Nrsimha Caturdashi
ISKCON Ujjain
22-05-2024
आप सबका स्वागत है ऐसा मैं कहने जा रहा था और कह भी दिया नरसिंह चतुर्दशी महा उत्सव की जय! आप उत्सव में सम्मिलित हो रहे हो भगवान ने आपको याद किया तभी तो आप यहाँ पहुँचे हो । आप भाग्यवान हो मैं भी कुछ कम भाग्यवान नहीं हूँ । नहीं नहीं आप ही अधिक भाग्यवान हो । आज तो बर्थडे पार्टी मना रहे हैं ,जन्मोत्सव, नरसिंह भगवान की जय! जब बर्थडे होता है तो किसको बुलाते हैं ? अपनों को बुलाते हैं अपनों के लिस्ट बनाते हैं और उनको आमंत्रित करते है । आप नरसिंह भगवान के अपने भक्त ,अपने जीव हो,आपको आमंत्रित भगवान ही किये हैं। उन्होंने बुलाया, उन्होंने पुकारा और आप चले आये ।”सत्यम विधातुम” एक श्लोक हम पढ़ने का सोचे, पढ़ने जा रहे हैं। वैसे कल ही बता दिए नरसिंह भगवान की लीला का वर्णन करेंगे। भगवान जब लीला खेलते हैं तो अकेले नहीं खेलते, लीला खेलने के लिए भक्त भी चाहिए। प्रह्लाद और नरसिंह की लीला का वर्णन भागवतम के सातवें स्कन्ध में स्वयं नारद मुनि कर रहे है । यह संवाद हो रहा है वैसे नारद मुनि और युधिष्ठिर महाराज का , तो उसीके अंतरगत सातवें स्कंद के आठवें अध्याय के 17वे श्लोक में कहा है “ सत्यम विधातुम् निजभृत्भाषितम् व्याप्तिम च भूतेश्व अखिलेश्व सुचात्मनः “ ..
भाषान्तर :– अपने दास, भक्त प्रह्लाद महाराज के वचनों को सिद्ध करने हेतु कि वे सत्य हैं अर्थात यह सिद्ध करने हेतु कि परमेश्वर सर्वत्र उपस्थित है ,यहाँ तक की सभा भवन के खंभे के अन्दर भी है पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान श्रीहरि ने अपना अभूतपूर्व अद्भुत रूप प्रकट किया । यह रूप न तो मनुष्य का था न सिंह का । इस प्रकार भगवान उस सभाकक्ष में अपने अद्भुत रूप में प्रकट हुए ।
तात्पर्य:– जब हिरण्यकशिपु ने भक्त प्रह्लाद महाराज से पूछा “कहाँ है तुम्हारा भगवान? क्या वह इस खंबे में उपस्थित है ? “ तो भक्त प्रह्लाद महाराज ने निर्भीक हो कर उत्तर दिया “हाँ ! मेरे भगवान सर्वत्र उपस्थित हैं।” अतैव हिरण्यकशिपु को विश्वास दिलाने हेतु कि भक्त प्रह्लाद महाराज का कथन अकाट्य रूप से सत्य था भगवान उस खम्भे से प्रकट हो गये । हरि बोल! हमारे लिए प्रकट हो रहे हैं भगवान, भगवान का प्राकट्य या प्रकट होने की लीला भी नित्य लीला है । भगवान सदैव प्रकट होते रहते है । आज भी यहाँ पर भगवान प्रकट हो रहे हैं । जैसे जैसे हम ये वर्णन पढ़ेंगे और उस वर्णन को हम सुनेंगे मतलब क्या होगा? श्रवण और कीर्तन होगा ये, मैंने पढ़ा तो कीर्तन हुआ ,आपने क्या किया? श्रवण किया। ध्रुव महाराज भी कहे है “श्रवण कीर्तनम विष्णु स्मरणम “ ये स्मरण होना ही भगवान का प्राकट्य है । भगवान यदि हमको याद आते हैं ,भगवान का स्मरण होता है तो ये भगवान का प्राकट्य हैं । भगवान तो सत्य युग में प्रकट हुए प्रह्लाद महाराज के लिए या हिरण्यकशिपु के लिए प्रकट हुए ,एक का संहार करने के लिए और दूसरे का उद्धार करने के लिए भगवान प्रकट हुए । यह बात अच्छी है भगवान प्रकट हुए सत्य युग में लेकिन अच्छी बात , बेहतर बात तो तब होगी जब वे हमारे लिए प्रकट हो। वैसे हमारे लिए ही भगवान को प्रकट होना था, भगवान कहे “मैं वैसे सभी के लिए प्रकट हो सकता हूँ । प्रहलाद महाराज के लिए सत्य युग में प्रकट हुए और कलियुग में हमारे लिए आज भगवान प्रकट हो रहे हैं। वही भगवान जो शाश्वत भी है “ सच्चिदानंद रुपाय वयम नम:” जैसे जैसे हम सुनते हैं, श्रवण करते हैं और श्रवन परिणत होता है स्मरण में, वही भगवान का प्रकाटय हमारे लिए हैं।
हरि हरि! वैसे भगवान कहे ही है “यत्र मदभक्त गायन्ती नाहम वसामि वैकुण्ठे न च योगीनाम ह्रदये” मैं शायद वैकुण्ठ में भी नहीं मिल सकता हूँ जब मैं धरातल पर प्रकट होता हूँ ,आई विल बी आउट ऑफ़ स्टेशन । कहाँ हैं भगवान? वो तो धरातल पर प्रकट हुए। यहाँ क्यों आ गये, जाओ वहाँ । “ नाहम वसामी वैकुण्ठे” शायद वैकुण्ठ मे भी नहीं मिल सकता, मैं योगियों के हृदय प्रांगण में भी शायद नहीं मिल सकता , किन्तु फिर आप कहाँ मिलोगे?” यत्र मद् भक्त गायन्ती, तत्र तिष्ठामी हे नारद” नारद को संबोधित करते हुए भगवान ने एक समय यह बात कही मुझे प्राप्त करना है तो क्या करो? जहाँ कथा हो रही है, मेरी कथा हो रही है ,वहाँ मैं प्रकट होता हूँ ,तत्र तिष्ठामी नारद । हरि हरि ! वैसे चार कुमार कथा सुना रहे थे गंगा के तट पर हरिद्वार में, हरि हरि! तो कथा हो रही थी तभी भगवान प्रकट हो गए। हरि बोल! आपको कुछ भी नहीं हुआ ? भगवान प्रकट हो गये, होने दो। प्रकट हो गए तो सभी ने नोट भी किया भगवान के प्राकट्य को , वहां संकीर्तन प्रारंभ हुआ । भगवान अपने आसन पर पड़े हुए थे अनंत शैय्या पर और सभी भक्त कीर्तन कर रहे थे। वहाँ प्रह्लाद महाराज भी थे, पता है वे क्या कर रहे थे ?
करताल बजा रहे थे। ऐसा श्रीमद् भागवत के महात्म्य में वर्णन है प्रह्लाद महाराज करताल बजा रहे थे । वहाँ इन्द्र भी थे, वे ड्रम बजा रहे थे। ऐसे कई सारे थे, शुकदेव गोस्वामी गा रहे थे, अपने हाव भाव को व्यक्त कर रहे थे भाव भंगिमा के साथ। इस प्रकार भगवान की उपस्थिति का प्राकट्य का ,सभी ने उस कथा के अंतरगत या कथा के अंत में नोट किया। उस समय उनसे निवेदन किया उपस्थित भक्तों ने “ प्रभु!प्रभु! आज आप कथा के दरम्यान प्रकट हुए तो भविष्य में जब ज़ब जहाँ तहाँ कथा होगी तो आप प्रकट होंगे ना? प्रकट होइये ऐसा निवेदन सुनने पर भगवान कहे “तथास्तु” । वैसे ही हो ,वैसे ही होगा। फिर भगवान ने एक समय में कहा भी “ नाहम वसामी वैकुण्ठे न च योगीनाम हर्दय , यत्र मदभक्त गायन्ती तंत्र तिष्ठामी नारद” । उस भगवान का स्मरण करो ,स्मरण ही उनका प्राकट्य है हमारे लिए । जो भी स्मरण करेगा उनके लिए भगवान प्रकट हो गए। वे आधे सिंह तथा आधे मनुष्य के रूप में प्रकट हुए ,आप देख रहे हो? जैसे ये कहा वे कैसे थे? श्लोक में ही कहा “न मृगम न मानुषम “ पूरे मृग मतलब पशुवत् भी नहीं थे , ना मानुषम न तो मनुष्य जैसे थे ।
कैसे थे ? नर और सिह थे , ये नर और हरि थे , हरि मतलब सिंह । ऐसा कहा जाता है तो इसको हम ध्यानपूर्वक सुनते हैं, ध्यानपूर्वक श्रवण करते हैं श्रद्धा के साथ। तो इसकी इम्प्रैशन हमारे स्मृतिपटल बिल्ट इन एक फलक है या इस पर जो जो हम सुनते हैं उसका एक पेंटिंग बनते रहता है l यदि हम ध्यानपूर्वक श्रद्धापूर्वक प्रेमपूर्वक सुन रहे हैं तो सुनी हुई बातें दे आर गेटिंग ट्रांसलेटैड इन टू एक्शन या फ़ॉर्म भी कहो एक रूप बनता जाता है। हमारे स्मृति पटल पर उसकी छाप, उसके चिन्हाकित होता है और यही दर्शन का प्रारंभ है ,दर्शन हो रहा है। जैसा भी भगवान का सौंदर्य या तो फिर वे नारद मुनि है या श्रील व्यास देव है,उनको तो भगवान का साक्षात्कार दर्शन हो रहा है। दर्शन करते करते ही वे वर्णन सुना रहे हैं भगवान को देख रहे हैं ,लिखते जाते हैं ,कहते जाते हैं और वही बातें जब हम सुनते हैं तो वही जो रूप जिसका वर्णन हम सुनते हैं वही रूप “ सन्त: सदैव हृदयेशु विलोकयन्ति” संत महात्मा वो भक्त वो साधक विलोकयन्ति, देखने लगते हैं ,दर्शन होता है। वैसे हम देखते कैसे हैं? हम कानों से देखते हैं। भगवान को कैसे देखना होता है? कानों से देखते हैं । सुनते हैं तो फिर देखते हैं, दिखने लगता है।यह विधि है “ श्रवणम कीर्तनम विष्णु स्मरणम” । प्रह्लाद महाराज के कथन की पुष्टि करके भगवान ने सिद्ध कर दिया कि उनका भक्त कभी विनष्ट नहीं होता ।
जैसा कि भगवद्गीता में कहा गया है “कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्त: प्रणश्यति” । ये जो वचन भगवान ने कहे कुरुक्षेत्र में आज भी हवा में जहाँ कहीं न कहीं वे हैं क्योंकि वो सत्य है। वचन सत्य थे हैं और रहेंगे। क्या सत्य हैं वैसे ? भगवान की हर बात सत्य हैं “ सर्वमेतम धृतम मन्ये यन्माम वदसी केशव” अर्जुन ने कहा “प्रभु भगवान आप जो जो कह रहे हो आप सत्य कह रहे हो ओर सब का सब यह मुझे मंज़ूर है, मुझे स्वीकार है” । भगवान ने कहा “न मे भक्त: प्रण श्यती” मेरे भक्त का नाश नहीं होता । इस बात को भी सिद्ध करने के लिए भगवान प्रकट हुए हैं । इस श्लोक में जो हम पढ़ें उसमें लिखा है “ निजभृतयभाषितम सत्यम विधातुम” प्रह्लाद महाराज ने कहा मेरे भगवान तो सर्वत्र हैं , खंभे में भी है, यस वाय नॉट ? खंभे में भी है । इस बात को सिद्ध करने के लिए मेरे भक्त ने जो कहा कि मैं कहाँ रहता हूँ? मैं सर्वत्र रहता हूँ और कहाँ ? खंभे में भी हूँ मैं ऐसा प्रह्लाद महाराज ने कहा अब मैं इसको सत्य करके दिखाना चाहता हूँ। तो “सत्यम विधातुम् निजभृत्य भाषितम्” इसको सिद्ध करने के लिए भगवान प्रकट हुए और फिर मैं एड कर रहा हूँ, मैं कुछ अधिक कह रहा हूँ।
भगवान ने गीता में भी अर्जुन को कुरुक्षेत्र के मैदान में कहा “ न मे भक्त प्रणश्यति” , मेरे भक्त का कभी विनाश नहीं हो सकता, मेरे भक्त का केवल विकास ही होता है, विनाश नहीं होता। इस मेरे वचन को ,भगवान के अपने वचन को सिद्ध करने के लिए भी भगवान यहाँ प्रकट हो रहे है ।” परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृतम, धर्म संस्थापनार्थथाय संभवामी युगे युगे” । ये सिद्ध करने के लिए भी भगवान प्रकट हो रहे है , प्रगट हुए। परित्राणय साधुनाम् साधु की रक्षा करते हैं भगवान और असुरो का ,दुष्टों का वध करते रहते हैं भगवान। यदि हम चाहते हैं कि हमारी भी रक्षा हो तो क्या करना होगा? हमें भगवान का भक्त बनना होगा, भगवान की शरण में आना होगा “शरणम प्रपद्यते “ नरसिंह भगवान की जय! उनकी शरण में आएंगे तो पुनः भगवान ने प्रॉमिस या वचन कहा है “ मामेकम शरणं ब्रज, अहम त्वाम सर्व पापेभ्यो मोक्षिष्यामी मा शुचः “ BG18.66 । तुम मेरी शरण में आओ ,मेरी शरण में आने का काम तुम्हारा है या तुम्हारा कर्तव्य है। एक बार आपने शरण ले ली तो फिर बॉल ईज इन माई कोर्ट ऐसा अंग्रेज़ी में कहते हैं। फिर भगवान की ज़िम्मेदारी उत्तरदायित्व बनता है क्या? तुमने शरण ली है तो अहम् मतलब कौन ? कृष्ण। त्वाम मतलब ये जीव। “सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि” सभी पापों से मैं मुक्त करूँगा या पाप का फल तुम्हें भोगना नहीं पड़ेगा यदि तुम मेरी शरण में आओगे। यदि मेरी शरण में आनेवाले हो तो “ मा शुच:” । डू नॉट फ़ियर , ओ डीयर कम हियर , आई एम हीयर। केवल ये अर्जुन को नहीं कह रहे वैसे हम सभी को कह रहे है ।
भगवान प्रकट हुए प्रहलाद महाराज ने दर्शन किया कैसा था वो दर्शन? दर्शन मतलब देखना। आप भी दर्शन करना चाहोगे? तो फिर सुनो । ऐसा अद्भुत वर्णन जब नरसिंह भगवान प्रकट हुए ,इतना विस्तार से विस्तृत वर्णन किया है उस दर्शन का , उस समय जो उस स्तंभ से भगवान जो बाहर आये, प्रकट हुए। केवल भाषान्तर ही पढ़ते है। चार श्लोकों में ऐसा ये वर्णन सुनाया है। इसको यदि आप सुनोगे स्मरण करोगे तो आप निर्भय बन जाओगे । इसको भगवान कहे है “ मा शुच: “ डु नॉट फियर,घबराओ नहीं , आई एम हियर, मैं यहाँ हूँ। हिरण्यकशिपु ने अपने समक्ष खड़े नरसिंह देव के रूप का निषेध करने हेतु वो जानना चाह रहे थे कि सही क्या है ,कैसा दर्शन ? ये मनुष्य है या पशु है? क्या है कौन है कैसा है ये रूप? भगवान की क्रुद्ध आँखों के कारण जो पिघले स्वर्ण से मिलती थी ,भगवान की आँखें कैसी थी ? मोल्टन गोल्ड , जैसे पिघला हुआ सोना होता है उसकी जो चमक दमक होती है , द ग्लिटर। दर्शन की शुरुआत कहाँ से कर रहे हैं? आँखों से, भगवान की आँखे । वो रूप अत्यंत भयानक लग रहा था, उनके चमकीले आयाल ,गरदन के बाल देखो , बालों को देखो उनके भयानक मुखमंडल के आकार को फैला रहे थे। मुखमंडल तो था पर उनके जो बाल थे वो और भी लम्बे थे। मुख मध्य में और सारे गर्दन के बाल सर्वत्र, उनके दाँत मृत्यु जैसे भयानक थे। ये ही दर्शन है जो दर्शन हम कर रहे हैं, उसी का वर्णन यहाँ है, उस क्षण का दर्शन ,वो दर्शन अब भी है , वो दर्शन शाश्वत है। उनकी उस्तरे जैसी तीक्ष्ण जीभ, लड़ाई के तलवार के जैसे इधर उधर चल रही थी ,उनके कान खड़े तथा स्थिर थे,भगवान के कान आकार में छोटे थे , सिंह के कान छोटे होते है । कल ऑयल बाथ के समय मैं देख रहा था कान छोटे है, उनके नथुने तथा खुला मुँह पर्वत की गुफा जैसे लग रहे थे , उनके जबड़े फैले हुए थे जिससे भय उत्पन्न हो रहा , उनका समूचा शरीर आसमान को छू रहा था ।
कितने विशाल आकार के नर्सिंह भगवान, विराट रूप तो नहीं था, विराट रूप दूसरा होता है। ये जो रूप “केशव धतृ नरहरी रूप” विशाल था और आसमान को छू रहा था। उनकी गर्दन अत्यंत छोटी तथा मोटी थी। ये भगवान के सौंदर्य का वैशिष्ट्य हैं शॉर्ट नैक , ऊँट जैसा लॉग नैक नही, शॉर्ट नैक। उनकी छाती चौड़ी थी ब्रॉड चैस्ट तथा कमर पतली थी। कृष्ण की भी बात वही है या राम की भी, सभी भगवान के जो अवतार हैं उन सभी की कमर पतली होती है। उनके शरीर के रोए ,रोमावली चंद्रमा की किरणों के सम श्वेत लग रहे थे मानो नरसिंह भगवान चंद्र है । नरसिंह चंद्र की जय ! तो जो उनके बाल जो है वो चंद्र की किरणें जैसे निषृत होती हैं या किरण निषृत हो रही थीं । उनकी भुजाएं चारों दिशाओं में फैले सैनिकों की टुकड़ियों से मिलती जुलतीं थी। उनके बाहु और सभी बाहों में अलग अलग हथियार उन्होंने धारण किये हैं। यहाँ पर भी अष्टभुज है नरसिंह भगवान , वे सहस्त्र भुज बन सकते हैं। इट्स अप टू हिम। इस लीला में अष्टभुजाये धारण की है और अलग हथियार भी धारण किये हैं। जब वे असुरों, धूर्तों तथा नास्तिकों का अपने शंख, चक्र, गदा, कमल तथा अन्य प्राकृतिक अस्त्र शस्त्रों से वध कर रहे थे तो फिर युद्ध भी शुरू हुआ, चलता रहा। लेकिन कई तो केवल दर्शन करके मर गये ,भगवान को कुछ नहीं करना पड़ा । इतने डर गये वे, जानें चली गई ।
सभी के वध के उपरांत हिरण्यकशिपु का बताना होगा ,भगवान ने अन्ततोगत्वा हिरण्यकशिपु का भी वध किया। किस समय वध किया ? संध्याकाल न तो दिन था ,न तो रात थी ,ऐसे समय । न तो घर के बाहर महल के बाहर न तो अंदर वहाँ पर ऐैट दी एंट्रेंस । न तो आकाश में न तो ज़मीनपर उसको अपनी गोद में लेटाएँ और घड़ी की ओर देखा ओके इस समय न तो दिन हैं न तो रात है । फाड़ दिया उसकी इंटेस्टाइन वग़ैरह निकालके उसकी माला पहने। जब भगवान ही क्रोधित हो जाए तो “ मत्तः परतरम न अन्यत किंचित अस्ति न धनंजय “ BG 7.7 । भगवान ने कहा मेरे जैसा या मुझसे ऊँचा बढ़कर और कोई है ही नहीं ।तो हर बात में भगवान सर्वोच्च है, हरि हरि! तो क्रोध करने में भी भगवान जब क्रोध करेंगे तो भगवान जैसा क्रोध कोई कर सकता है ? भगवान क्रोधित हुए हैं कुछ लोग वहां देख भी रहे थे और उनकी सिंह जैसे ही गर्जना भगवान जब सिंह बने , सिंह भी क्रोधित होता है। सिंह क्रोध करता है कि नहीं? अपने क्रोध के लिए तो सिंह प्रसिद्ध होता है लेकिन फिर जब भगवान ही सिंह बनेगे तो संसार के सारे सिंहों का जो क्रोध है उससे भी अधिक, कई गुना अधिक क्रोध भगवान ने प्रकट किया और इतना सारा क्रोध क्यों किया ? क्युकी किसी ने उनके शुद्ध भक्त को कष्ट दिया था । महाभागवत प्रहलाद महाराज की जय ! महाभागवतों में प्रहलाद महाराज का उल्लेख है।
“स्वयम्भुर्नारद:शम्भु कुमार: कपिलोमनु:
प्रह्लादोजनको भीष्मो बलिर्वैयासकिर्वयम ।”
(SB 6.3.20)
ये द्वादश महाभागवत है और उसमें एक विशेष महाभागवत है प्रहलाद महाराज की जय! जिनकी कथा वैसे स्वयं श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु भी सुना करते थे और वह भी गदाधर पंडित के मुखारविंद से सुनते थे । गदाधर पंडित जो राधा रानी ही है । जगन्नाथपुरी में चैतन्य महाप्रभु जाया करते थे टोटा गोपीनाथ। ये प्रसंग ध्रुव चरित्र , प्रहलाद चरित्र को बड़े ध्यान से, प्रेम से स्वयं श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु सुना करते थे। ऐसे महान थे प्रहलाद महाराज। वैसे चैतन्य महाप्रभु ही है नरसिंह “ केशव घृत नरहरि रूप “ । एक समय श्रीवासठाकुर श्रीवास आंगन में ,अपने घर में विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ कर रहे थे। तो पाठ करते एक के उपरांत दूसरा, तीसरा, चौथा, पांचवा, दसवां तो जहां नरसिंह भगवान के नाम का उल्लेख या उच्चारण हुआ या पढ़ा श्रीवास पंडित ने और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने जैसे सुना वह नाम नरसिंह देव का , नाम का उल्लेख तो तुरंत श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु में नरसिंह भगवान का आवेश हुआ । उनमें ही जो नरसिंह भगवान है वही जागृत हुए,प्रगट हुए और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु बन गए नरसिंह देव। सहस्त्रनाम का पाठ हो रहा था तब वह बैठकर सुन तो रहे थे लेकिन जब नरसिंह भगवान का आवेश हुआ तो चैतन्य महाप्रभु छलांग मारकर सिंह की तरह खड़े हुए। वे श्रीवास आंगन या उनकी बड़ी ठाकुरबाड़ी के प्रवेश द्वार पर आए और फिर कभी इधर जा रहे हैं, उधर जा रहे हैं । लोगों ने जब देखा तो इतने लोग डर गए, सर्वत्र दौड़ने लग गए, हाहाकार छा गया । फिर श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ’ही वाउंड अप दैट पास टाइम’ , थोड़े शांत हो गए। उग्र बने थे ,सौम्य बने और पुनः जाकर बैठे और सहस्त्रनाम नाम का पाठ आगे बढ़ा । इसी नवद्वीप में वैसे नर्सिंग पल्ली नामक स्थान है या प्राचीन सतयुग का विग्रह ,नरसिंग भगवान का विग्रह आज भी दर्शनीय है उपस्थित है।
आज भी हम जब परिक्रमा में जाते हैं तो नर्सिंग पल्ली जाते है।आप गए हो? वहां एक कुक्कुर भी है, पौंड या तालाब है ,ऐसी समझने है कि भगवान नरसिंह ने जब हिरण्यकशिपु का वध किया तो उनके हाथ सारे खून से लथपथ हो चुके थे । तो वे नवदीप आते हैं और वहां पर कुकूर में, तालाब में अपने हाथ धोते हैं। तो भक्त उसी तालाब में स्नान करते हैं । नरसिंहपल्ली भी काफी सिद्ध है ।हरि हरि ! तो यह वध होने के उपरांत “ विनाशाय च दुष्कृताम” दृष्ट का संहार किया । देवताओं और लक्ष्मी को पास में जाकर भगवान की अगवानी कहो या आभार मानना था ,थैंक्यू थैंक्यू! कहना था इस असुर का संघार के लिए, जो सारे ब्रह्मांड के लोगों को परेशान कर रहा था , उपद्रव मचा रहा था । ऐसे जो स्थिति उत्पन्न होती है उसी को कहते हैं “ यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत “ । यदा यदा क्या होता है ? धर्म की हानि होती है । “ अभ्युथानम अधर्मस्य” फैला है ,बढ़ता है , यही तो हो रहा था हिरण्यकशिपु के जमाने में । वह बनना भी चाहता था क्या ? भगवान हिरण्यकश्यप की …व्हाट हैप्पंड? कल भी हमने वह ड्रामा में देखा हिरण्यकशिपु के चेले तो कह रहे थे भगवान हिरण्य कशिपु की जय! मैं भी वो ड्रामा देख रहा था मैंने नहीं कहा ‘जय’ , लेकिन आप हां में हां मिला रहे थे। “तदात्मानम सृजाम्यम “ उस समय मैं प्रकट होता हूं। ऐसी परिस्थिति बनी थी, बनाई थी हिरण्यकशिपु ने, पहले हिरण्याक्ष का वध हुआ तो उसके वध के लिए भी भगवान प्रकट हुए थे । हिरण्यकशिपु के भ्राताश्री हिरण्याक्ष का वध हुआ ,वराह भगवान ने वध किया था तो हिरण्यकशिपु ने कहा “ जिसने मेरे भ्राता का वध किया है मैं बदला लूंगा उसकी का ,उसकी जान लूंगा। आई विल किल हिम। “ । हिरण्यकशिपु गौ हत्या कर रहा था, सारे संसार में ये पाप है, मीट ईटिंग चल रहा था “ द्यूतम पानम शुनः स्त्रिय: यत्र अधर्मः चतुर विधः “ । चार प्रकार के अधार्मिक कृत्य जहां होते है वो स्थलियां पाप की स्थलियां बन जाती हैं।
पाप के अड्डे बन जाते में वो चार स्थान । कौन से हैं ? धूतम जहां द्यूतक्रीड़ा होती, गैंबलिंग होती है ,जुआ खेला जाता है जैसे मटका,गैंबलिंग या स्टॉक एक्सचेंज, लॉटरी , थिस एंड दैट। पानं जहां पान होता है ,केवल चायपानी ही नहीं,जहां मद्यपान होता है। कभी-कभी लोग हमको कहते हैं महाराज चाय लीजिए , नो नो वी डोंट टेक टी, तो फिर कॉफि तो लीजिए। उन्हें लगता होगा कि चाय तो गरीबों के लिए होती होगी, शायद ये महाराज महाराज है तो चाय थोड़ी पियेंगे । शायद कॉफी पसंद करते होंगे तो कॉफी लीजिए । हरि हरि! तो मद्यपान जहां नशा पान होता है , चिउइंग टोबैको, तंबाकू का सेवन लोग करते हैं। हम लोग पदयात्रा करते हुए जा रहे थे गुजरात में , डाकोर की ओर जा रहे थे तो वहां तंबाकू के बहुत सारे खेत थे , जहां भी देखो तंबाकू के ही कई सारे खेत थे वहां एक किसान मिला तो मैंने पूछा कि इसके और पहले जो खेत देखे थे उसमें बहुत सारे कंपाउंड में फेंसेस थे , बाउंड्रीज थी लेकिन यह तंबाकू के खेत को बाउंड्री या कोई फैंसिंग वगैरह क्यों नहीं लगते ? उस किसान ने कहा महाराज इसको तो गधा भी नहीं खाता। फिर हमने कहा एक प्रकार का गधा छोड़ के। मनुष्य बन गए गधे और बाकी के गधे जो रीयल डॉनकीस डोंट ईट। तो शराब जो खराब है। जहां अधिकतम “धुतम कीड़ा पानम” मद्यपान इंटॉक्सिकेशन होता है ,’सुनः’ जहां मांस भक्षण होता है अभक्ष्य भक्षण जहां होता हैं । चीन में लोग क्या नहीं खाते ? हरि हरि! मैं गया था कुछ वर्ष पूर्व चीन में तो मैंने नई चीज देखी वहां पर, ’ईट एंट ब्रेड ’ कैसा ब्रेड? जिसमें चींटी है जैसे रेड एंट ,व्हाइट एंट एंड ब्राउन एंट ब्रेड। वो मुझे दिखा रहे थे फील्ड्स ,चींटी के खेत ।इस खेत में इस प्रकार की चींटी का उत्पादन, इस खेत पर इस प्रकार की चींटी का उत्पादन और फिर उससे बनते हैं ब्रेड । आपके देश में तो मिल्क ब्रेड, फ्रूट ब्रेड , ऐसा कुछ ड्राई फ्रूट्स ब्रेड चलते हैं लेकिन वहां क्या चलता है? एंट ब्रेड ।
चींटी की तो कल्पना करो उनके दिमाग में चींटी चींटी ही घूमती होगी और फिर वे स्नेक सूप पीते हैं, केकड़े खाते हैं , चूहे को भी। ऐसे कहना भी नहीं चाहिए l हरि हरि ! और कोरोनावायरस का जो उत्पादन, जो जीव जंतु वह चाइनीज प्रोडक्शन था । व्हाट वास दैट टाउन ? योहान। जहां यह मांस मछली इत्यादि का भक्षण होता है और फिर क्या बच गया ? स्त्रियां । स्त्री मतलब जहां जहां अवैध स्त्री पुरुष संग होता है। विधि और अविधि/अवैध , लीगल इल्लीगल। अंग्रेजी में कहते हैं इलिसिट सेक्स। तो ये चार पाप के अड्डे है । तो हिरणकशिपु के जमाने में यह सब बहुत बड़ी मात्रा में चल रहा था। “ यत्र अधर्म: चतुर्विद: “ जहां सारे अधार्मिक कृत्य हुआ करते थे। तो अधर्म जब मचता है, बढ़ता है , फैलता है ’तदात्मनं’ तब मैं प्रकट होता हूं । तो फिर भगवान प्रकट हो गए, नरसिंह देव भगवान की जय! तो वध किया असुरों का, उनका जो लीडर था उनका भी वध किया। हरि हरि! हम में भी जो असुर छुपे हुए हैं उन असुरों का और आसुरी भाव का भी विनाश करना है । हम लोग नहीं कर पाएंगे। भगवान की मदद से हममें छिपा हुआ जो असुर है उसका वध करवा सकते हैं। आज के दिन हम प्रार्थना करें नरसिंह भगवान की जय! कि वे क्या करें ? जैसे आत्मा तो भक्त है, आत्म तो सुर है लेकिन दुर्दैव से हमने आसुरी भाव अपनाया हुआ है और आसुरी प्रवृत्ति भी । हरि हरि! भगवान तो कहते हैं “ योगी भव, योगी भव” लेकिन हम क्या बनते जा रहे हैं? भोगी भव भोगी भव । हम भोगी बनते जा रहे हैं । ऐसा प्रचार है ,ऐसा माहौल है सर्वत्र संसार भर में। तो आज के दिन हममें जो असुर छिपे हुए हैं ,आसुरी प्रवृत्ति है, भोग प्रवृत्ति है, इंद्रिय तृप्ति है, मनोरंजन एंटरटेनमेंट आदि । तो लाइफ किसके लिए है? इनलाइटनमेंट या एंटरटेनमेंट के लिए? इनलाइटनमेंट । आत्म साक्षात्कार के लिए ये मनुष्य जीवन है। आत्म रंजन के लिए भी है आत्मा का रंजन। मनोरंजन के लिए नहीं है । इट्स नॉट फॉर एंटरटेनमेंट।
जैसे आरंभ में कहा ही कि आज उनका बर्थडे है और हमको बुलाए भगवान। थैंक यू थैंक यू! हमें आभार मानना चाहिए। भगवान के कितने आभार मान सकते हैं , कितनी मेहरबानी, कितना कल्याण की बात भगवान किए है। कृष्णभावना के भक्तों के संग में हम आए हैं अंतरराष्ट्रीय श्रीकृष्णा भावनामृत संघ के संग में हमको लाया गया है। केवल हम आज ही नहीं आए हम बहुत समय से आ रहे हैं यहां । पिछले 5 सालों से कौन-कौन आ रहा है? पिछले 4 सालों से कौन-कौन आ रहा है ? 3 सालों से ? 2 सालों से? कौन है जो पहली बार आज ही आए है ? फर्स्ट टाइम। अच्छा लग रहा है? यू आर हैप्पी? तो थैंक गॉड! थैंक नरसिम्हा ! उनका आभार मानिए । हरि हरि! हे प्रहलाद । कुछ वर मांगो ,कुछ वर मांगो । प्रहलाद महाराज ने कहा जो आशीष आशा से, जो लोग क्या करते हैं? जो आशीष आशा ,आशीर्वाद की आशा लेकर आते हैं ,” सुख संपति घर आवे, कष्ट मिटे तन का “ ऐसी आशा लेकर जो आते है, ऐसी प्रार्थना करते जो है, तो प्रहलाद महाराज ने कहा था उसी क्षण की बात उसी दिन की बात है यह आशीष आशा “ स न भक्त्या स वै वणिक “ ऐसी आशा, ऐसे आशीर्वाद मांगना यह तो व्यापार हुआ । धिस इज अ बिजनेस ट्रांजैक्शन , मैं आपके लिए नारियल तोड़ता फोड़ता हूं, यह करता हूं वह करता हूं , उसके बदले में आप यह यह मेरे लिए करना । “ इतना तो करना स्वामी” दिस इज अ बिजनेस । प्रहलाद महाराज ने कहा, भक्त प्रहलाद, भागवत प्रहलाद ने कहा “ न स भृत्य” भृत्य जो है , सेवक जो है, आपका शुद्ध भक्त जो है वह इस प्रकार की मांग ,कामना ,याचना कभी नहीं करता। “ वरम न याचे” ध्रुव महाराज ने भी कहा था मुझे वर नहीं चाहिए ,वर नहीं चाहिए। तो क्या चाहिए? फिर चैतन्य महाप्रभु ने कहा “ न धनं न जनम न सुंदरी कविता वा जगदीश कामये मम जन्मनि जन्मनी ईश्वर भगवताद भक्ति अहैतुकि” मुझे धन, जन, सुंदरी, कविता नही चाहिए। या कोई मेरे अनुयायी हो ,उनकी संख्या बड़ी हो ,मेरा नाम हो। इतना ही नहीं मुझे इस प्रकार की भुक्ति नहीं चाहिए मुझे मुक्ति भी नहीं चाहिए “ मम जन्मनि जनमनीश्वरे” मुझे पुनः पुनः भी जन्म लेना पड़े तो भी आई एम रेडी, मैं तैयार हूं।
लेकिन मुझे क्या चाहिए हर जन्म में? जन्म हो या नहीं हो मुझे क्या चाहिए ? भक्ति अहौतुकी, आपकी अहैतुकी भक्ति मुझे मिले प्रभु बस यही कामना है, इट्स ओनली डिजायर आई हैव माय डियर लॉर्ड । दुर्योधन को मिली भगवान की नारायणी सेना और अर्जुन को कौन मिले? बस कृष्ण मिले । दुर्योधन ने शायद ऐसा सोचा ही था बेचारा बेचारा अर्जुन , पूअर अर्जुन ,देखो इसको तो केवल कृष्ण एक व्यक्ति मिले, लेकिन मुझे अक्षोहिणी डिवीजन सेना मिली। इतने हाथी ,घोड़े ,इतने पैदल चलने वाले मिले । चतुरंगी सेना (चतुर अंग जिसके चार प्रकार के अंग होते हैं– पैदल चलने वाले ,रथ में विराजमान आरूढ़ होकर युद्ध खेलने वाले , फिर घोड़े की पीठ पर बैठते हैं और युद्ध करते हैं, फिर कुछ हाथी पे,लाइक दैट चार हो गए न ? चतुरंगिनी सेना अक्षौहिणी सेना मुझे मिली और इसको तो बस एक व्यक्ति मिल गए। तो अधिक कौन है ? एक व्यक्ति अधिक है या अक्षौहिणी डिवीजन सेना अधिक है? “मामेकम शरणं ब्रज “ बस मेरे एक अकेले की शरण में आओ ,जीव को यही चाहिए ।
जीव को बस भगवान चाहिए बस। हरि हरि !bआज भगवान हमको प्राप्त हो रहे है। हरि बोल! तो पुनः कल भी यह उल्लेख हुआ था “ जन्म कर्म च में दिव्यम एवं योग वेत्ती तत्वताः” … भगवान के जन्म को, भगवान की लीला को तत्वत: हमें समझना चाहिए । ऐसा यदि समझेंगे तो “त्यक्तवा देहम पुनर्जन्म” , शरीर को जब त्यागेंगे हम ,वन लास्ट टाइम होपफुली वन लास्ट टाइम, तो पुनर्जन्म नहीं होगा। तो क्या होगा ? “पुनर्जन्म न इति मामेती हे अर्जुन।” कृष्ण कहे गीता के चौथे अध्याय में कृष्ण कह रहे । ऐसा व्यक्ति भगवान की लीला या जन्म को जानता है तत्वतः, शरीर को त्यागेगा का तो पुनर्जन्म नहीं होगा । वह मुझे प्राप्त होगा, मैं जहां रहता हूं वहां आएगा नहीं लेकिन मैं लाऊंगा । उसे कुछ नहीं करना है, उसको कोई ट्रैवल अरेंजमेंट नहीं करनी है। जब मैं मरूंगा तो फिर मुझे कोई फ्लाइट बुकिंग करनी है या या बस या ट्रेन या वंदे भारत या हमें कुछ नहीं करना है। बस केवल एलिजिबल या पात्र बनना है, अधिकारी बनना है, अधिकार हमारा वैकुंठ पर अधिकार। वैकुंठ प्रवेश या द्वारका या साकेत या वृंदावन , जहां से भी हम हैं वहां जाना है । “ न हाथी है न घोड़ा है “ उस गीत में तो कहा पैदल ही जाना है, पद यात्रा करते हुए , वैसे वहां फ्लाइट से जाने की व्यवस्था होगी और आपका यह जो देह है यहीं छूटेगा , यहीं रहेगा या तो उसका अगर आप हिंदू हो तो अग्नि संस्कार होगा , आप जैन हो तो आपका देह चबूतरे के ऊपर रखा जाएगा, वहां कबूतर पक्षी आके उसको खा लेंगे और फिर उसकी विष्ठा होगी । विष्ठा समझते हैं ? और आप मुसलमान हो ,ईसाई हो तो फिर आपको दफनाया जाएगा । ये हुआ शरीर के साथ लेकिन आपकी आत्मा? हम कृष्ण भक्त बनते हैं श्भगवत भक्त बनते हैं ,नर्सिंग भगवान की जय ! तो उनके भक्त बनते है तो? मंदोदरी ने कहा लंका का युद्ध जब समाप्त हुआ , अब रावण नहीं रहे ।
हिरण्यक्ष , हिरण्यकशिपु सतयुग के थे वही त्रेतायुग में रावण और कुंभकरण बनते हैं। तो इन दोनों का भी जब वध हुआ और सभी को लिटा दिए राम लक्ष्मण। जय हनुमान! जय हनुमान ! वानर सेना ने सबका वध किया इसका नेतृत्व राम लक्ष्मण कर रहे थे। तब मंदोदरी जब आती है, सिया भी आती है और खोज रही है अपने-अपने पतियों के मृत देह को तो मंदोदरी पहुंच जाती है रावण के देह के पास तो वहां लिखा है मंदोदरी ने कहा कामवशात तुम्हारी कामवासना का यह परिणाम है, यह फल जो तुमने अभी अभी भोगा और अब क्या होगा तुम्हारे शरीर को? गिद्ध खायेंगे । ये तो हुआ शरीर के साथ और आत्मा “नरक हेतवे “ और आत्मा सीधी नरक भेजी जाएगी। यह मंदोदरी के वचन है अपने पति के संबंध में कह रही है वल्चरस खायेंगे तुम्हारे शरीर को और तुम्हारी आत्मा नरक भेजी जाएगी । यह सब क्यों हो रहा है ? कामवशात ।” काम ऐश क्रोध ऐश” काम,क्रोध, लोभ , मोह, मात्सर्य यह सब दुनिया को अंधा बना देते हैं। कामांध,क्रोधांध, लोभांध, मदांध। व्यक्ति जब अंधा होता है तो उसको पता नहीं चलता है कि क्या करें क्या ना करें और पाप करके बैठता है ।
हरि हरि! इन सब से हम बच सकते हैं ,हम नरसिंह भगवान के भक्त बनेंगे नरसिंह भगवान के “ रामादि मूर्तिशु कला नियामेंन तुष्टः, नाना अवतारमकरोद भुवनेंशु किंतु कृष्ण: स्वयं समभवत परमः पुमान्यो गोविन्दम आदि पुरुषम तमहम भजामि “ यह सारे कृष्ण ही है ,कृष्ण ही राम बनते हैं ,वामन बनते हैं , नरसिंह बनते हैं,परशुराम बनते हैं ,कच्छप बनते है ,लाइक दैट। “ केशव धृत नरहरि रूप ,केशव धृत वामन रूप, केशव घृत राम शरीर। केशव कृष्ण ही बनते है, अलग अलग रूप धारण करते हैं और अलग-अलग लीला खेलते हैं । आज के दिन वे केशव बन गए “ केशव धृत नरहरि रूप जय जगदीश हरे , जय जगदीश हरे, जय जगदीश हरे , केशव घृत नरहरि रूप ,जय जगदीश हरे जय जगदीश हरे” ।