Srimad Bhagavatam 04.24.26
11-06-2023
ISKCON Hyderabad

श्रीमद् भागवत का चतुर्थ स्कंध, पाठ संख्या २४,श्लोक नंबर संख्या २६ है।

“स तं प्रपन्नार्तिहरो भगवान्धर्मवत्सल:।
धर्मज्ञान शीलसंपन्नान् प्रीतः प्रीतानुवाच ह “ ॥ 26 ॥

अनुवाद और तात्पर्य श्रील प्रभुपाद के द्वारा :-
श्रील प्रभुपाद की जय!
शिवजी प्रचेताओ से अत्यंत प्रसन्न हुए क्योंकि सामान्यतः शिवजी पवित्र तथा सदाचारी पुरुषों के रक्षक हैं। राजकुमारों से अत्यंत प्रसन्न होकर वे इस प्रकार बोले।

तात्पर्य :- भगवान विष्णु या कृष्ण भक्तवत्सल कहलाते हैं। यहां पर शिवजी को धर्मवत्सल कहा गया है । धर्मवत्सल उस व्यक्ति का बोधक है जो धार्मिक नियमों के अनुसार जीवन बिताता है । फिर भी इन दो शब्दों का अतिरिक्त महत्व है। कभी-कभी शिवजी का पाला ऐसे व्यक्तियों से पड़ता है जो रजोगुणी तथा तमोगुण होते हैं । ऐसे व्यक्ति सदैव ही धार्मिक नहीं होते हैं और ना तो उनके कार्य ही पवित्र होते हैं क्योंकि वह भौतिक लाभ से वशीभूत होकर शिवजी की उपासना करते हैं, अतः कभी-कभी वह धार्मिक नियमों का पालन करते हैं । जब शिवजी देखते हैं कि उनके भक्त धर्म अनुसार चलते तो वे उन्हें आशीर्वाद दे देते हैं। प्राचीनबर्हि के पुत्र प्रचेतागण स्वभाव से अत्यंत पवित्र एवं भद्र थे, अतः शिवजी उन पर तुरंत प्रसन्न हो गए। शिवजी समझ गए कि ये राजकुमार किसी वैष्णव के पुत्र हैं अतः शिवजी ने पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान की इस प्रकार प्रार्थना की।

“स तं प्रपन्नार्तिहरो भगवान्धर्मवत्सल:।
धर्मज्ञान शीलसंपन्नान् प्रीतः प्रीतानुवाच ह “ ॥

मैने ये केवल श्लोक ही पढ़ा था, इसका भाषांतर और तात्पर्य मैं नहीं देखा था तो मैंने सोच रहा था यहां श्रीकृष्ण की ही चर्चा हो रही है या भगवान श्रीकृष्ण का ही वर्णन हो रहा है ।
“ तं प्रपन्नार्तिहरो” किंतु अभी पता चला पहली बार मैं पढ़ रहा हूं भाषांतर और तात्पर्य आपके समक्ष यहां पर आज, तो फिर पता चला कि ‘ए ये तो कृष्ण का वर्णन नहीं है’ यह तो शिवाजी के संबंध में यह सब बातें कही गई है। वे “प्रपन्नार्तिहर:” हैं। फिर तात्पर्य में प्रभुपाद लिख रहे हैं विष्णु और कृष्ण भक्तवत्सल नाम से जाने जाते हैं और यहां भगवान शिव को धर्मवत्सल कहा गया है । तो भगवान श्रीकृष्ण के गुण शिवजी में भी है। हरि हरि! ऐसे भगवान के गुण भक्तों में भी होते हैं , इसीलिए सिद्धांत क्या है ? अचिंत्य भेदाभेद। भगवान में और भक्तों में भेद है , भेद नहीं भी है। तो भगवान के गुण भक्तों में भी पाए जाते हैं और फिर शिवजी का क्या कहना? वे तो सर्वोत्तम भक्त या सर्वोत्तम वैष्णव है, “वैष्णवानाम यथा शंभु:” कहा है। “ पुराणानाम् इदम तथा “ जैसे सभी पुराणों में भागवत पुराण श्रेष्ठ है , “ निम्नगानाम यथा गंगा “ मतलब जो नीचे जाती है कौन जाति है ? नदियाँ जाती हैं ,ऐसी नदियों में गंगा श्रेष्ठ है, “ देवानाम अच्युतो यथा:” सभी देवों में अच्युत श्रेष्ठ है, सभी नदियों में गंगा श्रेष्ठ है,सभी पुराणों में श्रीमद् भागवत श्रेष्ठ है, वैसे ही सभी वैष्णवों में शिवजी श्रेष्ठ है , शिवजी की जय ! और “ शंभूताम गत:” ऐसा भी कहा है, भगवान ही बन जाते हैं शंभू। भगवान कृष्ण बन जाते हैं शंभू। शंभू, शिवजी भगवान के एक अवतार भी है , गुणावतारों में तमोगुण अवतार । सत्वगुण के अवतार कौन है? विष्णु है। रजोगुण के अवतार ब्रह्मा है और तमोगुण के अवतार शिवजी हैं।

किंतु वे स्वयं तमोगुणी नहीं है, तमोगुण का वो नियंत्रण करते हैं, लेकिन वे स्वयं तमोगुणी नहीं है । वैसे कुछ तमोगुणी लोगों के या धार्मिक लोगों की इच्छा की पूर्ति जरूर करते होंगे जो देवों का कार्य भी होता है या “कांक्षन्ता कर्मणां सिद्धिभजन्ते इह देवता क्षिप्रं ही मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा” कृष्ण कहे लोग अपने-अपने कर्मों में सिद्धि चाहते हैं, ऐसे सिद्धि चाहने वाले लोग ही देवताओं के पास जाते हैं और देवता उनकी सिद्धि पूरी करते हैं । तो शिवजी भी ऐसा करते रहते हैं तमोगुणी लोगों के लिए। शिवजी इस वन ऑफ द मोस्ट मिस अंडरस्टूड पर्सनालिटी ,शिवजी को अधिकतर लोग जानते नहीं ,पहचानते नहीं। ओके वे तमोगुण के नियंत्रक हैं तो विनाश करते हैं प्रलय उनकी ड्यूटी है “ भूत्वा भूत्वा प्रलीयते” लोक हो होकर बन बन कर क्या होता है? प्रलय होता है। यह प्रलय का कार्य कहो, जिम्मेदारी कहो ये शिवजी की है। हरि हरि ! अलग-अलग इच्छा कौन था वो ? वृकासुर जैसे लोग भी होते हैं “ कमैस्तेस्ते अपहृत ज्ञाना प्रपद्यंते अन्य देवता “ कृष्ण कहे भगवत गीता में जो लोग कामी होते हैं ,कामवासना होती है तो ‘प्रपद्यंते’ और और देवों की, देवताओं की शरण में जाते हैं । ये कहते हुए स्वयं भगवान को अच्छा नहीं लग रहा है , व्हाट इस दिस ? ऐसा नहीं करना चाहिए लेकिन करते तो है। “कमैस्तेस्ते अपहृतज्ञाना” जब ज्ञान को चुराया जाता है “मायाया अपहृत ज्ञाना प्रपद्यंते अन्य देवता” तो कामवासना उत्पन्न होते ही, उस व्यक्ति का फिर ज्ञान चुराया जाता है और फिर ऐसे व्यक्ति देवताओं की आश्रया में जाते हैं, अपने ‘’ कर्मणासिध्दिम ‘के लिए, अपनी कामना की पूर्ति के लिए । तो वैसे ही थे वह वृकासुर और शिवजी को प्रसन्न करने के लिए वे स्वाहा! स्वाहा ! यज्ञ करने लगे। वैसे हमने सुना फ्रॉम राधा गोविंद महाराज कह रहे थे सत्य ही होगा यह वृकासुर वैसे पार्वती को चाहता था लेकिन जब तक शिवजी है तब तक पार्वती प्राप्त नहीं हो सकती तो शिवजी को मैं खत्म कर दूंगा। तो यह यज्ञ में चढ़ा रहा था आहुति, अपने शरीर का मांस काट-काट कर स्वाहा स्वाहा चल रहा था। इसका उद्देश्य था कि शिवजी को मारना है तो वरदान चाहता था कि मैं जिसके भी शरीर सिर को स्पर्श करूंगा उसका सिर कट जाए या उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाए । इस उद्देश्य से वह यज्ञ कर रहा था स्वाहा स्वाहा । तो कुछ समय तो बीत चुका था स्वाहा स्वाहा यज्ञ करते हुए ,तो भी अब तक शिवजी प्रसन्न नहीं हो रहे थे ।तो अंत में अपना सिर काटते ही, ऐनीवे ऐट सम पॉइंट शिवजी प्रसन्न हुए हैं “ हे क्या चाहते हो ?” उन्होंने कहा कि मैं जिसके सिर को स्पर्श करूंगा उसका सिर फूट जाए , टूट जाए ,वह मर जाए, ऐसा वरदान दीजिए। तो शिवजी वैसे यह समस्या भी है शिवजी के साथ कि आशुतोष हैं, आशुतोष क्विकली ही इज़ सेटिस्फाइड ,तुरंत प्रसन्न होते हैं । तो इस व्यक्ति की जो इच्छा थी तो शिवजी बोले ‘ तथास्तु, वैसे ही हो’ और आशीर्वाद /वरदान प्राप्त होते ही अब यह वृकासुर क्या करने वाला है? यह ट्राई करना चाहता है कि मुझे सचमुच वरदान मिला है कि नहीं ? तो ट्रायल करेगा तो वहां कोई और था नहीं तो शिवजी के ऊपर ही ट्रायल करने जा रहा था। आई विश टू टच योर हेड सर, शिवजी तो जानते थे कि उन्होंने सचमुच वरदान दिया हुआ है और वैसे ही होगा जैसे मैंने वरदान दिया है। तो मेरे सर को स्पर्श करेगा तो हो गया मैं नहीं रहूंगा । तो शिवजी दौड़ने लगे, दूर भागने लगे और यह वृकासुर पीछा करने लगा। ऐसे होते हैं शिवजी और देवताओं के भक्त देखो । फिर करना पड़ता है वैसे “पुनर्मुशिका भव”। तो शिवजी दौड़ रहे थे और वृकासुर पीछे दौड़ रहा था तो भगवान ने ,कृष्ण भगवान या कृष्ण कन्हैया लाल की जय ! उन्होंने नोट किया कि शिवजी इन ट्रबल ,कोई समस्या है ,कुछ परेशानी में है । वैसे वह समझ भी गए कि क्या समस्या है ? तो विष्णु भगवान प्रकट होते हैं और पूछते हैं। उन्होंने वृकासुर को रोक लिया और कहा ‘ ऐ यह क्या हो रहा है? क्यों दौड़ रहे हो ? ‘ तो उन्होंने कहा कि मुझे ऐसा ऐसा वरदान मिला हुआ है और शिवजी के सर को मैं स्पर्श करना चाहता हूं ताकि वह मर जाए और मुझे फिर पार्वती प्राप्त हो सकती है, पार्वती का पति मैं बनूंगा । तो फिर वहाँ संवाद होता है वृकासुर और भगवान के मध्य में और भगवान बड़े बुद्धिमान युक्तिमान हैं । शिवजी ने वरदान दिया है डोंट टेक इट सीरियस्ली उनके वरदान को । नहीं तुमको वरदान तो नहीं मिला है या उनके वरदान में इतनी शक्ति या ताकत नहीं है। वैसे तुम किसी के सिर का स्पर्श करोगे तो सिर उसका फूटने टूटने वाला नहीं है लेकिन वो कनविंसड था ‘नहीं नहीं..वरदान मिला है, वरदान मिला है ‘। ओके वरदान मिला हो तो ट्राई करो ,किसके ऊपर? तुम्हारे ऊपर ही ट्राई करो और फिर इस बुद्धू ने वैसा ही किया उसीके साथ एक्सप्लोइटेड हिज हेड एंड इस प्रकार शिवजी की जान बच गई। तो शिवजी की जान बचाने वाले शिवजी के रक्षक भी कौन है ? कृष्ण है “कृष्णस्तु भगवान स्वयं “ हैं। “ तं प्रपन्नार्तिहरो हरो”। कोई उनको पहचानता है तो वैष्णव पहचानते हैं शिवजी को ,उनकी असली पहचान । वह तो फिर सदाशिव के रूप में उनकी पहचान है। वैसे देवी धाम फिर दूसरा कौन सा धाम ? महेश धाम और फिर हरिधाम। तो देवी धाम तो यह धाम है, यह ब्रह्मांड है , देवी इंचार्ज है।

वैसे अधिकतर लोग शिवजी का जो परिवार है स्वमं शिवजी , फिर कोई शिवजी के पास ही पहुंचता है अपनी किसी इच्छा की पूर्ति के लिए “ कर्मणा सिद्धिम “ तो कोई पार्वती के पास पहुंचता है ,दुर्गा के पास पहुंचता है ,तो कोई गणेश के पास पहुंचता है। श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर एक स्थान पर बताते हैं यह जो “पंचो उपासना” नाम का जो प्रकार है ,पांच प्रकार के उपासना होती है, “ब्रह्मया काचित उपासना व्रजवधु वर्गएन या कल्पिता.” वह उपासना दूसरी है गोपियों की, राधा रानी के द्वारा या वैष्णव के द्वारा की हुई उपासना वह एक प्रकार है । दूसरा प्रकार है यह पांच उपासना है तो उसमें सूर्य की पूजा होती है, फिर गणेश की पूजा होती है, पार्वती की पूजा होती है शिवजी की पूजा होती है कौन बच गया? यह तो तीन सदस्य है परिवार के शिवजी की पूजा गणेश जी की पूजा ,पार्वती की पूजा, सूर्य की पूजा और विष्णु की पूजा। लेकिन विष्णु की पूजा भी फिर कुछ भौतिक आशा आकांक्षा के साथ ही करते हैं । यह पंच उपासना है , इसके अंतर्गत यह शिव परिवार है जो शिवजी को नहीं समझते। तो एक सदाशिव भी है, ये जो देवी धाम, फिर महेश धाम मतलब शिवजी का धाम है। शिवजी का आधा धाम तो ब्रह्मांड में है, यह देवी धाम का ही अंग है नीचे वाला लोअर पार्ट और ऊपर का जो भाग है वह वैकुंठ में है । वहां वैकुंठ जैसा वैभव है, वैकुंठ की है वो और वहां के जो शिवजी है वह सदाशिव कहलाते हैं । और नीचे के जो ब्रह्मांड का जो पार्ट है महेश धाम वहा कालभैरव और शिवजी के जो 11 प्रकार है, और फिर उनकी शिवानी भी है ‘शिव-शिवानी भव-भवानी’। तो जो प्रलय करने lवाले विनाश करने वाले कालभैरव इत्यादि है जो नीचे का पार्ट है महेश धाम का ,वहां निवास करते रहो और अपने इस प्रकार से सक्रिय रहते हैं । किंतु जो सदाशिव है यह सदाशिव ही तो प्रकट हुए अद्वैत आचार्य के रूप में या ये कहो की महाविष्णु बन जाते हैं अद्वैत आचार्य । वैसे महा विष्णु से भी बनते हैं सदाशिव, फिर सदाशिव से अद्वैत आचार्य प्रकट हुए कहो या महाविष्णु से प्रकट हुए कहो, एक ही बात है । तो यह शिवजी की सदाशिव नाम से जो पहचान है ,तो अद्वैत आचार्य “ तं प्रपन्नार्तिहरो हरो “ अद्वैत आचार्य प्रकट हुए ,एक प्रकार से सदाशिव प्रकट हुए हैं और उन्होंने देखा इनका कार्य ऐसा एडवांस पार्टी कहो , गौरांग महाप्रभु प्रकट होने के पहले वह अद्वैत आचार्य को आगे भेजे हैं , सदाशिव को आगे भेजे हैं। डू सम फिजिबिलिटी स्टडी क्या-क्या चल रहा है? संसार में पता लगाओ। तो शिवजी ने पता लगवाया तो क्या पता चला उनको ? धर्म की “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, तदात्मानम सृजामयहम”,धर्म की इतनी ग्लानि हो चुकी थी तो फिर यह सदाशिव अद्वैत आचार्य उन्होंने भगवान को पुकारा। उनकी पुकार वैकुंठ या गोलोक तक पहुंच गई थी और उन्होंने पुकारा तो भगवान चले आए। किसी ने पुकारा तो कोई चला आता है तो , प्रगट हुए गौरांग महाप्रभु । तो गौरांग महाप्रभु के प्राकट्य का कारण बन जाते हैं अद्वैत आचार्य जो सदाशिव है। और फिर तो “ प्रपन्नार्तिहरो हरो “ तो जो लेते हैं शरण और शरणागत व्यक्ति अगर वे आर्त या दुखी है तो उसको हर लेते हैं। या शिवजी डायरेक्टरी हर लेते हैं या फिर गौरांग महाप्रभु हर लेते हैं , अरति हर, दुखहर्ता जैसे भगवान का नाम ही है। भगवान का नाम है हरि हरि, गौर हरि, गौर हरि। उनको हरि क्यों कहते हैं ? वह हरते हैं , “ य हरती स: हरि” जो हरते हैं वह हरि है । जो शिवजी भी स्वयं या फिर मैं सुन रहा था प्रभुपाद जी को सुन रहा था, वे कह रहे थे भगवान का कार्य भगवान के भक्त करते हैं । तो भगवान लोगों का दुख हरते हैं फिर हरि कहलाते हैं । या ऐसा कार्य तो भगवान के भक्त भी करते हैं, वैष्णव भी करते हैं या फिर भगवान के भक्त वैष्णव भगवान को ही देते हैं और फिर भगवान हर लेते हैं उनके दुख को। या लोगों को “कृष्ण से तोमार कृष्ण दिते पार तोमार शक्ति आछे , आमि तो कंगाल कृष्ण कृष्ण बोले धाई तव पाछे पाछे “ हम आपके पीछे दौड़ रहे हैं यह सोचकर या इस आशा के साथ कि आप हमें कृष्ण को दोगे। हम तो कंगाल है हमारे पास तो दमड़ी भी नहीं है, एम्प्टी पॉकेट, बैंकरप्ट आप हमें भगवान को दे सकते हो । ऐसी जब मांग भी होती है तो और फिर हम दे देते हैं उनको , आप बैंकरप्ट हो तो चलो धनी बन जाओ , क्या करो? “ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे “ तो वैष्णव देते हैं औरों को भगवान को देते हैं और फिर भगवान क्या करते हैं? अपना कार्य करते हैं हरति , हर लेते हैं और फिर वही हरिनाम क्या करता है ? “चेतोदर्पण मार्जनम “ चेतना का जो दर्पण है उसका मार्जन करता है। फिर आगे क्या करता है? “ भवमहादावाग्नि निर्वापणम “ दावाग्नि जो है यह संसार में जो लगी हुई है आग तब ये हरिनाम क्या करता है ? आग को बुझाता है और शीतलता को पैदा करता है। तो जैसे हरिनाम करता है शीतलता उत्पन्न करता है, लोगों के दुख को हरता है। वैसे ही वैष्णव भी करते हैं या गुरुजन करते हैं। इसलिए प्रातः काल के मंगल आरती में हम लोग क्या गाते हैं?

संसार-दावानल-लीढ-लोक त्राणाय कारुण्य-घनाघनत्वम्।
प्राप्तस्य कल्याण-गुणार्णवस्य वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥

तो हरीनाम भी भव महा दावाग्नि निर्वापणम करता है, दावाग्नि को बुझाता है। और जहां शिक्षाष्टम का पहला श्लोक “दावाग्नि निर्वापणम” की बात है और गुर्वष्टकम में गुरु का अष्टक में पहले अष्टक में भी कहा है संसार दावानल को बुझाता है। गुरुजनों की कृपा की दृष्टि की वृष्टि, कृपा की दृष्टि की वृष्टि जब होती है , हमारे जीवन का जो भी , या जो जल रहे हैं हम इस संसार में , जल के मर रहे हैं हम, तो उस ज्वाला को उस जंजाल से भी हमको मुक्त करते हैं। तो भगवान का ही कार्य भगवान के भक्त करते हैं । तो फिर उन भक्तों में श्रेष्ठभक्त तो शिवजी ही है , नंबर वन वैष्णव। शिवजी की जय! जब मंथन हो रहा था समुद्र मंथन तो रत्न इत्यादि प्राप्त होने के पहले क्या प्राप्त हुआ ? जहर ,हलाहल।तो अब कैसे बचा जाए इस जहर के प्रभाव से? तो सारे देवता शिवजी के पास पहुंचते हैं हेल्प हेल्प तो शिवजी को आई दया, अमृत तो अभी प्राप्त ही नहीं हुआ पहले जहर ही प्राप्त हुआ तो पहले तो इस जहर को हटाना होगा ,जहर से मुक्त करना होगा।

तो शिव जी ने क्या किया? ही ड्रैंक । इतना पॉइजन एक बोतल भर के नहीं, ओशियन भर के ,सारे समुद्र को छा लिया था सर्वत्र था । शिवजी ड् ड्रेक वह पिए और कहां धारण किए? कंठ में धारण किए इसलिए क्या कहलाए है ? नीलकंठ। और भी लोग शिवजी के फॉलोअर्स ऐसा जहर पीते रहते हैं, गांजा और जाने क्या-क्या पीते रहते हैं । लेकिन शिवजी जैसा वो कंठ में धारण नहीं करते, पहुंच जाता है फेफड़ों में और मर जाते हैं। यह नकल कर रहे हैं शिवजी की , फिर गंगा को ये शिवजी ने कार्य किया ताकि अंततोगत्वा सारे देवताओं को अमृत प्राप्त हो तो। एक समय गंगा स्वर्ग में ही बहती थी तो राजा भगीरथ चाहते थे गंगा की उपस्थिति पृथ्वी पर ताकि उनके पूर्वजों का उद्धार हो सके गंगा में स्नान करके । तो कितने सारे प्रयास भगीरथ ने जितने प्रयास किए हैं ऐसे इस ब्रह्मांड में ,संसार में और किसी ने इतने प्रयास नहीं किए। जब प्रयास करने वालों का स्मरण होता है तो पहले किसका होता है स्मरण ? भगीरथ राजा भगीरथ । इसीलिए पहले बताते दें उस नदी का नाम गंगा का नाम एक और क्या है? भागीरथी भगीरथ के कारण। भगीरथ के प्रयासों से गंगा को इस पृथ्वी पर लाया तो फाइनली गंगा तो तैयार हो गई ,ओके कुड गो डाउन। कई समस्या आई गंगा ने कहा मुझे इतनी गति से स्पीड से स्वर्ग से यहां आना है तो मुझे कोई रोकने वाला भी तो चाहिए अदरवाइज अर्थली प्लैनेट्स कुड गो आउट ऑफ ऑर्बिट इस धक्के के साथ। तो कुछ व्यवस्था करो । पुन: विघ्न तैयार हुआ आने को तैयार तो हुई लेकिन बट तो फिर भगीरथ जी शिवजी के पास पहुंचते हैं कुड यू हेल्प आउट ? आप कुछ मदद कर सकते हैं आप? और एंड फॉर श्योर शिवजी तैयार हुए और स्वर्ग से लगभग पृथ्वी तक पहुंचने वाली गंगा को क्या किया? धारण किया अपनी जटा में और फिर वहां से वह बहती है अलग-अलग धाराओं में तो फिर शिवजी का नाम क्या हुआ? गंगाधर ,गंगा को धारण करने वाले । तो गंगा धारण करने को वे भी तैयार नहीं होते तो फिर गंगा को पृथ्वी पर नहीं आना था और “ गंगा तेरा पानी अमृत” में हम लोग इस गंगा में स्नान करके शुद्ध नहीं होने वाले थे या अमर नहीं बनने वाले थे । लेकिन यह सब संभव हो रहा है किसके कारण? शिवजी के कारण, ही इस वन ऑफ़ द फैक्टर्स कहो । तो हो गया “प्रपन्नार्तिहरो हरो “ लोगों का जो अरति या दुख है उसको हरने वाले शिवजी । हरि हरि! जैसा हमने कहा नॉट अंडर्स्टुड शिवजी तो ऐसे वैष्णव है, गोपी भाव वाले वैष्णव, उनका भाव वृंदावन में कैसा भाव है ? गोपी भाव इसीलिए क्यूंकि रासक्रीड़ा में केवल उन्हीं लोगों का प्रवेश होता है जिसमें दो बातें आवश्यक होती है। रासक्रीड़ा में कृष्ण के साथ नृत्य करना है यस यू कैन यू कैन डू , लेकिन क्या होना चाहिए ? एक गोपी का भाव और गोपी जैसा रूप भी होना चाहिए लेकिन लक्ष्मी को यह बात पसंद नहीं है ,अपने रूप से अपने सौंदर्य से इतनी आसक्त है लक्ष्मी और उनका भाव थोड़ा अहम भाव है ,मैं लक्ष्मी हूं लक्ष्मी हूं मैं । इसलिए वहां एक वन है वृंदावन में उसका नाम क्या है ? श्रीवन। वहां बहुत समय से तपस्या कर रही हैं लेकिन उनको रास क्रीड़ा में प्रवेश नहीं मिल रहा है क्योंकि वह गोपी भाव को नहीं अपनाना चाहती और गोपी जैसा रूप नहीं अपनाना चाहती । तो एक समय शिवजी वैसे रासक्रीड़ा में प्रवेश करना चाहते थे , डांस विद कृष्ण तो कैलाश से आ गए वृंदावन । उनको पता चला कि फलाने जगह पर रासक्रीड़ा संपन्न हो रही है तो वहां गए और बेल बजाई होगी ना और गेट कीपर्स होते हैं कुछ रोके होंगे, ए कहां जा रहे हो ? उनकी जटा हैं डम डम डमरू हैं और त्रिशूल है ,गले में सर्प है ,मुंडमाला है ,कान में बिच्छू लटक रहे हैं और सारे अंग में राख वगैरह । वैराग्यवान है शिवजी । आईने में अपना मुखड़ा देखो? आप रास क्रीड़ा में जाना चाहते हो ऐसे थोड़ी ना जा सकते है । तो उनको बताया गया कि बगल में कुंड है मानसरोवर कहते हैं। मानसरोवर में नहाओगे डुबकी लगाओगे तो फिर आप को वैसा रूप प्राप्त होगा जिस रूप से गोपी जैसा रूप ,गोपी जैसा भाव मिलेगा। तो वैसे शिवजी की और देखते हुए कहा देन यू आर वेलकम आपका स्वागत है शुभ स्वागतम । तो फिर शिव जी रास क्रीड़ा में नृत्य करने वाले हैं ऐसी पात्रता उनके पास हैं “ए निवेदन धरो सखीरनुगत करो “ ऐसा भाव आवश्यक है रास क्रीड़ा में गोपियों के समक्ष कुछ सेवा करनी है तो अनुगत्य बीइंग ए फॉलोअर थिंग । लक्ष्मी किसी को फॉलो नहीं करना चाहती तो । शिवजी का एक नाम है “गोपेश्वर महादेव की जय “! और कृष्ण से खूब प्रेम करते हैं कई सारी लीलाएं हैं उनकी । नंदग्राम में जाते हैं कृष्ण का दर्शन करने के लिए तो नंदभवन में गए दरवाजा खटखटाया होगा यशोदा ने द्वार खोला तो शिवजी वहां पधारे । उन्होने कहा मैं कन्हैया का दर्शन करना चाहता हूं । यशोदा ने कहा तुम्हारा दर्शन हमारा लाल करेगा तो डर सकता है , गो नाओ और शिवजी बेचारे जाते हैं नंदग्राम के पास ही ध्यानावस्था में बैठते है। एनीवे ऐसी लीला है तो जबसे यशोदा ने शिवजी को भेजा वहां से तब से कृष्ण कृंदन करने लगे रोने लगे, रो रहे हैं , रो रहे हैं और रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं । एक खिलौना ले लो ,रसगुल्ला ले लो ,यह करो वह करो ,रोते रहे रोते रहे तो पड़ोस की माता आती हैं ,पता लगवाते है कब से रोना शुरू किया उसने? अरे कोई बाबा आए थे जटाधारी मैंने उनको यहां से भेज दिया तबसे लाल मेरा रो रहा है। सभी ने सोचा कि कोई कनेक्शन लगता है? जिसको भेजी तुम डर से , उनको पास बुलाकर देखो, तो शिवजी को पुनः बुलाया गया और कन्हैया ने शिवजी का दर्शन करते ही , उनका रोना स्टॉप।

इस प्रकार शिवजी का घनिष्ठ संबंध है कृष्ण से, कृष्ण से ही नहीं कृष्णलीला के वो पार्ट होते हैं, राम प्रकट हुए तो वहां भी शिवजी है । श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में कृष्ण प्रकट हुए तो वहाँ भी शिवजी हैं । मायापुर में तो शिवजी ही शिवजी है, नवदीप में ,हर द्वीप में, शिवजी का कनेक्शन है इंक्लूडिंग एक द्वीप भी है गोद्रुम द्वीप। गोद्रुम द्वीप में शिवजी रहते हैं और यह गोद्रुम द्वीप अपने कीर्तन के लिए प्रसिद्ध हैं। नवद्वीपों में नौ प्रकार की भक्ति होती है, एक द्वीप में एक प्रकार की जैसे श्रवणम् । गोद्रुम द्वीप में कीर्तन होता है जिसकी तुलना वैसे वाराणसी के साथ होती है। वाराणसी बन जाती है महावाराणसी, ऑन द स्पॉट ऑफ गोद्रुम द्वीप। गोद्रुम द्वीप महावाराणसी भी है ,वहाँ शिवजी क्या करते हैं ? सदैव कीर्तन करते हैं । वहां तालाब भी है, पंचानन तालाब शिवजी का एक रूप है ,उसमें कितने मुख है? पांच, इसलिए पंचानन । जैसे दशानन आप किसी को जानते हो? रावण जी को दशानन ,तो पंचानन शिवजी के पाँच चेहरे , मुख है और आंखे कितनी है? हर चेहरे में तीन ,त्रिलोचनी; मुख पांच एक एक में, तो अपनी सभी आंखों से कृष्ण का ,गौरांग महाप्रभु का दर्शन करते हैं ; सभी मुखों से भगवान के गुण गाते हैं । “ “ब्रह्मा बोले चतुर्मुखे कृष्ण कृष्ण हरे हरे , महादेव पंचमुखे राम राम हरे हरे। “ शिव पार्वती तो नवद्वीप का पहला जो द्वीप कौन सा है पहला ? श्रीमंत द्वीप । शिवजी लेकर आए वैसे शिवजी अपने कैलाश में एक समय ऐसा कीर्तन कर रहे थे, ऐसा नृत्य कर रहे थे ,” गौरा गौरा गौरा गौरा गोरा “! और नृत्य भी हो रहा था , शिवजी अपने नृत्य के लिए प्रसिद्ध है। कृष्ण भी अपने नृत्य के लिए प्रसिद्ध है, उनको कहते हैं नटवर शास्त्रों में और शिवजी को कहते हैं नटराज । तो दोनों भी नट है । नट मतलब ? नटनटी , एक्टर है , दे आर दी ऐक्टरस । एक नटवर् मतलब बेस्ट और नटराज इस आल्सो द बेस्ट । शिवजी नृत्य कर रहे थे तो पार्वती को लेकर आए कैलाश से श्रीमंत द्वीप ,नवद्वीप में एक श्रीमंत द्वीप है, वहां दोनों तपस्या करते हैं, आराधना करते है और गौरांग महाप्रभु प्रकट होते हैं । तो पार्वती गौरांग महाप्रभु के चरणों की धूल अपने मस्तक पर रखती है , इसीलिए श्रीमंत नाम है, श्रीमंत मतलब ये पारर्टिंग जो माताओं के इधर बाल उधर बाल होते हैं और बीच में मांग में कुमकुम भी होता है । तो पार्वती ने इस द्वीप में वैसे राजापुर जगन्नाथ मंदिर भी है और रीसेंटली में इस्कॉन ने पार्वती मैया की स्थापना भी की है। श्रीमंतिणी कहते हैं, श्रीमंत उस द्वीप का नाम है वहां की धामी कहो श्रीमंतिणी। और एक रूद्र द्वीप भी है ,रुद्र के नाम से ,शिवजी के नाम से । नवद्वीपों में से एक द्वीप है रुद्र द्वीप और बैक टू गोद्रुम द्वीप। गोद्रुम द्वीप मे हरी और हर का मंदिर है, एक ही रूप में आधे है हरि और आधे हैं हर , हरिहर। तो शिवजी का बहुत ऊंचा स्थान है ऑफ़ कोर्स ही इस नॉट जीव, जीव वगैरा नहीं है वो । वे शिव हैं, उनका अपना खुद का एक तत्व है , कैटिगरी है ,एक प्रकार है और वे अकेले ही हैं उस कैटिगरी में । हम जीव हैं, हम सब जीवतत्व है और फिर विष्णुतत्व होता है जिसमें भगवान के सारे अवतार स्व-अंश, वो हैं विष्णु। शिवजी नहीं है जीव, शिव कौन है? शिव शिव है , शिवतत्व । उनका अपना एक तत्व है । फूल फ्लेजड विष्णु भी नहीं है और वह जीव तो है ही नहीं । किंतु वे स्वतंत्र भी नहीं है , ही इस नॉट कंपिटिंग, न ही वे विष्णु के साथ कोई कंपटीशन करने वाले हैं । ऐसा समझना भी क्या है ? अपराध है । अपराध नंबर 2 “ अन्य देवी देवताओं को भगवान के बराबर समझना या उनसे स्वतंत्र समझना अपराध है “ । ये भली- भाँति समझना होगा नहीं तो हम जरूर अपराध करेंगे। तो शिवजी कृष्ण “ मतः परतरम न अन्यत् किंचित् अस्ति धनंजयः” कृष्ण के जैसा भी कोई नहीं है और कृष्ण के बराबर का कोई नहीं है । हमारे देश में कंपटीशन चलती रहती है शैव और वैष्णव। शिवजी के फॉलोअर्स और कृष्ण या विष्णु के फॉलोअर्स दे ट्राई टू प्रूव ए शिव है , ए विष्णु है । दे ट्राई टू कमपीट, टसल ,फिक्शन क्या क्या चलता रहता है । दिस इस आउट ऑफ़ इग्नोरेंस, यह अज्ञान है । विष्णु विष्णु है अपने स्थान पर, लेकिन शिवजी तो कुछ काम नहीं है ,ही इस समबॉडी ,बिग बॉडी,बिग पर्सन ,वेरी बिग पर्सन, किंतु ये स्वतंत्र नहीं है भगवान से। तो वे प्रसन्न हुए हैं किनसे प्रसन्न हुए? प्रचेताओं से। क्यों प्रसन्न हुए हैं? धर्मज्ञ थे प्रचेता, धर्म के ज्ञाता थे । “भगवान् धर्मवत्सल:” वे धार्मिक थे, तो उन पर प्रसन्न होकर और धार्मिक तो थे तो फिर शीलसंपन्न भी थे या फिर यह भी कहा जा सकता है, एक तो शब्द है ‘धर्मज्ञ शीलसंपन्न:’ ,जो धार्मिक होते हैं वे शीलवान होते हैं। शीलवती माताएं होती है और शीलवान पुरुष होते है , ऐसे होते कब होते हैं? जब वे धर्मज्ञ होते हैं। दे आर नॉलेजेबल थे , दे आर पर्सन्स ऑफ़ ,पर्सनैलिटी डेवलपमेंट हुई है और दे आर मैन एंड वुमैन ऑफ कैरेक्टर।

शील संपन्न कहो या चरित्रवान कहो एक ही बात है । वो व्यक्ति चरित्रवान बनता है जब वो चैतन्य चरितामृत पढ़ता है या रामचरित्र पढ़ता है , कृष्णचरित्र पढ़ता है । वो ज़माना बदल गया एक समय सारी माताएँ या पिताश्री कहो अपने पुत्र-पुत्रियों को या पौत्र-पौत्रियों को भगवान की कथा सुनाया करते थे या भगवान के चरित्र को सुनाया करते थे। वे सभी बालक-बालिकाएं भगवान के चरित्र को सुन-सुनकर स्वयं चरित्रवान बन गए और फिर ‘प्रीतः’ भगवान प्रसन्न होते चरित्रवान व्यक्तियों से। यही बात यहाँ भी कही जा रही है, तो शिवजी प्रसन्न हुए हैं प्रचेताज़ के साथ , उनके चरित्र को देखकर । हम भी चाहते हैं भगवान प्रसन्न हो हमसे ? आप में से कौन कौन चाहता है भगवान हमसे प्रसन्न हो ? तो क्या करना होगा? धर्मज्ञ होना होगा , धर्म का ज्ञाता होना होगा या धर्म का ज्ञाता मतलब ‘ डिस्कवर यौर सेल्फ़’ ; आत्मसाक्षात्कार का विज्ञान को पढ़ना- समझना होगा या भगवत् साक्षात्कार का विज्ञान कहो , ऐसे जो धर्मज्ञ, फिर वो शास्त्रज्ञ भी हो गये। शास्त्रज्ञ मतलब गीता-भागवत ये शास्त्र है “ तस्मात् शास्त्रम् प्रमाणम ते कार्य अकार्यो व्यवस्थिततो “। तो गीता भागवत ये शास्त्र है ,जो इन शास्त्रों को जानता है उनको क्या कहेंगे ? शास्त्रज्ञ कहेंगे। नॉर्मली क्या समझ आता? वो शास्त्रज्ञ मतलब गैलिलियो एंड धिस् वन दैट वन, डारविंन एंड आल। जो साइंस को जानता है वो साइंटिस्ट, जो आध्यात्मिक साइंस को जानता है वो शास्त्रज्ञ। वैसे दोनों ही साईंसेस हैं तो दोनों में से सुपीरियर साइंस तो स्प्रिचुअल साइंस है। वैसे तो दोनों भी विद्या है लेकिन एक तो परा विद्या और दूसरे को अपरा विद्या कहते हैं। परा मतलब सुपीरियर अपरा मतलब इनफिरियर। या फिर और भी कहा है- विद्या और अविद्या। तो फिर जो अविद्या पढ़ता वो अशास्त्रज्ञ हुआ, नॉट शास्त्रज्ञ । तो जो परा विद्यावाला “राजविद्या राजगुह्यम पवित्रम इदम उत्तमम” है वो शास्त्रज्ञ है, भक्ति शास्त्री का कोर्स जिन्होने किया वो भक्ति शास्त्रज्ञ हुआ। भक्तिशास्त्र को वो समझ गया । तो हमारे आचार्य रामानुजाचार्य शास्त्रज्ञ, मध्वाचार्य शास्त्रज्ञ, भक्तिवेदान्त स्वामी श्रील प्रभुपाद कौन थे? शास्त्रज्ञ थे और उनके ग्रंथों का आप अध्ययन करोगे तो आप भी शास्त्रज्ञ बन सकते हो । हमारे राधेश्याम प्रभु शास्त्रज्ञ हैं ये आराम से कहा जा सकता है, नौ इफस् एनड बटस् जैसा कहते हैं । एंड देयर आर सौ मैनी अंडर्स, आनंदमय प्रभु इज शास्त्रज्ञ , वेदांत चैतन्य इज शास्त्रज्ञ। तो ये शास्त्रज्ञ थे , धर्मज्ञ थे प्रचेताज़। एक तो है ज्ञान और विज्ञान, शास्त्रों का ज्ञान और फिर उसका रिलाइजेशन ,प्रैक्टिकल एप्लीकेशन। तो फिर होगया केवल शास्त्रज्ञ ही नहीं नाम से, प्रेक्टिकली इज शास्त्रज्ञ , साइंटिस्ट ,स्प्रिचुअल साइंस को जानता है । फिर वही धर्मज्ञान हमको शीलसंपन्न कराता है, चरित्रवान बनाता है। तो जब हम चरित्रवान बनते हैं तो ‘प्रीतः’ भगवान प्रसन्न होते हैं । यहाँ शिवजी प्रसन्न हुए हैं और उनको भगवान कहा है । धिस् ईज फैक्ट, ही इज भगवान। वे भगवान हैं , षडऐश्वर्य जिनमे हैं। तो कृष्ण में सबसे अधिक षडऐश्वर्य हैं । षड ऐश्वर्या “ ऐश्वर्ययस्य च समग्रस्य वीरयस्य,यश स ज्ञान, वैराग्यश्य्चैव “। ये षडऐश्वर्य है तो कृष्ण में सबसे अधिक है, समग्रस्य, टोटल, कम्पलीट। लेकिन औरो में भी तो यह षडऐश्वर्य हैं, थोड़ा कम मात्रा में होंगे । जैसे और अवतारों में भी ये ऐश्वर्य है, वे भी भगवान है । शिवजी में भी ये हैं षडऐश्वर्य है , उनको भी भगवान कहा है। वैसे शुकदेव गोस्वामी को भी भगवान् कहा है और आप सभी भी ऐसे छोटे मोटे भगवान् हो, क्या हो? भगवान् हो यस यस यू आर आलसो भगवान् । ज्ञानवान मतलब भगवान् , जिसके पास भग है, वान उसको जो पोजैस् करता है वो भगवान् । जिनके पास ज्ञान है ,उतना ही कम-अधिक उतना ही भगवान् । वैराग्य है तो भगवान्, कुछ वीर्य हैं तो भगवान् । हरि हरि! क्या हुआ तो अब शिवजी प्रसन्न होके ‘प्रीतः अनुवाच’ संधिविच्छेद इस रांग ‘प्रीतान’ ऐसे “धर्म ज्ञान शील संपन्ननां प्रीतान्” ये साथ मे है तो जो धर्मज्ञ थे शील संपन्न थे तो उनके आचरण से प्रसन्न होकर शिवजी उवाचः, शिवजी बोले, क्या बोले? कल बोलना शुरू करेंगे । टू बी कन्टीन्यूड। धन्यवाद हरि बोल! वन क्वेसचन् वी कैन टेक? प्रसाद कब होगा ? येही प्रश्न है। महाराज आपने एक भी शब्द छोड़े बिना एक-एक का विश्लेषण किया, शिवजी की बहुत मधुर मधुर लीलाएं बताई, शिवजी और भगवान् के बीच में प्रेममय संबंध है उसके बारे में आपने समझाया, बहुत मधुर सत्र रहा आज, तो हम धन्यवाद देंगे महाराज जी को ।
महाराज जी तो हम क्या आल्टर मे भगवान् के साथ शिवजी का फोटो रखके पूजा कर सकते हैं? कुछ वैष्णव करते हैं, सच्चिनंदन महाराज ,भूरिजन प्रभु ऐसे कुछ वैष्णव । डू ऑन रेगुलर बेसिस , लेकिन ओकेजन पे लोग मानते रहते हैं । श्रीमंत द्वीप में लोगों ने पार्वती की स्थापना की है तो वहाँ तो प्रतिदिन आरती उतारी जाती है । और वहाँ शिवजी भी हैं, शिव लिङ्ग भी हैं, उनकी भी आरती उतारते है । राजा पुरुष का जो मायापुर में मन्दिर है, तो तुम कर सकती हो । नो ओबजेक्शन। हरे कृष्ण! गुरु महाराज!

प्रश्नः शिवरूद्रपीठ नाम का एक वर्स है, जिसमें “हरीकेईश” मैंशन है। तो कोई भौतिकवादी लोग बोलते हैं कि शिव हरि से बड़े है , परंतु शिवजी ख़ुद कहते हैं कि वे विष्णुजी की आराधना करते हैं। तो ये “हरीकेईश” का मतलब क्या है?

महाराज : शिवजी है हरी के ईश। ऐसे रामेश्वर में भी यही विवाद चलता है कि ईश्वर कौन हैं ? राम ईश्वर है या शिव ईश्वर है।

“ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् ।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ॥ 4.11 ॥”

तो यह बड़ा रहस्यमय वचन है, भगवान कह रहे हैं कि ये यथा , जो जितनी मेरी शरण में आता है मैं भी उतना ही उनका भजन करता हूँ। “अहम भजामि त्वाम” मैं उनको भजता हूँ। तो वो भगवान अपने भक्तों को भजते हैं और भगवान के भक्त तो भगवान को भजते ,भजन करते ही रहते हैं । ऐसा संबंध है भगवान और भक्तों का वे एक दूसरे की पूजा करते हैं और वृंदावन में तो उनको कोई पूछता भी नहीं है।

“साधवो हृदयं मह्यं साधूनां हृदयं त्वहम् ।
मदन्यत् ते न जानन्ति नाहं तेभ्यो मनागपि ॥ 9.4.68॥”

भगवान ने कहा साधू मेरे हृदय में है और मैं सबके हृदय में हूँ। भगवान कहते हैं मेरे भक्त मुझको छोड़कर और कुछ जानते ही नहीं और मेरा हाल भी वही है भक्तों को छोड़कर मैं और कुछ नहीं सोचता, न कुछ जानता हूँ। हरि हरि! इसलिए हमें वैष्णवों का ,भक्तों का आदर सम्मान सत्कार एवं पूजा करनी चाहिए, सेवा करनी चाहिए। भगवान भजते हैं भक्तों को। इसलिए भगवान भक्तों को जानने के लिए चैतन्य महाप्रभु बने और भक्त ही बन गए।

“पंच-तत्त्वात्मकं कृष्णम्भक्त-रूप-स्वरूपकम
भक्तावतारं भक्ताख्यं नमामिभक्त-शक्तिकम ॥”

ये चैतन्य महाप्रभु है राधारानी का भाव ,भक्तों का भाव, गोपी का भाव धारण करके अपनाके भगवान भक्त बन गए। हम लोग भगवान बनना चाहते हैं । हमारे देश में गली में कई भगवान घूमते रहते हैं, फ़लाना भगवान, इधर भगवान, उधर भगवान। लेकिन आज का स्वामी कल का नारायण ,स्वामी नारायण कोई बनता है तो कोई क्या क्या बनता है। लेकिन भगवान भक्त बनना चाहते हैं, भक्त बन भी जाते हैं। ये भक्त की महिमा भी कहो और ऐसा स्थान भी है ,पदवी है ऐसी भगवान के भक्तों की और फिर भगवान भी कहे हैं जो कहता है कि कोई मेरा भक़्त है कि “मैं आपका भक्त हूँ भगवान “ भगवान कहते हैं “नहीं नहीं तुम मेरे भक़्त नहीं है” और कोई दूसरा व्यक्ति आया और कहेगा कि “भगवान मैं आपके भक्त का भक्त हूँ। “ तो भगवान कहेंगे “आहा… फिर आप मेरे भक्त हो।” मैं आपके भक्त का भक्त हूँ तो फिर भगवान कहेंगे कि तुम फिर मेरे भक्त हो, तो शिवजी पूजा करते हैं भगवान की और भगवान की पूजा करते हैं शिवजी की ऐसा भी है।

अच्छा तो यहाँ और क्या चल रहा है?
महाराज जी की कुछ किताबें है उधर टेबल में “ मेरे प्रभुपाद” दिखाइए :- कुंभ , गुर मुख पद्मवाक्य , श्रीकृष्ण स्वरुप चिंतन, भू वैकुंठ पंढरपुर, बांबे इज़ माई ऑफिस, व्रज मंडल दर्शन , पदयात्रा वर्ल्डवाइड और संस्कृत प्रोनाउन सिएशन( संस्कृत उच्चारणम) । ये सब महाराज जी की किताबें हैं,