Srimad Bhagavatam 08.03.01
30-04-2017
ISKCON Juhu
श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा तत्पश्चात गजेन्द्र ने अपना मन पूर्ण बुद्धि के साथ अपनी हृदय में स्थित कर लिया और उस मंत्र का जाप आरंभ किया जिसे उसने इन्द्रद्युम्न के रूप में अपने पूर्वजन्म में सीखा था और जो कृष्ण की कृपा से उसे स्मरण था। तात्पर्य: ऐसे स्मरण का वर्णन भगवद्गीता (६.४३/४४) में इस प्रकार हुआ है।
तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम् ।
यतते च ततो भूय: संसिद्धौ कुरुनन्दन ॥ ४३ ॥ (श्रीमद्भगवद गीता ६.४३ )
पूर्वाभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि स: ।
जिज्ञासुरपि योगस्य शब्दब्रह्मातिवर्तते ॥ ४४ ॥ (श्रीमद्भगवद गीता ६.४३ )
इन श्लोकों में यह आश्वस्त किया गया है कि यदि भक्ति में लगा हुआ व्यक्ति नीचे गिर भी जाता है तो वह पतित नहीं होता। अपितु उसे ऐसे पद पर रखा जाता है जिससे वह कालक्रम में भगवान को स्मरण करेगा। जैसा कि बाद में बताया जाएगा । गजेंद्र पहले इन्द्रद्युमन् नामक राजा था ( कहानी शुरू हो गई, लेकिन ज्यादा लंबी नहीं है । कहानी आपको अच्छी लगती है?) किन्तु किन्हीं कारणों से वह अगले जन्म में गजेन्द्र बना । अब गजेंद्र संकट में था और यद्यपि उसका शरीर मनुष्य से भिन्न था ,मतलब कैसा था ? अब भी हाथी का शरीर है, पहले था मनुष्य का शरीर । किन्तु उसे वह स्रोत्र स्मरण था जिसे वह पूर्वजन्म में जपा करता था । हरि बोल! “ यतते च ततो भूय संसिदधो कुरूनन्दन” मनुष्य को सिद्धि प्राप्त करने में सामर्थ होने के लिए कृष्ण उसे फिर से अपना स्मरण कराने का अवसर प्रदान करते हैं। यहाँ यह सिद्ध हो जाता है क्योंकि यद्यपि गजेंद्र संकट में पड़ गया था किन्तु यह उसके लिए अवसर था कि वह अपने पूर्व भक्ति कार्यों को स्मरण करे जिससे वह तुरंत भगवान द्वारा उबारा जा सके।
इससे यह अनिवार्य हो जाता है कि कृष्णभावनामृत के सहारे भक्त किसी मंत्र का जप करने ने अभ्यास करे। सारे मतलब सारे के सारे जो यहाँ उपस्थित हैं वे भी। निश्चय ही मनुष्य को हरे कृष्ण महामन्त्र का जप करना चाहिए क्यों ? क्योंकि यह महामंत्र है और तो मंत्र हैं लेकिन ये महामंत्र है । मनुष्य को चाहिए कि वह “चिंतामणिप्रकर सद्धमसुय” नर्सिंह स्तोत्र ( इतो नृसिंह : परतो नृसिहो यतो यतो यामि ततो नृसिंहः ) के जप का अभ्यास करें। प्रत्येक भक्त को किसी न किसी मंत्र के पूर्णरूपेण जप का अभ्यास करना चाहिए ,जिससे भले ही वह इस जीवन में पूर्ण अध्यात्मिक चेतना न प्राप्त कर सके हरि हरि! किन्तु अगले जीवन में वह पशु होने पर भी कृष्णभावनामृत को न भूल सकेगा । निस्संदेह भक्त को प्रयास करना चाहिए । सुनो अभी क्या कह रहे है प्रभुपाद ? पहला वाक्य सुना था आपको शायद छूट मिल गई । तो पूरा भी नहीं होता इस जन्म में तो कोई दिक्कत नहीं है , अगले जन्म में सही। नरसिंह देव भक्त को प्रयास करना चाहिए कि वह इसी जीवन में कृष्णभावनामृत को पूर्ण कर लें क्योंकि कृष्ण तथा उनके उपदेशों को समझ लेने मात्र से ही मनुष्य के शरीर छोड़ने पर भगवत धाम को वापस जा सकता है।
यदि किसी का पतन भी हो तो भी कृष्णभावनामृत का अभ्यास व्यर्थ नहीं जाता । उदाहरणार्थ अजामिल ने बचपन में अपने पिता के निर्देशन में नारायण का जप का अभ्यास किया था किंतु बाद में अपनी युवावस्था में उसका पतन हो गया। उसी जनम की बात है। वह शराबी ,स्त्री गामी , चोर तथा उचक्का बन गया । यद्यपि उसने अपने पुत्र नारायण को बुलाने के लिए नारायण के नाम का उच्चारण किया था फिर भी पाप कर्मों में लिप्त हो कर भी वह उन्नति कर गया। अतएव हमें किसी भी परिस्थिति मे हरे महाकृष्ण मन्त्र का जप करना नहीं भूलना चाहिए। इससे हमें बड़े से बड़े संकट में सहायता मिलेगी जैसे कि हम गजेंद्र के जीवन में पाते हैं।
बादरायण उवाच “ एवं व्यवसितो बुद्ध्या समाधाय मनो रिद्धि जा जाप परमं जाप्यं प्राप् जन्मन्य शिक्षितम “
कौन कह रहा है ? शुकदेव गोस्वामी ने कहा । बहुत बड़े अथॉरिटी है प्रमाण है शुकदेव गोस्वामी भागवत के मर्मज्ञ है।
श्रील व्यास देव के पुत्र है। श्रील व्यास के शिष्य है । द्वादश भागवतो में से एक भागवत भी है। महा भागवत शुकदेव गोस्वामी उवाच ।
उनकी वाणी में वे जो भी कहते हैं वह सच ही कहते हैं सच के सिवा कुछ नहीं कहते हैं । ऐसी समझ और विश्वास के साथ ही हम उनके वचन का श्रवण करेंगे । और फिर लाभान्वित भी होंगे हम उनके सुने हुए वचनों से। तो वे क्या कह रहे हैं?
यहाँ तो कुछ एक ही श्लोक कहा है कुछ सही शब्द कहे हैं , अनुष्ठुर छंद है। आठ अक्सर और आठ अक्सर कहा यह छंद है, हर पद में चार पद है । कुछ ही अक्षर और कुछ ही शब्द कहे हैं किन्तु इस श्लोक को भी समझ सकते हैं। इसका भावार्थ इसका गूड़ , इसका मर्म जो भागवत धर्म के सिद्धान्तों को समझा रहा है तो बेड़ा पार होगा । जैसे यहाँ किसका बेड़ा पार हो रहा है ? गजेन्द्र का! गजेंद्र मोक्ष नाम का यह प्रसंग ही है । श्रीमद्भागवत के प्रसिद्ध प्रसंगों में से एक प्रसंग ,एक इतिहास गजेंद्र मोक्ष!
यह इस अध्याय में उनकी स्तुति को हम सुनेंगे । आज तो नहीं कल से आप आते रहोगे नित्यम् भागवत् सेवया इस कार्यक्रम के अंतर्गत तो वह स्तुति भी सुनोगे । लेकिन आज जो कह रहे हैं एवं मतलब इस प्रकार ।
हमें श्रवण ध्यानपूर्वक करना चाहिए नींद पूर्वक तो नहीं करना है। निद्रा से युक्त । ध्यानपूर्वक भागवत की कक्षा नहीं सुनना भी एक अपराध हुआ या नहीं ? जैसे ध्यानपूर्वक जवाब नहीं करना भी एक अपराध है उसी प्रकार ध्यानपूर्वक भागवत कक्षा नहीं सुनना भी अपराध है । यह सारे अपराधों का श्रोत भी बन सकता है या होता है । हम इन सभी अपराधों से कैसे मुक्त होंगे अगर श्रीमद्भागवत ही नहीं सुनेंगे।
नष्टप्रायेष्वभद्रेषु नित्यं भागवतसेवया ।
भगवत्युत्तमश्लोके भक्तिर्भवति नैष्ठिकी ॥
जो भी अभद्र है, अमंगल है , तो अपराध के विचार या वासना भी हैं तो नित्यं भागवत सेवा करने से भक्ति भी उत्पन्न होगी । किस में? भगवान मैं । और कैसी भक्ति उत्पन्न हो गयी ? निष्ठावान बनेंगे हम ।जब हम आए थे तब श्रद्धा थी जिसे कोमल श्रद्धा भी कहते हैं उससे काम नहीं बनेगा ।
आयाराम गयाराम चलता रहेगा । केवल कोमल श्रद्धा से काम नहीं बनेगा ।हमें दृढ़ श्रद्धा बनाना होगा , निष्ठावान होना होगा और हम कैसे होंगे निष्ठावान ? जब हम अपराधों से बचेंगे अनर्थ निवृत्ति के उपरांत निष्ठावान का स्तर है । तो उस स्तर को हम कैसे प्राप्त करेंगे ? साधु संघ से, भागवत कक्षा के श्रवण से । भागवत कक्षा के श्रवण से हमें शुकदेव गोस्वामी का संग प्राप्त होता है । आज भागवत की कक्षा के वक्ता कौन हैं ? शुकदेव गोस्वामी ।आज के अधिवक्ता , मूल वक्ता सुखदेव गोस्वामी है । उनके वचनों का श्रवण अवसर प्राप्त है तो शुकदेव गोस्वामी का संग प्राप्त है।
उनके द्वारा कही हुई कथा हम आज श्रवण करेंगे ,ध्यानपूर्वक श्रवण करेंगे ,श्रद्धापूर्वक श्रवण करेंगे तो हमारी भक्ति निष्ठावान होगी ।
हमारी भागवत कक्षा का समय इसी प्रकार कहने में निकलता है। अगर आप सोते नहीं तो यह विषय नहीं निकलता।
तो यहाँ कहा है एवं अर्थात इस प्रकार पहले कहा था किस प्रकार इसलिए अभी कहा गया है इस प्रकार । तो जो नित्य भागवत श्रावण कर चुके हैं उनको पता है कि कल परसों क्या कहा गया है और ये एवं क्या है। यह इस प्रकार किसको कहा है। इससे पहले वाले द्वितीय अध्याय के अंत में गजेन्द्र का यह विचार था कि जो मेरे सगे संबंधी है वह मेरी सहायता करने के लिए आतुर भी होंगे लेकिन वह मेरी सहायता नहीं कर सकते।
गजेंद्र का विचार क्या था? क्या विचार था? “नमामि मे ज्ञातय आतुरम गजह कुतः करिन्याः प्रभवंती मोचितुम् ”
तो उनकी सोच उनका विचार ये था । पूरा श्लोक का उद्धारण वगैरह देके तो नही कह पाएंगे । उन्होंने सोचा कि ये जो मेरे ज्ञातय, मेरे सगे सबंधी है, मेरी सहायता भी करने के लिए शायद आतुर भी होंगे सही ,लेकिन वो मेरी सहायता नही कर सकते । जिस परिस्थिति में मैं फंसा हूँ ये उनके बस का रोग नही है । दिस इस नाट् देयर कप ऑफ टी । ‘कुतः करिन्याः प्रभवंती मोचितुम्’ मुझे मुक्त करने के लिए और बड़े बड़े हाथी, सगे संबंधी मदद नही कर सकते तो ‘करिन्याः’ मेरी जो पत्नियाँ है ,हथिनियाँ हैं, एक नही होगीं अनेक होंगीं इसलिए ‘करिन्याः’ कहा है ,कई सारी हथिनियाँ ,माई वाईव्स । वो भी मेरी मदद नहीं कर सकती । ऐसे विचार कर रहा है और इस निष्कर्ष तक ये गजेंद्र पहुँच चुका है की अब जो विधाता है उस विधाता की शरण मे मैं जाऊंगा । “तं यामि परमं परायणम्” भगवान् की शरण मे जाऊंगा, भगवान् ही मेरी रक्षा कर सकते हैं और कोई मेरी रक्षा नही कर सकता । इस निष्कर्ष तक वो पहुँचा हुआ है और ऐसा निष्कर्ष तक पहुँच कर ‘एवं’ फिर उसने कहा ‘एवं’, फिर आगे की कार्यवाही अब करेगा । “देह अपत्य कलत्रादीशु असत सहिने शस्वश्वपि” शुकदेव गोस्वामी ही (ये तो आठवा स्कंध है) द्वितीय स्कंध मे जैसे ही प्रवचन प्रारंभ किये शुकदेव गोस्वामी “ओम् नमो भगवते वासुदेवाय ” कहा और फिर कुछ ही वचनो के उपरांत उनका वचन था ‘देह’ इस संसार के लोग क्या करते है? उनका इतना सारा विश्वास होता है किसमे?’ देह’ उनके देह और देह के सामर्थय मे, उनके देह ‘अपत्य’ उनके बच्चे इत्यादि, कुत्र पुत्र आदि कलत्रादी , द वाईवस् आदि ऐक्सेट्रा, लॉयर भी आ गया, बैंक बैलेंस भी आ गया, हमारे गार्ड्स भी आ गये बाडी गार्ड्स एंड लाइक दैट दैर इस नो एंड । बद्धजीव किस मे व्यस्त है? आहार ,निद्रा, भय ,मैथुन ये चार जो भौतिक और पशुवत कार्यकलाप् है अनिमालिस्टि टेनडैंनसिस्, ऐसा भी कहा है । उसमे से जो भय है ,टू डीफेण्ड अपनी रक्षा का प्रयास हर व्यक्ति करता है ।
डीफैंस के लिए कई सारी व्यवस्था हैं। ‘ देह अपत्य कलत्रादिशु ‘ ऐक्सैक्ट्रा लाइफ इन्शुरेंस ऐक्सैक्ट्रा, कोई एंड ही नही , डे एंड नाइट , वैसे इस संकट से कैसे बचना? उस संकट से कैसे बचुंगा? इसीलिए फिर धन कमाउंगा और उस शत्रु को तो मैने घायल कर दिया और ये बचे हुए मेरी हिटलिस्ट मे हैं ,इनको भी लिटा दूंगा। ये सारी डिफैंस की योजना जीव बनाते रहता ही है । इसी में व्यस्त रहता है और चार मुख्य कार्यकलापों मे ये डिफैंस , के डिफेंड भय से मुक्ति और कई सारा भय बना ही रहता है इस संसार मे “दुखलायम् अशाश्वतम् “( गीता 8.15) तो है ही । तो रक्षा की योजना बनाते रहता, बनाते रहता, लाइफ आफ्टर लाइफ ,आफ्टर लाइफ लाइफ । ‘लाइफ इस टफ् एंड दैन यू डाय । दैन यू आर बॉर्न अगेंन और दैन लाइफ इस टफ् ‘ मने कई सारे संकट, समस्याएं ,उलझने है तो सुलझने ढूंढता रहता है सोलुशंस हरि हरि! तब ये गजेंद्र मोक्ष का प्रसंग, गजेंद्र का भागवत मे यहाँ उल्लेख इसलिए किया जा रहा है ये हाथी होते हुए भी सही निष्कर्ष तक पहुँच चुका है । इसको यहाँ का ‘एवं ‘ सब विचार किया और निष्कर्ष तक पहुँचा बस भगवान् ही रक्षा कर सकते है ” मामेकम् शरणम् व्रज ” और फिर भगवान् ने क्या कहा? “अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षिशयामी मा शुचः “( गीता 18.66) । डू नॉट फियर ,आई ऐम हियर,ओ डियर कम नीयर और जब भगवान् इस हियर तो वाई फियर? बस केवल भगवान् रक्षा कर सकते है।
“कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण रक्षमाम
कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण पाहिमाम । “
महाप्रभु भी ऐसे ही प्रार्थना करते थे “रक्षा करो, पाहिमाम् रक्षा करो “। “पुनर्अपि जननम् पुनरपी मरणम पुनरपि जननी जठरे शयनम् , एह संसारे खलु दुस्तारे कृपया पाहि पार मुरारे । ” ये शंकराचार्य की रचित प्रार्थना है ।
यह शंकराचार्य की रचित प्रार्थना है जिसमे वे कह रहे है “रक्षा करो, हे! मुरारी रक्षा करो!” किस से रक्षा करो मेरी? “पुनरपि जननं मरणं, जननी जठरे शयनम्”। तो प्रोब्लेम ये है की हमको क्या प्रोब्लेम है यही पता नहीं । ये प्रोब्लेम है । वी डू नॉट नो वांट द प्रोब्लेम्स दैट्स द प्रोब्लेम । तो भगवान् ने तो कहा तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है? समस्या क्या है ? जन्म मृत्यु जरा व्याधि दुःख दोषाणु दर्शनम् , इसके कारण दुःख है। तो रक्षा करो मतलब किस से रक्षा करो? “पुनरपि जननं, मरणं, जननी जठरे शयनम्” इस से रक्षा करो । हेल्प हेल्प हेल्प!! सेव! लेकिन भगवान् ही रक्षा कर सकते है । ऐसा निष्कर्ष ऐसा डिसीज़न इस गजेंद्र ने लिया हुआ है। ही इस अ वाइज़ मैन । वाइज़ एलीफैंट है ।
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते ।
वासुदेव: सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभ: ॥ १९ ॥ (श्रीमद भगवद गीता ७.१९ )
अनुवाद: अनेक जन्मों के अंत में जो ज्ञानवान मेरी शरण आकर ‘सब कुछ वासुदेव ही है’ इस प्रकार मुझको भजता है वह महात्मा अत्यंत दुर्लभ है।
बहुत जन्मो के उपरांत जो ज्ञानवान है,वो ज्ञानवान क्या करता है? ज्ञानवान माम् प्रपद्यते । वह मेरी शरण में आता है। यह हाथी अब क्या बन चुका है ? ज्ञानवान , बुद्धिमान। फिर आगे कहा है कि बुद्धि का और भी उपयोग करेगा। द पावर ऑफ डिस्क्रिमिनेशन । सत् असत् विवेक बुद्धि । बुद्धि का ये फंक्शन है सत् असत्, ये सत् है ये असत् । रियल फाल्स । सत्य है और यह झूठ है। यह शरीर है यह आत्मा है। यह काम बुद्धिमान का है, बुद्धू का नहीं।
इस संसार में जो यह उल्लू के पट्ठे है उनका काम नहीं है। गजेंद्र बुद्धिमान है , बुद्धिमान व्यक्ति है । ज्ञानवृद्ध होता है , ज्ञानवृद्ध गजेंद्र । एक वयोवृद्ध होता है वय मतलब आयु। आप कितने साल के है। यह आयु की दृष्टि से वयोवृद्ध होता है।, लेकिन यह वयोवृद्ध काम की नहीं हो सकती । व्यक्ति को कैसा वृद्ध होना चाहिए ज्ञानवृद्ध, ज्ञान से वृद्ध होना चाहिए। परिपकव , ज्ञान के कारण , ज्ञान अर्जन किया । ब्रह्मचारी का धर्म होता है ज्ञान अर्जन करता है और फिर ज्ञानवृद्ध बनता है। यहाँ गजेंद्र ज्ञानवृद्ध है। सही निष्कर्ष पर पहुँच रहे है नहीं तो क्या होता है विनाश काले विपरीत बुद्धि, इस संसार में सारा उल्टा फूलता चलता है , कहते है सोचो भी नहीं सिर्फ करते रो जीते रहो आपको अच्छा लगता है ना, अच्छा महसूस करते हो। तो क्या करो ? सोचना नहीं सिर्फ करो , इससे बुद्धिहीन , बुद्धू कहते है।
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय ।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥ ४८ ॥ (श्रीमद भगवद गीता २.48)
अनुवाद: हे अर्जुन, सफलता या विफलता के प्रति सभी प्रकार की आसक्ति को त्याग कर समचित्त होकर अपना कर्तव्य निभाओ। ऐसी समता को योग कहा जाता ह।
अर्जुन को भगवान् ने कहा युद्ध करो । कैसे करो दिमाग का उपयोग करो , मेरा स्मरण करते हुए युद्ध करो।
चार प्रकार के लोग भगवान की ओर आते है भगवान् ने कहा। चतुर्विधा भजन्ते माम्। चार प्रकार के लोग मुझे भजते है । जिनको भगवान् ने सुकृति , सज्नन कहा है।
तुकाराम महाराज ने पुनः कहा पुनः पुनः कहे बहुत सुकरंजित जोड़ी , कई सरे सुकृति जब बढ़ जाती है तब फिर व्यक्ति भगवान् विट्ठल , भगवान् रास बिहारी की शरण में पहुँचता है।
युद्ध करो युद्ध करना है लेकिन कैसे करना है सारे दिमाग का उपयोग लगाओ दिमाग का उपयोग करो और मेरा स्मरण करते हुए माम् अनुसमृ युद्ध च भगवान ने कहा तो चार प्रकार के लोग भगवान की तरफ आते है भगवान् ने कहा चतुर्विधा भजन्ते मां चतुर्विधा भजन्ते चार प्रकार के लोग मुझे भजते है जिनको भगवान् ने सुकृतिनः सुकृति सज्जन लोग सुकृतिनः बहुत सुकृञ्ति जोड़ी मनु विट्ठल आवडी तुकामाणे तुका रामा राज महाराज ने पुनः कहा पुनः पुनः कहे बहुत सुकृञ्ति जोड़ी कई सारे सुकृञ्ति अनॉथर सुकृञ्ति ये सुकृञ्ति वो सुकृञ्ति उसकी ग्रैंड टोटल कुछ बढ़ जाती है तो भगवान् की शरण में, विठ्ठल की शरण में राधा रासबिहारी की शरण में व्यक्ति पहुँचता है और राधा रासबिहारी अच्छे लगने लगते है मनु विट्ठल वाड़ी अच्छे लगते है भगवान् तो चार प्रकार के लोग अर्थो अर्थार्थी जिज्ञासु ज्ञानी च भरता अरसाभा तो अर्जुन चार प्रकार के लोग उसमे जो अर्थ है अर्थ उसमे इन डिस्ट्रेस कुछ लोग इन डिस्ट्रेस उनको भगवान् याद आते है दुःख में सुमिरण सब करे सुख में करे न कोई और यदि सुख में सुमिरण करे तो दुःख काहे को होये’तो ये बात तो यहाँ भी लागू हो रही है संकट में जब फसें हैं तो लेकिन भगवान् की ओर मुड़ रहे हैं सुकृतिनां माल्कम भगवान् की ओर भगवान् की शरण में आना दैट इस इम्पोर्टेन्ट ये महत्पूर्ण बात है और गजेंद्र भगवान् की शरण में आ रहे हैं इसका स्वागत है तो उनके जीवन से हम कुछ सीख सकते है वे कैसे भक्त बने हाउ आई कम टू कृष्ण कॉन्ससियसनेस्स इस्कॉन के DEVOTEES इस्कॉन ज्वाइन होने के बाद कई बार कहते है या लिखते है फिर में कैसे कृष्ण भक्त बना? कृष्ण की ओर कैसे मुड़ा? फिर बैक टू गोडहेड में आर्टिकल्स भी मुझे भी कोई प्रातःकाल में आपका आर्टिकल पढ़ा आप कैसे हरे कृष्ण लैंड में थे और फिर आपके भाई कैसे आये फिर पुनः बैक टू होम घर चलिए बुलाने के लिए और बहुत कुछ हुआ लेकिन फिर आप लौट ही गए और उनको अचरज लगा था यहाँ के मंदिर के अध्यक्ष को जब मैं लौट गया गिरिराज दास ब्रह्मचारी अध्यक्ष थे तो कृष्ण भावना को मैने ज्वाइन तो किया था लेकिन कृष्ण भावना को ज्वाइन करना हमारे जो सगे सम्बन्धी साथी गाँव वाले उन्होंने इसको उचित नहीं समझा था इसीलिए वो कह रहे थे मैं जब पुनः गाँव गया मेरे भ्राता श्री ले गए तो गाँव में कमैंट्स चल रही थी ये लड़का कितना अच्छा था पहले बहुत अच्छा था कितना अच्छा था अब पागल हो गया ये हरे कृष्ण वालों ने कुछ ब्रेन वाशिंग किया हम चाहते थे ये आगे इंजीनियर हो, ये हो, वो हो फिर जब इंजीनियर होगा मोटर गाड़ी पर आएगा गाँव लौटेगा फिर पुनः जब मैं गया ८५ में पदयात्रा करते हुए तो बैल गाड़ी चलाते हुए में अपने गांव लौटा तो हरी हरी गौरंगा तो लोग कोई निष्कर्ष पे पहुंचा है तो उसकी पुष्टि नहीं करते है उसका कॉम्पलिमेंट नहीं होता है उसका विरोध होता है इस जगत में ऐसा ही होता है इसलिए कुंती महारानी ने कहा चार कारण बताए चार कारण से व्यक्ति भगवान की शरण में नहीं जाता है जन्म कहते है जन्म माया इस धरा ने कहा जन्म ऐश्वर्या मेरी संपत्ति मैं धनवान हूं धनी हूँ और कितना भी उसको पुप्रिया प्राउड ऑफ़ हिज पैनी कुछ डमरीय भी हो सकती है तो उसी से वो आसक्त रहता है उसी को अपनी सम्पति समझता हो मैं इतना धनवान हूँ जन्म ऐश्वर्या श्रुति और फिर में इतना लिखा पढ़ा हूँ और आमी ME और this that स्ट्रटुक्टुअल इंजीनियर oversees एजुकेशन भी हुआ है फॉरेन return तो इन बातों का गर्व होता है गर्व से कहो हम हिन्दू है तो हमारा जन्म, हमारी सम्पति, हमारी शिक्षा और हमारा सौंदर्य हम इतने सुन्दर हो सकते हैं हम बन्दर ही जैसे हमारी आँखें कैसी मरकट लोचनि सभी को अपने बहुत अच्छे लगते हैं हम और बड़ा रुबाव से तो क्या कीमत है इन बातों की हरी हरी तो ये बातें उस निष्कर्ष तक पहुँचने में बढ़ा बन जाती है जिस निष्कर्ष तक ये पहुंचे है गजेंद्र तो यही तो फिर अनर्थ है ये विचार अनर्थ है मेरा जन्म ऐसा, मेरा ऐश्वर्या ऐसा, मेरा सौंदर्य ऐसा, मेरी शिक्षा इतनी सारी ये बाधायें बनती है इसीलिए बुद्धि चाहिए बुद्धि की आवश्यकता है यू नीड बुद्धि तो बुद्धि से सही निष्कर्ष राइट conclusion हरी हरी
तो भगवान आपको बुद्धि दें ।
मैं जब छोटा था तो मेरी मम्मी,मेरी आई मुझे अपने साथ मंदिर में लेकर जाती थी।और कहती थी हाथ जोड़ो और प्रार्थना करो कि हे भगवान मुझे बुद्धि दो। वे कहती थी कि प्रार्थना करो तो मैं कहता था क्या प्रार्थना करुं ? तो वह कहती थी कि प्रार्थना करो कि बुद्धि दो बुद्धि दो। तो आख़िरकार भगवान ने मुझे बुद्धि दे ही दी।
लेकिन मेरी मम्मी को ऐसी बुद्धि मंज़ूर नहीं थी वे बोलती है कि ऐसी बुद्धि माँगने को थोड़ी न कहा था । डॉक्टर बनो, इंजीनियर बनो ऐसी बुद्धि हो चाँद पर जाओ । तो आप सभी जप करो और बुद्धिमान बनो।
एवं व्यवसितो बुद्ध्या समाधाय मनो हृदि ।
जजाप परमं जाप्यं प्राग्जन्मन्यनुशिक्षितम् ॥ (8.3.1)
अपने बुद्धि का उपयोग किया और मन को वश में किया। इन्द्रियों के ऊपर मन है और मन के ऊपर बुद्धि, बुद्धि के ऊपर आत्मा और आत्मा के ऊपर परमात्मा है। गजेन्द्र ने क्या किया? गजेन्द्र ने अपने मन को वश में किया । किससे? बुद्धि से। और फिर हृदय में जहाँ हम रहते हैं ,आत्मा के रूप में वहाँ जप कर रहा है।
यतो यतो निश्चलति मनश्चञ्चलमस्थिरम् ।
ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत् ॥(6.26)
जहाँ जहाँ मन जाता है वहाँ वहाँ से वापस लेकर आओ और उसे प्रभावित करो परमात्मा में। मन को वशीभूत करो ,मन को नियंत्रण में रखो, मन को आत्मा के प्रभाव में रखो और यह सब करने के लिए बुद्धि का उपयोग करो। बुद्धि और मन को आत्मा के अधीन परमात्मा में करो।
परमात्मा फिर आत्मा फिर बुद्धि फिर मन फिर इंद्रियां यह सब एक रेखा में है ।
यह सब अनुकूल है और फिर मन को स्थिर करो आत्मा की सेवा में । मन को अपना मित्र बना लो । मन या तो मित्र हो सकता है या फिर शत्रु ।
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् ।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः: ॥ (6.5)
मन को अपना मित्र बना लो कुछ मीठी बात करके।
भजहु रे मन श्री-नंद-नंदन
अभय-चरणारविंद रे
तो यहाँ वही बात कही है की हे मन भजो! मन को आदेश दे रहे हैं बुद्धि का उपयोग करके कि हे मन भजो माला जपो हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।
तो यह जप कौन करता है ?आत्मा जप करती है। तो जप करते समय बुद्धि का बहुत उपयोग है। वैसे बुद्धिमान व्यक्ति ही जप कर सकता है। यह संकीर्तन आंदोलन में भाग लेने वाला बुद्धिमान व्यक्ति ही हो सकता है। यह संकीर्तन आंदोलन बुद्धिमान व्यक्तियों के लिए ही है। संकीर्तन आंदोलन के अंतर्गत जप है, वह सभी यज्ञों में श्रेष्ठ जप यज्ञ है। तो यह जप यज्ञ वही करेंगे जो बुद्धिमान है। यह संकीर्तन आंदोलन बुद्धिमान लोगों के लिए है। उसी के अंतर्गत जो जप यज्ञ है ये भी बुद्धिमान लोगों के लिए है और इसके लिए बुद्धि को सतर्क होना पड़ता है। बुद्धि को मन को देखना चाहिए क्योंकि मन का ही उपयोग है जप के समय । जप को मनन भी कहते हैं। जैसे यह हरे कृष्ण मन्त्र को मन्त्र कहते हैं मन को मुक्त करने वाला ।
यह मन बनता है कई सारे विचारों से और वासना से । हमें यह बद्ध मन को मुक्त करना है ।
तो मन जो बद्धमन है या और कई सारी वासनाओ से, विचारों से व्यस्त बद्धमन को मुक्त करना है, तो मुक्ति कैसी होगी? मनन से। जप मतलब मनन, भगवान के नाम का उच्चारण करें और उसका श्रवण करें और ध्यान करें । मन के जो फन्कशन्स हैं: थिंकिंग, फींलिंग और विंलिंग ये सब मन के फन्कशन हैं। तो थिंकिंग, तो जप तो थॉटलेस या माईंडलैस नहीं हो सकता, माईंड हैस टू बिकम वैरी वैरी ऐक्टिव, थिंकिंग थिंकिंग थिंकिंग । लेकिन थिंकिंग अबाउट “ मन्मना भवमदभक्तो ” (गीता 9.34) मेरा स्मरण करो, रिमेम्बर मी, तो जप के समय किसका स्मरण करोगे ? स्मरण करना है कि नहीं ? श्रवणं, कीर्तनं, विष्णु स्मरणं, तो स्मरणं भी तो है मन स्मरण करेगा और विष्णु का स्मरण करना है, तो हम क्या कह रहे हैं? ‘हरे’ हमने कहा, ‘कृष्ण’ हमने कहा , तो ये कृष्ण कहा तो क्या ध्वनि उत्पन्न हो रही है ? हमारे आचार्यगण कहते हैं “स्वमाधुर्येन मम चित्तं आर्कष्य हे कृष्ण“ । हे कृष्ण ‘तव माधूर्येंन ‘ तुम्हारे माधूर्य से ‘ मम चित्तं आकर्षय’ , मेरे चित्त को आकर्षित करो, हे श्री कृष्ण! हमने ‘कृष्ण ‘कहा लेकिन उन कृष्ण ने क्या कहा? कृष्ण क्या ध्वनित कर रहा है ? क्या कह रहा है वो कृष्ण या हम क्या कृष्ण से कह रहे हैं ? हे कृष्ण! सारा महामंत्र मतलब सारे संबोधन हैं सोलह संबोधन हैं सोलह बार, हमको आठ बार ‘राधा’ को संबोधित करते हैं और आठ बार ‘ कृष्ण’ को संबोधित करते हैं, जप करते समय तो आपने कृष्ण तो कहा, ‘ओ कृष्ण ! ‘’ तो कृष्ण कहे ‘यस वॉट? तुम मुझे बुला रहे हो क्या ? वॉट डू यू वॉन्ट? क्या चाहते हो ? ‘ तो जीव या आत्मा जपकर्ता क्या कहेगा ? त्वम माधूर्येंन ममचितम् आकर्षय….हे प्रभु आपके माधुर्य से मेरा चित्त आकृष्ट करो ।
फिर आगे और कृष्ण कृष्ण कहा तो ’यस वॉट डू यू वॉन्ट नाओ? अभी अभी तो तुमने कहा मेरे चित्त को आकर्षित करो, और क्या ? “मम सेवा योग्यं कुरू” मुझे आपके सेवा के योग्य बना दो। कृष्ण कृष्ण हरे हरे ‘अब और क्या चाहते हो ?’ तो हर वक्त वैसे संबोधित कर रहे हैं तो कुछ इन वेन ऐसे ही नहीं पुकारना होता कुछ । भगवान को जो पुकार रहें हैं तो कोई कारण होना चाहिए तो किस कारण से क्या चाहते हो? वॉट डू यू वॉन्ट? क्या कहना चाहते हो?क्या चाहिए तुमको? क्राइंग लाइक अ बेबी प्रभुपाद कहते हैं ‘ क्राइंग लाइक अ बेबी’ चैंटिंग कैसे ? क्राइंग लाइक अ बेबी । जैसे बालक रोता है, तो रोने वाला बालक कुछ चाहता भी है कि नहीं? हां उसकी कुछ विल होती है कि नहीं? उसका सारा मन, उसमे कई सारी इच्छायें है उसको मम्मी चाहिये या खिलौना चाहिये समथिंग ही वान्ट्स सो ही इस क्राइंग या कोइ डर है हैल्प !हैल्प !मम्मी मम्मी पुकार रहा है, रो रहा है तो रक्षा करो ये बच्चे मुझे मार रहे हैं ,कुत्ता मेरे पीछे भाग रहा है समथिंग लाइक दैट । कुछ होता है मन में उद्देश्य या विचार रोते समय, क्राइंग लाइक अ बेबी तो ये चैंटिंग भी जो है
“हरे कृष्ण हरे कृष्ण , कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे ।”
तो जब पुकारा किसने पुकारा? द्रोपदी ने पुकारा तो कुछ विचार थे कि नहीं मन में? हे कृष्ण! हे गोविन्द! कहा जब कुछ विचार थे कि नहीं, हां? यस और नो? और फिर वो विचार और वो पुकार ऐसी थी ऐसी पुकार थी, तुमने पुकारा और फिर भगवान चले आये। तो फिर वो भी आदर्श है, या गजेंद्र की स्तुति, गजेंद्र ने किया हुआ जप, भगवान को पुकारना उसके साथ जो भाव जुड़े हुए हैं, विचार जुड़े हुए हैं, जप के साथ तो थिंकिंग, जब थिंकिंग होता है फिर क्या होता है उसके बाद? फीलिंग – कुछ विचार, भाव उत्पन्न होतें हैं और भावों के उपरांत क्या होता है? विलिंग-कुछ इच्छा जागृत होती है ,इच्छा बनती है। थिंकिंग फीलिंग विलिंग तो मन को इससे , ये सब मन को करना है जप के समय थिंकिंग फीलिंग विलिंग लेकिन सारा कृष्ण या जप के लिये अनुकूल या कृष्णभावना को उदित करने के लिए अनुकूल ,जो थिंकिंग फीलिंग विलिंग है वो हो रहा है कि नहीं ?ठीक हो रहा है कि नहीं ? ये कौन देखेगा? बुद्धया-इंटेलिजेंस । इंटेलिजेंस इस अ ड्राइवर । तो बुद्धि को संचालन करना है ,मन का संचालन । तो इस प्रकार हमारा जो अंतःकरण है शरीर तो है ही मगर जिव्हा भी है, कान है, श्रवण कीर्तन हो रहा है और फिर मन है, बुद्धि है और हमारा अहंकार है, मन बुद्धि अहंकार कहते हैं ना । अंत:करण ये सूक्ष्म शरीर किससे बना है? मन बुद्धि अहंकार। अहंकार का क्या करना है ?
तृणादपि सुनीचेन तरोरपि,सहिष्णुना अमानि न मान देन कीर्तनीय सदा हरि ,
तो पूरी विनम्रता के साथ मतलब अहंकार नहीं रहा, विद्या विनयेन शोभते । विनयी बनके जप कौन कर सकता है? इन सच अ स्टेट ऑफ माइंड। माइंड की स्टेट है इन सच अ स्टेट ऑफ माइंड वन कुड चैंट द होली नेम ऑफ द लोर्ड कॉन्स्टैंटली । वो सच अ स्टेट ऑफ माइंड क्या है? तृणादपि घास के तिनके से भी अधिक नीच मानकर ,मानना पड़ेगा। और मानेंगे मानकर फिर कीर्तनीय सदा हरि होगा, मानेंगे तो कीर्तनीय सदा हरि होगा, अखंड कीर्तन होगा या फिर सही भावों के साथ कीर्तन होगा । तो अहं इसका मन बुद्धी अहंकार तो अहंकार के स्थान पर, झूठे फॉल्स इगो के स्थान पर हमने आत्मा को बैठा लिया तो यहां अहं कौन है? “अहं दासोस्मि “। ए जीव कृष्णदास है, एही विश्वास कर लो तो तोमार दुख नाए। तो अहं तो यस अहम तो ‘ मैं हुं ‘यस अहं लेकिन मैं कौन हूँ? दास: अस्मि, मैं दास हूँ । बॉस्सोस्मी नहीं हूँ । अहं बॉस्सोस्मी मैं बॉस हूं वो विनम्रता नहीं है, वो अहं है रीयल अहंकार हुआ । तो ये तीनो का मन बुद्धि अहंकार को अनुकूल फेवरेबल अलाइनमेन्ट हम कहते हैं जप के समय तो फिर वैसा परफैक्ट जो गजेंद्र का चैंटिंग जपयं परफैक्ट होगा ,तभी तो फिर इन्होंने पुकारा और भगवान चले आये । अनदर इन्सटैंस उनका जप परफैक्ट था इसका सबूत क्या है ? भगवान आये। भगवान ने दर्शन दिया, भगवान ने रक्षा की ।
हरे कृष्ण!