
Srimad Bhagavatam 05.17.21
23-06-2023
ISKCON Nagpur
हम कहा है अभी ?आपको पता नहीं ?
या मै सोच रहा हूँ कि आपको वृन्दावन में होने चाहिए। कल रात को आपसे मिलने की इच्छा थी। हम भगवान् को कहा ले आये है?वृन्दावन। जगन्नाथ स्वामी यहाँ पहुंचे है। वृन्दावन धाम की जय! वैसे भी यहाँ जो राधा गोपीनाथ है ,ये भी वृन्दावन के ही है।
ये श्लोक मै अकेले ही पढ़ता हूँ। समय भी थोड़ा कम ही है। ये जो अभी भागवतम कक्षा हो रही है फिर आप सब प्रसाद ले सकते हो। और उसके उपरांत मंदिर के भक्तो से , जो फुल टाइम डीवोटिस है या जो IVCC में है उनसे भी मिलना है तो वे भक्त रहेंगे प्रसाद के उपरान्त, उनसे मिलना है। सोल्हापुर जगन्नाथ रथ यात्रा महोत्सव की जय! रथयात्रा के लिए प्रस्थान भी करना है।
आइए पढ़ते है।
यमाहुरस्य स्थितिजन्मसंयमंत्रिभिर्विहीनं यमनन्तमृषय: ।
न वेद सिद्धार्थमिव क्वचित्स्थितंभूमण्डलं मूर्धसहस्रधामसु॒ ॥ २१ ॥ (श्रीमद भागवतम 5.17.21)
अनुवाद और तात्पर्य श्रील प्रभुपाद द्वारा (श्रील प्रभुपाद की जय!)
शिवजी कहते है: सभी महान ऋषि भगवान को सृजक, पालक और संहारक के रूप में स्वीकार करते हैं। ध्यान से सुनिए जो कहा जा रहा है ,सत्य ही कहा जा रहा है। हमने कई सारी असत्य या मनघृनंत बाते सुनी होती है , आप सुन रहे हो ? जो मनघृनंत बाते सुनने से हम लोग सम्भ्रमित होते है या दिशाहीन बन जाते है। तो आईये हम शिवजी को सुनते है आज। शिवजी महाज्ञानी, महाभागवत है। वे महान वैष्णव भी है।” वैष्णवानाम यथा शम्भू”, सभी वैष्णवों में श्रेष्ठ वैष्णव शिव ही है। इस बात को सभी नहीं समझते है। केवल वैष्णव समझते है।
“महाजनो येन गतः स पन्थाः”
हमे महाजनो का अनुगमन करना है। नहीं तो आजकल सुनने में आता है जिसका खूब प्रचार होता है “जथो मथ ततो पथ” जितने मथ है ,उतने ही पथ है । उसमे से कोई एक पथ को आप स्वीकार कर सकते हो। ये है गुमराही, चीटिंग है , टीचिंग नहीं है। ठगाई होती है , हम ठगे जाते है। इसीलिए हमे भागवत को सुनना चाहिए, “ नित्यं भगवत सेवया” । ग्रंथराज श्रीमद भागवतम की जय! भागवत दो प्रकार के है- एक ग्रन्थ भागवत और एक भक्त भागवत/ वैष्णव भागवत। नित्यं भगवत सेवया मतलब दोनों की सेवा है। महाभागवतों की सेवा हम कैसे कर सकते है? एक सेवा हम उनसे सुनकर सेवा कर सकते है , उनको सुनना ही सेवा है या अगर हम वैष्णवों से महाभागवतों से सुनेंगे तो सेवा प्रारम्भ हो सकती है। तो शिवजी कहते है इसलिए भगवान को अनंत कहा गया है। यद्यपि शेष अवतार के रूप में वे अपने फणों पर समस्त ब्रह्मांडों को धारण करते हैं, किन्तु फिर भी प्रत्येक ब्रह्मांड उन्हें सरसों के बीज से अधिक भारी नहीं लगता। किनको भारी नहीं लगता? अनंत शेष को।
अतः सिद्धि का इच्छुक ऐसा कौन पुरुषों होगा जो ईश्वर की अराधना नहीं करेगा, ज़रूर करेगा जो सिद्धी का इच्छुक है। “ मनुष्यनाम सहस्त्रेशु कश्चित् यतति सिद्धए “। तात्पर्य: भगवान ने शेष या अनंत अवतार में असीम शक्ति, यश, वैभव, ज्ञान, सौंदर्य तथा त्याग भरा है। प्रभुपाद भी कहे है कि अनंत विशेष भगवान का अवतार हैं। कृष्ण अवतारी हैं । सब समझिएगा कृष्णा अवतारी है और अवतारी श्रीकृष्ण से होते हैं अवतार। तो इस अवतार में भगवान ने, सारे षड्ऐश्वर्य भरे हुए हैं , षड्ऐश्वर्यपूर्ण भगवान। एक श्लोक में बताया गया है कि अनंत अवतार में इतनी महान शक्ति है कि उनके फणों पर असंख्य ब्रह्माण्ड टिके हैं। कितने हैं बृह्मांड? असंख्य। दूसरे शब्दों में कहाँ है अनंत, अनंत कोटि ब्रह्माण्डनायक। नायक मतलब ? नेता या स्वामी या मालिक । भगवान कैसे हैं ? अनंत कोटि ब्रह्मांड के नायक। ये सुनके हम में झटसे कुछ विनम्रता के भाव जगने चाहिए । भगवान इतने महान हैं और हम कैसे हैं? हम लहान हैं । भगवान महान तो हम लहान । यह ज्ञान से ही वैसे हम में नम्रता या हम जो है उसका पता चलता है । हम कितने शूद्र हैं, नगण्य हैं(कोई गणना ही नहीं है हमारी) । भगवान महान है जिनको इसका ज्ञान नहीं है, वे स्वयं को ही महान समझते हैं। उनका शरीर हज़ार फणोंवाले सर्प की भाँति है और अपार शक्ति होने के कारण फणों पर टिके सभी ब्रह्माण्ड सरसों के बीज से अधिक भारी नहीं प्रतीत होते । एक एटलस होता है,उसको दिखाते हैं कि उसने पृथ्वी को, ब्रह्मांड को भी नहीं ,केवल पृथ्वी को धारण किया हुआ है और वो लगभग पसीने पसीने हो रहा है। कभी गिर सकता है एटलस, एट लास्ट। लेकिन यहाँ अनंतशेष अपने फणो के ऊपर ब्रह्माण्डो को धारण कर रहे हैं और उनको ब्रह्माण्ड है कि नहीं , या सरसों का दाना है या कोई बीज रखा हुआ, हू केयर्स? हमारे सिर पर भी कई सारे धूली के कण बैठ जाते हैं तो आपको कुछ बोझ लगता है क्या ? तो ये भगवान की महानता का या शक्ति सामर्थ्य का हल्का सा उदाहरण है कि कितने हैं भागवान शक्तिमान? इस प्रसंग में पाठकों को चाहिए कि वे चैतन्य चरितामृत आदि लीला अध्याय पाँच श्लोक ११७ -१२५ पढ़ें ,प्रभुपाद का सुझाव है। उसमें ये कहा गया है कि अनंतशेष नाग के रूप में श्रीविष्णु का अवतार है जो समस्त ब्रह्माण्डो को अपने फणो पर धारण किये है। हमारी गणना के अनुसार भले ही कोई भी ब्रह्माण्ड कितना भी भारी क्यों न हो, किन्तु अनंत होने के कारण श्रीभगवान को वह सरसों के बीज से अधिक भारी नहीं लगता। गौर प्रेमानन्दे हरि हरि बोल! वैसे गंगा का अवतरण यह अध्याय हैं, इस अध्याय का शीर्षक है गंगा का अवतरण। गंगा का स्रोत भी वैसे भगवान ही है, महाविष्णु ही हैं कहो। सारे ब्रह्माण्ड भी महाविष्णु से उत्पन्न होते हैं, महाविष्णु के उत् श्वास के साथ। सारे ब्रह्माण्ड भगवान के रोम रोम से ,रोमकूप कहते हैं, कूप मतलब कुआं। एक एक रोम कुआँ जैसा है वहाँ से ब्रह्माण्ड उत्पन्न होते हैं ।
और उसी भगवान महाविष्णु के अंग से एक सागर भी उत्पन्न होता है ,उसका नाम है कारणोदक्ष, कारण उदक्। उदक मतलब जल और कारण मतलब कारण। जो महाविष्णु सभी कारणों के कारण है, “सर्व कारण कारणं”। ये महाविष्णु वैसे इस सृष्टि के कारण बनते हैं। इसीलिए वैसे महाविष्णु से बनते हैं गर्भोदकशायी विष्णु, गर्भोदकशायी विष्णु से क्षीरोदकशायी विष्णु और इन तीन विष्णु को कहते हैं पुरुषावतार । भगवान के एक अवतार का प्रकार है पुरुषावतार। ये तीनों विष्णु को मिलाकर एक पुरुषावतार और इन तीनों विष्णु या पुरुषावतारों की लीला है सृष्टि। ये उनकी लीला है सृष्टि का उत्पादन। महाविष्णु के अंग से ब्रह्माण्ड तो उत्पन्न होते ही है, साथ ही साथ जल भी उत्पन्न होता है और उससे एक सागर भर जाता है ,सागर बनता है जिसे कारणो उदक कहते हैं। दूसरे भगवान हैं वामन अवतार, फिर हमें स्मरण होता है, बलि महाराज का। नवविधा भक्ति में नवी भक्ति है आत्मनिवेदन , जिसके लिए बलि महाराज प्रसिद्ध है। तो भगवान ने तीन क़दम जगह माँगी थी। दो क़दमों में ही बलि महाराज के सारा साम्राज्य को घेर लिए, छीन लिए और कहा “तुमने तो वचन दिया था कि तीन पग ज़मीन दोगे ,अब और एक बचा हुआ है।” बलि कहे “अब तो मेरा सिर ही बचा हुआ है।” फिर भगवान ने तीसरा पग किनके सिर के ऊपर? बलि महाराज के सिर की ऊपर रखा। तीसरा पग, तीसरा था या दूसरा? वैसे दूसरा भी हो सकता है, जब उठाएँ भगवान ने तो जिस ब्रह्मांड कि हम लोग बात कर ही रहे हैं, भगवान तो उसके अंदर है , ब्रह्माण्ड में प्रकट हुए, अवतार लिए है । अपने धाम से इस ब्रह्माण्ड में आते हैं तो उसे अवतार कहते हैं । तो दूसरा पग उठाए तो ब्रह्मांड का जो आवरण होता है वह काफ़ी मोटा होता है। ब्रह्माण्ड को, प्रभुपाद कहते हैं ये तो तरबूज़े जैसा है, या एक फ़ुटबॉल की तरह है और हम सब कहाँ है? अंदर है। इसी के अंदर १४ भुवन है। तो भगवान के “पद-नख-नीर-जनित-जन-पावन केशव धृत-वामन रूप जय जगदीश हरे! “( दशावतार स्त्रोत) भगवान के नख के स्पर्श से जो ब्रह्माण्ड का आवरण है वो फट जाता है या पंचर हो जाता है, उसमें छेद होता है। तो बाहर जो जल है जिसमें सारे ब्रह्माण्ड तैरते हैं वो भगवान के अंग से उत्पन्न होता है। उस छेद से पंचर जहाँ हुआ, वहाँ से अंदर आता है तो ब्रह्मा उसी जल को लेते हैं और वामन भगवान के चरणों का पाद प्रक्षालन करते हैं। तो “पद-नख-नीर-जनित-जन-पावन “ भगवान के चरण कमल नाख़ून भी धोकर अभी जो जल बना वैसे ही पवित्र था। महाविष्णु के अंगों से उत्पन्न था और अब उसी जल ने वामन भगवान के चरणों को स्पर्श किया, तो और भी पवित्र हुआ। सारे संसार को पावन करने वाली गंगा इस प्रकार , जो ब्रह्माण्ड के बाहर थी, अंदर प्रवेश करती है। एक समय तो गंगा स्वर्ग में ही बहती रहती थी, उसको स्वर्ग गंगा कहते हैं। आपने सुना है ? फिर जब आवश्यकता थी इस गंगा के जल की , भागीरथ राजा अपने पूर्वजों का उद्धार करना चाहते थे। उन पूर्वजों की मृत्यु हुई थी या कपिल भगवान ने उनको जलाके भस्म किया था …जल जाओ। क्योंकि वे सगर महाराज के कितने ६०,०००? ६०,००० पुत्र । ऐसा ये सब इतिहास है ,ये सब घटनाएँ घटी है एक समय। तो गंगा सागर वे गए थे ,जहाँ गंगा मिलती है सागर को। लेकिन एक समय गंगा ही नहीं थी । भागीरथ के पूर्वजों का ,सगर महाराज के पुत्रों का जो भस्म हुए थे, उनका अस्थि विसर्जन करना होगा तभी तो मुक्ति मिलेगी। तो राजा भागीरथ चाहते थे कि यदि गंगा का अवतरण होता है इस धरातल पर।
और गंगा यहाँ पहुँचे है जहाँ अस्थि विसर्जन होना है या जहां ये राख बनकर पड़े है। भगीरथ राजा ने कितने सारे प्रयत्न किये, संसार में इतने प्रयत्न किसी ने नहीं किये। प्रयत्नों के लिए प्रसिद्ध है राजा भगीरथ। मराठी में कहते है “प्रयत्नांति परमेश्वर” । प्रयत्न करने से ही फल मिलता है। सफलता संभव है प्रयत्नों से। प्रयत्न करना अनिवार्य है। बैठे बैठे लेटे लेटे कुछ होने वाला नहीं है। “सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः न हि ” ऐसी कहावत भी है। ऐसा नहीं की ‘मै जंगल का राजा हूँ इसलिए मैं जहाँ भी बैठूँ और मुख खोल दूँ, तो मेरे प्रातः भोजन के समय खरगोश आ जायेगा। दोपहर के भोजन के समय में कोई भालू आ जायेगा।’ वनराज को भी प्रयास करना पड़ता है तभी उसकी पेट पूजा होती है। राजा भगीरथ के जीवन चरित्र से हमें सीखना चाहिए। गंगा तो स्वर्ग में ही थी, उन्हें पृथ्वी पर लाने के लिए कई सारे विघ्न आ रहे थे। गंगा ने कहा कि “अगर मै आउंगी तो कई सारे पापी आएंगे और उनके पापों का बोझ मुझे ढोना होगा। मैं कैसे मुक्त हो पाउंगी उस पाप से? “ तो फिर कहा गया कि साधु संत भी आकर स्नान करेंगे और कथा कीर्तन करेंगे, उसी से तुम्हारा उद्धार होने वाला है। केवल गंगा स्नान से ही उद्धार नहीं होगा , साथ में साधु संग की भी आवश्यकता है।
यस्यात्मबुद्धि: कुणपे त्रिधातुके
स्वधी: कलत्रादिषु भौम इज्यधी: ।
यत्तीर्थबुद्धि: सलिले न कर्हिचि-
ज्जनेष्वभिज्ञेषु स एव गोखर: ॥ १३ ॥ (श्रीमद भागवतम ( 10.84.13)
अनुवाद: जो व्यक्ति अपने आपको केवल कफ, पित्त और वायु से बने जड़ शरीर के रूप में पहचानता है, अपनी पत्नी और परिवार को स्थायी रूप से अपना मानता है, मिट्टी की मूर्ति या जन्मभूमि को पूजनीय समझता है, तीर्थस्थल को केवल वहां के जल के रूप में देखता है, लेकिन कभी भी स्वयं को आत्मज्ञान में ज्ञानी, आध्यात्मिक सत्य में निपुण व्यक्तियों के साथ जोड़ता नहीं है, उनके प्रति स्नेह या आदर नहीं रखता, उनकी पूजा या उनसे मिलने का प्रयास नहीं करता — ऐसा व्यक्ति गाय या गधे से बेहतर नहीं है। श्रीकृष्ण भी कहे थे जब साधु संतो को सम्बोधित कर रहे थे कुरुक्षेत्र में, सूर्यग्रहण के समय वे कुरुक्षेत्र गए हुए थे। उसी समय वे बन गए जगन्नाथ, सुभद्रा और बलदेव। कृष्ण ने सम्बोधित किया था संतो को यह कहकर कि कई लोग आते है डुबकी लगाते है तीर्थ में , किसी सरोवर में या कुंड में और कहते है की हमारी यात्रा पूरी हो गयी । लेकिन भगवन कहते है केवल ऐसा ही नहीं करना चाहिए। ऐसा करने वाले लोगो की तुलना की गई “स एव गोखरः” । ऐसे लोग तो केवल बैल हैं (गाय नहीं कहेंगे क्यूंकि गो से गायें भी होता है, लेकिन गाये अच्छी होती है) , बैल भी बुरे नहीं होते वे भी धर्म के प्रतीक है। गोखरः से उन लोगो की तुलना की गयी है जो केवल स्नान करने तीर्थ यात्रा में जाते है। “ हर हर गंगे” हो गया ,चलो अब वापिस घर चलते है। तो उन्हें गाये नहीं कहा है , उन्हें गधे कहा गया है। जब तीर्थ स्नान में जाते है, तो वहाँ के अभिज्ञजन यानि सर्वज्ञ, वहाँ के जो विद्वान है ,वहाँ के जो पंडा है अथार्थ पंडित है, मतलब विद्वान् से मिलना चाहिए। वैसे पंडा शब्द तो आजकल अच्छा नहीं माना जाता , पंडित से पंडा शब्द बन चुका है। एक समय वे सचमुच पांडित्यपूर्ण हुआ करते थे, उन्हें धाम गुरु भी कहा जाता था और वे मार्गदर्शन करते थे तीर्थ यात्रियों का। कृष्ण कुरुक्षेत्र में संतो की बड़ी सभा में कहे कि तीर्थयात्रा में सबसे पहले संतो के पास जाना होता है।
“साधु संग साधु संग सर्वशास्त्र कहे , लव मात्र साधु संग सर्व सिद्धि होय”।
गंगा को वचन दिया कि वहाँ साधु भी तो आएंगे ,केवल पापी ही नहीं आएंगे। कुम्भ मेला होता है तो सब प्रयागराज पहुँच जाते है, ऐसी समझ भी है की वहाँ गंगा और जमुना का तो दर्शन है लेकिन सरस्वती नहीं दिखती है। यह समझ है कि वहाँ जो साधु संतो का समाज पहुँचता है और जब उनके मुखारविंद से जब ज्ञान की गंगा या अमृत बहता है।
कृष्णकरुनामृत कहो और उसी में फिर नहाओ। सरस्वती किस रूप में है वहाँ? जो संतो के मुखारविंद से निकली हुई वाणी है ,वही सरस्वती माता है। सरस्वती मैया की जय! लेकिन फिर और एक समस्या थी, इसमें शिवजी का भी उल्लेख हुआ है। इसलिए मेरे मन में विचार आया कि शिवजी का क्या कनेक्शन है जो यह कथा क्रम चल रहा है। गंगा ने कहा की मुझे स्वर्ग से पृथ्वी पर पहुंचना है और मेरा जल इतना अधिक मात्रा में है की वहाँ से यहाँ जब मै आउंगी तो उसमे इतना वेग होगा कि पृथ्वी अपने स्थान से गिर सकती है। रास्ते में ही या पृथ्वी को स्पर्श करने से पहले मुझे कोई रोकने वाला ,थोड़ा ब्रेक लगाने वाला है ,तेज गति को धीमी करने वाला है? तो फिर भगीरथ राजा शिवजी के पास गए। क्या आप मदद कर सकते हो? शिवजी तैयार हुए और फिर स्वर्ग से पधारी हुई गंगा को शिवजी ने अपनी जटाओ में धारण किया। फिर गंगा को जटाओं में धारण करने वाले शिवजी का नाम हुआ गंगाधर। फिर वहाँ से कई सारी धाराएं बहती है। गोमुख से गंगा बहती है और अन्य नदियां भी वैसे गंगा के ही विस्तार है या धाराएं है। हरि हरि ! वैसे भी कहा है श्रीमद भागवत के द्वादश स्कंध में :
निम्नगानां यथा गङ्गा देवानामच्युतो यथा ।
वैष्णवानां यथा शम्भु: पुराणानामिदं तथा ॥ १६ ॥ (श्रीमदभागवतम 12.13.16)
अनुवाद: जिस प्रकार गंगा सभी नदियों में श्रेष्ठ हैं, भगवान अच्युत देवताओं में श्रेष्ठ हैं तथा भगवान शम्भू (शिव) वैष्णवों में श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार श्रीमद्भागवत सभी पुराणों में श्रेष्ठ है। जैसे सभी नदियों में गंगा नदी श्रेष्ठ है; निम्नगानाम् यह संस्कृत की शैली है कि सीधा गंगा नहीं कहेंगे। कभी कहेंगे कभी नहीं कहेंगे और भी कुछ शब्दों में वर्णन होगा। निम्नगाना:– ‘ निम्न’मतलब नीचे और ‘गा’ मतलब जाना। नीचे कौन जाती है ? नदियाँ नीचे जाती रहती है। पर्वत के शिखर से बहती हुई सब समय नीचे नीचे जाती रहती है। समुद्र के स्तर को जीरो स्तर कहते है फिर १००० मीटर, फिर ५०० मीटर। निम्नगानां यथा गङ्गा देवानामच्युतो यथा : जैसे सारे देवों में अच्युत श्रेष्ठ है , सारे नदियों में निम्नगानां( बहुवचन उपयोग हुआ है) , ऐसे ही सभी नदियों में गंगा श्रेष्ठ है , सभी देवों में अच्युत श्रेष्ठ है, सभी वैष्णवों में शम्भू “वैष्णवानां यथा शम्भु”, सभी वैष्णवों में शम्भू , शिवजी श्रेष्ठ है। वैसे ही “पुराणानामिदं तथा” सभी पुराणों में इदं मतलब जिसकी कथा हो रही है। “इदं भागवतम नाम, पुराणम बृहम् समिहतं।” श्रील व्यासदेव जिस भागवत की रचना किये है और यह ब्रह्म संहितम भागवत ब्रह्ममय है या परमब्रह्ममय है। भागवत पुराण कैसा है ? सभी पुराणों में श्रेष्ठ है। ग्रंथराज श्रीमद भागवतम की जय! यह सारी व्यवस्था भगवान ने की है हमारे कल्याण के लिए। शिवजी हमारे कल्याण के लिए है , गंगा भी हमारे कल्याण के लिए है , ग्रंथराज श्रीमद भागवतम भी हमारे कल्याण के लिए है। और सभी देवो में आदि देव, श्रेष्ठ देव , गोविन्दम आदि पुरुषं, हम सभी के कल्याण के लिए है ही। यह सारा पैकेज है और इस अंतराष्ट्रीय श्रीकृष्ण भावनामृत संग में यह सब उपलब्ध है। और कलियुग होने के कारण हरि नाम को भी पैक किया है। यह विशेष है : हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे। और क्या है भागवतम? श्रील प्रभुपाद को जब विदेश जाना था तो भागवतम का अनुवाद करके गए ,कम से कम पहले स्कंध का अनुवाद करके गए और बचे हुए ८,१० या ११ वर्षो में और ग्रंथो का ,चैतन्य चरितामृत का अनुवाद करते गए।
यह भी आइटम इस्कॉन में है और क्या है ? “श्रीविग्रह आराधन नित्य नाना श्रृंगार तन मंदिर मार्जनादौ” विग्रह आराधना दिए श्रीप्रभुपाद हमें, “चतुरविधो श्रीभगवत प्रसादौ “ चतुरविद प्रसाद, फूड फॉर लाइफ की जय! “महाप्रसाद ए गोविंदे” की जय! यह नहीं होता तो कौन आता फिर? दिस इस आलसो पार्ट ऑफ द पैकेज। “श्रीराधिका माधवयोर अपार माधुर्य लीला गुणरूप नामनां” और ये श्रीमद्भागवत की कथा, श्रवण कीर्तन, इस अलसो पार्ट ऑफ़ द पैकेज इन इस्कॉन। “ महाप्रभो कीर्तन नित्य गीत वादित्रमाद्यां मनसो रसेन “ तो कीर्तन है, श्रीविग्रह आराधना है ,प्रसादम है ,कथा अमृत है । फिर इस्कॉन का एक स्थान भी होता है ,लोकेशन होता है , ड्रेस होता है, जमीन होती है ,वह भी हमको प्राप्त है। यह सब आइटम के लिए हमें स्थान चाहिए, श्रीभगवान के लिए निवास स्थान चाहिए ,अब यह सब वैसे हम फुलटाइम देवोटीज़ के लिए तो ज्यादा आवश्यकता है। हम लोग तो वृंदावन भी जाकर किसी स्थान पर अपना साधन भजन कर सकते हैं, आराम के साथ । हमारा यहां आना, प्रभुपाद भी वृंदावन में थे लेकिन फिर न्यूयॉर्क गए,यहां गए वहां गए। फिर कहे भी कि नागपुर में भी इस्कॉन टेंपल होना चाहिए । यह जो सब होता है वैसे जनता के लिए होता है। लेकिन मंदिर के संचालक भी तो चाहिए, विग्रह के आराधक भी तो चाहिए, कथा सुनाने वाले भी तो चाहिए ,प्रसाद तैयार करने वाले और वितरण करने वाले भी तो चाहिए, तो यह सब सबके लिए सारा पैक होता है इस्कॉन के अंदर। तो ऐसे स्थान का निर्माण का कार्य लेकर हम यहां बैठे हैं, बैठकर काम नहीं चलेगा। उठना होगा, टॉकलेस एक्ट मोर, ताकि ऐसे स्थान तैयार हो जो नागपुर में लैंडमार्क बने , नागपुर का केंद्र बने। नॉट जीरो माइल ,जीरो की क्या कीमत है? वी वांट वन। अगर आगे एक नहीं है तो फिर जीरो की क्या वैल्यू है? कोई कहे वी हैव मैनी जीरोज ,लेकिन अगर आगे एक नहीं है तो कोई कीमत नहीं है । “ईश्वर एकला कृष्ण आर सब भृत्य” तो कृष्ण के लिए करना है। राधा गोपीनाथ की जय! ऐसी भव्य दिव्य जगह हो जहाँ कीर्तन केलिए, ्रसाद के लिए, प्रशिक्षण के लिए, साधन के लिए स्थान हो। ऐसा निर्माण हो रहा है पता है न? तो तैयार करो ऐसा स्थान ,लगे रहो। क्या करना होगा? प्रयत्न करना होगा। जैसे भगीरथ राजा ने प्रयास किया था। आप तैयार हो? हरि बोल! उतना जोश नहीं था।
हरि बोल!
धन्यवाद, गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!
ग्रंथराज श्रीमद्भागवत की जय!
श्रील प्रभुपाद की जय!
राधा गोपीनाथ की जय!
जगन्नाथ बलदेव सुभद्रा की जय!