Rukmini Dwadashi
ISKCON Delhi
20 May 2024
जय श्री राधा पार्थसारथी की जय!
ग्रंथराज श्रीमद् भागवतम की जय !
रूक्मिणी द्वादशी महोत्सव की जय!
श्रील प्रभुपाद की जय!
रूक्मिणी मैया की जय !
आज है रुक्मिणी द्वादशी महोत्सव,कल त्रयोदशी और परसों कौन सी चतुर्दशी? नरसिंह चतुर्दशी। फिर कौनसी पूर्णिमा? गुरु पूर्णिमा ,लाइक दैट । कई सारी या सभी तिथियाँ कवर हो चुकी है। कृष्णाष्टमी, रामनवमी इत्यादि इत्यादि। “सम्भवामि युगे युगे” केवल भगवान ही प्रकट नहीं होते , भगवान की शक्तियां भी प्रकट होती है। कई सारे व्यक्तित्व प्रकट होते है , कई सारे भक्त प्रकट होते हैं, उन सभी भक्तों में शक्तियों में रुक्मिणी एक विशेष शक्ति हैं , भगवान की अह्लादिनी शक्ति “ प्रणय विकृतिर अह्लादिनी शक्ति अस्मात “ । वृंदावन में जो शक्ति है अह्लादिनी शक्ति है कौन ? जय श्री राधे। राधा रानी भी है , चंद्रवली भी है, अष्ट सखियाँ है और असंख्य गोपियां भी है। इन गोपियों ने मिलके कात्यायिनी से प्रार्थना भी की थी “ नन्दगोपसुतम् देवी पतिम में कुरते नमः” । कई सारी प्रार्थनाएँ तो हुई कात्यायनी का गौरव गाथा का गान करती हुई गौपियां प्रार्थना कर रही थी । उस प्रार्थनाओं का सार क्या था? हे देवी कात्यायनी ! पतिम मे कुरते नमः। हमें पतिरूप में प्राप्त तो कौन? नंदगोप सुतम, नंद गोप के जो सुत है पुत्र है नन्दनन्दन हमें पतिरूप में प्राप्त हो । ऐसी प्रार्थना पूरे कार्तिक मार्गशीर्ष मास में कर रही थी , तो भगवान यह प्रार्थना सुनकर वृंदावन में ही एक प्रकार से उनके पति बने हैं, राधापति कृष्ण भी कहा जाता है ,राधापति, गोपीपति । किंतु इनकी जो ये प्रार्थना है भगवान ने सुनी है और वे भी पति बनने वाले हैं इन सारे गोपियों के। सारी तो नहीं उसमें से 16,108 गोपियों के पति बनेंगे, 16,108 पत्नियां होंगी द्वारकाधीश की जय ! द्वारका में और इन अष्टसखियों में से भी श्रेष्ठ सखी राधा सखी और चंद्रावली, उनको भी भगवान की पत्नी होने का या द्वारका में उनकी पत्नी होने का अवसर प्रदान किए द्वारकाधीश । जो चंद्रावली थी वो द्वारका लीला में बन जाती है रुक्मणी ,रुक्मणी मैया की जय! और राधारानी बनती है सत्यभामा । आठ विशेष रानियाँ रही पटरानियां, उन पटरानियो में रुक्मणी का नाम प्रमुख है ।
रानियों में श्रेष्ठ रानी रुकमणी मैया की जय ! और उनके साथ सेवन मोर , आठ विशेष रानियाँ द्वारका में फिर बच गयी कितनी? 16,१००। आठ में वैसे जाम्बवती है ,कल्याणी है, सत्या है ,लक्ष्मणा भी है। छह तो मैंने नाम कहे ही है टू मोर । रिमेनिग जो 16100 रानियां बनी ये राजपुत्रियों के रूप में उन्होने जन्म लिया था, अलग अलग स्थानों पर और भौमासुर ने इन राजपुत्रियों का अपहरण करके कारागार में रखा था, कैदी बनाया था। भगवान ज़ब प्राकज्योतिषपुर जाते हैं जो भौमासुर का कैपिटल टाऊन आसाम स्टेट की ओर है। भगवान वहाँ जाते हैं वहीं पर वे मुरारी है । मुर नाम क़ा एक असुर जो भौमासुर का बॉडीगार्ड , रक्षक था । भगवान ने उसको मार डाला , गैट आउट । उसको लिटा दिया और फिर भौमासुर का भी वध किया है। तदुपरांत उन सारी राजपुत्रियों को मुक्त किये भगवान और उन्होंने निवेदन किया अब हमें कौन स्वीकार करेगा आपके अलावा ? प्रभु हमें स्वीकार कीजिए। वैसे तो यह सब प्रार्थना कर चुकी थी “ नंदगोप सुतम देवी पतिम में कुरते नमः” तो वही पुनः निवेदन किया है 16,100 राजपुत्रियो ने , भगवान ने उनको स्वीकार किया।
एंगेजमेंट, रिंग सेरेमनी कहो वहां सम्पन्न होती है। नौ फॉर्मेलिटी , बस स्वीकार किए। भगवान ने उन सब को पालकियों में इत्यादि वाहन साधनों से आसाम प्रागज्योतिषपुर से द्वारका के लिए या उनको रवाना किया ,उनको भेज दिया। भगवान उस समय वैसे स्वर्ग गए थे। तो इन सभी 16,108 रानियों के अलग अलग स्थानों पर जन्म हुए है आई डोंट नो। इसका इतिहास वर्णन कहीं न कहीं होगा , किन्तु उसमें से रुक्मणी का तो पता है ही। कुन्डिनपुर मे या विदर्भ में। नागपुर का नाम सुने हो? कुछ तो नाम आपको पता होना चाहिए ताकि उसके संबंध में आप फिर सोच सकते हो। नागपुर से ज़्यादा दूर नहीं है ।वर्धा था नाम सुने हो ? जहाँ विनोबा भावे भी रहते थे एक समय पे , श्रील प्रभुपाद भी गये थे वहां। तो वहाँ से पास ही ये कुन्डिनपुर नाम का स्थान आज भी है । यहाँ पर आज के दिन रुक्मणी मैया का जन्म हुआ, आप खुश हो? आप रुक्मणी के कुछ लगते होंगे । इस्कॉन कुन्डिनपुर की जय! ये महाराष्ट्र में हैं , मेरे प्रचार क्षेत्र में भी वो कुन्डिनपुर है और वहाँ इस्कॉन भी हैं। हमने जो भूमि प्राप्त की है इस्कॉन के लिए, उसी भूमि से रुक्मिणी का हरण हुआ होगा। आज तो जन्म की बात चल रही है, होनी भी चाहिए, की भी नहीं मैंने। तो रुक्मणी हरण की बात का उल्लेख कर रहे हैं ।हमने जो भूमि प्राप्त की कई साल पहले ही वहाँ 5 कदम के वृक्ष थे। प्राचीनकाल से या कृष्ण के समय से वे ५ कदम के वृक्ष वहाँ है । कृष्ण जब रुक्मिणी हरण लीला के लिए गए थे, रुकमणी ने जो मीटिंग प्वाइंट बताया था ,जो पत्र लिखा था वो सेवन पैराग्राफ वाला पत्र है । हरि हरि! रुक्मिणी अपने पिता के महल से पुनः देवी के दर्शन और प्रार्थना के लिए जानेवाली थी विवाह के दिन और फिर जब वो पुनः लौटेगी , ओन दावे बैक टू द पैलेस, पत्र में लिखी थी वहां पर याने देवी के मंदिर और महल के मध्य में आप आ जाना ,मैं आपकी प्रतीक्षा करूँगी । तो पूर्वनियोजित मीटिंग पॉइंट के अनुसार वह मीटिंग हुई ,रुकमणी का हरण हुआ ,जहाँ यह अपहरण हुआ वहीं पर संभावना है निश्चित ही है कृष्ण क़दम के फूलों की माला पहने हुए थे, उसमें से कुछ फूल वहाँ गिर गये। तो फूल में जो बीज होते हैं फिर वो उग आये और वही तो है ये क़दम के वृक्ष । तो भगवान अब मथुरा में ही थे फिर यदुवंशियों को उन्हें ट्रांसफर करना पड़ा द्वारका में । फ़ोर सेफर लोकेशन उन्हें भेजा गया। एंग्टींथ टाइम भगवान अब युद्ध खेलने जा रहे थे जरासंध के साथ। तैयारी तो थी लेकिन खेले ही नहीं भगवान। भगवान युद्ध खेलते हैं वैसे पहले कुछ युद्ध खेले जाते थे । हमने सुना पढ़ा कि रेसलिंग मैच जब होते हैं तो कई सारे लोग देखने के लिए आते हैं , वैसा प्राचीन काल के युद्ध जो धर्मयुद्ध हुआ करते थे उसको देखने के लिए कई सारे लोग एकत्रित होतो थे। वे जानते थे ये धर्मयुद्ध है हम पे तो कोई गोली या बाण नहीं चलायेगा, जस्ट इंज्वॉय द बैटल, प्ले द कम्पीटीशन।
वैसे भी कृष्ण जो भी करते हैं खेलते हैं, पास्ट टाइमस , प्लेज फॉर द प्लेजर ऑफ द लॉर्ड। तो इस बार एंग्टींथ टाइम भगवान युद्ध खेलने की बजाय द्वारका की ओर दौड़ पड़े। उस समय ज़रासन्ध ने कहा “ ए डरपोक कहीं का , रणछोड़ , रण छोड़ रहा है हमसे डर गया ।” तो भगवान का उस समय में द्वारका के लिए प्रस्थान करने के पीछे यह भी उद्देश्य था कि वह जानते थे कि रुक्मिणी की उम्र बढ़ चुकी है और उसके विवाह का समय में आ चुका है और उसका भी विवाह मेरे साथ ही होना है ,तो मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ ? आई बैटर गो तो भगवान बलराम के साथ द्वारका के लिए प्रस्थान करते है । तो रुक्मणी वास ओन हिज़ माइंड जब वे मथुरा से द्वारका जा रहे थे । पर जब तक बड़े भाई का विवाह नहीं होता कृष्ण तो यहाँ रामानुज है कृष्ण कैसे हैं ? राम अनुज । ’अनु’ मतलब पश्चात या बाद में । ’ज ’मतलब जन्म लेना रामानुज। तो वसुदेव देवकी के सातवें पुत्र बलराम और आठवें कृष्ण तो कृष्ण हो गए रामानुज। तो बलराम का पहले विवाह हो जाता है रेवती मैया के साथ । राजा रेवत की पुत्री रेवती से बलराम का विवाह होता है। सो दैट इज आउट ऑफ़ दा वे। तो भगवान का विवाह का मार्ग अब खुल गया बलराम का विवाह होने के उपरांत । यह सारी कथा शुकदेव गोस्वामी राजा परीक्षित को गंगा के तट पर सुना ही रही थे ,पूर्वार्ध हो चुका है। वृंदावन मथुरा की कथाएं लीलाएँ ये पूर्वार्ध है। फिर उत्तरार्ध में कृष्ण की द्वारका की लीलाओं का वर्णन अब प्रारंभ होने जा रहा है।” राक्षसेन विधानेन उपयेम इति श्रुतम “ हमने सुना है द्वारकाधीश ने अपना विवाह कैसे विधान से किया? राक्षस विधान से या अपहरण करना दुल्हन का और फिर विवाह करना । विवाहों के भी कई प्रकार है वैसे यह थोड़ा विपरीत प्रकार है ।
तो उस प्रकार का अवलंबन करना पड़ा कृष्ण को, तो यह जिज्ञासा जब हुई “ अथातो ब्रह्म जिज्ञासा” राजा परीक्षित को। इसके उत्तर में अब शुक उवाच, शुकदेव गोस्वामी अब उत्तर देने वाले हैं। यह उत्तर वैसे तीन एक अध्याय में होगा और उसी के अंतरगत रुकमणी के जन्म की कथा भी है । “ राजा आसीत भीष्मको नाम “ कथा प्रारंभ हो गई ।एक थे राजा कौन थे ? राजा भीष्मक। कहाँ के राजा थे? विदर्भ के, “ विदर्भपतिर महान तस्य पन्चाभवन पुत्राः कन्य कान्च वरानना “ और उनके थे कितने पुत्र? पाँच पुत्र और पुत्री एक की थी ।कैसी थी ? वरानना , सुंदर मुख मंडलवाली, विशेष सौंदर्य की ख़ान जो थी ,उनका नाम कहते कहते साथ में हल्का सा वर्णन भी कर रहे हैं । “ सोप श्रुतय मुकुंदस्य” शुरुआत में ही शुकदेव गोस्वामी सुनाए है “ रूपवीर्य गुण श्रिय :” । ये सारी कथा समरी है , संक्षिप्त में हैं या पूरा महाभारत मतलब विस्तार से महाभारत जैसा नहीं है । नाऔ रिलैक्स यहाँ ये सन्क्षेप में है । तो जन्म भी हुआ, कितने पुत्र थे, एक पुत्री थी । अब पुत्री का वैशिष्ट्य भी सुना रहे हैं। ये पुत्री क्या किया करती थी?
“ स उपाश्रुत्य मुकुंदस्य रूप वीर्य गुण श्रिय:” मुकुंद के गुण रूप लीला धाम का वर्णन सुना करती थी। किनसे ? “ गृह आगतै: ही “ उनके महल में आनेवाले परिभ्रमण करते हुए पहुँचनेवाले महात्मा वे मुकुंद की कथा सुनाया करत थे क्योंकि ये राजा भीष्मक राजर्षि थे । राजर्षि याने राजा और ऋषि जब साथ में होते हैं या ऋषियो मुनियों के आदेशानुसार उपदेशानुसार जब राजा कारोबार संभालते हैं, उनकी टीम बन जाती है ,ऐसे ही राजा को राजर्षि कहते हैं ,सेन्टली किन्ग । तो उनके दरबार में कई सारे संत महात्मा आया करते थे और जब संत महात्मा आते हैं तो क्या करते हैं? “ सताम प्रसंगाय मम वीर्य समविदो “ शुरुआत हो गई संत आते ही “ बोधयंतः परस्परम “ होगया । संतों का भक्तों का परिचय देते हुए कृष्ण ने गीता में ही कहा “मेरे भक्त ऐसे व्यस्त रहते हैं “। ऐसे महात्मा जो आया करती थे भगवान के मुकुंद के रूप लीला गुण का वर्णन किया करते थे । वहां पर बाल रुक्मणी , कैसी रुक्मिणी? बाल रुक्मणी। बालिका रुक्मणी भी वहाँ बैठकर उन कथाओं का बड़ा ध्यानपूर्वक श्रमण किया करती थी। वो सुना करती थी तो हुआ क्या? उसने अपना मन बना लिया यदि मेरा विवाह होता है और होगा ही , नौ इफस एंड बटस । मेरा विवाह तो होना ही है तो “सदृशम पतिम “ मेरे पति वैसे ही होंगे । ऐसे ही गुणवाले होंगे मतलब वे ही होंगे ।
ऐसे मन बना लिया । तो थी बालिका अब धीरे धीरे युवती बन चुकी हैं और विवाह के लिए पति को खोज भी रहे हैं वैसे घरवाले । सभी जानते हैं रुक्मिणी की मनोकामना क्या है उसका मनोभिष्ट क्या है ।तो भी जो बड़ा भाई रुक्मी था उसका कुछ और ही विचार था। मेरी बहन का विवाह होगा तो शिशुपाल के साथ होगा, व्हाट ए च्वाइस। रुक्मिणी जिनके साथ विवाह करना चाहती ही थी उनका कट्टर शत्रु ,एनमी नंबर वन का चयन, इस रूक्मी ने किया रुक्मिणी के विवाह हेतु । रुक्मिणी के बड़े भाई का नाम रुक्मी हैं , तो रुक्मी ने रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल के साथ सोचा। और वैसे पिताश्री चाहते तो नहीं थे, वे जानते थे कि रुक्मिणी किसको चाहती है पर इनकी स्थिति की तुलना तो नहीं की जा सकती, वैसे धृतराष्ट्र भी जानते थे कई बार कि विदुरजी जो बातें कह रहे हैं वे सही है। किंतु वे आसक्त थे दुर्योधन से। दुर्योधन की बातों का विरोध नहीं करते थे तो उसी प्रकार तदवत ऐसा ही कुछ यहाँ हो रहा है। तो पिताजी को भी मानना पड़ा अगेन्स्ट “अनिच्छन अपि “। राजा भीष्मक स्वयं नहीं चाहते हुए भी रूक्मी चाहता है इसलिये गोइंग अलोंग और विवाह की तैयारी भी हो रही है ।
मैच मेकिंग हो चुका है, घोषणा हो रही है कि चेदी के राजा दमघोष के पुत्र शिशुपाल के साथ रुक्मिणी का विवाह, इनविटेशन कार्ड प्रिंटेड एंड सर्कुलेटिड, सर्वत्र प्रमोशन हो चुका है। तब रुक्मणी सोच रही है व्हाट कुड आई डू ? तो भगवान ने अच्छी बुद्धि दी होगी “ ददामि बुद्धि योगम” , वो ब्राह्मण है न ,हाँ हाँ दैट वन , उसको भेजो कुछ संदेश के साथ ,उसको मेरे पास भेजो । तो फिर रुक्मिणी बैठती है एंड शी राइटस अ लैटर ,लव लैटर कहो प्रेम पत्र । पहली बात मैंने कहा ही था कि सेवन पैराग्राफ थे इस पत्र में या सेवन कंसेप्ट या वाक्य कहो या कंपाउंड सेंटेंसेस हैं। सात में से पहला है “ श्रुत्वा गुणान भुवनसुन्दर श्रन्वताम ते निर्विष कर्ण विवरै हरतो अंग तापम ” वैरी फ़ेमस स्टेटमेंट। अपने अनुभव की बात बता रही है कि रुक्मिणी सुना करती थी “ उपश्रित्य मुकुन्दस्य रूप गुण श्रियः “ इत्यादि। उसी पत्र में उल्लेख कर रही है आपके संबंध में श्रुत्वा, किसको श्रुत्वा ? गुणान, गुण को लीला को धाम को। हे भुवन सुंदर ! आपके गुण लीला धाम का वर्णन जब से मैंने सुना है, सुनना प्रारंभ किया तो क्या हुआ? “ निर् विष कर्ण विवरै” ये सभी वर्णन मेरे कानों से मेरे हर्दय प्रांगण तक पहुँचा और वहीं पर आपका मिलन भी हुआ। वो लीला कथा आप ही हो , तो मैं मिली आपसे वहाँ पर तो “ हरत अंग तापम” हुआ और “ तव कथामृतम तप्त जीवनम” ये जो गोपियों ने कहा है गोपी गीत में वही विचार ,वही भाव यहां रूक्मिणी भी व्यक्त कर रही है कि ऐसे भगवान के नाम रूप गुण लीला का वर्णन करनेवाले जो है वे कौन हैं ?”भूरीदा जना:” है, वे दयालु है,दे आर द मोस्ट मैगनैनीमस , ऐसा गोपियों ने कहा जिनका नेतृत्व राधा रानी भी कर रही है। वहाँ पर चंद्रावली भी ज़रूर थी गोपी गीत जब गाया जा रहा था तो चंद्रावली भी वहाँ थी। तो वही चंद्रावली अब बनी है रुक्मणी। वहाँ के गोपियों के भाव ,गोपी गीत के , यहाँ भी व्यक्त हो रहे है ,प्रकट हो रहे हैं “ कर्ण विवरे हरतु अंग तापम” जब से आपके नाम रूप गुण लीला का मैने श्रावण किया है तो क्या हुआ है? “ मत्त चितः “ मेरा चित्त आप मे लगा हुआ है या चिपका हुआ है। आइ एम ग्लूड डाउन टू यू माई लॉर्ड। जैसे ग्लू होता है न, चिपकता है तो “मत चित्ता:” (कृष्ण भी ऐसा कहे गीता में) तो मेरा चित्त आप में लगा हुआ है । तो मेरा चित्त आप में लगा हुआ है, यह पत्र की बिगिनिंग है,शुरुआत है ।
जब यह पत्र लेकर ब्राह्मण देवता पहुंच जाते हैं ,द्वारका धाम की जय! और द्वारकाधीश से मिलते हैं तो खूब आतिथ्य होता है उस ब्राह्मण का ,पाद प्रक्षालन इत्यादि इत्यादि भी होता है । धिस इस कृष्ण, धिस इस द्वारकाधीश, ऐसा आदर्श भगवान ने सभी के समक्ष रखा है और उनसे पूछा ’मे आई हेल्प यू’ ? आपकी क्या सहायता कर सकते हैं? सब ठीक-ठाक तो है न कुण्डीनपुर में ? वैसे तो वे जानते हैं कि सब ठीक-ठाक नहीं है, धिस इस कृष्ण। ब्राह्मण देवता ने रुक्मणी का पत्र पढ़कर सुनाया कृष्ण को और जैसे पत्र पढ़ना समाप्त होता है तो पता है कृष्ण क्या कहे ? कृष्ण कहते हैं “ तथा अहम अपि ततचित्तो निद्राम च न लभे निशी “ क्योंकि रुक्मणी ने कहा था अपने पत्र में मेरा चित्त बस अपने लगा हुआ है प्रभु ,तो अब द्वारकाधीश क्या करें? ओ मेरा हाल भी वही है, मेरा हाल भी वही है, मेरा चित्त भी रुक्मणी में लगा हुआ है। रुक्मिणी कहती मेरा चित् द्वारकाधीश में और द्वारकाधीश कहते मेरा चित्त रुक्मणी में। दोनों की बराबरी हो गई , सेम वेवलेंथ विचारों की और इतना चित्त लगा हुआ है मेरा रुक्मणी में कि रात्रि के समय “निद्रा न लभे “ मैं पलंग पर लेट तो जाता हूं ,लेकिन पूरी रात नींद नहीं आती। रुक्मणी की यादें मुझे सताती है, हरि हरि! कृष्ण को ऐसा नहीं कहना चाहिए था वैसे, रुक्मणी ने तो कहा कि अब मैं निर्लज हो चुकी हूं, मुझे कोई लज्जा नहीं है । पहले तो मैं छुपाया करती थी मेरा प्रेम आपसे लेकिन अब तो ऐसा समय आ चुका है , आई डोंट केयर । तो उसी प्रकार कृष्ण कह तो नहीं रहे हैं लेकिन जिस प्रकार से वे बात कर रहे हैं मानो उनको भी लज्जा नहीं आ रही है यह कहने में कि मुझे रात्रि के समय नींद नहीं आ रही है ।क्यों ? रुक्मणी की यादें सता रही है भगवान ने घोषित किया यहां। परंतु ये कहकर भी कहे हैं ’प्लीज डोंट नोट डाउन, इट इस जस्ट बिटवीन यू एंड मी’ । ये हम दोनों के बीच की बात है । ऐसा भी नहीं कहे नो फुटनोट गिवैन, भगवान चाहते थे दुनिया को पता लगने दो मेरा जो रुक्मणी से प्रेम है इसकी घोषणा करो, लेट द वर्ल्ड नो , हरि हरि! तो फिर भगवान तैयार होते हैं लेट्स गो ,लेटस गो! चलो चलते हैं कुण्डिनपुर के लिए। तो रथ तैयार होता है और वे दोनों उसपे बैठेते हैं । पर ब्राह्मण देवता पता नहीं आए कैसे होंगे ? शायद पदयात्रा करते हुए गए होंगे द्वारका। लेकिन जाते वक्त अब तो वे रथ में आरूढ़ है द्वारकाधीश के साथ ,तूफान की तरह चलते हैं। सायंकाल को प्रस्थान किए द्वारका से, नेक्स्ट मॉर्निंग पहुंच गए कुण्डिनपुर । तूफान एक मेल भी है एक समय सबसे तेजी से दौड़ने वाली होती थी तूफान मेल। तो नेक्स्ट मॉर्निंग जब बलराम जग जाते हैं और पहुंच जाते हैं द्वारकाधीश के महल पर, बेल बजाई होगी ,पर कोई रिस्पांस नही आया। द्वारकाधीश …नो रिस्पॉन्स। फिर बलराम सोचे हां वे कहीं गए होंगे, कुण्डीनपुर गए होंगे । जानते हैं बलराम और वहां मैरिज किसके साथ होना है ये भी बलराम को पता ही है । वहां युद्ध होने की संभावना है यह भी जानते हैं बलराम । उन्होने यह पता लगवाया कि कृष्ण तो अकेले ही गए हैं। तो बलराम क्या करते हैं? छोटी सी सेना लेकर कुण्डिनपुर के लिए प्रस्थान किया और वहां राजा भीष्मक ने कृष्ण बलराम की अगवानी की, भव्य दिव्य स्वागत हुआ है। कृष्ण बलराम की जय !
कृष्ण बलराम इन कुण्डीनपुर और वहां बाराती बनके कहो , ऑन इन्विटेशन ऑफ राजा भीष्मक, उनकी पुत्री का विवाह होना है तो सारे विदर्भ देश की, प्रदेश की जनता एकत्रित हुई। और भी सारे राजा महाराजा वहां पहुंचे है । तो शुकदेव गोस्वामी वर्णन करते हैं उनको “ कृष्ण आगमनम आकर्ण्य “ कृष्ण बलराम आए हुए हैं इस बात का उनको पता चला। तो वैसे विवाह के लिए तो उनको आना था ही और कृष्ण बलराम भी आए हैं तो बड़ी संख्या में लोग वहां पहुंचे हैं। वह क्या करते हैं? “ विदर्भपुर वासिन: आगत नेत्रांजलि: वपुस्तन मुख पंकजम “ वे क्या करने लगे ? कृष्ण बलराम के सौंदर्य का सभी पान करने लगे यहां जिस प्रकार से वर्णन किया है कि वहां के लोगों ने अपने आंखों के प्याले बनाए ,प्याला समझते हैं? जैसे आप लोग प्याले भरभर के खीर, प्याली के आफ्टर प्याला खाली कर देते हो और परोसने वाले को कहते ए गिव मी मोर ! तो यह विदर्भावासी कृष्ण बलराम के सौंदर्य का पान प्याले भर भर के कर रहे थे, पी रहे थे, तृप्त हो रहे थे, अपने जीवन को सफल बना रहे थे । तो वैसे रुक्मणी को पता चला है थोड़ा विस्तार से वर्णन है ही । रुक्मणी प्रतीक्षा कर रही थी क्यों नहीं आ रहे? क्यों नहीं आ रहे कृष्ण? क्युकी ब्राह्मण देवता नहीं पहुंचे । किंतु अंततोगत्वा ब्राह्मण देवता से उसकी मुलाकात हुई, फिर वह तैयारी करती है वहां जाने के लिए । कहां? देवी की पूजा के लिए जाएगी । तो कई सारे पुरोहित है ,मंत्रो का उच्चारण हो रहा है, रुक्मणी अपनी थाली वगैरह साथ में लेकर चलती है धूप, दीप, नैवेद्य, चंदन आदि । पुनः शुकदेव गोस्वामी वर्णन करते हैं “ पद्ग्याम इनी ययो दृष्टुम भावन्या पाद पल्लव मुकुंद पद चरणामभुजम स च अनुध्यायती सम्यक “ , रुक्मणी अपने चरणों से चलती हुई कहां जा रही थी? देवी के चरणों की ओर ।देवी के चरणों की ओर अपने चरणों से चलती हुई जा रही थी। तब वह कृष्ण के चरणकमल का ध्यान कर रही थी। तीन चरण कमल । जा रही है देवी के चरणों की ओर कैसे जा रही है? अपने चरणों से चलते हुए जा रही है ।
तब कौन से चरणों का स्मरण कर रही है? कृष्ण के चरणों का स्मरण कर रही है, द्वारकाधीश के चरणों का स्मरण कर रही है। तो देवी के मंदिर में पहुंचकर सेम प्रेयर हैस बीन रिपीटेड ,जो प्रार्थना गोपियों ने कात्यायनी को की थी, चीर घाट पर जमुना के तट पर । वैसे कुण्डिनपुर में भी नदी है वरदायनी नदी कहते हैं ,वर देनेवाली। वहां रुक्मणी को वर प्राप्त हुआ ,तो उस नदी का नाम वर देनेवाली नदी के तट पर “ भुयात पतीर में भगवान कृष्ण तद अनुमोदतम “ । तो पतिर में भगवान मतलब कृष्ण मुझे पति रूप में प्राप्त हो। तो पुनः वो प्रार्थना यहां कुण्डिनपुर में भी हुई है और वहां रुक्मणी पुनः महल की ओर जाने के लिए तैयार हो जाती है। उसको पता है इस बार मैं महल की ओर तो जाऊंगी लेकिन महल में मुझे जाना नहीं हैm मार्ग में कृष्ण मिलने वाले हैं ,मीटिंग पॉइंट इस ऑलरेडी फिक्स्ड। तो वो जा रही है मंदिर की ओर से महल की ओर, तो कैसी है रुक्मणी? “ ताम देवमायामीव” देवमाया जैसी । “ वीर मोहिनी रूप “ जब रुक्मणी जा रही है तो दोनों तरफ कई सारे राजा महाराजा वहां विराजमान है। कोई हो सकता है जमीन पर खड़े हैं ,कोई घोड़े पर सवार है ,कोई रथों में है, कोई हाथी की पीठ पर है। “ ए रुक्मिणी सुमध्यमा “ शुकदेव गोस्वामी वर्णन कर रहे हैं सुमध्यामा ,हरि हरि! पतली कमर वाली। स्त्रियों के सौंदर्य का वैशिष्ट्य माना जाता है सुमध्यामा । ’कुंडल मंडित आनना’ कुंडल से मंडित जिनका आनन है और ’श्यामाम’ और उनके बाल कैसे हैं ? सुष्मिताम सुचिस्मिताम , उसके मुखमंडल पर हास्य है । ’चलंती कल हंसगामिनी’ हंस के जैसी चाल चलती हुई ,हंस जैसे चलता है वैसी चाल चलती हुई रुक्मणी आगे बढ़ रही है अपने बालों को हटाकर देख भी रही है ।
किन को देखती होगी ? कहां है कृष्ण? कहां है उनका रथ? वो राजाओं को देखना चाहती होगी क्या? ऑफ कोर्स नॉट। लेकिन रुक्मणी को देखकर इन राजाओं का जो हाल हुआ है इसका वर्णन यहां शुकदेव गोस्वामी करते हैं । वे तो सब मंत्रमुग्ध, मोहित थे और उनको अपनी खुद की सुधबुध नहीं रही, रुक्मणी के सौंदर्य का दर्शन करते हुए उनके हाथों से हथियार छूट रहे हैं या कुछ लोग गिर रहे हैं । उनको पता है नहीं कि हम हाथी की पीठ पर है , कि घोड़े की पीठ पर है , कि जमीन में है, कि कहां है । जैसे वो आगे बढ़ रही है तो राजा महाराजा गिर रहे हैं, ऑल फॉलिंग डाउन। तो इतने में “विलोक्य” रुक्मणी ने देखा, कृष्ण के रथ के ऊपर वाला जो ध्वजा थी उसको देखा। हां दैट्स द वन और रुक्मणी आगे बढ़ रही है उस रथ की और कृष्ण भी रुक्मणी की ओर अपने रथ को आगे बढ़ा रहे हैं। इस तरह एक दूसरे कि आगे बढ़ते बढ़ते जब रुक्मणी पास पहुंची है तो थोड़ा सा, हल्का सा हेल्पिंग हैंड कृष्ण ने दिया है । उसी के साथ रुक्मणी छलांग मारकर रथ में विराजमान होती है और ऐसी होते ही कृष्ण प्रचंड वेग के साथ वहां से प्रस्थान करते हैं । हरि बोल ! आगे खरगोश या देखते ही रहे व्हाट हैपेंड ?व्हाट हैपेंड ? और फिर थोड़ा समझ गए ओ दैट वास कृष्ण , कृष्ण ही होंगे । तो पीछा करते हैं और युद्ध भी होता है । रुक्मी को वैसे बलराम तो “ विनाशाय च दुस्कृताम” दुष्ट का संघार करना चाहते थे लेकिन कृष्ण ने समझा बुझा दिया तो उसका सिर्फ मुंडन ही कराए ,उसके बाल उतार दिए जैसे अश्वत्थामा के बाल उतारे थे हत्या नहीं की । फिर वहां से कृष्ण बलराम रुक्मिणी और सेना के साथ बैक टू द्वारका धाम की जय! और वहां “ शुभ lमंगल सावधान” विवाह संपन्न हुआ। शुभ मंगल सावधान! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!
रुक्मिणी जन्मोत्सव की जय!
रूक्मिणी हरण की जय!
रुक्मिणी विवाह महोत्सव की जय!
सब कुछ कर दिया हमने जन्म भी हुआ, हरण भी हुआ,विवाह भी हो गया और अब बहुत सारी द्वारका लीला का प्रारंभ होगा। औरों के साथ भी अब विवाह होंगे, ८ विशेष रानियों के साथ और फिर सोलह हज़ार एक सौ के साथ भी विवाह होंगे जो अब पहुंचने वाली है । एक ही साथ वैसे सारे 16,100 विवाह उतने ही सारे महलों में हुए और हर महल में द्वारकाधीश थे। ऑफ कोर्स ही वास देयर। इतना ही नहीं हर विवाह में वसुदेव और देवकी भी थे, सभी ने विटनेस किया और बस यशोदा नहीं थी। यशोदा कहां थी ? वृंदावन में थी। इसलिए बालाजी को यशोदा ने निवेदन किया था “हे पुत्र! हे बेटा! तुम्हारा विवाह देखने का मुझे सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ । मैं देखना चाहती हूं तुम्हारा विवाह । तो फिर बालाजी ने एक और विवाह की व्यवस्था की और बालाजी मंदिर में वैसे वकुला जो किचन है, रसोई घर है, उसको यशोदा मैया पर्सनली कुकिंग को ओवर सी करती हैं।फिर विवाह भी संपन्न हुआ और भगवान ने ऐसा मैरिज करके दिखाया, इतना महंगा मैरिज था और उसमें मैरिज लोन लिया गया । कार लोन , दिस लोन , दैट लोन, भगवान ने लोन लिया किसके लिए? मैरिज के लिए लोन लिया। वहां एक वन है नारायण वन या ऐसे कोई वन है जहां पर विवाह संपन्न हुआ और यशोदा उस विवाह में थी , यशोदा द्वारका में नहीं थी । हरि हरि! आई विल से थिस क्विकली कि भगवान के संबंध में सुनकर “श्रुत्वा गुणान भुवनसुंदर हरतो अंग तापम निर्विष्य कर्ण विवरे “ ये जो हुआ है रुक्मणी का प्रेम कृष्ण से, कैसे हुआ ?किस कारण से हुआ ? श्रुत्वा श्रवण से हुआ और फिर उसने “ मैन ए सदृश्यम पतिम “, मेरे पति होंगे तो कृष्ण ,मुकुंद द्वारकाधीश ही होंगे। मैंने यह भी कहा था कि रुक्मणी भगवान की शक्ति है व्हाट अबाउट अस?
हम लोग कौन है ?;हम भी भगवान की शक्ति ही है। भगवान है शक्तिमान और रुक्मणी, गोपी , अंतरंगा शक्ति, फिर बहिरंगा शक्ति ,तटस्थ शक्ति आदि। हम लोग तटस्थ शक्ति है ,भगवान की शक्ति तो हम है ही। पुरुष तो एक ही है” गोविंदम आदिपुरुषम” देयर इस ओनली वन पुरुष और बाकी सब प्रकृति है ,या स्त्रियां है, शक्तियां है ,इंक्लूडिंग ऑल ऑफ़ अस । हम भी भगवान की शक्ति है ,हम स्त्री है, हम प्रकृति है। केवल स्त्रियां ही स्त्रियां ही नहीं है, पुरुष भी स्त्री ही है। वैसे हम पुरुष बनने का प्रयास चलता रहता है हमारा, पुरुष मतलब इंजॉयर। तो वैसे स्त्रियां भी पुरुष की भूमिका निभाना चाहती है। जब एंजॉयमेंट का स्पिरिट होता है तो वो स्पिरिट वाला पुरुष बनना चाहता है । पुरुष समझता है कि मैं पुरुष हूं लेकिन स्त्रियां भी पुरुष की भूमिका निभाना चाहती है। यह तो फाल्स पोजीशन है ,हम पुरुष नहीं है , इंजॉयर भी नही है । “ भोक्तारम यज्ञ तपसान “ भगवान भोक्ता है ,भगवान इस एंजॉयर और एक ही पुरुष है। वैसे जीव गोस्वामी कहे थे “ आई ऐम स्वामी, सन्यासी तो मैं स्रियों को नहीं मिलता “ । जब मीराबाई मिलना चाहती थी तो संन्यासियों को कुछ नीति नियम ,इत्यादि विधि विधान भी है उसके अनुसार वे कहे “ मैं स्त्रियों को नहीं मिलुंगा “ । चैतन्य महाप्रभु थोड़ा दूर रहते थे किंतु जब यह बात सुनी मीराबाई ने तो बोली “ मैंने तो सुना था कि एक ही पुरुष है” गोविंदम आदिपुरुषम” तो अब और कौन बना है पुरुष? “ जीव गोस्वामी स्त्री को नहीं मिलना चाहते थे, कौन बनेगा ऐसा पुरुष ? एनीवे फिलोसॉफिकल बात है। तो कहने का तात्पर्य यह है कि सब हम सब स्त्रियां है ,प्रकृति है और हम सब पुरुष हैं “गोविंद आदिपुरुषम तमहम भजामि,” । तो हमारा विवाह भी हमें भी मन बनना चाहिए हम स्त्रियों का या हम प्रकृतियों का विवाह किन के साथ हम करना चाहेंगे?
मुकुंदस्य ,मुकुंद के साथ ,कृष्ण के साथ, पार्थसारथी के साथ। जय श्री राम! उनको ही हम पुरुष बनना चाहेंगे ,वही है हमारे पुरुष या स्वामी, एंजॉयर, वी आर मेंट टू बी एंजॉयड। तो इस स्पिरिट का रीवाइवल कैसे होता है? कि मैं स्त्री हूं, मैं प्रकृति हूं आत्मा हूं ,तटस्थ शक्ति हूं ,मेरा संबंध मुझे पुनर्स्थापित करना है, जैसे संबंध ज्ञान , अभिधेय और प्रयोजन। तो मेरा संबंध कृष्ण के साथ ही हो सकता है ,भगवान के साथ ही हो सकता है ,आई वांट टू बी एंजॉयड बाय द लॉर्ड। यह तो विचार रुक्मणी का बना जिसके कारण बना, श्रवण से बना ,श्रुत्वा सुनते-सुनते साधु शास्त्र आचार्य को सुना , पढ़ा उसने तो मन बना लिया। यदि हमारा भी मन बनना है तो कैसे बनेगा मन ? सेम प्रोसेस,वही विधि है वही कारण है, जो कारण रुक्मणी के लिए बना ,हमारे लिए भी और कोई कारण नही बन सकता। श्रवण,कीर्तन, अध्ययन पठन-पाठन से ही “ श्रवानादि शुद्धचित् करह उदय, नित्य सिद्ध कृष्ण प्रेम साध्य कभु नाय “ तो हमारा प्रेम भगवान से है ,हमारे प्रियकर भी कौन है? कृष्ण है। हम कृष्ण की प्रेयसी भी है छोटी-मोटी । जितनी राधा प्रेयसी है या रुक्मणी प्रेयसी है, लेकिन है तो भी, हम कौन हैं ? प्रेयसी है, हम प्रिया है ,हम जो जीव है आत्मा है प्रिया है भगवान की प्रिया है । तो हमारा प्रेम भगवान से पुर्नजागृत वैसे ही होगा जैसे रुक्मणी का प्रेम कृष्ण के प्रति । वैसे लीला में ऐसा सुनते हैं प्रेम नहीं था, वो बालिका ही थी और सुनते-सुनते-सुनते फिर उसका प्रेम जागृत हुआ। यह बात सही नहीं है क्युकी रुक्मणी नित्य पार्षद ,नित्य मुक्त है। तो वो कभी अच्छादित नहीं होती माया से। लीला के लिए ये सब ऐसा दर्शाया जाता है, ऐसी घटनाएं घटती है। उसने सुना भगवान के बारे में इसलिए ऐसा हुआ। ये सब हमको समझने के लिए लीला रचते हैं भगवान ।हरि हरि ! ओके ! गौर प्रेम आनंद हरि हरि बोल ! इसीलिए बुक डिसटीब्यूशन इस वेरी इंर्पोटेंट , बुक डिसटीब्यूशन क्या करता है ? बुक्स लोगों को मिलते हैं तो उनको अवसर प्राप्त होता है किसका? श्रुत्वा,सुनने का, पढ़ने का ।
बुक्स नहीं है तो कैसे होगा ? रुक्मणी जो सुन रही थी ,पढ़ भी रही होगी। इसलिए श्रील प्रभुपाद कहे “ बुक आर द बेसिस” । श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर जो आदेश दिए भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद को, तो क्या मेन आदेश था ? “ इफ यू एवर गेट मनी , क्या करो? प्रिंट बुक्स” यदि कभी तुम्हें धनराशि प्राप्त होती है तो तुम उसका प्रयोग ग्रंथ के निर्माण ,प्रकाशन ,वितरण के लिए करो । वैसे कहा था “प्रीच इन इंग्लिश लैंग्वेज” तो प्रभुपाद अंग्रेजी भाषा में ग्रंथों की रचना–संकलन आदि किए। लेकिन एक समय प्रभुपाद कहे थे “ यू प्रिंट माय बुक्स इन ऐज मैनी लैंग्वेज ऐज पॉसिबल “ तो होगए श्रील प्रभुपाद व्यास बन गए । व्यास मतलब जो विस्तार करता है। तो भक्तिसिध्दांत सरस्वती ठाकुर ने अंग्रेजी भाषा में प्रचार करने कहा था और श्रील प्रभुपाद ने कहा प्रिंट इन ऐज मैनी लैंग्वेजेस ऐज पॉसिबल। तो इसके प्रकाशन केलिए अलग से प्रभुपाद ने भक्तिवेदांत बुक ट्रस्ट की स्थापना की है बिकोज प्रिंटिंग इस वेरी-वेरी इंर्पोटेंट ऐसी इंस्ट्रक्शन हुई थी। और मेन इंस्ट्रक्शन भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर की श्रील प्रभुपाद को थी कि यू प्रिंट एंड डिस्ट्रीब्यूट बुक्स । मुझे यह भी कहना था ही लेकीन बातें कहते कहते कहना लगभग बच रहा था। तो उसको मैं अभी कहने का प्रयास कर रहा हूं। फिर उसके बाद भक्तिवेदांत बुक ट्रस्ट की स्थापना की और गोपाल कृष्ण गोस्वामी महाराज को बी.बी. टी का ट्रस्टी की भी बनाएं और दिल्ली से ही प्रभुपाद गोपाल कृष्ण महाराज को मास्को भेजे थे। बी.बी .टी का बुक स्टॉल , एग्जीबिशन कम्स सेल्स वहां होने से और इन स्टॉल का बहुत सारा अप्रिशिएसन वहां मास्को में हुआ, ग्रंथ का वितरण हुआ , कई सारे कॉन्टेक्ट मिले । गोपाल कृष्ण महाराज जब लौटे और प्रभुपाद से मिले तो प्रभुपाद गोपाल कृष्ण महाराज से बहुत प्रसन्न थे । और फिर महाराज केवल बी बी टी जिसकी जिम्मेदारी है प्रिंटिंग ,प्रिंटिंग को ही नहीं संभाले बल्कि डिसटीब्यूशन को भी संभाले हैं ।
डिस्ट्रीब्यूशन का प्रमोशन किए और इतने सारे ग्रंथो का वे वितरण करते रहे ऑल ओवर द वर्ल्ड, ऑल ओवर द ज़ोन, ऑल ओवर इंडिया, एनसीआर, दिल्ली टेंपल। ग्रंथ वितरण में महाराज नंबर वन डिस्ट्रीब्यूटर इन द वर्ल्ड। मै यह भी सोच रहा था कि भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर जो श्रील प्रभुपाद को आदेश दिए मेन आदेश प्रिंट बुक्स ,डिस्ट्रीब्यूशन बुक्स । तो उस आदेश को धीरे-धीरे हम सभी को कहे वैसे प्रभुपाद । अपने सारे शिष्यों को कहे डिस्ट्रीब्यूट बुक्स , बुक्स आर द बेसिस । लेकिन हम सब शिष्यों में गोपाल कृष्ण महाराज ने लीडरशिप ली और ही बिकेम नंबर वन बुक्स डिस्ट्रीब्यूटर इन द वर्ल्ड । तो जो श्रील प्रभुपाद को अपने गुरु महाराज के विल का एग्जीक्यूशन करना था उसका एक्जुक्यूशन श्रील प्रभुपाद अपने शिष्यों के माध्यम से अमल किए । और उसमें भी गोपाल कृष्ण महाराज को भी निमित्त बनाकर “निमित्त मात्रम भव सब्यसाचिन “ गोपाल कृष्ण महाराज को निमित्त बनाकर अपने गुरु महाराज की इच्छा या विल पर अमल किए। श्रील प्रभुपाद की जय! गोपाल कृष्ण गोस्वामी महाराज की जय! आप सब की भी जय ! क्योंकि आप गोपाल कृष्ण महाराज की इच्छा, ग्रंथ विचरण की इच्छा और भी कई सारी इच्छाएं को पूरा कर रहे हैं। मुख्य इच्छा तो है की ग्रंथ वितरण अधिक अधिक हो ,उसकी इच्छापूर्ति हेतु आप व्यस्त रहते हो दिया और आपके कई सारे मैराथन के विनर्स बन जाते हो। न्यू दिल्ली वन, एनसीआर वन इन द वर्ल्ड। इसके लिए भी आप सबका अभिनंदन और कांग्रेट्यूलेशंस! हरि हरि बोल!