श्री बलराम रासयात्रा
Hari Katha Zoom Session
23 April 2024


“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय “

वासुदेव कितने हैं? आप तो नॉर्मली सोचते हो एक ही वासुदेव है और वे कृष्ण हैं किंतु बलराम भी वासुदेव है। वसुदेव के पुत्र वासुदेव कहलाते हैं। तो वसुदेव के दो पुत्र थे, आठ होने चाहिए थे लेकिन दो ही बचे , तो वसुदेव के दोनों पुत्र वासुदेव कहलाते हैं। तो कृष्ण भी वासुदेव है और बलराम भी वासुदेव है। वैसे और कई सारी तिथियां आज है, श्यामानंद पंडित आविर्भाव तिथि महोत्सव, इत्यादि और उसके अंतर्गत ऑफ कोर्स आज बलदेव रास पूर्णिमा भी है।आज चैत्र पूर्णिमा है तो आज के दिन बलराम रासक्रीड़ा खेले, ऑफ कोर्स रासक्रीड़ा केवल वृंदावन में ही होती है। रासक्रीड़ा वैकुंठ में नहीं होती ,अयोध्या में नहीं होती ,द्वारका में भी नहीं हो सकती, न तो मथुरा में , केवल और केवल वृंदावन में ही रास क्रीड़ाएं संभव होती है । तो फिर पुनः ये अज्ञान की बात है हम सोचते हैं कि केवल कृष्ण ही रासक्रीड़ा खेलते हैं । नहीं ,नहीं, बलराम भी रासक्रीड़ा खेलते हैं । “अद्वैत अच्युत अनादि अनंत रूपम” कृष्ण के कई सारे रूप है “केशव धृत शूकर रूप, केशव धृत राम शरीर, केशव धृत नरहरि रूप, केशव धारण करते हैं कई सारे रूप तो उन रूपों में से केशव धृत हलधर रूप, जो बलराम रूप है एक ये बलराम रूप ही (कृष्ण के अलावा) एक ऐसा रूप है जो गोपियों के साथ रास क्रीड़ा खेलने में समर्थ है , कॉम्पटेंट है। और रूपों की एक–एक ही ह्लादिनी शक्ति होती है या लक्ष्मी होती है कहो ।

“लक्ष्मी सहस्त्र शत संभ्रम सेव्य मानम , गोविंद आदिपुरुषम तमहं भजामि” तो गोविंद की कितनी लक्ष्मियां है? वे सहस्त्र हैं, ’तदवत’ वैसे ही बलराम की भी “लक्ष्मी सहस्त्र शत संभ्रम सेव्य मानम” , असंख्य या करोड़ों गोपियां बलराम की सेवा के लिए उत्कण्ठित रहती है ,सेवा करती है ,उनके साथ रासक्रीड़ा खेलती है।वो आज की रात है चैत्र पूर्णिमा, वैसे वसंत ऋतु भी है तो इसको वसंत रास भी कहते हैं ।वैसे हम सब परिचित है शरद पूर्णिमा के साथ, शरद पूर्णिमा को श्रीकृष्ण की रास क्रीड़ा प्रसिद्ध है, तो चैत्रपूर्णिमा जो आज है ,आज की बलराम पूर्णिमा वैसे बलराम प्रकट भी हुए थे पूर्णिमा के दिन ही । तो वो भी एक बलराम पूर्णिमा होती है जिस दिन बलराम प्रकट हुए थे। अष्टमी को कृष्ण प्रकट हुए ,पूर्णिमा को बलराम प्रकट हुए। तो आज की जो चैत्र पूर्णिमा है इस पूर्णिमा की रात्रि को बलराम वृंदावन में रास क्रीड़ा खेलते हैं और यह रासक्रीड़ा का वर्णन वैसे उतना विस्तार से नहीं है जैसे कृष्ण के रास क्रीड़ा का वर्णन पांच अध्यायों में हुआ है ,” रास पंचाध्यायी भी उनको कहते हैं । ये बलराम की रास क्रीड़ा का वर्णन शुकदेव गोस्वामी बस एक ही अध्याय में दशम स्कंध ,नोट करो दसवा स्कंद है और 65 वां अध्याय,इसमें शुकदेव गोस्वामी
एक तो बलराम की वृंदावन विजिट, वृंदावन की भेंट और फिर साथ ही साथ बलराम की रास क्रीड़ा का वर्णन करते हैं। हरि हरि!

“उद्धव मोही ब्रज विसरत नाही”
तो कृष्ण कह रहे थे उद्धव से मथुरा में हे उद्धव! मैं ब्रज को भूल नहीं सकता, ब्रजवासियों को भी मैं भूल नहीं सकता और मैं स्वयं तो नहीं जा सकता ब्रज ,तो तुम जाओ । हे उद्धव! मेरा संदेश लेकर जाओ ,उद्धव संदेश जिसको कहते हैं और सारे ब्रजवासियों को , स्पेशली गोपियों की सांत्वना करो । ये तो मथुरा रही , लेकिन अब कृष्ण और बलराम मथुरा से भी आगे बढ़े
हैं । जैसे वृंदावन से वो प्रस्थान कर रहे थे

“ सौदुनिया गोपीनाथ कृष्ण मथुरेसी गेला”
ये मराठी में आप सुनते रहते हो मैं सुनाता रहता हूं। कैसे अक्रूर आए थे या कंस ने भेजा था ,ये ज्यादा मुझे नहीं कहना चाहिए, नहीं तो कैसे सुनाएंगे आपको बलराम रास क्रीड़ा का वर्णन । तो जब अक्रूर ले जा रहे थे कृष्ण और बलराम को तो कृष्ण और बलराम वैसे कहे थे “आया से” अभी अभी आते ही है हम ,अभी अभी लौटते ही है । ऐसा कहकर जो प्रस्थान किए मथुरा के लिए फिर मथुरा में ही रह गए 18 वर्ष । वहां सेलौटना तो दूर रहा वहां से आगे बढ़े , द्वारका गए और अभी द्वारका में भी कितने वर्षों से रह रहे हैं । और यहां ब्रज में तो प्रतिदिन प्रतीक्षा हो रही
थी ,कब आते हैं कृष्ण?कब लौटते हैं बलराम? वैसे कुछ पत्र व्यवहार तो चलता था, लेटर्स एक्सचेंज हुआ करते थे , द्वारका से पोस्टमैंन ले जाता था कृष्ण बलराम के पत्र वृंदावन ब्रज वासियों के लिए और बृजवासी भी अपना उन पत्रों के उत्तर या अपने विरह की व्यथा सुनाया करते थे ,लिखते थे उन पत्रों में। इस प्रकार कुछ कम्युनिकेशन संपर्क तो था। हरि हरि! किंतु हर समय जब वे समाचार सुनते एक दूसरों का, तो अधिक अधिक उत्कण्ठित होते वे एक दूसरे के मिलन केलिए । वैसे द्वारका में उनकी इतनी जिम्मेदारी बढ़ ही गई।

कृष्ण के भी कितने विवाह हो गए ? 16108 विवाह हो गए और 10–10 पुत्रों को जन्म दिया ,हम दो हमारे दो वाला मामला वहां नहीं था। अष्टपुत्र सौभाग्यवती और द्वारकाधीश अब द्वारकाधीश राजा भी बने हैं । वृंदावन में तो गो–पालन ही करते थे, अब द्वारका में प्रजा का पालन भी कर रहे हैं। गो–पालक बने हैं प्रजापालक तो जाना कठिन है सो मच टू डू , इतने व्यस्त है कृष्ण भी बलराम भी । वैसे द्वारकावासी भी तो कहां उनको जाने की अनुमति देने वाले थे। यह दोनों भी गए, गए तो फिर गए काम से, फिर लौटने वाले नहीं है। तो एक समय की बात है कृष्ण बलराम को भेज रहे हैं जैसे पहले उद्धव को भेजे थे मथुरा से, अब द्वारका से बलराम को भेज रहे हैं। द्वारकावासी इस बात से सहमत है ,बलराम को भेजा भी जाएगा, जाते भी हैं तो वह लौट आएंगे क्योंकि कृष्ण यहां है। कृष्ण के बिना वे रहनेवाले नहीं है तो वे जरूर लौटेंगे ।

श्री शुक उवाच:
“ बलभद्र: कुरुश्रेष्ठ; भगवान रथमस्थित सुर दक्ष उत्कंठ प्रययो नंद गोकुलम” (SB 10.10.65)
शुकदेव गोस्वामी ने परीक्षित को कुरुश्रेष्ठ कहा, परीक्षित महाराज को शुकदेव गोस्वामी यह कथा सुना रहे हैं तो उन्होंने कहा –बलभद्र, जो कौन है? भगवान बलभद्र “रथम स्थित” रथ में आरूढ़ होते हैं और प्रस्थान करते हैं। कहां के लिए? नंद गोकुलम , वृंदावन के लिए। क्यों जा रहे हैं या क्यों भेजा जा रहा है? अपने स्वजनों को देखने मिलने जा रहे हैं और कैसा है भाव? उत्कंठ: ,बड़े उत्कंठित हैं। व्रजवासी भी उत्कंठित थे ही, मिलन की उनकी अभिलाषा थी ही। वृंदावन धाम की जय! वृंदावन नंदगोकुलम पहुंच जाते हैं । हरि हरि! हम कल्पना भी नहीं कर सकते हम पतित जीव । उन दोनों की उत्कंठा ,एक दूसरों के मिलन की उत्कंठा और मिलन भी कब हो रहा है? कुछ 50, 60, 70 सालों के उपरांत मिलन हो रहा है। हम जानते हैं पर पता नहीं कितना जानतेहैं?राम,लक्ष्मण,सीता केवल 14 वर्षों के वनवास के उपरांत लौटे। राम लौटे अयोध्या, तो उस समय दोनों भी कण्ठित उतावले थे। फिर राम लक्ष्मण सीता उतरे भी पुष्पक विमान से और जिस प्रकार से सभी माताएं , भरत ,शत्रुघन और सभी अयोध्या वासियों ने जैसे अगवानी ,जैसा स्वागत किया , जैसा मिलन उत्सव रहा हमें तो कहना होगा कि उससे भी कुछ और अधिक विरह भाव तो ब्रज वासियों का था। हरि हरि! वृंदावन के भक्तों का भगवान से प्रेम ,कृष्ण बलराम से प्रेम ,इस प्रेम की तुलना वैकुंठ के भक्तों के भगवान के प्रेम के साथ और वैसे अयोध्या की तुलना तो नहीं करनी चाहिए क्युकी दोनों भी अपने अपने स्थान पर सही है ,पूर्ण ही है ।

किंतु तो भी अध्यात्मिक दृष्टि से या तत्व के दृष्टि से तारतम्य भाव भी होता ही है। कम अधिक, प्लस माइनस या 19 20 का फर्क हो सकता है या हो सकता है 15–20 का फर्क या 10– 20 का फर्क है। तो ऐसा मिलन वृंदावन में हुआ है। बलराम जो बुजुर्गजन है उनके चरण छूते हैं , जो मित्रमंडल है ,सखाभाव वाले जो है उनको आलिंगन देते गले लगाते हैं और जो छोटे हैं, छोटी उम्रवाले हैं उनके लिए बलराम बड़े हैं, बलराम दादा है तो वे लोग बलराम के चरण छूते हैं। इस प्रकार यह सदाचार वैष्णव एटिकेट भी संपन्न होता है। हरि हरि! तो बलराम सभी से मिलते हैं और कल्पना करो और ये कल्पना मैंने कहा शायद हम कर भी नहीं सकते। इतने सारे वर्षों को उपरांत ये मिलन हो रहा है तो क्या क्या पूछा जा रहा है? हम लोग तो कहते हाउ आर यू? कैसे हो? वैसे एक ही वाक्य कहते हैं और कभी-कभी उसको और विस्तार से भी कहते हैं हाउ आर यू?

और हाउ इज दिस वन ? आपके फिर वो रिश्तेदार कैसे है ?आपके पुत्र कैसे है? पत्नी कैसी है? पड़ोसी कैसा है? लाइक दैट..ऑन एंड ऑन… आप का कारोबार कैसा चल रहा है ? ये सारी पूछताछ हो रही है। बलराम भी पूछ रहे हैं और सभी ब्रजवासीगण भी पूछ रहे हैं। यह भी संभव है ही कि बलराम कई सारे बलराम बनके हर एक के लिए उपलब्ध हो रहे हैं और वन ऑन वन संवाद हो रहा है या बलराम एक व्यक्ति से, दूसरे व्यक्ति से ,अनदर वन ,नेक्स्ट वन ,नेक्स्ट वन , नेक्स्ट वन जाकर उनसे वार्तालाप कर रहे हैं । लाइक अ लाइटनिंग , जिस गति से एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचती है। ऐनीवे यह सब तत्व सिद्धांत की बातें तो अब नहीं कहेंगे। हरि हरि! तो क्या वो हमको याद भी करते हैं? हरि हरि! “ कश्चित स्मरतनो राम यूयम दार सतानवितः” हे बलराम अब कृष्ण अपने पुत्र और पत्नियों से घिरे हुए क्या हमारा स्मरण भी करते हैं ? उनको हमारी याद भी आती है? हरि हरि! सभी ऐसी पूछताछ कर रहे हैं ।

“कश्चित स्मरति वा बंधुम पितरम मातरम च स: “। स: मतलब कृष्णः या द्वारकाधीश: । क्या हम या वृंदावन के बंधु ,उनके मित्र पितरम मातरम गोप गोपिया आदि का वे स्मरण करते हैं?बलराम और कृष्ण का संदेश भी लाए है, उसको शेयर कर रहे हैं, सुना रहे हैं। कृष्ण कहे इस गोपी से ऐसा कहो, उस ग्वालबाल को यह बता दो ,नंदबाबा को यह कहो, यशोदा को यह कहो और गायों को भी कुछ बुझाओ समझाओ। आईम मिसिंग ऑल ऑफ देम , तो कृष्ण का संदेश सभी के लिए और फिर बलराम अपनी खुद की ओर से भी सांत्वना के वचन सुना रहे हैं ब्रजवासियों को। तो यह मिलना जुलना दो महीने चलता रहा । “ द्वओं मासौ तत्र च आवासित मधु माधव में वच:” वो दो मास थे चैत्र और वैशाख जिनके मधु और माधव ऐसे भी नाम है चैत्र वैशाख के ।तो पूरे दो मास बलराम वृंदावन में रहे। फिर वैसे तो कहा है लिखा है कि बलराम गोपियों के साथ हर रात्रि को रास क्रीड़ा खेलते थे । किंतु आज के दिन या रात्रि को चैत्र पूर्णिमा को विशेष रास क्रीड़ा का आयोजन हुआ, इट वास अ मेगाइवेंट। और यह समझना होगा या आपने शायद सोचा या समझा होगा, नहीं होगा कि बलराम की अपनी गोपियाँ है। वो कृष्ण की गोपियों के साथ रासक्रीड़ा खेल ही नहीं सकते, नॉट पॉसिबल ।

बलराम न तो राधा के साथ ,न कृष्ण की जो अष्टसखियाँ है उनके साथ और न ही अन्य असंख्य गोपियाँ है उनके साथ रासक्रीड़ा खेलते नहीं , खेल भी नहीं सकते,खेलते भी नहीं। बलराम की अपनी अपनी गोपियाँ है, व्रज की कुछ गोपियों के साथ बलराम का माधुर्य भाव या श्श्रृंगार रस का संबंध है और उन्हीं गोपियों के साथ बलराम आज की रात्रि को चैत्र पूर्णिमा को रास क्रीड़ा खेले “ पूर्ण चंद्रकला मृषतै कौमुदीगंध वायुना” तो शीतल, सुगंधित, मंद हवा बह रही थी वो सायंकाल को उस रात्री को।” यमुना उपवने रेमें सेविते स्त्रीगणेर व्रत:” यमुना के तट पर बलराम असंख्य गोपियों से घिरे हुए थे और वे अब रे में रमने वाले हैं, गोपियों के साथ । गोपियों के साथ वहां विहार हो ही रहा था। पहले ही बता देते हैं आपको यह चैत्र पूर्णिमा की रासक्रीड़ा, बलराम की रासक्रीड़ा कहां संपन्न हुई? वृंदावन में “जय रामघाट जय रोहिणीनंदन” ये रामघाट खेलन वन,ऐसे कई स्थान है हम जब ब्रजमंडल परिक्रमा में जाते हैं तो हम रामघाट पहुंचते हैं । तो कई सारे घाटों के लिए ब्रज प्रसिद्ध है। विश्रामघाट, अक्रूर घाट , केशी घाट, इत्यादि इत्यादि । प्रसिद्ध घाटों में से एक रामघाट है।यहां राम के विग्रह का दर्शन भी हम कर सकते हैं। जब विग्रह का दर्शन करोगे बलराम के विग्रह का तो आप देखोगे उनके हाथ में एक प्याला है वारुणी से भरा हुआ जिसको बलराम इस रासक्रीड़ा की रात्रि को वैसे पिए थे । यहां तक हम जब वहां पहुंच जाते रामघाट पर परिक्रमा के समय , तो वहां के वृक्षों पर कई सारे हनीबीज, बीहाइवज़ और वहां से मधु टपकता रहता है। बाकी स्थानों पर ऐसा दर्शन शायद ही मिलता है लेकिन वहां जब पहुंचते हैं कि बलराम को हनी पसंद ,मधु पसंद होता है, वही वारुणी का भी वो पान किए तो उसका भी स्मरण दिलाते हैं ये बिहाईवज़। और वहाँ बच्चे भी सर्प लेकर पहुंच जाते हैं और सर्प का खेल भी दिखाते हैं।

सर्प क्यों ?बलराम का एक स्वरूप है अनंतशेष । शेष अनंतशेष या नाग बलराम का एक रूप है । इस नाग की शैया पर ही तो कृष्ण लेटते हैं तो वह अनंतशेष वे सर्प के रूप में होते हैं। एक स्वरूप है बलराम का, विस्तार है बलराम का, तो यहां जब हम पहुंचते रामघाट पर तो सर्पों का खेल भी वहां के बच्चे या ब्रजवासी कराते हैं और उस lसे कुछ धन राशि भी कमाते हैं । बलराम ने वारुणी का पान भी किया है “ वरुण प्रेषिता” वरुणदेव ने भेजा वारुणी को और वारुणी बलराम के लिए ये पेय वारुणी उपलब्ध कराई , बलराम जी पीते है” मद विव्हल लोचन” बलराम मद,नशा से विव्हल होते हैं तो उनकी आंखें नशापान किए हुए व्यक्ति की आंखें जैसे होती है और अब बलराम ऐसे रासक्रीड़ा अब प्रारंभ करना चाहते उस मन की स्थिति में । गोपियाँ भी पहुंची है, वातावरण सारा अनुकूल है ,चंद्रमा उदित हुआ है या चांदनी रात है और यह सब रासक्रीड़ा होने ही वाली है तो उसके देखने के लिए असंख्य देवी देवता आकाश में पहुंच चुके हैं, इस इवेंट में पार्टिसिपेट करने के लिए।हरि हरि! और वैसे तो उस समय अब रास कीड़ा प्रारंभ करनी ही थी किंतु वह बलराम देखते हैं कि जमुना तो यहां से बहुत दूर है, वह यहां क्यों नहीं आ रही है? ताकि हम बिल्कुल यमुना के तट पर ही रासक्रीड़ा खेलते। तो कुछ समय के लिए प्रतीक्षा कर रहे थे बलराम , वो सोचने लगे कि उस जमुना को आगे बढ़ना चाहिए, हमारे पास में आना चाहिए ताकि हमारा इवेंट यमुना के तट पर ही संपन्न हो।

किंतु जमुना कुछ देरी कर रही थी जैसे समुद्र भी कुछ देरी कर रहा था जब राम इंडियन ओशन या हिंद महासागर को पार करना चाहते थे लंका जाने के लिए। जैसे राम समुद्र पे क्रोधित हुए तो यहां बलराम भी क्रोधित हुए “ पापी, त्वम माम आज्ञाय अवज्ञाय यत न आयासी” मेरी इच्छा अपेक्षा के अनुसार तुम यहां नहीं आ रही हो, अब मैं दिखाता हूं । तो बलराम क्या करते हैं? अपने हल को उठाते हैं और जमुना को स्वयं ही अपनी ओर खींचने की तैयारी करनेवाले थे तो जमुना भागे दौड़े वह निकट पहुंच जाती है और कहती “ राम राम महाबाहो न जाने तव विक्रमम “ आपका विक्रम, पराक्रम को मैं भूल बैठी थी मुझे क्षमा करो, मुझे क्षमा करो, प्रपन्नाम भक्त वत्सल: “ हे बलराम! मैं आपकी भक्ता हूं, प्रपन्न: , आपकी शरण में आई हूं मुझे क्षमा करो । वैसे यह नोट करनेवाली बात है प्रभुपाद भी यहां के तात्पर्य में या प्रभुपाद के शिष्यों ने जो तात्पर्य लिखा है उसमें भी वे नोट किए हैं ,लिखे हैं । जहाँ रामघाट है जहाँ बलराम की रासक्रीड़ा संपन्न हुई और यहीं पर वे क्रोधित भी हुए थे और स्वयं ही खींचना चाहते थे जमुना को अपनी ओर, तो वह जमुना का जो पाट है, रिवर बेड है काफी चौड़ा है अन्य स्थानों की अपेक्षा। यह भी स्मरण दिलाता है कैसे जमुना वहां आगे बढ़कर बलराम के चरणों तक पहुंच जाती है। तो यहाँ वो विस्तृत है ,वाइड रिव बेड ऑफ जमुना रामघाट जहां है। तो वह फिर क्या कहना बलराम का। यहाँ शुकदेव गोस्वामी विस्तार से नहीं किए है बलराम की रास क्रीड़ा का वर्णन।

जो भी वर्णन वे किए हैं कृष्ण की रासक्रीड़ा शरद पूर्णिमा के रात्रि को ,वही वर्णन यहां भी लागू होता है क्युकी बलराम भी कृष्ण ही है, भगवत्ता के दृष्टि से भी। स्वयंप्रकाश ,पहला प्रकाश ,पहला विस्तार, फर्स्ट एक्सपेंशन ऑफ कृष्ण तो बलराम ही है । फिर आगे हम श्याम श्याम श्याम अंश के अंश के अंश के अंश और आगे आगे विस्तार होते रहते हैं। पहला विस्तार तो कृष्ण का बलराम ही है। प्रभुपाद एक स्थान पर लिखते हैं ही इज़ 98 % कृष्ण। तो उन्नीस बीस का फर्क जो हम कह रहे थे उतना भी नहीं है कृष्ण और बलराम में। एक स्थान पर केवल कांति का, रंग का ही अंतर है । एक “घन एव श्याम” है और दूसरे वाइट सफेद वर्ण वाले। हरि हरि! तो रासक्रीड़ा संपन्न होती है और कई सारी क्रीड़ा झूलन यात्रा भी होती है ऐसे समझना चाहिए, जल क्रीड़ा भी होती है “ विजगाह जलम श्रीविही करेणुभिर इवराट” बलराम गोपियों के साथ यमुना के जल में प्रवेश किए हैं और जैसे हथिनियों के संग में जैसे हाथी जल में खेलता है क्रीड़ा करता है ऐसे बलराम गोपियों के साथ जलक्रीड़ा भी करते हैं।

“भूषणानी महाराणी ददौ कांति शुभाम बृजम”
कांति देवी ने स्नान के उपरांत बलराम को कई सारे वस्त्र, अलंकार और आभूषण अर्पित किए है ,बलराम उसको पहनते हैं “ वसीत्वा वाससी नीले” बलराम के वस्त्र कैसे होते हैं ? नीले होते हैं इसीलिए बलराम को नीलांबर कहते हैं। कृष्ण होते हैं पीतांबर “पीतम अम्बरम “ और बलराम नीलांबर कहलाते नीले वस्त्र पहनते हैं। कई सारी मालाएं पहनाई जाती है ,पहनते है। हरि
हरि! “ एवम सर्व: निशा याता एक एवर मतो ब्रजे” तो उस शरद पूर्णिमा के रासक्रीड़ा जैसा ही यहां भी एक कमेंट हुई है और वह ये है हम तो सोचते हैं या सुनते हैं फिर सोचते भी है कि रासक्रीड़ा बस पूर्णिमा के रात्रि पूरी रातभर चली, नहीं। उस रास क्रीड़ा के पूर्णिमा को व शरद पूर्णिमा की रात्रि को भी और यहाँ चैत्र पूर्णिमा के रात्रि को भी वहाँ कृष्ण और यहाँ बलराम उस रात को ऐसा लंबा खींचे है, मानो कई सारी रातें रात्रियाँ एक साथ आई । तो नॉट फॉर ओनली 12आवर्स ,केवल 12 घंटों की रास क्रीड़ा नहीं रही। वो चलती रही, चलती रही, चलती रही ब्रह्मा की एक रात्रि तक चलती रही। तो इस प्रकार यह हमारे लिए अचिंत्य बातें भी होने लगती है “ माधुर्येर ब्रज योशिताम” इस प्रकार बलराम वहाँ रामघाट पर चैत्र पूर्णिमा की रात्रि को , जो बहुत समय केलिए बीती या चलती रही ,अपनी गोपियों के साथ (जिनके साथ बलराम का माधुर्य कांजुगल संबंध है) उनके साथ बलराम रासक्रीड़ा खेले। निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!