Srimad Bhagavatam 05:02:19-20
22-03-2022
ISKCON Nagpur
“नित्यं भागवत सेव्या” के अंतर्गत मतलब प्रतिदिन भागवत की सेवा होती है इस्कॉन मंदिरों में और घर एक मंदिर है अगर हम समझते है । आपके घर भी अगर मन्दिर है तो वहाँ पर क्या होना चाहिए ? “नित्यम भागवत सेव्या”। श्रील प्रभुपाद कृपा करके हमको ये विधि-विधान दिए हैं “ नित्यम भागवत सेव्या “ डेली भागवतम् । हम जब मुंबई में थे तो प्रभुपाद डेली स्वयं ही कक्षा लेते थे । एक समय तो एक सौ दिन रहे श्रील प्रभुपाद मुंबई में, जहाँ के हम ब्रह्मचारी थे । पहले ब्रह्मचारी थे , बाद में सन्यासी । प्रतिदिन, १०० डेज़, एवरीडे। कोई अलग से अनाउंसमेंट नई होती थी कि ‘आज की कक्षा इनके द्वारा, इनके द्वारा’ । ऐसी अनाउंसमेंट की ज़रूरत ही नही हुआ करती थी । प्रभुपाद इस इन टाउन तो कक्षा कौन देंगे ? प्रभुपाद। श्रील प्रभुपाद की जय ! तो श्रील प्रभुपाद केवल हमको ही नहीं कहे “ नित्यं भागवत सेव्या” करो , प्रतिदिन भागवत का अध्ययन करो । श्रील प्रभुपाद प्रतिदिन भागवत का अध्यापन करते थे । एक अध्ययन और दूसरा अध्यापन, पठन और फिर पाठन, श्रवण और फिर कीर्तन ।
“ शृण्वन्ति गायन्ति घृणन्ति अभीक्षणशाः स्मरन्ति नन्दन्ति तवेहितं जनाः त एव पश्यन्ति अचिरेण
तवकं भव-प्रवहोपरम पदम्बुजम्” ( SB 1.8.36)
तो देखते है श्रीभागवत का पंचम स्कंध का द्वितीय अध्याय के ये दो श्लोक- उन्नीस और बीस। ये पाँचवा स्कन्ध है तो यहाँ गद्य चलता है । एक होता है पद्य और दूसरा होता है गद्य। हरि हरि! ये गद्य इसलिए कि…यहाँ लिखा भी नहीं है श्लोक ,तो मैं ही इसको पढ़ लेता हूँ अकेला ही, सुन लीजिए।
“ तस्याम उ हा वा आत्मजन स राज-वर अग्निध्रो नाभि-किंपुरुष-हरिवर्षेलवृत-रम्यक-हिरण्मय-कुरु-भद्राश्व-केतुमला-संज्ञान नव पुत्रन अजन्यात्।” ( SB 5.2.19)
कम से कम शब्दार्थ तो दोहरा सकते हैं , उसकी आवृत्ति कर सकते हैं। कहिये
‘तस्याम’ – उससे , ‘उहवा’ – निश्चय ही, ‘आत्मज्ञान’ – पुत्र , आत्मा से जन्मा, ‘सः’ उसने , ‘ राजवरः’ – राजाओं में श्रेष्ठ , ‘आग्नीध्र’- आग्नीध्र ने , ‘नाभि’- नाभि , ‘किमपुरुषम’ ।
अब ये अलग अलग नौ नाम आएँगे ‘नवपुत्रान अजनयत् ‘ अन्त में कहा है नौ पुत्रों को जन्म दिया राजा आग्नीध्र ने,
‘राजवर्’ – जो राजाओं में श्रेष्ठ थे। राजाओं में श्रेष्ठ के एक एक नाम अब सुनिए :- नाभि, किम्पुरुष, हरिवर्ष, इलावृत, रम्यक , हिरण्यमय ,कुरू, भद्राश्व , केतुमाल, संज्ञान नामक ‘नव’- नौ , ‘पुत्रान’- पुत्रों को , ‘अजनयत्’ – उत्पन्न किया ।
केवल अनुवाद है तात्पर्य नही है ।
अनुवाद:- राजाओं में श्रेष्ठ महाराज आग्नीध्र को पूर्वचित्ति के गर्भ से नौ पुत्र प्राप्त हुए जिनके नाम – नाभि,किंपुरुष , हरिवर्ष, इलावृत्त,रम्यक, हिरण्मय ,कुरु ,भद्राश्व तथा केतुमाल थे।
अगला श्लोक, श्लोक संख्या- २०, मैं ही कहता हूँ इसको।
“सा सुतवथ सुतन्न्वनुवत्सरं गृह एवापहाय पूर्वचित्तिर्भूय एवजं देवमुपतस्थे ॥ 20॥”
पीछे कहिये शब्दार्थ :-
‘ सा’- वह, ‘ सुत्वा’- जन्म देकर, ‘अथ’ – तत्पश्चात , ‘ सुतान्’- पुत्रों को, ’ नव’- नौ, ‘अनुवत्सरम’ – प्रतिवर्ष ,
‘ गृहे ‘- घर पर , ‘एव’ – निश्चय ही, ‘ अपहाय’- छोड़ कर , ‘ पूर्वचित्ति’ – पूर्वचित्ति, ‘ भूय: ‘ – पुनः, ‘ एव’ – निश्चय ही ,
‘अज़म’- ब्रह्मा के, ‘देवम’- देवता, ‘उपतस्थे’- पास गई ,उपस्थित हुई ।
अनुवाद और तात्पर्य श्रील प्रभुपाद द्वारा, श्रील प्रभुपाद की जय !
पूर्वचित्ति ने प्रतिवर्ष एक-एक करके इन नौ पुत्रों को जन्म दिया है, किन्तु जब वे बड़े हो गये तो वह उन्हें घर छोड़कर ब्रह्मा की उपासना करने के लिए उनके पास उपस्थित हुई।
ऐसे अनेक उदाहरण है कि जब अप्सराएँ ब्रह्मा या इन्द्र जैसे ही श्रेष्ठ देवताओं की आज्ञा से इस पृथ्वी पर अवतरित हुई, उनकी आज्ञानुसार विवाह किया और संतान उत्पन्न करने के बाद अपनी-अपनी पुरियों पुनः लौट गई। उदाहरणार्थ:- स्वर्ग सुन्दरी मेनका जो विश्वामित्र मुनि को छलने के लिए आयी थी शकुन्तला को जन्म देने के पश्चात अपने पति तथा अपनी पुत्री दोनों को छोड़ स्वर्गलोक वापस चली गई । पूर्वचित्ति भी महाराजा आग्नीध्र के साथ स्थायी रूप से नहीं रही । अपने पति के गृह कार्यों में सहायता करने के पश्चात वह महाराज आग्नीध्र तथा अपने नौ पुत्रों को त्याग करे ब्रह्मा की आराधना करने के लिए उनके पास लौट गई । मतलब वानप्रस्थ लिया ,वन में प्रस्थान । वैसे पति और पत्नी तो साथ में जाते है, वन में प्रस्थान करते हैं जब बच्चे बड़े होते हैं या तो ज़िम्मेदार होते हैं , अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं। तो फिर गृहस्थ आश्रम के बाद और एक आश्रम भी होता है । आपने भी कभी सोचा है? तो दोनों को साथ में जाना चाहिए था लेकिन वो अकेली ब्रह्मा के पास चली गई , ब्रह्मलोक गई । तो वानप्रस्थ में तीर्थ यात्रा होती है , तीर्थों में यात्रा करते हैं। तीर्थों की यात्रा क्यों करते हैं?
“ तीर्थी कुर्वन्ति तीर्थानि”
वहाँ के जो महात्मा होते हैं, जिनके कारण ही वैसे तीर्थ बनता है। “ तीर्थी कुर्वन्ति तीर्थानि” तो ब्रह्मलोक भी एक तीर्थ है। वहाँ के महात्मा स्वयं ब्रह्मा है । वे केवल इन्जीनियर ही नहीं, सिविल इंजीनियर भी हैं , कंस्ट्रक्शन को संभालते हैं। ‘सर्ग उपसर्ग’ क्रिएशन, फिर सेकेंडरी क्रिएशन। उसको तो संभालते हैं ही , साथ ही साथ वे आचार्य भी हैं । हम लोग गौड़ीय वैष्णव, इस्कॉन के वैष्णव, इनकी परंपरा में आते है। हमारी परंपरा के प्रथम आचार्य कौन हैं? जय ब्रह्मा! और ये ब्रह्मा फिर ब्रह्म हरिदास ठाकुर के रूप में आए और भगवान ने उनको नामाचार्य की पदवी दी और फिर वे
“हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे,
हरे राम हरे राम ,राम राम हरे हरे ।।”
यही करते रहे।
ऐसा करके उन्होंने भी धर्म की स्थापना में अपना योगदान दिया या अग्रगण्य रहे ‘ धर्म संस्थापनाय ‘ मे.। तो धीरे धीरे ये जो नाभि, नौ पुत्रों में नाभि भी है। अब अगले अध्याय मे, ये इस अध्याय का अंत ही है महाराज अग्निन्ध्र का चरित्र आप पढ़ और सुन रहे थे।
अगला अध्याय हैं राजा नाभि की पत्नी मेरूदेवी के गर्भ से ऋषभदेव का जन्म। ऋषभदेव को जन्म देना है तो यह पूर्व तैयारी है या ये इस तरह सब इतिहास है। दिस् इस आल हिस्ट्री । अग्निन्ध्र के पुत्र नाभि और नाभि के पुत्र ऋषभदेव। ऋषभदेव की जय! और यह वंशावली आगे बढ़ने वाली है। इसी वंशावली के वर्णन के उपरांत इसी अध्याय में इसी स्कंध में खगोल का भी…एक तो होता है भूगोल। पृथ्वी कैसी है? भूगोल। यह साइंटिस्ट को पता नहीं था। कुछ लोग शायद अभी भी समझते होंगे लेकिन कुछ सौ-दो सौ साल पहले तक समझते थे कि अर्थ इस फ्लैट । फ्लैट समझते है? जैसे लकड़ी का होता है फ्लैट । लेकिन हमारे शास्त्र में तो कहा है कि पृथ्वी कैसी है ? भूगोल। यह जानकारी कब से उपलब्ध थी? जब से भगवान ने भू को गोल बनाया या ब्रह्मा ने भी बनाया तब से ये जानकारी है । जब प्रोडक्ट बनता है तब उसका मैनुअल भी बनता है । तो शास्त्रों को भी, गीता भागवत को भी मैनुअल कहा है। जो इस ब्रह्माण्ड या सृष्टि का वर्णन जिसमें है इन ग्रंथों में और यह सृष्टि का इतिहास जिन ग्रंथों में है , वो महाभारत भी है। प्रभुपाद लिखते हैं “ हिस्ट्री ऑफ ग्रेट इंडिया “ महान भारत का इतिहास। इति +ह +आस अगर हम संधिविच्छेद करेंगे तो यह इस प्रकार होगा। ‘इति’ मतलब लाइक दिस्, इस प्रकार। ‘हास’ मतलब घटनाएँ घटी या ये बातें है,ये सत्य कथा है, ज्ञान है- इति..ह..आस। अगर ज्ञान प्राप्त करना है तो भगवान ने व्यवस्था तो की है जिनका हम फ़ायदा नहीं उठाते हैं।
“माया-मुग्धा जीवरे नहीं स्वतः कृष्ण-ज्ञान
जीवरे कृपाय कैला कृष्ण वेद-पुराण ||”
जीव है, बद्धजीव है ,अनाड़ी है ,अज्ञानी है, संभ्रमित है। इस जीव पर कृपा करने के लिए कृष्ण ने क्या किया? वेद पुराण की रचना की। “तेने ब्रह्म हृदाय आदिकवये” यह सारा ज्ञान भगवान ही उपलब्ध कराए हैं। ब्रह्माण्ड में जब पहले जीव ने जन्म लिया, वे थे ब्रह्मा और तुरंत ही उनको अध्यापन हुआ। उस समय और कोई नहीं था इसलिए “ कृष्णम् वंदे जगत गुरुम “ , वो गुरु बन गए और सारी विद्या उन्हें पढ़ाई और सुनाई। ऐसा श्रीमद्भागवत के प्रथम श्लोक में कहा है “तेने ब्रह्म हृदाय आदिकवये” ब्रह्मा को आदिकवि, ओरिजिनल पोयट कहा है। और फिर उसी परंपरा में “ एवं परंपरा प्राप्तम इमम राजऋष्यो विदुः “ ऐसी व्यवस्था भी की । चार अलग अलग परंपराएं की भी स्थापना कि भगवान ने। तो भगवान का दिया हुआ ज्ञान ,कहा हुआ, पहले तो कहा ही करते थे और सुना करते थे लोग। तब लोग हुआ करते थे श्रुतिधर हुआ करते थे । श्रुतिधर मतलब क्या? एक बार सुन लिया, फोटोग्रैफ़िक मेमोरी । कैसी मेमोरी? जैसे आपका मोबाइल है । आजकल तो मोबाइल से भी काफी फोटो खींचे जा रहे हैं । उसमें बनी रहती है मैमोरी बहुत समय के लिए । लाइक दैट लोगों की मेमोरिस् हुआ करती थी। श्रुतिधर हुआ करते थे , इसलिए उस समय लिखने की, प्रिंटिंग ऐंड द बुक्स सामने रखो और पढ़ो इसकी आवश्यकता ही नहीं हुआ करती थी।
लेकिन ज़माना बदल गया है ,कलियुग आ गया “ कलौ सत्व हरम पुन्साम “ । कलि ने जीवों में जो सात्विकता है ,अच्छाई है , चांगुलपणा ( मराठी मे कहते है) इसको हर लिया है और इसको अल्पायु भी बना दिया है। आयु भी कम और “ मन्दः सुमंद मतयो मंद भाग्या हि उपद्रुतः ” । ऐसे भी लक्षण कहे गए हैं कलियुग के लोगों के, कि वे मंद होंगे, डलहैदेड ,मंद। स्पेशली जब मंदिर की ओर जाना है तब वे और मंद हो जाएंगे। सिनेमा घर की ओर जाना है तो वे दौड़ते हैं १०० किलोमीटर प्रति घंटा से ।
“प्रायेणाल्पायुष: सभ्य कलावस्मिन् युगे जना: ।
मन्दा: सुमन्दमतयो मन्दभाग्या ह्युपद्रुता: ॥” (SB1.1.10)
‘ सुमंद मतयः’ कलियुग में बड़ी आसानी से लोगों को गुमराह किया जा सकता है। इसलिए प्रभुपाद कहा करते थे चीटर्स ऐंड चीटेड । कुछ ठगने वाले बैठे हैं और कुछ ठगाने वाले और जो ठग जाता है वो भी ठग बन जाता है। ‘ मंद भाग्य’ और उनका भाग्य भी मंद है मिसफोर्चुन । ‘अनुपद्रुतः’ आल्वेस् इन ट्रबल । सब समय जीवन में कोई न कोई समस्या बनी रहती है। हाँ या नहीं?
यह तो मुझे नहीं कहना था, वैसे समय भी बहुत कम है।
तो ज्ञान प्राप्ति के लिए भगवान ने यह व्यवस्था की हुई है जिसको हम ग्रंथ कह रहे हैं। साधु, शास्त्र और आचार्य- इनमें साधु और आचार्य शास्त्र को ही समझाते हैं या शास्त्रों की मदद से ही उनको होता है साक्षात्कार या अनुभव करते हैं । फिर अपने अनुभव आचार्य और साधु फिर समझाते हैं । साधु,शास्त्र, आचार्य ये तीनों प्रमाण भी है, अथॉरिटी भी है लेकिन इन तीनो मे भी जो शास्त्र है वो एक है , स्वतः प्रमाण है । शास्त्र का वचन , वेद की वाणी, वेद मैं ऐसा कहा..फिनिश्ड । ऐसे हम लोक तुकामणि…तुकाराम महाराज कहे, तुम अपना मुँह बंद करो । तुकाराम महाराज ने कहा है या वेद ऐसा कहता है, गीता में कृष्ण कहे हैं और शुकदेव गोस्वामी कहे हैं भागवत में। तो साधु ,शास्त्र ,आचार्य ये अथरिटीज है, ये प्रमाण है और इनके माध्यम से सारे संसार को शिक्षित करना है।
राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम् ।
प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम् ॥ 9.2 ॥
जिसको भगवान् गीता मे कहे ‘द किंग ऑफ नॉलेज’, मैं जो कह रहा हूँ अर्जुन तुमको ये नॉलेज कैसा है? ‘राजविद्या राजगुह्यं’ मोस्ट कॉन्फिडेंशियल, अति गोपनीय है , गुह्य है और ये ज्ञान वैसे इंद्रियों के अतीत है ।
“ममैवांशो जीवलोके जीवभूत: सनातन: |
मन:षष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति || गीता 15.7।।”
मन भी है एक इंद्री, छठवीं इंद्री या प्रधान इंद्री तो मन है । तो मन और इंद्रियों के परे है ये ज्ञान की बातें है । अतः
“श्रीकृष्णनामादि न भवेद्ग्रह्यमिन्द्रियै।
सेबोन्मुहे हि जिहबदौ स्वयंमेव स्फुरत्याद:॥” (चै.चरि.17.136)
भगवान् का नाम, रूप, गुण ,लीला ,धाम को प्राप्त नही किया जा सकता इन इंद्रियों द्वारा । कैसी इंद्रियों द्वारा? कलुषित इंद्रियों द्वारा । श्रील प्रभुपाद कहते द बलंट मेरियल सैंसेस। हरि हरि! तो ये सब बातें परोक्ष है, एक होता है प्रत्यक्ष दूसरा होता है परोक्ष जो दिव्य है “ परसतस्मात् तु भाव अन्य व्यक्तो व्यक्ता सनातनः “ । कृष्ण गीता मे कहे “ मैं जहाँ रहता हूँ वो स्थान परोक्ष है , इस व्यक्त और अव्यक्त जगत के परे है मेरा धाम। और फिर मेरा काम भी ,मेरा नाम भी । तो उसको जानने के लिए हमें गीता-भागवत का आश्रय लेना होगा, इनको सुनना होगा । तो इसलिए ये शास्त्र प्रमाण होते है या श्रुति प्रमाण होते हैं । अभी चर्चा हो रही थी कि लोग तों कहते रहते ‘सीइंग इस बिलिविंग’ ऐसा कहते और कुछ हद तक वो सही, ठीक होता भी है। सीइंग इस बिलिविंग. देखने से हम विश्वास कर सकते हैं, दिखा दो । बाप दाखो नइ तो श्राद्ध कर, दिखा दो अगर दिखा सकते हो, तो ही वो व्यक्ति है, अगर दिखा नही सकते हो तो वो है ही नही, तुम ऐसे ही बकवास कर रहे हो । वैसे सही बात तो ये है कि सीइंग इस बिलीविंग ये कुछ हद तक ठीक है ,उसका लिमिट है। लेकिन ऐसे कई स्थान हैं, व्यक्ति हैं ,बातें हैं जो केवल देखने से या आप देख भी नही सकते । सो नॉट सीइंग इज़ बिलीविंग, हियरिंग इज़ बिलीविंग। सुनकर हमें विश्वास करना चाहिए । हमने सुना है तो वो है सत्य है “सर्वमेतम धृतममन्ये यन माम वदति केशव “ । ये अर्जुन का स्टैंड रहा, अर्जुन ने कहा आप जो भी कह रहे हो, दसवें अध्याय में अर्जुन कहे आपने जो भी कहा है वो ‘सत्यं ऋतं मन्ये’ है ।
हमारा या मनुष्यों का स्टैंड भी वैसा ही होना चाहिए जैसा अर्जुन स्वीकार कर रहे थे । भगवान् जो जो कहते है हमें ये कोई अलग से कहने की भी जरूरत है क्या? भगवान् जो भी कहते सत्य कहते, सत्य के अलावा और कुछ नही कहते । हम कहते ‘ गॉड इस ट्रुथ ‘ भगवान् सत्य है सुनने मे आता है, पढ़ने मे आता है तो उनकी कही हुई बातें सत्य होनी ही चाहिए, भगवान् सत्य ही बोलते हैं ।’ सत्यात्मकम’ ऐसे देवता भी कहे भगवान् के सबंध मे, आप सत्य हो, आप जो कहते वो सत्य है। ‘सत्यशयोनि’ सत्य के श्रोत आप हो । नही तो फिर ये तो समस्या है । ये डार्विन बाबा कुछ सौ साल पहले पर उसने ऐसा संसार के लोगों को उल्लू का पट्ठा बना दिया । और उसने कहा कि…बिग बैंग थियोरि भी है , बिग बैंग । सृष्टि कैसे हुई? वो औरों का है डार्विन का नही है । कोई विस्फोट हुआ ‘द बिग एक्सप्लोज़न’ उसी के साथ संसार की सृष्टि हुई । एक्सप्लोज़न से विकास होता है कि विनाश होता है? विनाश होता है, डेवलपमैंट नही होती । क्रियेशन नही होता ,डिसट्रकशन होता है । तो वैसे इसी स्कंध मे मैंने जैसे कहा पूरे खगोल का ज्ञान यहाँ पर भी है, अन्य स्थानों मे भी पुराणों में भी आपको मिलेगा । लेकिन यहाँ शुकदेव गोस्वामी भी संक्षिप्त में पूरे बृह्मांड का एस्ट्रोनॉमी कॉस्मोलॉजी जिसको खगोल कहते है बताएं हैं । ‘ख’ मतलब आकाश, और वो भी गोल है । बृह्मांड कैसे आकार का है ? अंण्डे के आकार का है और ये इसके नाम से भी पता चलता इसका आकार कैसा है ? अंड जैसा,जिसको प्रभुपाद कहते है फुटबॉल या ब्रह्मांड एक तरबूजा जैसा है । और हम कहाँ है? अंदर है , वी आर इंसा इड । TOVP जो प्रभुपाद कहे ऐसा एक मन्दिर हम बनाएंगे जिसमे मुँह तोड़ जवाब दिया जायेगा। साईनटिस्ट की बातों के बारे मे प्रभुपाद बहुत चिढ़ते थे ‘साईनटिस्ट आर रासकल्स, आई विल किक ओंन दैर फैस विथ द बूट ‘।क्युकी सारे संसार को उल्लू के पठ्ठे बनाने वाले ,गुमराह करने वाले वही होगये साधु शास्त्र आचार्य , वही बन गए आइंस्टाइन एंड दैट वन, ये बन गए गुरु, उनकी बात को सुनते हैं लोग । साधु को कौन सुनता है? साधु शास्त्र ऐसे ही भूल जाओ, साईनटिस्ट को सुनते हैं । दे फॉलो ब्लाइंड्ली जो भी साईनटिस्ट कहते है । तो श्रील प्रभुपाद सारे ब्रह्मांड का दर्शन उस TOVP टैंपल् ऑफ़ वैदिक् प्लनेट टोरियम् ,ग्रह नक्षत्र ,चौदह भुवन मे करवाने वाले है । और फिर उसके परे “गोलोक नाम्नी निज धामनि तले च तस्य देवी महेश हरिधाम सुतेषु “ यही है ज्ञान प्राप्त करने की यही विधि है। ये ब्रह्मा कहे ब्रह्म संहिता में “ गोलोक नामनि निज धामनी “ गोलोक नामक धाम में जो निजधाम है कृष्ण का वहाँ कृष्ण रहते है । उसके नीचे है फिर तले पर नीचे है ये ब्रह्मांड, देवीधाम, महेश धाम। शिवजी का धाम आधा ब्रह्मांड मे है आधा वैकुंठ में है । वैकुंठ मे जो पार्ट है वहाँ रहने वाले शिवजी को सदाशिव कहते हैं, वही सदाशिव अद्वैतचार्य के रूप मे भी प्रगट हुए । हरि बोल! ब्रह्मां जी कह रहे हैं तो इनके टीचर कौन? स्वयं भगवान् ने उनका विद्यारंभ संस्कार किया, उसकी पूरी पुरणाहुति भी हुई , पूरा ज्ञान इस ब्रह्मा को दिया, उसका साक्षात्कार हुआ ब्रह्मा जी को। साक्षत्कार जब हुआ तो वे कह रहे थे उन्होंने सारे संसार का दर्शन किया । जैसे अर्जुन ने विश्वरूप देखा या भगवान् ने दिखाया और अर्जुन ने देखा पूरा विश्वरूप लेकिन वो ब्रह्मांड का ही दर्शन दिखा रहे थे ।
ब्रह्माण्ड के अंदर का ही दर्शन अर्जुन कर रहे थे, लेकिन ब्रह्मा को ज़ब विश्व का दर्शन हुआ तो इन ब्रह्माण्डो के, ये क्या चीज़ है ब्रह्माण्डो के ? क्यों कह रहे हो? ये विज्ञान की बात है । हरि हरि! कई सारे ब्रह्मांड है ,अनंत कोटि ब्रह्माण्डनायक कृष्ण कन्हैया लाल की जय ! कैसे हैं भगवान? अनंत कोटी । अनंत कोटि ब्रह्माण्ड मतलब ? कोटी मल्टीप्लाईड बाय अनंत , ऐसा अनंत कोटि , कितने कोटि? उसका कोई अंत ही नही । कोटि की संख्या बडी़,बहुत बड़ी होती है। और फिर अनंत कोटी ब्रह्मांड और फिर नायक, उनके नायक। ये किसको पता है ? तो अगर शास्त्रों से पता, आचार्यो से पता नहीं लगवाएंगे , ज्ञानार्जन नहीं करेंगे तो वॉट इस द वे? और रास्ता क्या है ? प्रत्यक्ष: आप लोग फिर साइंटिस्ट लोग टेलीस्कोप एंड माइक्रोस्कोप लेकर बैठते हैं। मतलब माइक्रोस्कोप से फिर आपकी जो पावर ऑफ विजन है उसको बढ़ाने का , सूक्ष्म को और थोड़ा बड़ा बड़ा बनाके दिखाता है सूक्ष्मदर्शक यन्त्र । और दूरदर्शक है तो दूर कोई वस्तु है, स्थान है , उसका भी दर्शन कराता है । लेकिन आपके टेलिस्कोप एंड सूक्ष्मदर्शक यन्त्र का भी तो लिमिट है । उनको एक ब्रह्माण्ड का पता नहीं चल रहा है। ऐसे कुछ दिन पहले मुझे ऐसे भी देखने को मिले , उन्होंने पूरे ब्रह्मांड में आज तक ब्रह्माण्ड का कितना ज्ञान ,कितना दर्शन , वह टेलिस्कोप की मदद से उन्होने किया है ,ऐसा दिखा रहे थे । लेकिन उसमें तो कुछ , नथिंग मच , कुछ ज़्यादा नहीं था । हरि हरि! साइंटिस्ट को कुछ रेडियो सिग्नल वग़ैरह सुनाई दे रहे है, खगौल से और किसी प्लैनेट से उनको सिग्नल्स आ रहे हैं तो वह सोच रहे है कि शायद जैसे हम खोज रहे औरों को तो और लोग भी हमको खोज रहे हैं , हमको देख रहे है । 36 अलग-अलग अकार्डिंग टू दैम्, उनका वर्जन चेंज होते रहता है, थोड़ा और कुछ पता लगता है ,कुछ थोड़ा और पता लगता है। दैर आर 36 सिविलाइज़ेशं आउट देयर इन द यूनिवर्स ,36 अलग-अलग सभ्यताएं उनका अस्तित्व है ब्रह्माण्ड में , ऐसा कुछ बक रहे थे । ये संसार की जो अथॉरिटी या प्रत्यक्षवादी; प्रत्यक्षवादी ऐसा भी नाम आता है और दूसरे परोक्षवादी । वैष्णव परोक्षवादी होते हैं या धार्मिक लोग जिनका विश्वास शास्त्रों में हैं। साधु शास्त्र आचार्य को प्रमाण के रूप में स्वीकार करने को परोक्षवाद कहते हैं । परोक्ष और दूसरी प्रत्यक्ष, प्रति+अक्ष , आँखों के सामने जो भी है । लेकिन फिर हमारे कृष्णदास कविराज गोस्वामी इत्यादि कहते हैं ‘’ करुणा पाटल’। आपके जो कर्ण आपके जो इन्द्रियां है दे आर इन्परफेक्ट , उसमें त्रुटि है तो जिस साधन से आप ज्ञान प्राप्त करना चाहते हो उसी में डिफेक्ट है, वही मर्यादित है ,उसमें कई सारे अभाव है , तो उसकी मदद से अर्जन किया हुआ ज्ञान भी वैसा इनकम्पलीट , इपरफेक्ट ही होना चाहिए और है भी । “ भ्रम प्रमाद विप्रर्लिपत् करुणा पाटल “ ये चार समस्याएं हैं। वैष्णव के अलावा और जो जन हैं, लोग और अथॉरिटीज हैं जिनको प्रमाण मानते हैं ,उसमें ये चार समस्याएं हैं । वह स्वयं ही भ्रमित है। वो भ्रम में हैं, प्रमाद और वे गलतियाँ करते रहते हैं। जो भ्रमित हैं उनसे कुछ ज्ञान मिलेगा क्या आपको? कोई शराबी है, कोई भ्रम में हैं , उस से पूछो हरिकृष्ण मंदिर का रास्ता ,बता देगा ? स्वयं ही भ्रमित हैं उसका दिमाग़ राउंड मार रहा है। फिर विप्रलिप्सा मतलब ठगाने की वृत्ति । जो बद्धलोग, बध्दजीव , बदध् मनुष्य और उसमें से कुछ अथॉरिटी बन जाते हैं, उन सभी में औरों को ठगाने की प्रवृत्ति पायी जाती है। जो भी कहेंगे वो ठगायेगे आपको बातें कहके और करूणपाटल, उनकी इन्द्रियाँ अपूर्ण है , वो गलतियाँ करते रहते हैं, दे मैक मिस्टेक्स। चार बातें पता चली न? वे भर्म में है एक बात ,गल्ती करते रहते दूसरी बात, ठगाने की वृत्ति है तीसरी बात, इंद्रियां उनकी अपूर्ण है ये चौथी बात। इन चार बातों से वे युक्त हैं तो उनकी कही हुई बात को आप स्वीकार करोगे? कभी नहीं। इसलिए भगवान फिर कहते हैं “ तत्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रष्णेन सेवया उपदेकक्ष्यंती ते ज्ञानम् ज्ञानिनः तत्वदर्शिनः “ ऐसे व्यक्ति के पास जाओ या ब्रह्मा के पास जाओ या ब्रह्मा की परंपरा में आनेवाले वैष्णव-भक्त-आचार्य-गुरु वृन्दों के पास जाओ। सोंदैट इस द राइट्सोर्र्स , वह सही स्त्रोत है ज्ञान प्राप्त करने का । एक तो स्पेस एंड टाइम, इसका ज्ञान नहीं है इस संसार के लोगों को, वैष्णवो के अलावा ।
अन्यों को स्पेस का , स्पेस समझते हो? सारा क्षेत्र , सारा स्थान, सारे लोग, सारा ब्रह्माण्ड और ब्रह्माण्ड के परे जो भगवत धाम है , इसका ज्ञान नहीं है और टाइम का ज्ञान नहीं हैं। यहाँ तो हम लोग महाराज अंग्निध्र् का चरित्र पढ रहे हैं वो क़ब हुए फार…फार…वर्ष पहले । उसको और भी पुराना और प्राचीन बनाना हैं बात को तो फार..फार..फार कहते जाओ । जितने फार अधिक मतलब बहुत बहुत बहुत। और तुम्हारा लॉस एंजिल्स कितना पुराना है ? मैंने जब पूछा था लॉस एंजिलिस के एक व्यक्ति को , वो बोला ‘ आवर लॉस एंजलिस ईज़ी वैरी ओल्ड ‘’ उसको ऐसा खींचके उसको अधिक ओल्ड बनाना चाहता था । तो जब हमने पूछा हाउ ओल्ड इस युअर लॉस एंजलिस? ही सैड ‘ २०० इयर्स ओल्ड’ । तो ऐसे लोग हैं जो 200 वर्षों को बहुत ओल्ड कहते हैं और ऐसे लोग फिर महाभारत को स्वीकार नहीं करते । महाभारत का युद्ध हुआ ही नहीं उस वक़्त मनुष्य तो थे लेकिन वे गुफाओं में रहते थे और एक दूसरे के साथ लड़ाई वग़ैरह करनी है तो पेड़ की कोई शाखा वग़ैरह ले लिया , डंडा ले लिया या पत्थर फेंकते थे। लेकिन आग्नेयास्त्र ,वायुअस्त्र, ये अस्त्र ,फॉरगेट इट , द केव मैन ।जहाँ तक उनकी क्रिस्चैयनिटी की बात है और उनके मनुष्य काफ़ी हैं । सबसे अधिक मनुष्य तो कृष्चियन है इस पृथ्वी पर , दुर्दैव की बात है यह सत्य हैं । सत्य का प्रचार हो रहा था ,सत्य का प्रचार हो रहा था तो सारी पृथ्वी पर एक ही धर्म था और वह सनातन धर्म / भागवत धर्म था, देश भी एक ही था भारतवर्ष। यहाँ हम जो इलावर्त नाम सुने इलावर्तवर्ष भी भारतवर्ष है । राजा भारत या भरत के कारण भारत । तो जब तक ये सत्य का प्रचार होता था तो हम सब एक थे , वन कंट्री , वन वर्ल्ड, इस पृथ्वी पर एक ही देश और एक ही धर्म है । “ सर्वधर्मान् परित्यज्य “ चल रहा था “ मामेकम् शरणम् “ हो रहा था । लेकिन ये कलियुग के प्रारंभ से ये अलग-अलग अर्थारिटीज को लोग स्वीकार करने लगे।
”सर्वधर्मान् परित्यज्य” चल रहा था, “मामेकं शरणम्“ हो रहा था । लेकिन ये कलयुग के प्रारंभ से ये अलग-अलग अथोरिटिज को लोग स्वीकार करने लगे, फिर ये अथोरिटिज़ में ये डिफैक्ट् है, त्रुटियाँ है। इसी के साथ सारे संसार के हो गये टुकड़े, और फिर झगड़े रगड़े भी चल रहे हैं , युक्रेन अगैंस्ट रशियनस। तो ये दो अलग-अलग सौरसेस ऑफ नॉलेज, एक साइंटिस्ट एंड कम्पनी कहो और उनके अलग अलग धर्म भी तथाकथित धर्म भी बने । उनमे एक धर्म ढाई 2,500 वर्ष पुराना और एक 2,000 वर्ष पुराना, एक 1400 वर्ष पुराना लेकिन भागवत धर्म या सनातन धर्म कितना पुराना है? उसका नाम ही है सनातन, और जीव ही अगर सनातन है “ ममेवान्शो जीवलोके “ तो उसका धर्म भी सनातन है । धर्म चैंज होता है क्या? जीव का धर्म ‘नो चैंज’ । और धर्म की परिभाषा के अनुसार धर्म वह चीज़ है जिसमे परिवर्तन नही होता। चीनी कैसी होती है? मीठी होती है । मीठापन ये चीनी का धर्म है । इलेक्ट्रिसिटी को हाथ लगाओगे तो शॉक लगेगा, ये उसका स्वभाव है । ऐसा कभी समय आने वाला है क्या कि बिजली को आराम से पकड़े रहो और नथिंग हप्पेंस, ठंडापन कूल ऐसा कभी अनुभव होगा? वो बिजली हो ही नहीं सकती फिर तो । उसी प्रकार जीव का धर्म शाश्वत है, उसका परिवर्तन संभव ही नहीं और ये धर्मांतर भी संभव नहीं है । ये तो ऐसे ही कुछ आच्छादित किया जाता है, कुछ इम्पोज किया जाता है लिविंग ऐंटिटी या जीवों के ऊपर । लेकिन जीव जो है, आत्मा जो है उसका धर्म तो वही बना रहता है । जो था, है और रहेगा । एक प्रकार की ठगाई है ये, धर्म के क्षेत्र में जितनी ठगाई होती है शायद ही और किसी क्षेत्र मे होती होगी । सबसे अधिक ठगाई तो सो काल्ड रिलीजन के अंदर ही चलती रहती है । ये टाइम का ज्ञान नही है इस संसार के लोगों को इंक्लूडिंग साईनटिस्ट। अब चैतन्य महाप्रभु प्रकट हुए तो तुरंत हम कहते है “ अनार्पित चिरातजरा करुणया अवतीर्ण कलौ “ बहुत समय के उपरांत भगवान् श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु प्रकट हुए है, ‘चिरात’ आफ्टर अ लाँग टाइम, तो लाँग टाइम हम कहते हैं तो उसका उत्तर भी है आफ्टर हाउ मच टाइम? वैसे एक कल्प के बाद, ये कल्प क्या होता है? ब्रह्मा के एक दिन मे एक बार “ कृष्णस्तु भगवान् स्वयं “ स्वयं भगवान् कृष्ण कल्प मे एक बार प्रकट होते है । “ संभवामि युगे युगे “ जब प्रकट होने वाले हैं । वे भगवान् के अवतार है लेकिन अवतारी श्रीकृष्ण स्वयं भगवान् ब्रह्मा के एक दिन में एक बार प्रकट होते हैं और वो 28 वां चतुर्युग होता है । वैवस्वत मनु के कालावधि मे, उस द्वापर युग के बाद जो कलयुग आता है तो श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु “ कलौ प्रथम संध्यायाम” कलयुग की प्रथम संध्या मे महाप्रभु प्रकट होते तो कल्पे-कल्पे ऐसी संकल्पना है, भागवत के द्वितीय स्कंध मे कहा है, भगवद् गीता मे तो कहा ही है “युगे-युगे “ लेकिन ये है “ कल्पे-कल्पे “ एक कल्प मे एक बार, ब्रह्मा के दिन मे एक बार । तो ब्रह्मा के एक दिन मे 14 मनु होते है, और एक एक मनु के काल में 71 या 72 चतुर्युग होते हैं । इसमें कलयुग ही होता है 4,32000 वर्षो का, उसके दुगना द्वापर युग, तिगुना त्रेता युग, चौगुना सतयुग होता है । ग्रैंड टोटल करेंगे तो कैलकुलेटर टूट जायेगा , वो फिट नही होगा । तो ये तो ब्रह्मा के एक दिन की बात चल रही, और ऐसे ही सात दिन होंगे तो ब्रह्मा का एक सप्ताह हुआ, 4 सप्ताह जोड़ने से एक महीना हुआ, 12 महीनों के उपरांत एक वर्ष हुआ, और कितने वर्ष जीते है? 100 वर्ष वे जीते है और कब तक वो जीते रहते है? महाविष्णु के उच्छवास के समय, श्वास-उच्छवास नही, क्युकी श्वास उच्छवास मतलब सांस लेलिया तो श्वास हुआ, सांस छोड़ दिया तो उच्छवास हुआ । इनहैलेशन एक्सहैलेशन। तो महाविष्णु का उच्छवास जब हो रहा है तो ब्रह्मा ने जन्म भी लिया, सौ साल वे जी भी लिए और फिर नही रहे ब्रह्मा । महाविष्णु कितनी बार श्वास लेते हैं? असंख्य सांस लेते ही रहते हैं, मतलब जब तक जीवित है वो श्वास लेते रहते हैं । कब तक जीते रहते है? ही इस आलवेज़ दैर, एवर् एक्साइटिंग । तो ये टाइम के संबंध मे ये ज्ञान है, दिस् इस द फैकट् । क्रिसशियंस भी कहते है लेकिन उनका जो मनुष्य का वर्ज़न है’ एडम एंड ईव’ वो ‘मनु और शतरूपा’ है । तो 10,000 साल पुराना, ये कहना उनके लिए ‘ओ वेरी ओल्ड’, कितने साल? 10,000 साल! इसीलिए श्रील प्रभुपाद कहा करते थे ये कूप मंडुक हैं, मंडुक मतलब मेंढक । कहाँ का मेंढक? कुएँ का मेढक । होउ बिग इस योर ओशियन? मैं जितना बड़ा हूँ, या मेरा कुआँ जितना बड़ा है उसका दुगुना है क्या? नही चौगुना, ऐसा कहते गये तो मेंढक सांस भर रहा था, फिर बर्स्ट हो गया । सो दे कनॉट ईमैंजिन, दिमाग से बुद्धि से जाना नही जा सकता, इसलिए अचिंत्य शब्द का प्रयोग होता है, बुद्धि से नही जान सकते । बस तुमको सुनना है सुनके ही जानो, श्रुति प्रमाण । प्रमाणों मे प्रत्यक्ष, अनुमान और श्रुति प्रमाण । ये तीन मुख्य हैं और भी इसकी लिस्ट को दस तक जीव गोस्वामी पहुँचा दिये हैं, दस अलग-अलग प्रकार के प्रमाण । प्रत्यक्ष को भी प्रमाण कुछ हद तक माना गया है । फिर है अनुमान , दैन मुख्य प्रमाण तो है शास्त्र प्रमाण, श्रुति प्रमाण । जहाँ भी हो बस सुनो ,बैठे रहो , सुनो , पढ़ो फिर कुछ चर्चा करो “
बोध्यन्तः परस्परं ‘ करो समझने के लिए ही या कोई परिप्रश्नेन हो जाए, ‘परिप्रश्नेंन सेवया’ । तो सारे ब्रह्मांड और ब्रह्मांडो का ज्ञान, परमब्रह्म और इसके परे जो गोलोक हैं, वैकुंठ है। जैसे लोग कहते हैं ना हैल एंड हेवन यहीं सारा पृथ्वी पर ही है । अलग से हैल नो नो ..एवरीथिंग इस हीयर । या फिर कुछ लोग हेवन और वैकुंठ का भेद पता नहीं है । उनमें से जो वेस्टर्न रिलिजन या क्रिश्चियन ये सब हेवन हेवन कहते रहते हैं । लेकिन हेवन एंड वैकुंठ इसके बीच का जो भेद है वो लोग नहीं जानते। और फिर वैकुंठ का भी ,वैकुंठ को जानते तो गोलोक का पता नहीं है। कई सारी बातें हैं उनको कुछ भी पता नहीं है या फिर कह ही दिया “ अहम् ब्रह्मास्मि” तो फिर फिनिश्ड, मैं ही हूं ब्रह्म । फिनिश्ड, हो गया । “खलो इदं ब्रह्मा “ अस्तित्व किसका है? ब्रह्म का अस्तित्व है । ‘ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या’ यह मायावादी / अद्वैतवादियों को भी जो वैविध्य है , वैरायटी है उसका ज्ञान नहीं है। साइंटिस्ट को भी नहीं है हो ही नहीं सकता। कुछ प्रत्यक्षवादी है वह तो टेलिस्कोप से सूक्ष्मदर्शी यंत्र से कुछ पता लगवाते हैं , लगवा रहे हैं लेकिन जो मायावादी / अद्वैतवादी / शंकराचार्य के फॉलोअर्स हैं ‘दे हैव नो क्लू’ उनको वैकुंठ का पता नहीं है । अनदर वे वैकुंठ “तुका ज़ातो वैकुंठा, अमि ज़ातो अम्चा गावा “ तो वहां पर आने-जाने का प्रश्न ही नहीं है । ‘ अहं ब्रह्मास्मि’ ना तो हिलना है ना डुलना है, आना हैं ना जाना है जस्ट एक्जिस्ट । “ कैवल्यम नरकायते” ..वैष्णव है कहते हैं यह जो कैवल्य मुक्ति है ,ब्रह्मलीन होना, दिस् इस वर्स्ट दैन बींग इन हैल । ये कोई आनंद है क्या ? आप देख नहीं सकते ,आप बोल नहीं सकते , सुन नहीं सकते, जस्ट भी जस्ट बी।
जैसे कर्मी है इनके भी दो प्रकार हैं : एक प्योर जैसे कर्मी हैं, शुद्ध कर्मी जो भौतिकवादी है, साइंटिस्ट है। दूसरे कर्मी है जो देवताओं की मदद लेते हैं , देवताओं से कुछ फल प्राप्त करते हैं और उसको भोंगते हैं। ‘फ्रूटिव वर्कर’ अपने कार्य का जो फल है उसको स्वयं चखना चाहते हैं। इतने सारे मैटेरियलिस्टिक लोग हैं और फिर ये देवी-देवता के पुजारी है , वे भी कर्मी कहलाते हैं । देवी-देवता के पुजारी जो है “ कांक्षता कर्मणा सिद्धिम् भजन्ते हि देवता “ जैसे कृष्ण कहे गीता में अपने कर्म की कोई सिद्धि या फल चाहते हैं , वे भी कर्मी कहलाते हैं । ट्राई टू अंदर l स्टैंड कर्मी के दो प्रकार है । कुछ कर्मी कर्मी होते हैं , कर्मीदल होता है ना ? एयरपोर्ट में होता है ना कर्मीदल , कर्मचारी कर्मी । लेकिन कुछ स्पिरिटुअलिस्ट भी होते हैं वे भी केर्मी कहलाते हैं । उनकी पहुंच तो स्वर्ग तक होती है ,उसके परे का उनको ज्ञान नहीं है । मायावादी को ज्ञान नहीं है और यह जो मुसलमान है ये पक्के मायावादी है इसलिए भगवान के रूप में विश्वास नहीं करते । आराधना तो भूल ही जाओ इसलिए मूर्तियों को तोड़ते -फोड़ते रहते हैं । अधिकतर बिग पापुलेशन ये मुस्लिम लोगों की भी है और क्रिश्चियन ईसाई लोगों को भी पता नहीं वैकुंठ का पता नहीं है । कुछ तो संकेत है भगवान के रूप का ‘ मैन इस मेड इन द इमेज ऑफ़ गॉड’ ऐसा कहते तो है। भगवान ने मनुष्य को भगवान का अपना जो रूप है इमेज है ऐसा ही मनुष्य को बनाया। मैं मैन इस मेड इन इमेज ऑफ़ गॉड , कुछ संकेत है रूप की ओर ।’ लव दाय लॉर्ड विद आल द हार्ट, विथ आल् द स्ट्रेंथ ‘ बाइबल में कहा तो है । अधिकतर कामी क्रोधी लोभी जो है वह कहां जाते होंगे? “नरकस्य द्वारम “ कृष्ण कहे, फिर कुछ लोग कहां जाते हैं ? स्वर्ग जाते हैं । कुछ लोग कहां जाते हैं ? देवी देवता वाले तो स्वर्ग गए बाकी लोग कहां जाते हैं? ब्रह्म ज्योति में लीन होते हैं । अधिकतर यही चलता है स्वर्गवासी और ब्रह्मलीन। हमारे देश में यही चलता है । किसी की मृत्यु हो गई उसका फोटोफ्रेम बना दो और लिखो । पता नहीं नरकीय हैं कि कहाँ के? पर लिख तो दो स्वर्गीय ..स्वर्गवासी । अगर कोई थोड़े महात्मा वगैरह है तो ब्रह्मलीन । कोई कोई वैकुंठवासी ऐसा लिखता है । कहीं पर थे ट्रैवलिंग पार्टी में हम, तो रहने के लिए स्थान ढूंढ रहे थे । रात भी हो चुकी थी तो हमने गेट पर पढ़ा ‘वैकुंठ द्वार’ अंदर गए वेहीकल के साथ , इट वास अ क्रिमेशन ग्राउंड ।
तो कई सारे शरीर जल रहे थे , जला रहे थे तो हम झट से बाहर आ गए । ऐसे वैकुंठ द्वार तो सोचते होंगे कि यहाँ शरीर त्यागने के बाद वैकुंठ गए होंगे । और जाने हमारे दूसरे प्रेसिडेंट भक्तिवेदांत मैनर के प्रेसिडेंट बता रहे थे अपना अनुभव। क्या लगाते हो जब ट्रैवलिंग करते हो ? जीपीएस । उन्होंने जीपीएस लगाया था और कहीं जा रहे थे किसी का अंतिम संस्कार करने के लिए , तो उनका व्हीकल जब वहां पर पहुंचा तो उन्होंने सुना ‘ योर फाइनल डेस्टिनेशन इस हियर’ । उन्होंने पहली बार सोचा ‘ यस यस दिस इस द फाइनल डेस्टिनेशन’ । तो यह संसार को एक तो स्पेस का ज्ञान नहीं है, स्पेसक्राफ्ट, स्पेस खगोल और टाइम का ज्ञान नहीं है । टाइम फैक्टर कब से है ये संसार? और ये काल का चक्र ,इसी के साथ सभी इतिहास बन रहा है। तो टाइम और स्पेस के संबंध में ये संसार का ज्ञान कम है ऑल्मोस्ट ज़ीरो । जिसको सही-सही ज्ञान , यथावत ज्ञान प्राप्त करना है तो इसका स्रोत तो भागवत है या वेद पुराण है ,महापुराण भागवत है । साधु,शास्त्र, आचार्य ये प्रमाण है। दोबारा इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ़ कृष्ण कॉन्शियसनेस की स्थापना के साथ । और फिर जैसे श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर 100 साल पहले , हम लोग 100 एनिवर्सरी मना रहे । तो भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर कहते हैं “ यू तुम बुद्धिमान लगते हो , पश्चात देश में जाकर भागवत धर्म का प्रचार करो। “ तो 100 साल पहले ये जो आदेश हुआ और प्रभुपाद ने आदेश का पालन करने के लिए तैयारी की । फर्स्ट ऑफ ऑल लाइफटाइम प्रिपरेशन और फिर 1965 में गए और 1966 में इस्कॉन की स्थापना न्यूयॉर्क में की । एंड दैन इसी के साथ एक नया शुभारंभ , इस कलयुग में हुआ । न्यू बिगनिंग , द ब्राइट फ्यूचर , रे आफ् होप । इसी के साथ संसार केलिए एक आशा की किरण जगी । यही है इस्कॉन। गौरांग !!
उसके पीछे उसके केंद्र में तो श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु हैं जिन्होंने फिर भविष्यवाणी भी की “पृथ्वी ते आछे य़त नगर आदि ग्राम सर्वत्र प्रचार हैब मोर नाम” । तो फिर श्रील प्रभुपाद ये हरिकथा, हरिनाम , हरि प्रसाद, हरि के काम , ये डीवोशनल सर्विस, भक्तियोग का प्रचार-प्रसार सारे विश्वभर में स्वयं ही किए और फिर हम सबसे एक्सपैक्ट करते हैं श्रील प्रभुपाद कि उनका प्रारंभ किया हुआ कार्य हम आगे बढ़ाएंगे । उसी के साथ अब कई सारे देशों के लोग, मेरे ख्याल से कुछ हनड्रेड कंट्रीज के लोग , बड़ी संख्या मे लोग वे भी गीता-भागवत का अध्ययन कर रहे हैं । कृष्ण कॉनशियसनेस और फिर जो सत्य है वो भी “ दिव्य ज्ञान हृदय प्रकाशित” उनके हृदय प्रांगण में भी दिव्य ज्ञान प्रकाशित हो रहा है। ऐसी कक्षायें तो चीन में भी होती है , रशिया में भी होती है , अफ्रीका में भी होती है, ऑस्ट्रेलिया सबकॉन्टिनेंट ऐंड कंट्रीज में हो रही है । तो इसी के साथ सत्य का प्रचार सर्वत्र हो रहा है और ग्रंथ वितरण पर भी इसीलिए ज़ोर दिया जाता है ताकि सत्य का प्रचार हो और लोगों को टाइम एंड स्पेस का भी पता चले, और भी कई सारी बातें हैं। कृष्ण का पता हो,खुद का भी हो, परमात्मा का और “माम एकं शरणं व्रज” कृष्ण की शरण में आओ और फिर वैकुंठ जाओ, भगवदधाम लौटो। “ मामेति “ ऐसा कृष्ण कहे तो लोग अमेरिकन, ऑस्ट्रेलियन, कैनेडियन अफ्रीकन होते हुए भी मैं जो यहां बातें कह रहा हूं तो उन भक्तों की और मेरे बातों में कोई अंतर नहीं है। सेम वही सत्य का प्रचार, गीता-भागवत ऐडं नाऔ चैतन्य चरितामृत का भी प्रचार-प्रसार । “संशय आत्मा विनश्य़ति” बिना संशय, नि:संकोच इस ग्रन्थ में कोई शक नहीं है, सब स्वीकार कर रहे हैं। “ श्रद्धावान लभते ज्ञानम “ श्रद्धापूर्वक वे भी इस ज्ञान को स्वीकार कर रहे हैं और वे भी उतने ही महत्त्वपूर्ण जीव है जितने आप हो। ‘ दे आर नो लेस इन एनीवे’ क्योंकि “ ममैवांशो जीव लोके “ जब भगवान ने कहा तो भगवान ने नहीं कहा कि हिंदू जो है वे मेरे अंश है, इंडियस ओनली ओके! केवल भारतीय लोग मेरे अंश हैं और केवल भारतीय और हिंदू लोग ही मेरी शरण में आ जाए “माम एकम शरणं व्रज “ ।
ऐसी बात बिलकुल नही है, ‘ईस्ट एंड वेस्ट’ ये सब हमारा उत्पन्न किया द्वंद है। कई सारे द्वंद है ,रात-दिन है ,सुख-दुख है, काला- गोरा, स्त्री-पुरुष ,ये सब तो “ द्वंदवातितो विमत्सरः “ द्वंदो से अतीत होकर। ये सारी बातें द्वंदो से परे है, ईस्ट और वेस्ट का कोई संबंध नहीं है , हिंदू और मुसलमान का भी कोई संबंध नहीं, हिंदू मुसलमान के परे है। ओके! तो इन बातो को आप स्वीकार करते हो ? हरि बोल ! मंजूर है? तो फिर करो ,” जारे दाखो तारे कहो कृष्ण उपदेश , आमार आज्ञाय गुरु हइय् तार एइ देश “। नागपुर प्रदेश में यहां के हो तो खूब प्रचार-प्रसार करो, आचार भी होना चाहिए, आचार-विचार-प्रचार। नागपुरियंस को भी चाहिए उसमे भी कुछ कर्मी है, कुछ ज्ञानी है, कुछ अद्वेतवादी है ,साई बाबा वाले भी है तो उनको कृष्ण की ओर मोड़ दो , जोड़ दो कृष्ण के साथ । इसीलिए मंदिर भी बनाना है । प्रचार का साधन या मंच कहो मंदिर है। हमारे मंदिर तो विद्यामंदिर होते हैं वहां से किसी विद्या का ज्ञान हो, ऐसी भक्ति का और जोर-जोर से प्रचार होगा। प्रभुपाद कहे “ मैं तो प्रचार कही भी कर सकता हूँ, मैं तो पेड़ के नीचे बैठ के प्रचार कर सकता हूं। लेकिन पेड़ के नीचे कौन आएगा मुझे देखने के लिए, मिलने के लिए?“ ये आर्ग्युमेंट प्रभुपाद की है इसीलिए वी नीड बिग टेम्पल्स। कोई विशाल भव्य दिव्य मंदिर है वस्तु है तो ‘ ओह! टॉक ऑफ द टाउन होता है । ‘ लोग फिर दौड़ पड़ते हैं एंड देन यू कुड प्रीच। वैसे यहां भी आ रहे हैं भक्त , लेकिन छोटा मंदिर है तो फिर छोटी संख्या भी है । मोटा मंदिर होगा तो संख्या भी मोटी होगी । तो नागपुर के साइज का मंदिर 30-40 लाख की जनता है एंड दैन नागपुर का नाम भी है ‘सेकंड कैपिटल ऑफ महाराष्ट्र’ है और ऐसे ऐतिहासिक भूमि है, जीरो माइल भी इंडिया का , इट्स वैरी इम्पोर्टेन्ट सिटी। तो यहां पर कुछ विशेष स्थान होना चाहिए कृष्ण भावना का और इसलिए प्रभुपाद ने इसे सिलेक्ट किया। हरी बोल! ये प्रभुपाद की चॉइस थी ,वे यहां का नक्शा दिखा रहे थे अपने अनुयायियों को, जब प्रभुपाद पहली बार आये विदेश के भक्तों को लेकर । तो इंडिया में नागपुर के ऊपर उंगली रखते हुए ‘यहां पर मंदिर हो’। तो होगा ?आप बनाओगे? गौर प्रेमानंदे ! हरि हरि बोल!
ग्रंथराज श्रीमद भागवतम् की जय!
श्रील प्रभुपाद की जय!