर का उद्घाटन हुआ दस वर्ष पूर्व , उस समय भी हाउस फूल था या मोर दैन हाउस फुल। लेकिन उसमें से कई सारे तो विज़िटर्स ही थे, पर उस समय के विज़िटर्स आज क्या बने हैं?

दे हैव बिकम फॉलोअर्स । आप विज़िटर् हो कि फॉलोअर् हो? 

समझ गए न आप विज़िटर कौन होते हैं? जो कहते, “हम भेंट देते हैं” तो आप में से कौन-कौन थे भेंट देने वाले? दस साल पहले आपने भेंट दी और अब बने हो आप फॉलोअर्। ऐसा कोई है? आप डर रहे हो कि आप सभी फॉलोअर् ही थे उस समय? या आप थे ही नहीं, ऐसा भी होसकता है। ऐनी वे इसका सर्वे करने में देरी लग सकती है। समय ज्यादा नहीं है क्युकी भगवान् के अभिषेक का समय हो चुका है और मुझे भी वहाँ पहुँचना है। इस्कॉन पुणे nvcc ने बहुत प्रगति- तरक्की की है पिछले दस सालों में। एक तो विजिटर बन गए फ़ॉलोअर। ग्रंथों का वितरण भी यहाँ इतना बढ़ चुका है।

 श्रील प्रभुपाद को मैं माल्यार्पण कर रहा था। मन्दिर के अधिकारियों/भक्तों/ काँगग्रिग्रेशन को ट्रॉफी मिली है इस वर्ष, दैट इज़ आल्सो गुड न्यूज़, ब्रेकिंग दे न्यूज़। केवल भारतवर्ष में पिछले मैराथन में इस्कॉन इंडिया द्वारा 32 लाख भगवद् गीता का वितरण हुआ है। इस 32 में से लायंस शेयर ( बड़ा होता है)” सिंघासा बाटा मोठा अस्तो” किसका रहा? इस्कॉन पुणे nvcc की जय! मतलब आपकी जय! क्युकी nvcc सिर्फ एक बिल्डिंग नहीं, बल्कि यहाँ के भक्त हैं। आप सभी ने मिलके, मन्दिर के यूथ /काँगग्रिग्रेशन ने मिलके इतने सारे ग्रंथों का वितरण किये हैं।

आपकी जय हो! 

“परम विजयते श्री कृष्ण संकीर्तनम”

 नित्यानंद प्रभु की जय! 

निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल! 

श्रील प्रभुपाद की जय!

हरि बोल!

हरे कृष्ण आईये  हम  सभी महाराज जी को धन्यवाद देंगे तीन बार ‘हरि बोले’ कहकर। 

हरि बोल! हरि बोल!हरि बोल!