Nityananda Trayodashi
Day 2
04-02–2023
ISKCON Pune

केवल आप या हम ही नित्यानंद त्रयोदशी महोत्सव नहीं मना रहे है, बल्कि सारा संसार मना रहा है। नित्यानंद त्रयोदशी महोत्सव की जय! विशेषकर कल के ही दिन,नित्यानंद त्रयोदशी के ही दिन केवल इसी मंदिर का, याने एन.वि.सी.सी  पुणे का, उद्घाटन नहीं हुआ या टैम्पल ओपनिंग या प्राण–प्रतिष्ठा महोत्सव नहीं हुआ था। वैसे नित्यानंद त्रयोदशी के दिन  ही अलग–अलग वर्ष, कुछ और मंदिर में भी टेंपल ओपनिंग हुई। वैसे यहाँ 10 साल हो रहे हैं,10 वाँ ब्रह्मोत्सव या टैम्पल ओपनिंग की टेंथ एनिवर्सरी मना रहे है। इसी दिन इन स्थानों पर भी स्थापना हुई:–

 

१) इस्कॉन अरावडे को  आप जानते हो,” जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी“, जन्मभूमि स्वर्ग से भी ज्यादा श्रेष्ठ है। श्रीराधा गोपाल की जय! उनकी प्राण प्रतिष्ठा 14 वर्ष पूर्व हुई; 

२) फिर 9 वर्ष पूर्व राधा गोविंद इस्कॉन नोएडा की जय! 

३) 17 साल पहले उज्जैन में भी स्थापना हुई। भक्तिचारू स्वामी महाराज की जय! वहाँ के राधा मदनमोहन की जय! कृष्ण–बलराम भी हैं वहाँ, सांदीपनि मुनि भी स्थापित है। 

४) दैन इन तिरुपति ऑलसो, राधा गोविंद देव और अष्टसखियाँ हैं। साउथ इंडिया में भगवान राधागोविंद अष्टसखियों के साथ प्रकट हुए, दिस इज समथिंग अनयूज़ुअल क्यूंकि वहाँ अक्सर लक्ष्मीनारायण इत्यादि–इत्यादि की आराधना होती आई है,लाइक धिस।

५) और भी आँध्रप्रदेश में एक मंदिर है,उसका नाम मुझे याद नहीं आ रहा है। इस मंदिर का रुप रथ जैसा है। वह स्थान अनंतपुर है। अनंतपुर मंदिर की स्थापना/ओपनिंग नित्यानंद त्रयोदशी के दिन ही हुई। 

 

ये सारे टेम्पल ओपनिंग मैंने अटैन्ड किये थे। वैसे मुझे भी प्रेज़ेंट रहना चाहिए था उन सारे मंदिरों में उनका ब्रह्मोत्सव वर्धापन दिन संपन्न करने के लिए। किंतु मैं तो यहीं का यहीं रह गया। लेकिन रिपोर्ट्स तो आ रहे थे और स्थानों से।  दिन में कल प्रभुपाद का नित्यानंद त्रयोदशी को दिया  हुआ एक प्रवचन मैं सुन रहा था। जब भी प्रभुपाद ने नित्यानंद त्रयोदशी के दिन प्रवचन दिया, उसमें से मैंने एक बात नोट की   जो प्रभुपाद कहे। आपने सुनी ही होगी, ये वेदवाणी ही है, वह है,शास्त्रोक्त । शास्त्रोक्त मतलब क्या? शास्त्रों में उक्त;  उक्त मतलब कही हुईं।  

 

“नायम् आत्मा बलहिनेन 

लभ्य: न मेधया बहुना श्रुतेन” 

अयम् आत्मा और आत्मा के साथ परमात्मा भी कहो। बलहीन व्यक्ति आत्मा या परमात्मा का साक्षात्कार नहीं कर सकता। इस वचन को कई सारे नहीं जानते या इसका विपरीत अर्थ निकालते हैं, उल्टा सुलटा भाष्य सुनाते हैं। तो प्रभुपाद कह रहे थे और मैं भी वो बात जानता हूँ। ऐसे कौन से महाशय या स्वामीज़ हैं, इनक्लुडिग विवेकानंद। विवेक+आनंद– विवेक में आनंद लेनेवाले। वे भी ऐसा कहते थे कि अगर आप आत्मा–परमात्मा का साक्षात्कार करना चाहते हो तो आपको बलवान होना चाहिए। बलहीन हो तो इसका लाभ या इसकी प्राप्ति नहीं होगी। बलवान होना होगा और  फिर बलवान होने के लिए फुटबॉल खेलो या कोई कसरत करो। दिस इज़ नॉनसेंस। तो सही समझ यह है कि, “न बलहिनेन लभ्या”  मतलब बलराम से जो आध्यात्मिक बल प्राप्त होता है उसके बिना या जिनको बलराम की ओर से आध्यात्मिक बल प्राप्त नहीं हुआ है, वे इस आत्मा और परमात्मा का अनुभव नहीं कर सकते। बलराम हैं  वैसे आदिगुरु। फिर नित्यानंद प्रभु कौन हैं? “बलराम होइल निताई”। बलराम ही बन जाते हैं नित्यानंद प्रभु। ’न बलहिनेन’ मतलब बलराम से प्राप्त आध्यात्मिक बल। इस कलियुग में बलराम से भी ज़्यादा वो है जो बलराम बन जाते हैं नित्यानंद प्रभु। उनसे प्राप्त आध्यात्मिक शक्ति या भक्ति की शक्ति से हम भगवान को/ परमात्मा को, स्वयं को/ आत्मा को भी जान सकते हैं।

निताई बिना विने भाई, राधा कृष्ण पायिते नाई “ ऐसा भी सुने होंगे। “जय नित्यानंद नित्यानंद नित्यानंद राम” तो फिर नित्यानंद भी आदिगुरु हैं । “नो इफस एन्ड बट्स”  ऐसा ही है कि बलराम बने नित्यानंद प्रभु।  नित्यानन्द प्रभु के बिना राधा कृष्ण को नहीं पा सकते। बलराम की , नित्यानंद प्रभु की कृपा हम तक पहुँचाने वाली यह परंपरा भी है। “ एवं परंपरा प्राप्तम”  तो वहाँ पर भी हम आश्रय ले सकते हैं। 

“महात्मनस्तु माम पार्थ दैवी प्रकृतिम आश्रित:” वे महात्मा कहलाते हैं जो क्या करते हैं?  दैवी  प्रकृति का आश्रय लेते हैं। बलराम तो पुरुष है,  नित्यानंद प्रभु भी पुरुष है, इन पुरुषों की वैसे प्रकृति तो फिर हुई “जय राधे”, राधा रानी।  राधा रानी  का आश्रय लेना चाहिए। प्रथम आराध्या या आराधना करने वाली कौन हैं? फर्स्ट वन और नम्बर वन, सबसे  पहले,सर्वप्रथम भगवान की आराधना करने वाली राधा है। “आराध्यति स राधा”।  वैसे ’आराधना’ शब्द भी राधा के कारण ही बना हुआ है।  राधा क्या करती है? आराधना करती है। अराधना करने वाली राधा, नंबर वन। फिर उसी परंपरा में हरि हरि! और थोड़ा कुछ कहना है। भगवान जो सच्चिदानंद है, भगवान भगवान कैसे हैं?  सच्चिदानंद विग्रह। उसमें से जो सत है,सत स्थिति भी है परिस्थिति भी है।

या स्थान भी है, वो बलराम हैं। कृष्ण के सीधे हाथ की तरफ से बलराम उत्पन्न होते हैं, या कहो कि भगवान के राइट हैंड मैन या व्यक्ति जो वे स्वयं ही है।

 

“मत्त: परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय ।

मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव” ॥ भगवद गीता ७.७।।

 

ऐसा बलराम भी कह सकते हैं। ये दोनों में ऐक्य है, कृष्ण बलराम समान है, केवल रंग का ही भेद है, ऐसे कई सारे श्लोक/ वचन भी है। सच्चिदानंद में से जो सत् है , उसका अस्तित्व सब बलराम है। कृष्ण के उल्टे हाथ की तरफ़ से राधारानी आती हैं और वे ह्लादिनी शक्ति हैं ,आनंद देने वाली। चैतन्य चरितामृत में  राय रामानंद भी कहे कि राधारानी भगवान को ह्लाद देती ही है और जीवों को भी ह्लाद देनेवाली राधारानी ही है। अब ये तीन व्यक्तित्व हो गए : कृष्ण, बलराम, और राधा रानी और ये सब कृष्ण हीं हैं। उसी से हमारा बलराम को समझने का प्रयास चल ही रहा है और साथ ही साथ वैसे नित्यानंद प्रभु की जय!  तो यह है बलराम। जब कृष्ण बनते हैं श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु तो राधा रानी तो पहले से ही है महाप्रभु में।

 

“श्री कृष्ण चैतन्य 

राधाकृष्ण नाही अन्य” ( चैतन्य चरितामृत)

अब बच गए बलराम, तो वे बन जाते हैं नित्यानंद प्रभु। वैसे नित्यानंद प्रभु या बलराम होइल निताई ही नहीं है। बल्कि बलराम होइल और कौन? विश्वरूप भी बलराम है, आंशिक बलराम है। नित्यानंद प्रभु पूर्ण रूप से हैं, पूरे बलराम बन जाते हैं नित्यानंद प्रभु । लेकिन बलराम का कुछ अंश या अशांश से बन जाते हैं विश्वरूप। ये दोनों भी बड़े भाई बन जाते हैं और स्वयं श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ही राधारानी है या श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु में राधारानी है। समझते हैं ना आप हिन्दी?

 

“अंतःकृष्ण बाहिर गौरा” 

कृष्ण अंदर छिप जाते हैं, बाहर से गौरांग होते हैं। राधारानी में कृष्ण हेने। सुन रहे हैं न आप? तो फिर उसका उत्तर भी आप बीच में थोड़ा-थोड़ा दे सकते हो। केवल सुनने से काम नहीं,समझना भी होगा।  तत्क्षण आपको समझना होगा, नहीं तो आपका कहना फिर तोते के जैसा हो जाएगा। एक तो राधा रानी चैतन्य महाप्रभु में ही है। वैसे आज मुझे तो नित्यानंद प्रभु की बात करनी थी और उचित भी हैं क्योंकि नित्यानंद त्रयोदशी है। 

तो यह सारे तत्व हैं। हरि हरि!

 

“ श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद

श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौर भक्तवृंद”

गदाधर भी राधारानी हैं, तथा एक और भी एक राधारानी है। क्या कोई मेरी मदद कर सकता है? नित्यानंद प्रभु के साथ द्वादश गोपालो होते हैं, उन्हें चैतन्य महाप्रभु कहते हैं कि “जाओ बंगाल में प्रचार करो।” नित्यानंद प्रभु गए पहले, तो कहाँ गये?  पानीहाटी गए। उस टीम में, शायद उनका नाम गदाधर दास है, धन्यवाद! एक गदाधर पंडित है पंचतत्व में और एक श्री गदाधर दास कहलाते हैं, वे भी राधारानी हैं। वे राधा रानी का ही तेजोमय प्रकाश या राधा रानी ही हैं।

यह भगवान ने कितना कठिन कर दिया, काफ़ी कठिन है। लेकिन अगर कोई सोचे तो सरल है। वैसे मायावादी आसान कर देते हैं, ”ॐ शांति” बस या “अहम् ब्रह्मास्मि” बस ख़त्म। ब्रह्मा अद्वैत हैं, वे दो नहीं या अनेक नहीं, बस एक ही है।

“सर्वम्  खलविदम् ब्रह्मा” – खलु मतलब निश्चित ही। तो जो भी है बस ब्रह्म ही है। उसमें वैविध्य नहीं है। वैविध्य बहुत अच्छा शब्द है। इसमें विविधता नहीं है, सब बस एक ही है और उसका रूप नहीं है, वह निराकार है, निर्गुण है। इसलिए 

 

“मायावादी कृष्ण अपराधी”

“मायावाद भाष्य सुनीले ,होए सर्वनाश” 

तुकाराम महाराज भी कहे कि,” अद्वैत की वाणी मैं सुनना नहीं चाहता हूँ”। सुनने का कुछ बचता भी तो नहीं है,क्या होगा उनका सुनके?  नाम भी नहीं है, रूप भी नहीं है, गुण भी नहीं है, लीला भी नहीं, धाम भी नहीं। केवल अस्तित्व है बस। इतनी ज्ञान की बातें,सत्य की बातें सत्य हैं। भगवान भी कितने सारे रुपों में प्रकट होते हैं,एक होते हुए भी।

 

“सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज 

अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा श‍ुच:” ॥ 

(भगवद गीता १८.६६)

 

उस एकम् में भी अनेक हैं। “एको बहुनां यो विदधाति कामान्:” वे अनेक भी बन जाते हैं।

 “रामादिमूर्तिषु कलानियमेन तिष्ठन्‌
नानावतारमकरोद्‌ भुवनेषु किन्तु
कृष्णः स्वयं समभवत्परमः पुमान्‌ यो
गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि” ॥( ब्रह्म संहिता)

राम, आदि। कहते हैं कि जो समुद्र की लहरें है, तरंगे हैं उनको कोई गिन सकता है क्या? रात और दिन, रात और दिन। कश्चप  भगवान ने लिया एक समय श्वास– श्वास और उच्छश्वास।

तबसे समुद्र में तरंगे बहने लगीं। ऐसा कृष्ण का कनेक्शन है लहरों के साथ। इतने सारे रूप हैं और हर रूप के लिए उनका अपना  एक वैकुंठ भी है। हरि हरि! भगवान तो हैं लेकिन कुछ लोग काम आसान कर देते हैं कि भगवान है नहीं, तो इसमें फिर कथा पे चर्चा या श्रवण की आवश्यकता ही नहीं रह जाती। वे तभी सुनेंगे जब भगवान के अस्तित्व को मानेंगे। ‘है ही नहीं’ कहने से भगवान नहीं होजायेंगे क्या? अंधे व्यक्ति ने कहा सूर्य है नहीं, तो क्या सूर्य समाप्त हो जायेगा? क्या कीमत है अंधे की इन बातों की कि सूर्य नहीं है?  एनी वैल्यू? किसने कहा? अंधे ने कहा कि सूर्य नहीं है। अरे मूर्ख! क्या सुन रहे हो तुम? और क्यों स्वीकार कर रहे हो कि सूर्य नहीं है? अनाड़ी ने अज्ञानी व्यक्ति ने कहा कि भगवान नहीं हैं, तो उसकी बात की क्या वैल्यू है? जो भगवान को जानता है उनसे सुनो। और ऐसा नहीं हो सकता की कोई चीज़ है भी और नहीं भी है एक साथ। इट एक्जिस्टस, बस फिनिश। कई सारे अवतार ‘इन एंड आउट’ कहे जाते क्योंकि वे आये, लीला खेले और चले गए। जैसे प्रह्लाद महाराज की रक्षा किये, ”परित्राणाय च साधुनाम” हुआ,  “ विनाशाय च दुष्कृताम् “ हुआ  और साथ में धर्म स्थापना भी हुई और चले गए। तभी भगवान महान हैं। ये जो इतनी सारी बाते हैं, कथा,नाम, रूप, गुण, लीला, धाम हैं ; “ ऐश्वरस्य च समग्रस्य वीर्यस्य यशस: श्रिया” हैं, षड् ऐश्वर्य पूर्ण भगवान  हैं। अगर ऐसे ऐश्वर्य नहीं होते तो फिर कैसे होते भगवान? हु केयर्स फॉर सच भगवान? शुद्र जीव ने कहा भगवान नहीं हैं तो क्या उसकी क्या कीमत? अगर तुम साइंटिस्ट वगैरह हुए तो भी उसमें क्या हुआ? और साथ के साथ तुम ड्रंकार्ड भी हो, वुमॅन हंटर भी हो , गैंबलर भी हो, मीट ईटर भी हो तो ऐसे लोगों की बात को सत्य के रूप में क्यों स्वीकार करना चाहिए। बल्कि जो व्यक्ति जैसे बोलता है वैसे चलता है, द वन हु वॉकस् द टॉक, उनके चरणों का अनुसरण करना चाहिए,उनके वचनों को सत्य के रूप में स्वीकारना चाहिए। बदमाश साइंटिस्ट एंड कंपनी को प्रभुपाद रास्कल्स कहते थे। इसलिए भगवद् गीता ऐज़ इट इज़ बनी। भगवान भी कहे हैं,

 

 “न माम् दुष्कृतिनो मूढा प्रपद्यन्ते नराधमा: 

माययापहृतज्ञाना आसुरं भावं आश्रितः “।। 

चार प्रकार के लोग मेरी शरण में नहीं आते, 

१) नराधम:-  मतलब लोयेस्ट ऑफ मैनकाइंड। एक होते हैं नरोत्तम, दूसरे होते नरा+अधम। 

२) आसुरी भाव:- जो आसुरी वृत्ति का आश्रय लिए हुए हैं। 

३) मूढा:- फूल नंबर वन। 

४) माययापहृतज्ञाना:- माया ने जिनके ज्ञान को ढका है। 

मैं जब नया भक्त बना था जुहू में, तो प्रभुपाद रोज़ टॉक दिया करते थे, स्पेशली बंबई में।’ बॉम्बे इज़ माय ऑफिस’ प्रभुपाद बहुत समय बॉम्बे में बिताते थे। ऐसी बंबई के हम ब्रह्मचारी थे। कई महीनों तक वहाँ रहते, एक बार लगातार तीन महीने वही रहे, 100 डेज इन अ रो। तो 100 मॉर्निंग वॉकस्, ऑन जुहू बीच डाक्टर पटेल के साथ। प्रभुपाद प्रतिदिन राधा रासबिहारी के दर्शन के लिए आते थे। एक समय तो मैं हैड पुजारी भी था जब वे आये। 100 आरैवल्स्, 100 मीटिंग ऑफ द डीटीज, 100 गुरु पूजा। एक समय प्रभुपाद की गुरु पूजा नहीं होती थी, ऐसा भी समय था इस्कॉन में। फिर बाद में इंट्रोड्यूस हुई। एक समय वैसे, “ गोविंदम आदि पुरुषं तमहं भजामि “ ये भी नहीं था। एक समय जब प्रभुपाद इंट्रोड्यूस करने गए तो फिर ऑल ओवर द वर्ल्ड इसको लागू किये। 100 भागवतम क्लासेस, हर रोज़। अलग से अनाउंसमेंट की जरूरत नहीं होती थी जैसे कि आजकल होती है,’टुडे स्पीकर इज़ सो एंड सो.. ‘। प्रभुपाद अगर शहर में हैं तो लोग समझ जाते थे ‘आज का टॉपिक भागवतम का ये श्लोक होगा’। आई लाईक्ड दैट मोर इंटरैक्शंस विद प्रभुपाद ड्युरिंग् द डे, इन द इवनिंग, एंड अनदर इवनिंग भगवद् गीता क्लास आल्सो। प्रभुपाद मॉर्निंग में भागवतम क्लास और इवनिंग में गीता क्लास लेते थे। कई अच्छे-अच्छे( हम ब्रहमचारी और टैम्पल डीवोटीस् के अलावा) बाहर के लोग भी आते थे, लाइफ मेम्बर ,पैट्रन मेंबर्स, बिग डोनर्स भी आते थे। इंडस्ट्रियलिस्ट भी सूट-बूट पहने आते मंदिर में और प्रभुपाद प्रवचन में कहते, “ रास्कल, डीमंस, फूल्स नंबर वन,”आदि आदि। तो उन दिनों में मुझे लगता था ये सही नहीं है। ये लीडर हैं इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्ण कान्सियसनैस के, अच्छे-अच्छे लोग इनको सुनने के लिए आये हैं और ये उनको कह रहे हैं , “ दे आर रासकल्स”। ये कुछ अच्छे शब्दों का प्रयोग क्यों नहीं करते हैं। शुरुआत में मैं ऐसा सोचा करता था। लेकिन धीरे- धीरे मैं समझ गया कि ये भी जरूरी है, यही है भगवद् गीता ऐज़ इट इज़ और फिर मैं भी कहने लगा, “ यू रासकल्स “।

ये दुनिया दुर्दैव से भरी हुई है, ऐसे लोगों से। पर ये सब लोग तो अपने ही हैं भगवान के लिए। माता-पिता के लिए हो सकता है उनका बेटा दिव्यांग वाला हो, या डल-हेडेड भी हो सकता है तो भी माता-पिता अपने सभी अपत्यों से प्रेम करते हैं। माता-पिता सभी पुत्र-पुत्रियों से प्रेम तो करते ही है तो भगवान क्यों नहीं करेंगे? बल्कि भगवान तो करते ही है,भगवान ऐसा प्रेम करते हैं सभी जीवों से। इसीलिए माता-पिता भी वैसा ही करते हैं, जैसे भगवान करते हैं सभी से प्रेम। प्रेमवश ही भगवान यहां आ जाते हैं। ‘वश’ मतलब वशीभूत होना जैसे काम-वश, क्रोध-वश। वैन यू हैव नो अल्टरनेटिव, ऐसा करना ही पड़ता है। भगवान का हम सबसे प्रेम है। हमने तो इस संसार को डिवाइड किया हुआ है, कहीं ईस्ट है तो कहीं वेस्ट है, कुछ गरीब लोग हैं, कुछ श्रीमान हैं, कोई हिंदू बने हैं, कोई क्रिश्चियन बने हैं, कोई मुस्लिम बना हुआ है लेकिन भगवान के लिए ऐसा कुछ नहीं है। यह जो हमने कई सारी उपाधियां धारण की हुई हैं,कृष्ण की नज़र में इनका कोई मतलब नहीं है। भगवान तो सीधा अपने जीवों की ओर ही देखते हैं । जीव भी देख सकता है, 

“विद्या विनय संपन्ने ब्राह्मप्रणे गवि हस्तिनी,

 शुनिचैव स्वपाके च पंडित: समदर्शिन:” ( गीता 5.18) 

पंडित में ऐसी समदृष्टि हो सकती है, वह क्या देख सकता है? ‘विद्या विनयसंपन्न ब्राह्मण में या ब्राह्मण को’, एक ही दृष्टि से देखता है। ब्राह्मण कैसे होने चाहिए? ब्राह्मण का  थोड़ा गुण भी गाया है, परिचय दिया है, ब्राह्मण कैसे होते हैं? विद्या विनय संपन्न ब्राह्मण। विद्या के साथ किसका संबंध जोड़ा? विनय का। ऐसा है भी,” विद्या ददाती विनयं”। विद्या देती है विनय, आप विनयी बने हो तो आप विद्वान हो। अगर अभी अहम है तो यह अज्ञान है। “विद्या दादाती विनयम”, “विद्या विनय संपन्न ब्राह्मण” एक पार्टी ये हो गई। और कौन? ग़वि केवल गाय नहीं, गाय में ये सप्तमी विभक्ति चल रही है। संपन्न भी विशेष्य है। विशेष और विशेष्य  चलते हैं। जो विशेष का वचन, विभक्ति या लिंग् होता है वही विशेष्य की भी होती है। आपको थोड़ा सीखना चाहिए संस्कृत। हाथी में, चांडाल में( जो कुत्ते को खाता है) इनमें जो समदृष्टि रखता है, वो पंडित है। पंडित अगर ऐसा देख सकता है तो भगवान भी ऐसे ही देखते हैं। भगवान् ऐसा सोचते हैं जब वे देखते हैं। कॉमन क्या है? कांस्टेंट फैक्टर क्या है? एक ब्राह्मण का शरीर है, फिर कुत्ता कहाँ और हाथी कहाँ। हाथी के एक पैर से बीस कुत्ते बन सकते हैं। तो वे सम कैसे हो गए? तो इक्वल और कांस्टैंट क्या है?वह आत्मा है। पंडित जो शब्द है इसका अर्थ है विद्वान। इसको आजकल पंडा कहते हैं। वृन्दावन जायेंगे तो पंडा परेशान करेंगे। पंडा मतलब पंडित, विद्वान। तो भगवान ऐसा ही सोचते हैं, वे शरीरों को नहीं देखते हैं। 84 लाख योनियों मतलब क्या है? 84 लाख प्रकार के शरीर। योनी मतलब एक-एक शरीर है, एक यूनिफॉर्म है। 

“वासांसी जीर्णनी यथाविहाय” 

84 लाख, इतने प्रकार के शरीर हैं। हरि हरि! इन सभी शरीरों में आत्मा है। तो भगवान का कंसर्न तो आत्मा से है। ही केयर्स।  ईफ एनीबॉडी केयर्स, कृष्ण केयर्स। तुम्हारी चिंता किसको है? भगवान को है। हमने तो यहां कई सारी वैरायटी बना दी हैं, हिंदू मुसलमान बन गए, देशी- विदेशी हो गए लेकिन भगवान के लिए तो हम सब उनके अंश हैं,जीव हैं और  वे सब जानते हैं कि ये सब भ्रम में हैं। बेविल्डर्ड और भ्रम में या द्वंद्व में फंसे हुए हैं। द्वंद्व मतलब दो; ड्यूलिटी हैं जैसे-  काला हैं तो गोरा,गरीब है तो अमीर,पुरुष हैं तो स्त्री,ठंडी है तो गर्मी, देशी है तो विदेशी, हिंदू है तो मुसलमान है। ये काफी लंबी लिस्ट है, इसे द्वंद कहा गया। जैसे सिक्के के दो पहलू हैं तो हर एक के दो-दो है। कृष्ण कहे, “ द्वंद्वतीतो “ हमे द्वंद से अतीत पहुंचना है, परे जाना है, गो बियोंड द्वंद, जिसको अंग्रेज़ी में कहते हैं ट्रांसिडैंटेल। ट्राँसैण्ड मतलब द्वंद्व से मुक्त होना है। हरि हरि! 

नित्यानंद प्रभु की जय! 

नित्यानंद इज़ चैतन्य। कई सारी पर्सनेलिटी हैं जब हम सुप्रीम पर्सनेलिटी को समझेंगे या स्वीकार करेंगे,सुप्रीम पर्सनालिटी ऑफ गॉड हैड। सो मैनी मिलियंस, ट्रिलियंस पर्सनेलिटी हैं जो सब भगवान के पार्षद हैं, सेवक हैं। और हम सब किसके हैं? भगवान के अंश।

भगवान् की साथ जीवों के कई प्रकार के संबंध हैं– शांत रस, दास्य रस, साख्य रस, वात्सल्य रस और माधुर्य रस। इसे अलावा और भी विविधता है। भगवान की वृंदावन में लीला एक प्रकार, मथुरा में लीला दूसरा प्रकार,द्वारका में लीला तीसरा प्रकार, वैकुंठ में लीला एक और प्रकार। कितने वैकुंठ पति हैं, बीच में रह गए जय श्री राम! देवी धाम के ऊपर महेश धाम भी है जो शिवजी का धाम है। विशेष धाम है शिवजी का और शिवजी भी विशेष व्यक्तित्व हैं। “ शंभुताम् गता:” ऐसा कहा गया है कि भगवान् ही बनते हैं शंभु। उनके ऊपर शंभु का एक रूप सदाशिव भी है, यही फिर अद्वैत आचार्य बनते हैं। एक महाविष्णु भी होते हैं। वैकुंठ लोक के ऊपर साकेत धाम, साकेत मतलब अयोध्या( वैकुण्ठों से ऊपर गोलोक से नीचे)। दोनों के बीच में है अयोध्या धाम, जय श्री राम! फिर गोलोक धाम आता है। कोटि-कोटि ग्रंथ लिखे जा सकते हैं, ये सब हैं भी। ग्रंथ मतलब सिर्फ छपे हुए रूप में नहीं, बल्कि चर्चा के विषय हैं। महाप्रभु की बहुत सारी लीलाओं का विस्तार से वर्णन है चैतन्य चरितामृत् में, चैतन्य भागवत में, फिर चैतन्य मंगल भी है। सब लिखा हुआ तो है लेकिन पूरा वर्णन नहीं है। अब रुकना चाहिए, सिग्नल और वाइब्रेशन ऐसे आ रहे हैं। प्रसाद भी होना बाकी है। तब तक इतना हज़म करो। ‘असिमीलेशम् से होता है रेवोलुशन’। जितने भी ग्रंथ हैं वो हम सबको पढ़ने चाहिए और इनका वितरण भी करना चाहिए। स्पेशली चैतन्य चरितामृत् और चैतन्य भागवत तो पोस्ट ग्रैजुऐट् स्टडी हैं। इसको स्टैडी करने वाले पहले तो इस्कॉन के भक्त होंगे, बाद में वितरण भी करेंगे लोगों को ताकि वे भी स्टैडी करें। गौर-नित्यानंद गौर-पार्षद की कथा का, इनके चरित्र का, चैतन्य चरितामृत या नित्यानंद चरित्र कहो, जैसे पूरा गोलोक ही नीचे उतर आया हो 500 वर्ष पूर्व। ये केवल गौर-नित्यानंद या पंचतत्व की कथा नहीं हैं, ये असंख्य गौरभक्तों की भी कथा है। 

 

“भज गौरांग, कह गौरांग, लह गौरांगेर् नाम रे 

ये जन गौरांग भजे, सेही हमार प्राण रे “ 

 

ये तो हम करते ही रहते हैं,लेकिन साथ ही साथ “ये जन गौरांग भजे सेही हमार प्राण रे “ भी होना चाहिए। गौरांग का भजन करनेवाले, सेवा करनेवाले, उनकी लीला में नित्य प्रवेश करने वालोँ को भी हमें समझना है,इनका भी आश्रय लेना है। फिर ये सब करते-करते हमारा भी लक्ष्य है कि हम भी कहीं इनमें से एक बन जाएँ, नट- बोल्ट बनके कहीं पर फिट होजाएँ। हम सभी के अपना-अपना स्थान है जो अभी रिक्त है, खाली है। आपकी सेवा, पोज़िशन और कोई नहीं ले सकता। हम में से कोई भी एक्स्ट्रा नहीं है। जितनों को आवश्यकता है उतनों को बनाया भगवान् ने। जब दो व्यक्ति एक जैसा ही सोचते हैं, एक जैसा ही उनका कान्ट्रिब्यूशन् है, जो उसमें से एक को कहा जाता ‘ये व्यक्ति रिडनडैंट है’, मतलब उस एक की जरूरत नहीं है क्युकी  दोनों का सब एक जैसा है। ऐसा लेकिन है नहीं। हम अनेक हैं, अनेक रहेंगे भी और जानबूझकर भगवान् ने अनेक जीव बनाएं हैं। इन्हें कई तरह के ऐंगल या विज़न कहो, भगवान् की सेवा केलिए। लॉर्ड इज़ वेटिंग, हमारी प्रतिक्षा न जाने कबसे कर रहे हैं। वी मे नॉट मिस हिम बट ही इज़ मिसिग अस। बिज़ी रहो, तैयारी करो, और उनके पास वापस लौटो, ऊपर वो जहाँ भी हैं। 

गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल! 

“हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे “

धन्यवाद!