Srimad Bhagavatam 03.22.21
13-01-2023
ISKCON Mira Road

कीर्तन रुकते ही हमें पता चलता है की दुनिया है ,यहाँ कितनी आवाज़ है ,जैसे ट्रैफ़िक और सब। 

स्कंध ३ अध्याय २२ श्लोक २१ |
मैत्रेय उवाच
“स उग्रधन्वन्नियदेवाबभाषे
आसीच्च तूष्णीमरविन्दनाभम् ।
धियोपगृह्णन् स्मितशोभितेन
मुखेन चेतो लुलुभे देवहूत्या: ॥ (3.22.21) ॥”

भाषांतर और तात्पर्य श्रील प्रभुपाद के द्वारा , श्रील प्रभुपाद की जय! 

अनुवाद:- 

श्री मैत्रेय ने कहा: “ हे योद्धा विदुर !” कर्दम मुनि ने केवल इतना ही कहा और कमलनाभ पूज्य भगवान विष्णु का चिंतन करते हुए वह मौन हो गए। वे उसी मौन में हँस पड़े जिससे उनके मुखमंडल पर देवभूति आकृष्ट हो गई और वह मुनि का ध्यान करने लगी। 

तात्पर्य:-  ऐसा प्रतीत होता है कि कर्दम मुनि मौन होते ही कृष्ण भावनामृत् में लीन हो गये  और भगवान् विष्णु का चिंतन करने लगे, कृष्ण भावनामृत् भक्ति की यही विधि है । शुद्ध भक्त कृष्ण के चिंतन मे इतने लीन हो जाते है कि  उनका कोई दूसरा कार्य रह  ही नहीं जाता। भले ही ऊपर से वे कुछ  करते दिखे किंतु वे मन मे निरंतर कृष्ण का चिंतन करते हैं ऐसे ही कृष्ण भक्त की हँसी इतनी आकर्षक होती है की वह  हँसी से ना जाने कितने प्रशंसकों , शिष्यों तथा अनुयायियों के हृदय को जीत लेता है। 

इस अध्याय का शीर्षक है : कर्दम मुनि एवं देवभूति का परिचय 

यहाँ कुछ मैच मेकिंग चल रहा है ( वो मैच की बात नही कर रहा हूँ मैं) मैरेज में मैचिंग होता है न, तो ये मैच मेकिंग है और यह सर्वोत्तम मैच है। एक है कर्दम मुनि और दूसरी है देवहूति। आज इनकी कथा हम यहाँ मीरा रोड में कह रहे हैं या जो वचन मैत्रेय मुनी कहे विदुरजी को। इसलिए यहाँ कहा है “ हे योद्धा विदुर! उग्रतनवं! विदुरजी भी योद्धा थे, धृतराष्ट्र और पांडु के भ्राताश्री थे। वे भी योद्धा थे । तो  उनको संबोधित कर रहे हैं मैत्रेय मुनि और यह संवाद या संबोधन हरिद्वार में हो रहा है। वे मैत्रेय मुनि (वैसे विदुर जी को संबोधन करने वाले ) अभी अभी प्रभास क्षेत्र से लौटे हैं। प्रभास क्षेत्र गुजरात में है, जहाँ से भगवान अपने धाम लौटे “ स्वधामोप्गते धर्म ज्ञानादि भी सह “  । भगवान अपने धाम  वहाँ से लौटे हैं ,भगवान वहाँ मरे नहीं है। मुझे इसलिए मरे की बात कहनी पड़ी क्युकी हमलोग ट्रैवलिंग करते हुए, हम भी मैराथन करते थे, बुक डिस्त्रिब्यूशन करते थे । मेरी भी पुस्तक वितरण की पार्टी थी जिसका नाम था ‘ नारदमुनि ट्रेवलिंग संकीर्तन पार्टी’ । ग्रंथ वितरण करते हुए  हम वहीं गुजरात में गए, फिर वहाँ प्रभास क्षेत्र गए जहाँ से भगवान ने प्रस्थान किया। तो वहाँ जब हम पहुँचे, उस  स्थली पर, सरस्वती नदी बहती है, वहाँ तो दर्शन है । वैसे अन्य स्थानों पर सरस्वती का दर्शन नहीं होता है, परंतु कुछ स्थानों पर होता है और उसमें से एक स्थान  प्रभास क्षेत्र है। हम जब वहाँ पहुँचे तो मेरे साथ कई और भक्त थे, उसमें से एक इंग्लैंड के भक्त थे जिनका नाम रवि प्रभु था । उन्होंने भी और हमने भी  वहाँ एक  साइनबोर्ड पढ़ा जिस पर लिखा था की ‘ गोड डाईड हीयर,भगवान की यहाँ मृत्यु हुई थी।’ यह कितने अज्ञान और अपराध का वाक्य या वचन वहाँ लिखा था। हम सब बहुत नाराज़ एवं क्रोध में आए, खास करके  रवि प्रभू जो मेरे गुरु भाई भी थे। वे यहाँ वहाँ देखने लगे कि ‘ यहाँ कोई है ?’ और दरवाज़ा भी खटखटाने लगे। वे उनका गला पकड़कर समझाना चाहते थे  जिसने ये लिखा था कि भगवान की  यहाँ मृत्यु हुई । भगवान् की मृत्यु होती है?  वे शायद उन्हें तमाचा लगाना चाहते थे या उसकी जान भी लेना चाहते थे जिसने यह कहा या लिखा कि भगवान की यहाँ मृत्यु हुई । “न जायते न म्रियते कदाचित् “ आत्मा का जन्म नहीं होता और आत्मा की मृत्यु  भी नहीं होती तो परमात्मा और भगवान्  का क्या कहना?वैसे दोनों एक ही मोल्ड के बने हुए है ।  भगवान भी सच्चिदानंद हैं और जीवात्मा भी सच्चिदानंद है, जैसा बाप वैसा बेटा। भगवान हमारे बाप है, विठोबा! और हम हैं उनके बच्चे। तो वहाँ पर भगवान वैसे अपने गोलोक धाम में प्रस्थान से पूर्व , मैत्रेय जी से मिले थे। भगवान के भगवद्धाम लौटने से पूर्व वे अंतिम  मैत्रेय मुनि से मिले थे।  तो अभी अभी भगवान् ने प्रस्थान किया भगवत धाम,वन ऑफ द लास्ट पर्सन् जिस व्यक्ति को  भगवत धाम लौटते लौटते ही  जिनसे मिले थे भगवान् वे थे मैत्रेय मुनि । हरि हरि गौरांग! नित्यानंद!  दिस इस द कनेक्शन  तो भगवान् को मिल के, दर्शन करके, भगवान् का संदेश  विदुर जी के लिए संदेश था। तुम जब विदुर को मिलोगे तो ये सब बातें उनसे कह देना । तो मैत्रेय मुनि को विदुर जी हरिद्वार में मिल रहे हैं।

विदुर जी के लिए संदेश था ‘तुम  जब विदुर को मिलोगे तो ये  सब बातें कह देना’ ।  तो मैत्रेय मुनि और विदुर जी वहाँ हरिद्वार मे मिल रहे है और वहाँ पर  यह संवाद या  मैत्रेय मुनी द्वारा सम्बोधन हो रहा है । इस सम्बोधन में , वैसे ये संबोधन दो स्कन्धों  में होता है , श्रीमद्भागवत  के  दो स्कन्ध ( तृतीय स्कन्ध और चतुर्थ  स्कन्ध) मे  ये  मैत्रय मुनि और विदुर जी का संवाद हैं ।  तो ये सब सारे कनेक्शन है । उस संवाद को ही शुकदेव गोस्वामी राजा परीक्षित को सुनाये  है। उस सभा में उस धर्मसभा में गंगा के तट पर  कई सारे ऋषि-मुनि एकत्रित थे। श्रील व्यासदेव, नारद मुनि , और वहाँ पर सूत गोस्वामी भी थे।  फिर सूत गोस्वामी ने “एवं परंपरा प्राप्तम “ कहो, नैमिषारण्य  में वही कथा सुनाए  नैमिषारण्य के ऋषि मुनियों को जो कथा उन्होने शुकदेव गोस्वामी से गंगा के तट पर हस्तिनापुर के  बाहर सुनी थी और शुकदेव गोस्वामी वो कथा सुनाए जो कथा मैत्रेय ने विदुर जी को सुनाई और वही कथा मैत्रेय मुनि सुनाते हैं जो कथा स्वयं भगवान ने  उनको सुनायी थी प्रभास क्षेत्र में । और वही कथा अब मीरा रोड में आज हम , या फिर श्रील प्रभुपाद ने उसी कथा का भावार्थ लिखे हैं पूरी रातभर जागते हुए । हम सो जाते लेकिन प्रभुपाद उठ जाते और पूरी रातभर कर रहे है ट्रांसलेशन, अनुवाद । अनुवाद करते समय फिर सनातन गोस्वामी और बलदेव विद्याभूषण , विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर , उनकी कॉमेंट्री उनके भाष्य , उसका भी श्रील  प्रभुपाद अनुवाद  करते रहे । तो वो भी परंपरा ।  इस प्रकार ये साधु ,शास्त्र ,आचार्य ये प्रमाण बन जाते हैं।  शास्त्र तो है  फिर साधु ,शास्त्र आचार्य , परंपरा के आचार्य और फिर साधु श्रील प्रभुपाद जैसे साधु , श्रील प्रभुपाद जैसे अचार्य  भी  उस  परंपरा में ..। हरि! ये सब कथा, इतिहास, ये जो  पुराण हैं “ पुराणsपि नवम्”  कुछ लोग पुराण शब्द सुनते ही ‘ओ पुराण तो पुराने हो गए, अब क्या सुनना है ? पुराने हो गए।  लेकिन वैसे पुराण की परिभाषा है  “”पुराणम अपि नवम् “  ये सारी बातें पुरानी या प्राचीन होते हुए भी नई है , ताज़ी है , फ्रेश है ,

वर्तमान काल में है, शाश्वत है इसलिए पुराणों को, महाभारत को भी ,ईवन रामायण को भी इतिहास कहा गया है, इतिहास।  रामायण कुछ दस लाख वर्ष पूर्व का इतिहास है जब राम थे  और राम राज  हुआ दस सहस्त्र  ‘दस शतानि  च ‘ । कितने हज़ार वर्ष राम ने राज्य किया? लिखा है रामायण में ही लिखा है  दस सहस्त्र , दस सहस्त्र मतलब कितने हो गए? थाउज़ेंड मल्टीप्लाइड बाय टेन = टेन थाउज़ेंड । और दस सहस्त्र दस शतानी मतलब दस सौ ,मतलब कितने  ? दस गुना सौ । वन थाउज़ैन्ड । दस हज़ार और एक हज़ार मतलब ग्यारह हज़ार वर्षों तक भगवान श्री राम ‘जय श्रीराम’  इस धरातल पर थे।   इसलिए उसको इतिहास कहा है। इतिहास यह जो शब्द है इति + ह + आस , ऐसी उसकी समझ है । इति मतलब दिस् मच ऐसा अंग्रेज़ी में उसका ,इति मतलब यह । इति+ह+ आस ऐसे ऐसे हुआ, ऐसी ऐसी घटनाएँ घटी।  एक था राजा ,एक थी रानी।  ऐसी कोई कहानी ही नहीं है । राजा थे राम और रानी थी सीता महारानी। ‘ सीता महारानी की जय! ‘ तो एक समय  थे ,आए  भगवान  “ संभवामि युगे  युगे “ ।  तो फिर रामायण काल का  ग्यारह हज़ार वर्षों का इतिहास है ,हिस्ट्री । जैसे महाभारत इतिहास है, ‘हिस्ट्री ओफ ग्रेटर इंडिया ‘ ऐसा प्रभुपाद कहती थे , महाभारत।  और उस समय भारत महान था , विशाल था, सारी पृथ्वी पर भारत फैला हुआ था । इसलिए राजा परीक्षित या युधिष्ठिर महाराज को कहा है “पृथ्वीपते “ वे कैसे थे ? पृथ्वी पति थे ,पृथ्वी के पति थे ,वे राजाओं के राजा थे,  इसीलिए उनको सम्राट कहाँ जाता था । सम्राट मतलब राजाओं का राजा ,’ किंग ऑफ़ दा किंग्स’   सम्राट।  तो महाभारत फिर पुनः इतिहास हुआ । ५००० वर्ष  पूर्व जब कृष्ण धरातल पर थे , उसके पहले का और उसके बाद के भी कई सारी बातें महाभारत मे हैं । एंड देन वही बात है पुराणों की और फिर  भागवत महापुराण की ,जिसमें केवल पृथ्वी का ही इतिहास नहीं है  , पृथ्वी पर घटी हुई घटनाएँ ,राजा और  रानियाँ या  ऋषि मुनि ,केवल पृथ्वी पर ही नहीं सारे ब्रह्माण्ड  भर में घटी हुई घटनाएँ  और फिर एक ब्रह्मांड में नहीं ,कई सारे  अन्य ब्रह्माण्डो  में घटी हुई विशेष विशेष हाइलाइट्स भी आपको इस इतिहास में, पुराणों में पुराण इतिहास है । महापुराण  श्रीमद्भागवत इतिहास से है । महाभारत इतिहास है ही रामायण इतिहास है । तो अन्य  ब्रह्माण्डो मे भी ब्रह्माण्डो का इतिहास प्लस या  मेनली  इन  ब्रह्माण्डो से बनी हुए  भगवान के प्राकृतिक जगत के  परे जो   वैकुंठ जगत हैं “ तस्मात् परम भाव अन्य व्यक्तो अव्यक्तः  सनातनः “ । ये जगत कभी व्यक्त होता है ( वो बातें अभी अभी कहे थे) । कर्दम मुनि ने केवल इतना ही कहा।  तो ये सब सत्य हैं जो शास्त्रों में लिखा है सत चित आनंद। सत्य है, सत्य को वैसे त्रिकाल अबाधित सत्य कहते  है।  काल सत्य में कोई बिगाड़ नहीं ला सकता है ,अपना प्रभाव नहीं डाल सकता है। इसको सद् चित् आनंद …हरि हरि! गौरांग! 

शुद्ध भक्त श्रीकृष्ण के चिंतन में इतने लीन हो जाते हैं कि उनको कोई दूसरा कार्य ही नहीं रह जाता ।भले ही वे ऊपर से कुछ करते दिखे। ऐसी  श्रद्धा और ऐसी समझ होनी चाहिए हम भक्तों की इन शास्त्रों के संबंध में  या शास्त्रों में लिखी बातों के संबंध में कि ये  शाश्वत  है  , दे आर एटरनल । ये  हिस्ट्री लिखने वाले स्वयं भगवान ही हैं ,हिस्टोरियन, इतिहासकार बने हैं । ये कौन से भगवान इतिहासकार बने है ? श्रील व्यास देव । एक भगवान तो कृष्ण भगवान कहो, प्रकट हुए लीला खेले और सारा इतिहास उन्होंने बनाया और  भगवान और एक रूप में प्रकट हुए हैं  श्रील व्यासदेव के रूप में । और कृष्ण के सारी लीला का ,लीला कहो या नाम, रूप ,गुण ,लीला  , धाम का वर्णन लिखे हैं । भगवान ने गीता तो सुनाई फिर भी  कुछ लोग कहते हैं वो  जो संवाद हो रहा था कृष्ण और अर्जुन के मध्य मे  वहाँ कोई स्टैनोग्राफर ( शॉर्ट हैंड लिखने वाले सेक्रेटरी जैसे बॉस कुछ कहता तो फटाफट शॉर्ट हैण्ड लिखने वाले) ऐसा कोई लिखने वाला वहाँ था क्या? भगवान ने जो वचन कहे  ज्यों के त्यों आज हम तक   पहुँचाए गए और कहा है श्री भगवान उवाच, फिर ,अर्जुन उवाच, फिर धृतराष्ट्र   उवाच है,संजय उवाच है । तो वैसी कोई आवश्यकता नहीं थी, श्रील  व्यास देव को वहाँ होने की  आवश्यकता नहीं थी। वो आपने महाभारत भी लिखा और भगवद्गीता भी आपने लिखी  ,व्यासदेव  इज़ ए कमपाइलर। वैसे संजय ही कहते हैं “ व्यास प्रशादात् कृतवान् “ ओनेस्टि इज़ द बेस्ट पालिसी  कहते है । बड़ी ईमानदारी के साथ संजय गीता के अंत में  18.73 आई थिंक ,तो वहाँ कहते कि मैं जो आपको सुना रहा हूँ हे धृतराष्ट्र महाराज! मैं जो आपको सुना रहा हूँ, ये कैसे संभव हो रहा है? व्यास देव की कृपा से ,व्यवस्था से मैं सुन रहा हूँ। ऑफ कोर्स  केवल सुनी ही नहीं रहा हूँ , दूरदर्शन भी हो रहा है, मैं देख भी रहा हूँ । और केवल देख ही नहीं  रहा हूँ अलग अलग लोग क्या-क्या  विचार कर रहे  है , अब दुर्योधन ने क्या सोचा ?  कुछ कहे नही लेकिन जो विचार उनके मन में आ रहे हैं उसको  भी मैं समझ रहा हूँ,  ये कैसे संभव हो रहा है ? व्यास प्रसादात् श्रुतवा” ।

वैसे श्रील व्यास देव युद्ध के पहले गए थे हस्तिनापुर और धृतराष्ट्र महाराज से प्रस्ताव रखा था कि जो ये होने वाला युद्ध है इसको देखने के लिए मैं आपको आँखे दे सकता हूँ ताकि आप दूर से देख सके युद्ध को।  धृतराष्ट्र महाराज ने कहा कि नहीं नहीं मुझे दृष्टि नहीं चाहिए, क्योंकि वह जानते थे कि मेरे बच्चों का क्या हश्र होने वाला है। क्यूंकि कुरुक्षेत्र धार्मिक स्थल है और मेरे पुत्र धार्मिक नहीं है तो जो धार्मिक है ये युद्ध उनके हिस्से में जाने वाला है अर्थात जीत उसकी ही होगी जो धार्मिक है। मेरे बच्चों की तो मृत्यु होगी ऐसी कृपा मत कीजिए , मुझे अँधा ही रहने दीजिये।  न ही मैं कुछ देखना चाहता हूँ न ही सुनना चाहता हूँ ।  लेकिन अगर आप ऐसी शक्ति देना ही चाहते हो तो आप संजय को यह शक्ति प्रदान कर सकते हैं ।  फिर ऐसे ही व्यवस्था हुई।

श्रील व्यासदेव जी ने संजय को ऐसी शक्ति दूरदर्शन की , दूर से सुनने की शक्ति प्रदान की।  इसलिए अंत में संजय कहते हैं जब गीता का समापन हो जाता है तब संजय कहते है जो की  भगवद गीता के १८ वें अध्याय के अंतिम ५ श्लोक है। यह सब आँखों देखा वर्णन भी है ऐसी घटना घट रही थी।  मुख्य बात है अगर संजय श्रील व्यास देव की कृपा से या विशेष शक्ति प्रदान करने से सुन और देख सकते हैं तो क्या स्वयं श्रील व्यास देव वहाँ नहीं होते हुए भी वे जहांं भी है वहां से वह देख नहीं सकते? नहीं सुन सकते? जाहिर है सुन सकते हैं।  वही सुनकर के और देख कर के भगवद गीता की रचना की हुई है।

इस प्रकार यह भगवद गीता , महाभारत इतिहास है और उस महाभारत के भीष्म पर्व का अठारहवाँ अध्याय ही है भगवत गीता। जो भीष्म पर्व के २५ से ४२ अध्याय जो है वही भगवद गीता है। महाभारत और भगवद्गीता दोनों ही इतिहास हैं । मतलब एक समय कृष्ण ने यह सब बाते कही या स्वयं  पद्नाभाष्य मुख पद्म  विनिश्रित:।  ऐसे फिर शंकराचार्य जैसे आचार्य जो स्वयं शंकर ही है , शिवजी है। फिर वह महाजन भी है , शिवजी भी महाजन है। उन्होंने कहा गीता कैसी है , स्वयं  पद्नाभाष्य मुख पद्म  विनिश्रित: , अर्थात भगवद गीता वह वचन है जो भगवान् के मुखारविंद से निकले है।  भगवान् कैसे हैं? पद्नाभ या अरविंद नाभ।   महाभारत इतिहास है , घटनाएं घटी हैं फिर युद्ध हुआ है। तो फिर आज कल के जो तथा कथित इतिहासकार है उन्होंने इस बात को नोट नहीं किया। क्यूंकि जब महायुद्ध की बात करते हैं तो १९१८ में जो पहले महायुद्ध हुआ जो कि १९१४ से १९१८ तक चलता रहा। द्वितीय महायुद्ध १९३९ से १९४४ तक चला।  पर इसके बारे में कोई नहीं बताता। 

 

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।

मामका: पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय ॥ १ ॥  (श्रीमद भगवद गीता १ . १ )

 

अर्थात: धृतराष्ट्र ने कहा: हे संजय, जब मेरे पुत्र और पांडु के पुत्र युद्ध की इच्छा से कुरुक्षेत्र के तीर्थ स्थान पर एकत्र हुए, तो उन्होंने क्या किया?

युद्ध करने की इच्छा से एकत्रित हुए मेरे पुत्रों और पाण्डु के पुत्रों ने जो किया उसको युद्ध कहा है।  युधोउत्सव कहा है। जैसे कुश्ती का जंग मैदान होता है वैसे ही उत्सव भी कहते है।  महाभारत का युद्ध भी उत्सव है , धर्म युद्ध भी है।  इसीलिए यह भी कहा है की महाभारत के युद्ध को देखने के लिए कई सारे प्रेक्षक वहां पहुँच जाते थे और आराम से देखते थे, वे जानते थे की हम पर बाण नहीं चलाये जायेंगे। क्यूंकि यह धर्मयुद्ध है तो हम सुरक्षित है। हम केवल युद्ध देखने आये हैं । ऐसा था वह ज़माना उस समय और अब समय बदल गया।  कहने का तात्पर्य यह है कि यह सब गीता , भागवत पुराण , रामायण , महाभारत यह सब इतिहास है।  यह घटनाये घटी हैं।

फिर अंग्रेज आये और भी आये , उन्होंने घटित घटनाओं को पौराणिक कथा कहना शुरू किया। माइथोलॉजी कहो , मिथ मतलब काल्पनिक , दन्त कथा।  राजा रानी की कथा।  यह पौराणिक कथाएं नहीं हैं यह सब सताय घटित घटनायें है । यह आधुनिक जगत , या पश्चायत देश की विचार धारा या जीवन शैली कहो , विज्ञानं का ज़माना।  उस से सारा संसार प्रभावित हुआ भारत भी प्रभावित हुआ। वे इसको पौराणिक कथा कहते गए और हम भी नंदी बैल की तरह हाँ में हाँ करके सर हिलाते रहे।  अंग्रेज तो चले गए लेकिन अंग्रेजी नहीं गयी या उन्होंने जो विचार या प्रभाव हम पर डाला वह नहीं गया , हमको गुलाम बनाया । वह प्रभाव आज भी है। वैसे सुनने में आता है कि अभी की जो सरकार है वह इन् सबको सही कर रही है।  इतिहास को पढ़ाएंगे , गीता को भी पढ़ाएंगे महा विद्यालय में । संस्कृत भाषा पर भी जोर दिया जायेगा।  ज्ञान का भंडार, खजाना , स्त्रोत तो वैदिक वांग्मय ही है या।  पश्चायत देशो के पास भी शास्त्र हैं , इतना तो स्वीकार कर सकते है । लेकिन वह कहते हैं कि धर्म की किताब क़ुरान है , धर्म की किताब बाइबिल है , धर्म की किताब ये है वह है।  लेकिन हमारे पास पूरा पुस्तकालय है।

यही जिन्होंने आक्रमण किया मुख्य तौर से मध्य पूर्व से जो आये थे उन्होंने हमारे नालंदा विश्वविद्यालय को नुकसान पहुंचाया।  नालंदा में पुरे विश्व के विद्यार्थी आकर शिक्षा ग्रहण करते थे उत्तम शिक्षा के लिए।  उन्होंने कहा कि भारत कैसे विश्व का ज्ञान दे सकता है।  और हम भी बुद्ध जैसे बाहर जा रहे हैं दूसरे देशो में। हमे ज्ञान दो , हम भारतियों को ज्ञान दो , कम्प्यूटर्स दो, लोन दो। ऐसे हम लोग जाते रहे पहले अभी थोड़ा कम हुआ है। मुझे याद है जब २० वर्ष पूर्व जब मै विदेश जाता था तो विदेश के लोग पूछते थे स्वामी जी , आप कहा से आये हो ? मै कहता था भारत से फिर वे कहते थे ओ वह भारत जो भीख मांगता है।  अच्छा वहाँ से आये हो। क्यूंकि हम जब भी गए है कुछ न कुछ मांगने के लिए ही गए है।  परन्तु जब प्रभुपाद जी से पुछा था किसी ने तब प्रभुपाद ने कहा था कि : मै यहाँ कुछ लेने नहीं आया मै देने आया हूँ ।

क्योंकि श्रील प्रभुपाद को पता था कि भारत के पास भी कुछ है देने लायक।  देने योग्य है जिस से सारा संसार लाभान्वित हो सकता है।  ऐसी देन , ऐसा धन, ऐसी संपत्ति हमारे देश के पास है।  उनके गुरु का आदेश भी था तो प्रभुपाद जी गए और उन्होंने हरिनाम धन दिया।  एक समय जब प्रभुपाद लंदन में थे तो एक पत्रकार ने पुछा स्वामी जी : आप हमारे देश क्यों आये हो? प्रभुपाद ने कहा आप भी तो आये थे। तो हम भी आ गए बराबर हो गया ना? आगे प्रभुपाद ने कहा की जो आपके शासक जो भारत में आये और जिन जिन वस्तुओं को उन्होंने मूल्यवान समझा , सिल्क , हो spices हो इवन कोल् है जो वहाँ नहीं मिलता।

उसको तो आपने लूट लिया कोहिनूर का हीरा अगर आपको देखना है तो कहाँ है लंदन के म्यूजियम में देख सकते हो वैरी वैरी वैल्युएबल डायमंड कोहिनूर का हीरा तो आपने लूट लिया हमारी देश की सम्पति को लेकिन ऐसा करते करते हमारे देश की जो असली सम्पति है रियल वेल्थ को तो आप भूल गए जिसको भूल के पीछे छोड़ के आये थे उसी की हैंड डिलीवरी देने में आया हूँ और फिर जब उन्होंने जाना ऐसे कौनसी सम्पति जिसको हमारे व्यक्ति नहीं पहचान पाए  तब प्रभुपाद ने कहा दा  कल्चर ऑफ़ आवर कंट्री अगेन मैं जब ये कहता हूँ या सबको ऐसा सोचना चाहिए कि मॉडर्न इंडिया अभी का जो हमारा देश है हमारी संस्कृति तो इस देश की संस्कृति नहीं रही पश्चात देशो की नक़ल करते हुए हम लोग बिगड़ गए है  वि हैवे बीन स्पॉइल्ड।  हरि हरि। तो हमारे देश की संस्कृति जब कहते है तो हमको कहना होगा की हमारे प्राचीन भारत की संस्कृति नॉट दी कॉन्टेम्पोरेरी बूत दा एन्सिएंट इंडिया की संस्कृति, तो प्रभुपाद उसको रेफेर कर रहे है उसको देने आया हूँ मैं और हमारे शास्त्र का जो हायर हाईएस्ट वास्ट एजुकेशन,  जो __ गीता, भागवत, वेद पुराण दिस् इज़ दा  रियल वेल्थ ऑफ़  आवर कॉन्ट्री।  हमारे देश की सम्पति है श्रीमद भगवद गीता की जय और भागवतम की जय, चैतन्य चरितामृत की जय, वेद पुराण की जय ये सम्पति है हरी हरी तो उसको मैं देने आया हूँ और भगवन को देने या भगवान् का नाम देने आया हूँ गोलोकेरा प्रेमा धन गोलोकेरा प्रेम धन मैं धन देने आया हूँ कौनसा धन देश की सम्पति प्रेम धन देने आया हूँ क्युंकी कहा है प्रेम धन बिना व्यर्थ दरिद्र जीवन ऐसा चैतन्य महाप्रभु ने ऐसे व्याख्या की जब वे शिक्षास्टक पे व्याख्या कर रहे थे चैतन्य महाप्रभु उन्होंने कहा कि प्रेम धन बिना व्यर्थ दरिद्र जीवन प्रेम धन जिसको प्राप्त नहीं हुआ है उसका जन्म व्यर्थ है और वो दरिद्र ही है ही इज़  दा पूअरेस्ट फेलो, गरीब बेचारा जिसके पास प्रेम धन नहीं है वैसे सुखी होने के लिए धन चाहिए ना सुखी होने के लिए धन चाहिए की नहीं तो पश्चायत देश में अमेरिका में धन का कुछ आभाव है क्या इतना सारा धन समृद्धि लीडिंग पावर एंड  प्रोस्पेरस्  लैंड ऑफ़ ओप्पर्टूनिटीज़, क्या क्या कहते रहते है अमेरिका के बारें में, लेकिन ये सारी सम्पति वेल्थ, ये सब होते हुए भी वहां के लोग सुखी है क्या अब आप बड़ा सोच रहे हो नहीं वे सुखी नहीं है नहीं है नहीं है इसीलिए वो हिप्पीज़   वगैरह बन रहे थे एक समय इस दुनियां ने अमेरिका ने दिया क्या और अब हम क्या करेगें  दम मारो दम, तो मार के देखते हैं गांजा पिके देखते हैं इसने तो हमको कुछ सुखी नहीं बनाया?  तो व्हॉट काइंड ऑफ़ वेल्थ क्या है? उस वेल्थ का उपयोग फायदा जो वेल्थ हमको सुखी न बनाये तो वेल्थ है ही नहीं ऐसा कहना होगा तो सारा पश्चातय देश के पास इतना सारा तथा कथित धन है सम्पति है लेकिन वो सुखी ना तो थे न है न होंगे तो श्रील प्रभुपाद गए उन्होंने चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी सच करके दिखाई पृथ्वी ते आछे नगर आदि ग्राम सर्वत्र प्रचार होईबे मोर नाम, मेरे नाम का प्रचार सर्वत्र होगा वैसा करके दिखाने हेतु भी श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर अपने शिष्यों को उस वक्त __ उनको विदेश में जाने का आदेश दिया, १०० साल पहले १०१ साल पहले की बात है this इस २०२३, १९२२ में आदेश मिला प्रभुपाद गए और ठीक ५० वर्षो के उपरांत १९७२ में श्रील प्रभुपाद अपने विदेश के शिष्यों के साथ मायापुर आये गौर पूर्णिमा के फेस्टिवल में और दिखा दिया देखो 

ही इज़ फ्रॉम जर्मनी दिस् इज़ फ्रॉम ऑस्ट्रेलिया  दिस् इज़ फ्रॉम कैनाडा दिस् इज़ फ्रॉम अफ्रीका ________ प्रभुपाद ने सिद्ध करके दिखाया और कुछ सैंपल ही ले आये थे डिवोटीज़ जितने अलग अलग देशो के भक्त यहाँ है मतलब उन उन देशो में हरिनाम पहुँच चुका है। प्रभुपाद बड़े गर्व के साथ कहा करते थे I 

हैव मेड इवन् हिप्पिज़ बिकम हैप्पीज़ जो लोग फ़्रस्टेटेड वहाँ के जीवन शैली से वहाँ के व्यर्थ धन ने उनको सुखी नहीं बनाया लेकिन प्रभुपाद आये तो वैसे शुरुआत में प्रभुपाद इंडिया से आये है। वैसे शुरुआत में ऐसा भी प्रभुपाद इंडिया से आये है तो वो सोच रहे थे शायद ये भी इंडिया का गांजा इत्यादि जो मदवद्रव्य है ऐसा कुछ लाये होंगे लाया करते थे और तथा कतिथ और धर्म के प्रचारक भी हो सकते थे या  अदर  इंडियन पब्लिक तो आपने भी शायद लाया होगा प्रभुपाद ने भी शायद लाया होगा तो वो पूछते थे स्वामीजी डू यू हैव सम् ड्रग ? आपके पास कोई ड्रग नशा के द्रव्य कोई गोली इत्यादि है तो प्रभुपाद कहते  येस येस तो उस वक़्त वहाँ के लोग एलएसडी नामक लेने गए वह का जो गोली है जो खाते थे नशा के लिए तो एलएसडी  वाज़ वैरी पॉपुलर उसका जो भी सेवन करते थे    

दे यूज़्ड टू  फ़ील दैट दे हैव बीकॉम फ्री फ्रॉम एन्ज़ाइटी दिस् दैट  चिंता नहीं है हल्का फुल्का उनका शरीर हो रहा है नाओ दे आर फ़्लोटिंग एन्ड दे आर गोइंग हाई,  उनका नशा जब उतर जात था तो वहाँ से उतर जाते थे फिर  नेक्स्ट टाइम्  थोड़ा हायर  डोज़  लेते थे थोड़ा डबल  डोज़ दैन दे यूज़्ड तू गो हाइयर्र, और ऊपर जाते थे या तो मन से या थोड़ा बहुत शरीर भी ऐसे चमत्कार दिखते थे

आई हैव बीकम् वेरी लाइट एन्ड फ़्लोटिंग , तो जितना अधिक ऊपर जाते नशा उतरने के बाद उतना ही वो निचे गिर जाते थे दे यूज़्ड टू फॉल रिअली डीप डाउन और फिर जब 

हाईएस्ट डॉज लिया सबसे अधिक डोज़  तो हाईएस्ट भी गए तो फिर नशा उतरा  तो  इतना लोएस्ट  हो जाते की वह से फिर उठने की कोई आशा नहीं है

दे आर गॉन केसेस् फिनिश्ड टोटली डिप्रेस्ड एंड ऑप्रेससेड एंड दे यूज़्ड टू थिंक दैट कॉमिटिंग सुसाइड इज़ ओनली अल्टरनेटिव ,  तो आत्महत्या ही कर लेते तो उन दिनों में इन् स्वीडन दे हैव पब्लिश्ड ए बुक उसका नाम था  आर्ट ऑफ़ कॉमिटिंग सुसाइड आत्महत्या की कला और कितने प्रकार से कितने अलग अलग प्रकार से आप आत्महत्या कर सकते हो इट वाज़ इन डिमांड तो सप्लाई भी हुआ  ये हाल है पश्चात देश का आपको पता नहीं है आल दैट ग्लिटर्स इज़ नॉट गोल्ड तोह चमक धमक दूर से दिखती है दुरंग डोंगर साधरे ऐसा मराठी में कहते है दुरंग डोंगर साधरे दूर से पहाड़ सुहावने लगते है नीले अचे लगते है लेकिन वह जब जाते है पता लगता  है  काटे है पत्थर है सांप है 

दिस् वन दैट वन तो जो गए है उन  देशों में हम भी आगये है आप भी गए होंगे वह का काफी बुरा हाल है सो स्टॉप इमिटेटिंग तो में ये कहना भूल गया वो प्रभुपाद से पूछे स्वामीजी आप भी कोई ड्रग लाये हो तो प्रभुपाद ने कहा है  येस येस प्रभुपाद ने ये भी कहा मेरा जो ड्रग है इसका जो सेवन करेगा 

हे विल स्टे हाई फॉरएवर आपका जो ड्रग है अमेरिकन या यूरोपियन वो हाई और लो हाइयर और लोअरर और हाईएस्ट  और लोएस्ट  जो होता है  अप एंड डाउन माई  ड्रग ऐसा काम नहीं करता है केसा करता है हाइयर एंड हाइयर  एंड हाइयर  एंड हाइएस्ट, वैकुण्ठ धाम की जय वह तक पहुंचा देता है गिरने का चांस ही नहीं यू इस्टे हाई फॉरएवर तो वो जो पत्रकार पूछ रहे थे लंदन में स्वामीजी आप क्या लेके आये हो क्या लाये कौनसी सम्पति आपके देश की जिसको हमारे बॉयज भूल के आये है तो प्रभुपाद समझा रहे थे गोलोकेर प्रेम धन में प्रेम धन लाया हु वैसे हम तो सुखी श्रीमान वैभव संयुक्त भी बना रहे ये  महामंत्र  अदरवाइज़ आप दरिद्र ही हो चैतन्य महाप्रभु के अनुसार प्रेम धन बिना व्यर्थ  दरिद्र जीवन तो हरी हरी तो श्रील प्रभुपाद ने ये सब करके दिखाया और हम सभी के समक्ष हम सभी भारतीयों के समक्ष आदर्श रखा और ये साबित किया और डिमॉन्स्ट्रेशन  प्रैक्टिकल दिखाया  कृष्णभावनामृत का प्रचार प्रसार होता है तो लोगो के जीवन में कितना परिवर्तन हो सकता है दुकाहलय का सुखालय हो सकता है प्रभुपाद का रिवोल्युशन इन कॉन्ससियसनेस्स भावना में हमारे विचारो में क्रांति होगी विचारो में क्रांति विचारो का मंथन या और भी पूछा था प्रभुपाद को अमेरिका में 

व्हाई हैव यू कॉम आफ्टरऑल व्हाट इस दा पर्पज़ क्यों आये हो तो उस समय प्रभुपाद कहे थे में आया हु किसलिए आई व्हांट तो सी दा चेंज इन चेन्ज इन दा वे पीपल थिंक लोग जिस प्रकार का सोच विचार करते है वो सोच में परिवर्तन लाने के उदेस्य से तो लोगो की सोच तो सोच होनी तो चाहिए उच्च विचार होने तो चाहिए लिविंग कैसा होना चाहिए सिंपल लिविंग।

“सादी राहणी  उच्च विचार”  मराठी में कहते हैं।  लेकिन पाश्चात्य देश में क्या होता है? रहाणे कैसी? उच्च  रहाणे, हाय लिविंग और जहां तक सोच की बात है तो सोचते कैसे हैं ? लो, नीच  विचार या कभी-कभी मैं कहता हूं कि नो विचार।’ लो थिंकिंग ‘ तो मतलब कुछ तो थिंकिंग है   लेकिन ‘नो थिंकिंग’  जैसे कुछ लोग कहते हैं ‘जस्ट डू इट ,जस्ट डू इट , इफ यू फील गुड।  जब कुछ कुछ होता है, जस्ट डू इट , डोन्ट  इवन थिंक, सोचना भी नहीं । अच्छा लगता है तो करो, सो दिस इस ‘नो थिंकिंग’ और ‘लो थिंकिंग’ भी ।  प्रभुपाद ने कहा ‘ आई वांट टू चेंज दिस, आई  वांट टू सी पीपल  हाई थिंकर्स ।  व्हाट इस दैर हाई थिंकिंग ?  इस गीता भागवत में जो विचार है या भगवान के विचार या भगवान से संबंधित जो विचार है । प्रभुपाद कहते थे भागवत गीता भगवान के विचार है  और भागवत में भगवान से  संबंधित विचार है। “ श्री राधिका माधवयोरsपार माधुर्यलीला गुणरूप नामनां, प्रतिक्षण आस्वादन लोलुप्स्य वंदे गुरु श्री चरणारविंदम”  यह उच्च विचार है  कि “श्रीराधिका माधव ,या  श्रीराधा गिरधारी , राधा गोपीनाथ , राधा रासबिहारी की जय! राधा मदनमोहन इन खारगर  की जय!”  तो इनके विचार या इनके संबंधित विचार और इनके संबंधित भक्त भी है तो  भक्त के चरित्र कहो, वो भी भगवान के विचार, उनके संबंधित विचार है ।  या भागवत मतलब या भगवान और भागवत  मतलब भगवान के भक्त भी भागवत कहलाते हैं । भगवान से संबंधित भागवत विद्यापीठ भी होता है, भगवत विद्यापीठ, महाभागवत , भागवत महाप्रसाद भी कहा जा सकता है । ये अर्थ ही है कि भगवान से संबंधित उसको भागवत कहते हैं।  रिलेशनशिप विद कृष्ण  काल्ड सुप्रीम पर्सनैलिटी आफ गाड हैड। तो ये भागवत और फिर ग्रंथ भागवत्  के विचार उच्च विचार है । ऐसे विचार की लोगों की संख्या बढ़ाने हेतु ,इस  अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ की स्थापना श्रील प्रभुपाद किए हैं।  जैसे संख्या बढ़ेगी तो उसी के साथ बहुत कुछ होने वाला है।  हरि हरि ! अच्छे दिन आनेवाले हैं ,अच्छे दिन आएंगे, यह मोदी की भाषा हम नहीं बोल रहे  क्योंकि वो अच्छा किसको कहते हैं ? यह दुनियावालों को नहीं समझ आता।  पहले तो आप देसी दारू ही पीते थे अब बैगपाइपपर फ्रॉम रशिया ,फ्रॉम अमेरिका फाइन वाइन अगर पी सकते  हो तो ये  क्या हुआ? दिस इस दी प्रोग्रेस, यह सुधार हुआ , यह अच्छे दिन आ गए।  हमारे गांव में भी शायद सोचा होगा ऐसा ही , डाक्टर भी बैठे हैं । मेरे गांव मे और वही कहानी है हर गांव  की।  मैं जब छोटा था एक डॉक्टर आते थे दूसरे गांव से , साइकिल पर बैठकर मेरे गांव,  शायद बृहस्पतिवार को आते थे कोई मरीज है तो उनको दवा पानी करने के लिए। कभी ऐसा हुआ कि कुछ बृहस्पतिवार को उनको  कोई ग्राहक ही नहीं मिलता तो वह बेचारे फिर लौटते एम्टी पॉकेट । लेकिन फिर उसी गांव में कुछ वर्षों के उपरांत एक डिस्पेंसरी खोली , स्मॉल हॉस्पिटल । कई अधिकारी आ गए ,मेडिकल ऑफिसर आए, ही कट  दी रिबन, उन्होंने रिबन काटी तो सभी गांव के लोगों ने ताली बजाई । आपने नहीं बजाते हो, अच्छा है क्योंकि मैं जो अभी कहने  वाला हूं । तो गांव के लोगों ने सोचा कि अब अच्छे दिन आ रहे हैं, क्योंकि पास के गांव में और शहरों में जैसे अस्पताल होते, तो अब हमारे गांव में अपना अस्पताल हो गया अपना खुद का,आपला दवाखाना।  तो लोगों ने सोचा कि ये सुधार है, धिस् इस दी  प्रोग्रेस , अच्छे दिन आ गए हमारे गांव के लिए । तो आप क्या समझते हैं अच्छे दिन आ गए ? एक समय पर तो लगभग कोई बीमार पड़ता ही नहीं लेकिन आप बीमारी बढ़ गई, यह अच्छा है ? यह सुधार है ?  इस धिस् दी  प्रोग्रेस ? तो फिर हाईलिविंग मॉल कलचर आ गया, फाइव स्टार होटल कलचर आ गया।  पहले होटल में जाते रहे ,जाते रहे ,भोग भोगते रहे , डाइनिंग ऐण्ड वाइंनिंग  करते हुए, फिर बीमार होते रहे।  कितनी सारी ओ कृष्ण! पहले हम कुछ ही बीमारी के नाम हेडऐक , स्टमक ऐक , बुखार है,ऐसे कुछ 5-10 बीमारियों के ही नाम सुनते थे । नाउ हाउ मैनी फैन्सी इन अ लॉन्ग  नैम ? कितने मेडिकल कॉलेजैस्, कितने मेडिकल डॉक्टर्स, कितने मेडिकल गोली बनानेवाली फैक्टरीज ऐंड  उसका ट्रांसपोर्टेशन हो रहा है।  दवाई की दुकान खुल रही है ,  यू कूड गैट  दवा वहाँ से  बाइ कोरियर, क्या कहते है उसको?  दैर आर सो मैनी । तो यह सारी प्रोग्रेस ऐसी  प्रोग्रेस अमेरिका , फॉरेन कंट्रीज में थी तो इस देश के लोग शोक में ( मैं जब बच्चा ही था, बालक था) ऐसा सोचते थे कि वी आर  १५०  और २००  इयर्स बिहाइंड अमेरिका । उन्होंने कितनी प्रोग्रेस की हुई है,  नाउ दे आर गोइंग टू दी मून , धिस् ऐंड दैट । लेकिन अनफोर्चुनेटली दुर्दैव की बात है की हमने कुछ तो प्रोग्रेस की है कि कुछ मामलों में हम तो अमेरिका, हमारे खान-पान  और लाइफ स्टाइल और धिस् दैट की दृष्टि से वी आर नो लैस दैन अमेरिकन्स्।  मेरा जूता है जापान का, मेरी पतलून है इंग्लिशस्थान की ऐंड अराउंड दी वर्ल्ड इन  ऐट ड़ालर्रस्। तो यह प्रोग्रेस नहीं है, लेकिन ऑन  बिहाफ़ ऑफ, चैतन्य महाप्रभु की ओर से , हमारी परंपरा के आचार्य की ओर से और प्रभुपाद जी की ओर से हम कह सकते हैं  , ये श्रील प्रभुपाद ने भी  कहा कि अच्छे दिन आएंगे और आ चुके हैं । अच्छे दिन यहां पर है ,  नाओ ऐंड हीयर । आप अगर यहां इस समय राधा गिरधारी मंदिर में हो और कहीं पर नहीं हो , आपका मन और  कहीं नहीं दौड़ रहा है , इफ यू आर हियर   तो आप पहुंच गए । राधा गिरधारी मंदिर तो बैकुंठ है, यह मुंबई नहीं है । लाइक वाइज़ हमारा भक्ति वेदांत हॉस्पिटल इस अलसो बैकुंठ । दो दिन पहले मैं कह रहा था कि  भक्तिवेदांत हॉस्पिटल मंदिर में है।  यह हॉस्पिटल में मंदिर है । आप समझ गए मैंने मंच पर कह रहा था । आप क्या सोचते हो मंदिर में अस्पताल है ? कि अस्पताल में मंदिर है? मन्दिर मे अस्पताल है । आरोग्य मन्दिर है वो । यहाँ तक की कुछ लोग मरना ही है तो चलो  हम भक्तिवेदांत हॉस्पिटल जाते हैं और वही मरते हैं।  ऐसे कुछ उदाहरण उस दिन हम सुन रहे थे । इवन हमारे महाविष्णु महाराज बीमार थे , उनके फॉलोअर्स उनको कहीं और ले गए, नासिक ले गए ,  स्वस्थ अभी ठीक नही था  । उन्होंने कहा की मुझे भक्तिवेदांत हॉस्पिटल ले चलो । या कोई कह रहा चलो वृंदावन ले जाते है आपको । उन्होंने कहा की  भक्तिवेदांत हॉस्पिटल इस वृंदावन।  हरि हरि!  तो यह अच्छे दिन है,  दीस आर गुड  डेज , दीस आर बेस्ट  डेज् । कृष्णकॉन्शियस होना,और जहाँ हम हो  सकते हैं कृष्णकांसियस। जिस विधि से हम कृष्णकांसियस्  या कृष्णभावनाभावित  हो रहे है तो  गुड डेज आर ऑलरेडी हियर । बस अभी बने रहो , पीछे मुंह नहीं करना है यहां से।  यहां से आगे बढ़ाना है ,पीछे यू टर्न नहीं लेना है । मतलब दृढ़ निश्चय के साथ जिसको हम निष्ठा निष्ठावान कहते हैं “नित्यम भागवत सेवा भगवती उत्तमश्लोके  भक्तिर भवति नैष्ष्ठिकी “ इसलिए  भी ‘ नित्यम भागवत सेवा भी है ‘ या नित्यम ‘ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण

 कृष्ण हरे हरे , हरे राम हरे राम राम राम राम हरे हरे ‘  भी है । इसलिए प्रभुपाद जी कहते थे उन्होंने इस्कॉन की स्थापना की हुई है ताकि संसारभर के लोगों को साधु संग मिले । इसी का अभाव है और फिर “साधु संग साधु संग सर्वशास्त्र कहे , लवमात्र साधु संग सर्व सिद्धि  हय” ।  सर्वसिद्धि परफेक्शन  कुड बी अट्टैण्ड  संतों के संग से, सर्वसिद्धि लवमंत्र …हमने देखा हमारा तो ऐसा हुआ  कि प्रभुपाद का संग हमने  और राधानाथ महाराज भी थे वहां पर १९७१ का हरे कृष्ण पंडाल, क्रॉस मैदान ,चर्च गेट स्टेशन के पास । हरे कृष्ण फेस्टिवल हो रहा था तो हम गए , महाराज भी आ रहे थे ,मुझे पता नहीं था उस समय कि ये भी थे वहां । तो श्रील प्रभुपाद का जो संग  कुछ दिनों का ये संग , कुछ क्षणों का संग  बस उसी से हमारी सोच में परिवर्तन हुआ, रिवोल्यूशन इन  कॉन्शसनेस हुआ ।  उसी में हरे कृष्ण महामंत्र भी हमने प्राप्त किया , प्रभुपाद जी के कुछ छोटे ग्रंथ, मोटे ग्रंथ खरीदने के केलिए हमारे पास पैसे नहीं थे।

उसी में हरे कृष्ण महामंत्र भी हमने प्राप्त किया , प्रभुपाद जी के कुछ छोटे ग्रंथ, मोटे ग्रंथ खरीदने के केलिए हमारे पास पैसे नहीं थे। इसीलिए हमने आई बॉट सम – फर्स्ट स्टेप इन गौड रिलाइजेशन, ऐसे कुछ चैप्टर्स भागवत के कुछ अध्यायों का एक-एक बुक बनाते थे । ऐसे कुछ बुक्स बनाये थे, तो उसमें से कुछ, देन  बैक टू गोडहैड पत्रिका भी मैंने खरीदी।  तो फिर जब या उस फैस्टिबल के बाद फिर मैं उसको पढ़ने लगा, मैं कैमेस्ट्री का स्टूडंट था तो कैमेस्ट्री के बडे़ बडे़ बुक्स थे। उसमें छोटी छोटी प्रभुपाद की किताबें छिपा छिपा के रखते गये। मैं पढ़ता था क्योंकि हमारे गांववालों के साथ आइ वास शैरिंग रूम । मैं और  मेरे रूममेट्स थे और उनको बताया था कि ‘रघुनाथ तोतेपुर लक्ष्य दिया’ । और एक बार मैं वैसे सब छोड़छाड़ के विनोबा भावे के आश्रम में, सुदैव से वहां तक नही पहुँचा, लगभग ट्रेन स्टेशन से जा रहा था उनके सेवाग्राम की ओर, लेकिन भगवान ने कुछ सद्बुद्धी दी मैं लौटा क्योंकि भगवान मुझे प्रभुपाद से मिलाना चाहते थे । मेरी पढ़ाई तो मैं सांगली में कर रहा था। तो ऐसी ना जाने क्यों बुद्धी भी आई । ये तो शिवाजी यूनीवर्सिटी है लेकिन बाम्बे यूनीवर्सिटी का बहुत बडा़ नाम है,चलो बाम्बे यूनीवर्सिटी के ग्रैजूएट हो जाते हैं। ऐसा सोचके हम बम्बई पहुंचे ऐसा सोच रहे थे लेकिन भगवान की  ऐसी योजना थी कि मुझे प्रभुपाद से मिलाना है, इसीलिए मुझे सांगली से छुड़वा दिया , कुछ विचार डालके बाम्बे यूनीवर्सिटी के बनो ग्रैजूएट, यहां के आप ग्रैजूएट बन जाओ । यहां आये तो फिर बाद में पता चला कि 

“ ब्रह्मांड भ्रमिते कौन भाग्यवान जीव , गुरू कृष्ण प्रसादे पाये।” 

हमको गुरू मिले, प्रभुपाद मिले, तो गांववाले मुझे देखते थे, ओह ही इस रीडिंग कैमेस्ट्री का बहुत बढ़िया से पढ़ाई कर रहा है। नो दैट वास नौट द  फैक्ट, आई वास ऐनेलाइजिंग, ऐनेलिसिस हो रहा था जीवन का, जीवन की कैमेस्ट्री कहो या नो नो धिस् इस मैटर ,धिस् इस स्पिरिट, धिस इस औल्सो ऐनेलिसिस, ऐनेलाइज । तो और फिर जो मैंने कीर्तन, स्पेशेली कीर्तन देखे थे हरेकृष्ण फैस्टिवल १९७१  के क्रोस मैदान के फेस्टिवल में तो, मैं कनविंस हो चुका था । उस वक्त प्रचार था कि अमेरिकन साधूस आर इन टाउन, यूरोपियन साधूस बम्बई आऐ हैं, आओ दर्शन करो, मिलो उनसे । ऐसा प्रचार आल ओवर बाम्बे ऐसी ऐडवरटीजमैन्ट थी तो सारे बम्बई के लोग क्या..क्या…अमेरिकन और साधू? फोरगैट इट , कोइ नहीं सम्भव है, यूरोपियनस और अमेरिकन सांईटिस्ट ठीक है, अमेरिकन साधूस नो नो । लेकिन सच और झूठ देखने के लिए, क्या ये सब कुछ गिम्मिक तो नहीं, कोइ  चालाकी  है या  कि सच्चाई है? तो हम गये।  तो वैसे दस- बीस हजार लोग वहाँ आया करते थे तो हम भी वहाँ  गये और प्रभुपाद के भी प्रवचन सुने ही और फिर भक्तों का ,शिष्यों का कीर्तन जब हमने देखा और सुना भी।  कीर्तन को देखा भी जाता है जब नृत्य होता है।  ऐसे भी देखा जाता है कीर्तनकार को देखा तो कीर्तन देखा , तो जिस लगन के साथ वे कीर्तन कर रहे थे और नाच रहे थे और पसीने- पसीने हो रहे थे, अपने जगत में वे तल्लीन थे, दे वैर टोटली ओबलिवूयस टू द सराउंडिगं।  दस हजार की जनता बैठी है कि नही है उनको कोइ पता नहीं था। जैसे इस तात्पर्य में भी लिखा है–शुद्ध भक्त श्रीकृष्ण के चिंतन में इतने लीन हो जाते हैं कि उनका कोई दूसरा कार्य ही नहीं रह जाता । भले ही ऊपर से वो कुछ करते दिखे किन्तु वे मन में निरन्तर श्रीकृष्ण का चिन्तन करते। तो उनको चिन्तन करते हुए उन्हे देखा , मनन करते हुए तल्लीन थे जैसे बाइबिल में कहा है ‘’ लव द लॉर्ड  विद आल दाइ हार्ट , विद आल दाइ स्ट्रेंथ” , ऐसा बाइबिल का एक फेमस स्टेटमैन्ट है । तो वैसे मुझे वो भी याद है वैस्टर्न दीवोटी को एक व्यक्ति ने पूछा “ ओ! डिड स्वामीजी हैस कानवर्टेद यू ? यू आर क्रिशचियन ऐन्ड ही हैस मेड यू हिन्दू।”   तो अमेरिकन डिवोटी एट द क्वशन आन्सर बूथ “ नो नो  नो, नो कानवर्शन , आइ हैव बिकम  अ बैटर  क्रिस्टियन “ । और  फिर उन्होंने समझाया भी कि कहा तो है बाइबिल में ‘दाऊ शैल नॉट किल’  मतलब हत्या नहीं करनी चाहिये, मांस भक्षण नहीं करना चाहिये। हम तो खूब करते थे ब्रेकफास्ट ,लन्च, डिन्नर ओन्ली मीट या इवन बीफ । लेकिन अब तो हम “पत्रं पुष्पं फलं तोयं “ भगवान का प्रसाद ग्रहण करते हैं  ऐण्ड लव द लोर्ड । अब हम जानते भी हैं कौन है लौर्ड ?कैसे दिखते हैं ?  और उनसे हम प्रेम करते हैं।  बाइबिल ने कहा है ‘लव दाइ लौर्ड’  नाओ वी आर लविंग । बिफोर नौट लविंग, वी वर फुल ऑफ  लस्ट, नाओ वी आर फुल औफ लव फोर द लौर्ड । वी आर बैटर क्रिशन्चियंस । तो कीर्तन, पहले पंडाल प्रोग्राम से ही मैं कीर्तन से प्रभावित था । किताब भी पढ़ रहा था और फिर ऐनीवे …टाइम इस रंनिग। तो आइ विल जस्ट कनक्लूड इन वैरी सून।  तो मेरे  रूममेट गांववाले जब कमरे में नहीं रहते थे तो मैं मेरा कमरा बंद करता था, खिड़की दरवाजे बंद , पर्दे क्लोस्ड और मैंने जो देखा था उन भक्तों को अमेरिकन साधूस यूरोपियन साधूस को चैंटिंग एण्ड डॉसिंग तो यहाँ मैं अकेला ही चैंटिंग एण्ड डॉसिंग करता था।  सो लाइक दिस “ साधु संघ साधु संघ सर्वशास्त्र कहे, लब मात्र साधु संघे सर्वसिद्धि होय” । तो कुछ परफैक्शन और कुछ इस मार्ग में लग गया मैं, तो मेरे जीवन में य़े अच्छे दिन आये हैं।  कृष्णभक्त मतलब “  सूसुखम्  कर्तुम अव्ययम” ।  कृष्णभावना का जीवन केवल आनन्दमय जीवन है। ‘आनन्द ही आनन्द गढे , इकडे तिकडे वो ही कढे , आनन्द ही आनन्द गढे’, हरि हरि! तो ये सारी गुरू और गौरांग की कृपा है कि हम इस कृष्णभावनामृत संघ के  संग में , दैर आर टू डीफरैन्ट  वर्ड्स – संघ के संग में आऐ हैं।  दिस इस अवर गुड फॉरचून ,ये हमारे भाग्य का उदय हुआ है या कर रहा है यह हरेकृष्ण आंदोलन । श्रील प्रभुपाद की जय! जिन्होनें इस आंदोलन की स्थापना की तो श्रील प्रभुपाद ने बहुत कृपा, महरबानी की हुई है हम सभी पर और उनके ऋणों से हम ऋणी हैं।  ऋणी समझते हो ? वी आर इनडैटेड टू श्रील प्रभुपाद।  प्रभुपाद के समय में भी कुछ शिष्यों ने कहा ‘प्रभुपाद वी आर इनडैटेड, हम ऋणी हैं’ ।  तो फिर उन शिष्यों ने भी पूछा ‘  कोइ तरीका है , विधी है? वी कुड डू समथिंग टू बिकम फ्री फ्रॉम सच  डेट, इस ऋण से मुक्त होने का कोई तरीका कोई पद्धति, कोई उपाय है? तो प्रभुपाद ने पहले तो कहा ‘’ नो दैर इस नथिंग, नथिंग यू कुड डू…और थोडा़ रूके फिर प्रभुपाद ने कहा, “यस यू कुड डू वन थिंग” । वॉट इस इट  श्रील प्रभुपाद ? यू डू ऐस आइ डिड । “ आपने शायद वो फेमस स्टेटमेन्ट सुना होगा, यू डू ऐस आइ डिड, तुम वैसे ही करते रहो जैसे मैने ये कार्य प्रारम्भ किया है और इसके आगे बढ़ाया हूं फैलाया हूं , आप और आगे  बढ़ाओ फैलाओ । डू ऐस आइ डिड।  तो आप भी फील करते हो कि हम ऋणी हैं श्रील प्रभुपाद के? कौन ऐसा समझता है ,सोचता है? ओके तो इस ऋण से कुछ मुक्त होना चाहते हो? कौन कौन चाहते हैं ? कुछ तो ऋण से मुक्त होना चाहिए, तो क्या करना चाहिए आपको पता है, प्रभुपाद ये कहे वॉट यू कुड डू , यू डू ऐस आइ डिड। स्वयं कृष्णभावनाभावित होने का प्रयास प्रतिदिन , साधना करते हुए, सेवा करते हुए प्रयास करना है कृष्णभावनाभावित होने का।  स्वयं चैरीटी बीगिंस ऐट होम ऐसे कहते हैं और फिर साथ ही साथ क्या करना है? ये कृष्णभावना को  शेयर करना है , जो आदेश चैतन्य महाप्रभु का है:- 

 “ जारे देखो तारे कहो कृष्ण उपदेश, 

आमार आज्ञाय गुरू होय्या तारे ए देश “ ।

अपने अपने देश में जहां के भी हो वहाँ क्या करो? जारे देखो तारे कहो कृष्ण उपदेश । तो कृष्ण के कई सारे उपदेश हैं लेकिन भगवद गीता स्पेशली भगवदगीता का उपदेश है ही, तो क्या करना चाहिए फिर? भगवद गीता का अधिक से अधिक वितरण करना है।  हरी बोल ! हरी बोल! कुछ उसमें  दम नहीं था। अधिक से अधिक भगवदगीता का वितरण करना है। तो आपको शायद पता होगा ये वैसे पता क्या अभी तो इट कुड बी ‘ चिड़िया चुग गयी खेत’ ।  मेराथान कुछ ही दिनों में समाप्त होने वाला है लेकिन वैसे इन्डिया ने , भारत ने संकल्प लिया है आई. सी .सी. की ओर से भी कहो इस वर्ष भारतवर्ष में 27 लाख भगवद गीता का वितरण होना है। 27,00,000 तो आइ ऐम श्योर आप सभी ने अपने मन्दिरो में अपने अपने कोटास, हर इन्डवीजुयल ने अपने अपने कोटे निर्धारित किये होंगे । तो मेक श्योर कुछ ही दिन बाकी है । ऐनीवे स्टैंडिंग आर्डर लो, जैसे भी छपेगा, उनको दे सकते हो।  

ओके वी शुड स्टॉप सम वैर। 

तो आप सब  बिज़ि भक्त हो, हमको कोई  काम धन्धा नहीं है हम संयासी है ।  लेकिन आप भी कामधन्धा नहीं करते हो , आप भगवान की सेवा करते हो । तो लगे रहिये ,आगे बढ़िये।  

निताई गौर प्रेमानन्दे हरी हरी बोल! 

हरे कृष्ण!