Srimad Bhagavatam 04.25.05
03-06-2023
ISKCON Panihati
ग्रंथराज श्रीमद् भागवतम चतुर्थ स्कंध अध्याय 25 श्लोक 5
राजोवाच:-
“न जानामि महाभाग परं कर्मापविद्धधिः
ब्रूही में विमलं ज्ञानं येन मुच्येय कर्मभिः ।।” ( SB 4.25.05)
अमि किंचित किंचित पढ़ते पारि.. हरि बोल! अमि विधार्थी ।
यदि किछु चूक–भूल हबे तो सुधार कीजिए, आमार पठन मंद मंद हबे,शीघ्र नहीं होगा।
अनुवाद :-
राजा उत्तर दिलेन.. हे महात्मा नारद! आमार बुद्धि सकाम कर्मे आबद्ध रहेछे ,तय अमि जीवनेर चरम लक्ष्य संबंधे अवगत नही। दया करे आपनी आमाके शुद्ध ज्ञान दान करून जार फले अमि सकाम कर्मेर बंधन थेके मुक्त हते पारे। बुझबिन ? सो फार सो गुड( अंग्रेज़ी में कहते हैं) ।
तात्पर्ज़ :-
श्रील नरोत्तम दास ठाकुर गेयेचे “ सत्संग छाडी कैनु असते विलास, ए कारणे लागिलो जेई कर्मबंध फ़ास “ मानुष तक्षण काम कर्मेर बंधने आबध्द थाके, ततक्षण ताके एकेक पर एक शरीर धारण करते बाध्य करते होय। ताके बला होय कर्मबंध फांस। मानुष् पापकर्मे लिप्त हउक अथवा पुण्य कर्मेर लिप्त हउक ताते किछु आसे जाए न। कारण उभय ही जड़देहेर बंधनेर कारण । पुण्यकर्मेर फले केउ धनी परिवारे जन्म गृहन करते पारे एवं सुंदर देहो, उच्च् शिक्षा लाभ करते पारे। किंतु तार अर्थ ऐइ नॉय जे तार फले तार दुखकष्ट चिरतरे निवृत होय, सदा केलिए। पाश्चातेर देश गुलिते संभ्रांत धनी परिवारे जन्म ग्रहण करा अस्वभाविक नॉय एवं उच्च्शिक्षा अत्यंत सुंदर देह लाभ करा हउक् अस्वभाविक नॉय। किंतु तार अर्थ एइ नॉय जे पाश्चचातेर देश गुलिते दुख कष्ट नेइ। वर्तमाने पाश्चात देशे युवक युवती देर यथेष्ट शिक्षा ,सौंदर्य, धन संपदा थाका सत्वेहो एवं यथेष्ट खाबार वेशभूषा, इंद्रियसुख भोगेर प्रचुर सुयोग सुविधा थाका। सत्वेहो तारा अत्यंत दुखी प्रकृत पखे तारा एत दुखी जे तारा हिप्पी हय जाछे एवं प्रकतीर नियमे तादेर एक अत्यंत दुखामोय जीवन ग्रहण करते हछे। तादेर थाक बार कोन जाएगा नेहि।
अन्न वस्त्रेर संस्थान नेहि एवं तारा अत्यंत नोंगरा आवे। घुडे बेडा छे एवं रास्ताय घुमाते बाध्य हते अछे। ता थेके बोझा जे केवल पुण्यकर्म करा फलैइ सुखी हउआजाए ना। एमन नाय जे रूपार् चामच मुखे दिये जन्मा लेहि जन्म मृत्यु जरा व्याधिर दुख थेके मुक्त हाउआ जाय। ता थेके सिद्धांत करा जाय जे केवल पापकर्म अथवा पुण्यकर्म अनुष्ठानेर दारा सुखी हाउआ जाय ना। एइ प्रकार कार्य गुलि केवल जन्म जनमांतरेर बंधनेर कारण होय । नरोत्तम दास ठाकुर ताके बलेछेन् कर्मबंध फ़ांस ।
महाराज प्राचीनबर्हि शत् सेई कथा स्वीकार करें सरल भावे नारद मुनि के जिज्ञासा करे छेन् “ कि भावे ऐइ कर्मबंध फाँस थेके मुक्त हुआ जाए? “ प्रकृत पखे ज्ञानेर येही स्तरके वेदांत सूत्रेर प्रथम श्लोक “ अथातो ब्रह्म जिज्ञासा “ बले वर्णना करा आएछे। प्रकृत पखे केऊ जखान कर्मबंध फांसेर चेष्टायेर हताश हन तखंतीनी जीवनेर प्रकृत उद्देश्य संबंधे अनुसंधान करेन जाके बला होय ब्रह्म जिज्ञासा । जीवनेर चरम लक्षेर विषये जिज्ञासा करार व्यापार वेदे मुंडुक उपनिषद एकादश दुई द्वादश संख्या हुई निर्देश देहुआ ऐेैइछ “ तद् विज्ञानार्थम सगुरुम एवा विगच्छत दिव्यज्ञान हृदयंगम करार उद्धेश्यये सद्गुरुर शरणागत हाउआ अवश्य कर्तव्यं।“ (मुंडाकोपनिषद ११.२.१२)
महाराज प्राचीनबर्हिशत् सर्वश्रेष्ठ गुरु नारद मुनि केये छिलेंन
एवं ताई तिनितार काच्छे तेंइ ज्ञानेर संबंधे प्रश्न करे छिलेंन द्वारा कर्मबंध फाँस तेके मुक्त हऊआ जाय। सेटेइ छे मानव जीवनेर प्रकृत उद्देश्य जीवश्य ब्रह्मजिज्ञासा नार्थो यश्चेह कर्मभिहि (श्रीमद् भागवतम १.२.१०) प्रथम स्कन्धेर द्वितीय अध्याये बला है छे जे मानवजीवने एकमात्र उद्देश्य हचे सतगुरू काछे कर्मबन्ध फांस थेके मुक्त हउअ उपाय सम्बंधे अनुसंधान करा।
राजोवाच:–
न जानामि महाभाग परं कर्मापविद्धधी: ।
ब्रूहि मे विमलं ज्ञानं येन मुच्येय कर्मभि: ॥ ५ ॥
अनुवाद और एक बार सुनो। राजा उत्तर दिलेन “ हे महात्मा नारद ! आमार बुद्धि सकाम कर्में आबद्ध रहे छे ताई आमि जीवानेंर परम लक्ख संबंधे अवगत नहीं, दया करे आपने आमाके शुद्धज्ञान दान करून जार फले आमि सकाम कर्मेर बन्धन थेके मुक्त होते पारी।
कैसा रहा? हरि बोल! किंतु अभी हिंदी में ही बोलेंगे,इफ यू डोंट माइंड और अनुवाद होगा राधापाद प्रभु ,वे मराठी होते हुए भी, मराठी कि हिन्दी भाषी? भोपाल से कि महाराष्ट्र से हो? भूल गए। अभी बंगला उत्तम बंग्लाभाषा बोलते हैं। हमको को भी सीखना चाहिए,इनका आदर्श हमारे समक्ष। हाँ क्या हुआ? अनुवाद नहीं किया। इनसे सीखेंगे हमने कहा, इनका आदर्श हमारे समक्ष। वो दिन कब आएगा? “कबे हबे से दिन आमार “? ताकि हम भी बंग्लाभाषा में आपके साथ वार्तालाप /संवाद करेंगे। वैसे काफ़ी तो वही है बंगाली और हिंदी और मराठी और संस्कृत में कोई ज़्यादा भेद नहीं है, थोड़ा थोड़ा है । बंगाली भाषा में जितना संस्कृत है शायद ही ओर किसी भाषा में इतना संस्कृत का उपयोग या उल्लेख होगा। मधुर सोनार बांगला ,बांगला सोनार बांग्ला है और भाषा भी मधुर भाषा छे। कोई सर्वे हुआ था सारी भाषाओं का ,लैंग्वेज का सर्वे और उन्होंने ये निष्कर्ष डिक्लेयर किया कि संसार की जितनी भी भाषाएँ है उसमें सबसे मधुर भाषा, माधुर्य की दृष्टि से तो बंग्ला नंबर वन। “गौरांगेर माधुर्यलीला जारे कर्णे प्रवेशिला” इसलिए गौरांग महाप्रभु की मधुर मधुर लीला की भी मधुर बंग्ला भाषा में रचना हुई है। श्रीचैतन्य महाप्रभु की भाषा भी बंग्ला भाषा, कृष्ण तो संस्कृत बोलते थे लेकिन जब वे जब बने चैतन्य महाप्रभु तो बंग्ला भाषा में बोलते थे। श्रील प्रभुपाद की जय! श्रील प्रभुपाद की मातृभाषा मदर टंग बंगाली इसीलिए श्रील प्रभुपाद ने “गीतार गान” बंग्ला भाषा में लिखा और इस्कॉन में हम जो अधिकतर गीत गाते हैं– भक्तिविनोद ठाकुर के गीत, नरोत्तमदास ठाकुर के गीत, लोचनदास ठाकुर के गीत सारे बंग्ला भाषा में ही है। वैसे हमारी परंपरा ही बंगाली है, गौडीय वैष्णव तो गौड़ बंगाल के हमारे आचार्य रहे । भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर ऐसी अपेक्षा रखते थे, प्रोत्साहित करते थे कि आपको बंग्ला भाषा सीखनी चाहिए। हमारा अधिकतर वांग्मय भी बांग्ला भाषा में ही हैं , भाष्य भी कई सारे बंग्ला भाषा में है। वैसे गौड़ीय वैष्णव को संस्कृत का और साथ-साथ बंग्ला भाषा का भी अध्ययन करना चाहिए, मैं भी कर रहा हूँ कुछ समय से। हम पढ़ते तो हैं थोड़ा ज्यादा बंगाल में समय बिताऊँगा तो मैं भी बोल सकता हूँ। सुंदर तो नहीं लेकिन कुछ बोल तो सकता हूँ । हरि हरि! भक्तिचारु स्वामी महाराज की जय! उनकी भी मातृभाषा बंगाली है और उन्होंने श्रील प्रभुपाद के सभी ग्रंथों का बंग्ला भाषा में अनुवाद किया और बंग्ला भाषा में ग्रंथ भी लिखा है “पानीहाटेर इति कथा “। इतिहास कहो इति कथा कहो, वो बंग्ला भाषा में लिखे। हरि हरि! यहाँ संवाद हो रहा है नारद मुनि और प्राचीनबर्हिषत , प्राचीनबर्हिषत तो राजा है और नारद मुनि ऋषि है ,या फिर नारद मुनि हैं गुरु और प्राचीनबर्हिषत बने है शिष्य। “तस्माद् गुरु प्रपद्येत “ श्रील प्रभुपाद उसका उद्धरण कर रहे हैं हर मनुष्य को गुरु का स्वीकार करना चाहिए जीवन में, अभी हमारे भक्तिप्रेम स्वामी महाराज को भी इस्कॉन ने गुरु बनाया है। गुरू की पदवी उनको भी प्राप्त है, इसकी भी घोषणा हो चुकी है, रिज़ोल्यूशन पास हो चुका है , मैं केवल उसी का स्मरण दिला रहा हूँ आपको । तो आपका जब कभी मन में भी विचार आता है ,मन बनता है कि गुरु स्वीकार करना है मुझे भी तो याद रखिए, भक्तिप्रेम स्वामी महाराज को याद रखिए। तो गुरू प्राप्त हो गए तो हो गया ,काम बन गया। क्योंकि मनुष्यो से यह भी एक्सपेक्टेशन है अपेक्षित है जिसका उल्लेख भी यहाँ हुआ है “अथातो ब्रह्म जिज्ञासा “ । मनुष्यों को जिज्ञासु होना चाहिए। मतलब जिज्ञासा तो कई प्रकार की होती है वैसे सभी योनियों में जिज्ञासा होती ही है , किन्तु मनुष्य योनि में कौनसी किस प्रकार की जिज्ञासा? ब्रह्म जिज्ञासा।
क्या भाव या क्या बाजार भाव ? भक्तिभाव की बात नहीं कर रहे, बाजार भाव पूछ रहे हैं । मनुष्यों को भक्ति भाव, भक्ति के संबंधित, ब्रह्म, परब्रह्म के संबंधित पूछना चाहिए या “ के आमि ? केने अमाय जारे तापत्रोय” ? ऐसे सनातन गोस्वामी प्रश्न पूछे थे,”कौन हूं मै और मुझे इतना कष्ट क्यों भोगना पड़ रहा है? “ ये सही जिज्ञासा है। या वैसे जब हम ब्रह्म जिज्ञासा करेंगे तब ही हम मनुष्य बन गए, ऐसा सिद्ध होगा। या ब्रह्म के संबंध में कहो या धर्म के संबंध में कहो या धर्म के मर्म के संबंध में कहो,ये जिज्ञासा केवल मनुष्यों के लिए है। तो जिज्ञासा भी सही है और जिनके पास हम पहुँचे हैं वो व्यक्ति भी सही है, ऑथराइज्ड हैं। तो हमे जिज्ञासा किनसे करनी चाहिए ? जो परंपरा में आते हैं।
“एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः ।
स कालेनेह महता योगे नष्टः परन्तप ॥”
(भगवद गीता ४.२)
ऐसा कृष्ण भी कहें, मैं तो ये ज्ञान तुमको दे रहा हूं, हे अर्जुन! पहले भी मैंने ये ज्ञान दिया था।
“इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् ।
विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत् ॥”
(श्रीमद भागवत गीता ४.१)
इत्यादि, इत्यादि। मैंने विवस्वान देवता को दिया, विवस्वान ने मनु को, मनु ने इक्षवाकु को दिया तो एवम, लाइक दिस, इस प्रकार ज्ञान को प्राप्त करना होता है। इसको गुरु lशिष्य परंपरा कहते हैं, एवम परम्परा प्राप्तम कहते हैं। यहां पूछा जा रहा है।
“न जानामि महाभाग परं कर्मापविद्धधी:।
ब्रूहि मे विमलं ज्ञानं येन मुच्येय कर्मभि: ॥”
(श्रीमद भगवतम ४.२५.०५)
मुझे आप विमल, विमल ज्ञान दीजिए। विमल मतलब जिसमे मल नहीं है, मल रहित ज्ञान। “सा विद्या या विमुक्तये” ऐसा भी कहा है। वह ज्ञान या वह विद्या सही विद्या है जिससे व्यक्ति विमुक्तये, हम मुक्त बनेंगे, भक्त बनेंगे तो वही अर्जन की हुई जो बातें है वो विद्या है या वो अमल विद्या है। कर्मभि: को यहां सकाम कर्म कहा है। हमने कितने सारे सकाम कर्म किए हुए हैं, सकाम मतलब काम के साथ। कर्मभि: यहां बहुवचन में कहा है। तो भुक्तिकामी, मुक्तिकामी, सिद्धिकामी ये अलग अलग प्रकार के कर्म हो गए। मतलब ये मिश्र भक्ति, भक्ति का मिश्रण, कर्ममिश्रित भक्ति, ज्ञानमिश्र भक्ति, योगमिश्र भक्ति, तो मिश्रण है इसलिए फिर बंधन भी हैं। ऐसे बंधन से हम मुक्त हो जाए। अलग अलग जो कर्म का, ज्ञान का या योग के जो मिश्रण से हमने जो कर्म किए हैं, मिश्रित कर्म किए हैं, उनसे हम मुक्त होना चाहते हैं। वैसे नारद मुनि तो उत्तर देने वाले हैं। आप सुनते जाइए प्रतिदिन ताकि आपको उत्तर पता चल जायेंगे। किंतु ये भी कहा जा सकता है जिसको मैं.. ये जो “ हरेर नाम हरेर नाम हरेर नामैव केवलम कलौ नास्तैव नास्तैव गतीर अन्यथा” । यहां ये तीन बार कहां है। न अस्ति एव, न अस्ति एव, न अस्ति एव का क्या होता है नास्तैव। तीन बार क्यों कहा है ? गतीर अन्यथा मतलब और गति नहीं है और कोई उपाय नहीं है। नास्तैव, नास्तैव, नास्तैव ये तीन बार कहा। क्यों तीन बार कहा ? मतलब कर्ममिश्र से किया हुआ धार्मिक कृत्य या भक्ति, उससे व्यक्ति मुक्त नहीं होंगे। ज्ञान मिश्र से मुक्ति होनेवाली नहीं है। योगमिश्र भक्ति या विधि विधान से मुक्ति होनेवाली नहीं है। ऐसे समझाया है, यह सब भाष्य है। यह हरेर नामैव केवलम ये जो मंत्र है ये तीन बार क्यों कहा है ?
“ येन मुच्येय कर्मभि:। “( श्रीमद भगवतम ४.२५.०५) हमने साकाम कर्म जो लिए हैं मतलब ज्ञानमिश्र, कर्ममिश्र, योगमिश्र, उससे हम मुक्त कैसे हो सकते हैं ? ऐसा प्रश्न है तो उत्तर में कहा है, नास्तैव, नास्तैव, नास्तैव गतीर अन्यथा। ये कर्ममिश्र, ज्ञानमिश्र, योगमिश्र भक्ति से मुक्त होने वाले नहीं हो तुम। तो कैसे मुक्त होंगे ? मुच्येय, यानी मुच्येय, मुक्त होना चाहते हैं, तो कैसे मुक्त होंगे ? हरेर नामैव, हरेर नामैव, हरेर नामैव केवलम, कलौ नास्तैव, कलियुग में, नास्तैव, नास्तैव, नास्तैव गतीर अन्यथा, तीन बार कहा। हरेर नाम, “हरे” मतलब हरि का। हरेर नाम, हरेर नाम, हरेर नामैव केवलम। केवल और केवल हरि का नाम। तो नारद मुनि जो भी उत्तर देनेवाले हैं आगे के श्लोकों में यहां, लेकिन ये भी एक उत्तर है ही। कैसे मुक्त होंगे ? हरेर नामैव केवलम। यहां तो नारद मुनि गुरु बने हैं या गुरु की पदवी प्राप्त है और उनके शिष्य बनें हैं प्राचीनबर्हिशत । किंतु इस कलियुग के प्रारंभ में नारद मुनि, वे कौन है ब्रह्मा के? ब्रह्मा के पुत्र हैं, ब्रह्मा के शिष्य हैं। नारद मुनि जातें हैं ब्रह्मा के पास और वे स्वयं “अथातो ब्रह्मजिज्ञासा” करते हैं। उन्होंने पूछा की अब कलियुग आ रहा है, आ धमका है। तो इस कलियुग में कौन सी विधि को लोगों को अपना चाहिए ताकि वे मुक्त होंगे, भक्त बनेंगे? कृपया “ब्रूहि, ब्रूहि मे विमलं ज्ञानं,” मुझे वो पवित्र या विमल ज्ञान, हे ब्रह्मा, पिताश्री, गुरु, आचार्यश्री मुझे दीजिए। ऐसे नारद पूछ रहें हैं। तो ब्रह्मा उवाच, यहां राजा उवाच है और वहां ब्रह्मा उवाच – ब्रह्मा कहने लगे “ ॐ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।” ईट साउंड्स लाइक अ ब्रह्मा ? गंभीर और .., तो वैसे ब्रह्मा ये कहने के पहले और भी थोड़ा कुछ कहे थे, “ओ, हरि का नाम, हरि का नाम लेना चाहिए इस युग में लोगों को।” लेकिन नारद मुनि का ये भी कहना था की, “मैं तो परिवराजकाचार्य हूं, मैं तो भ्रमण करता हूं। मेरा भ्रमण तो इंटरप्लेनेटरी, समझते हो ? केवल इंटरकॉन्टिनेंटल ही नहीं, एक खंड से या एक देश से दूसरे देश, एक खंड से दूसरे खंड ही मैं नहीं जाता हूं। मैं तो इंटरप्लेनेटरी, एक प्लेनेट से दूसरे प्लेनेट से तीसरे से चौथे से मैं जाता ही रहता हूं। तो मुझे प्रचार करना है तो प्रचार के पहले क्या करना होगा मुझे ? आचार या विचार करना होगा। सोचके बोलना होगा ना ? सोचके बोलना होगा। “ तो ब्रह्मा जी कहे तो थे हरि का नाम लो, नारायण का नाम लो, सब बता दो।
सोच के बोलना होगा न, सोच के बोलना होगा। तो ब्रह्मा जी कहे तो थे हरि का नाम लो, नारायण का नाम लो ,ऐसा बता दो । यह तो बड़ा जनरल उत्तर हुआ ,आप थोड़ा स्पेसिफिकली कुछ कहिए ना, कौन सा नाम? नाम तो सहस्त्रनाम है, ये नाम है ,कई सारे नाम है,अनंत के अनंत नाम भी है “ अद्वैतम अच्युतम अनादि अनंत, रूपम” नाम ही है, “नामानी रुपाणी” कई सारे हैं , उसमे से कोई निश्चित कहिए “ब्रूही तन्मे निश्चितम “। अर्जुन ने भी कहा था कोई निश्चित बात कहिए ,जिससे मेरा कल्याण हो ,सारे संसार का भी कल्याण हो। कोई निश्चित नाम कहिए, कोई विशेष नाम कहिए, कोई स्पेसिफिक नाम कहिए ऐसा निवेदन करने पर फिर ब्रह्मा उवाच” ओम! हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे”। यहां पर केवल कंठ से ब्रह्मा नहीं बोल रहे थे,कहां से बोल रहे थे? हृदय से बोल रहे थे। क्या हृदय बोल सकता है? कैसे? हृदय में हम रहते हैं, हृदय में आत्मा रहता है, हृदय से बोलना मतलब हृदय में रहने वाला जो आत्मा है वह बोलेगा ,आत्मा की पुकार। तो इसको हृदयंगम करना भी कहते हैं। एक तो कन्ठस्थ करना होता है लेकिन उसको तो तोता भी रटता है और बोलता है। फिर कंठ मुक्त होगा, तुम तो नहीं होगे, तुम मतलब तुम्हारी आत्मा। तुमको आत्मा को मुक्त करना होगा तो आत्मा को पुकारना होगा। तो ब्रह्मा यह मंत्र कहे और फिर आगे यह भी कहे
“इति षोडशकं नाम्नां कलिकल्मष नाशनम्,
नातः परतरोपाय: सर्ववेदेषु दृश्यते”।
तो उन्होंने कहा “इति षोडशकम नामनाम” यह जो नाम कितने नाम है ? 16 नाम है। हरे कृष्ण हरे कृष्ण ये 16 नाम है, 32 अक्षर है । यहां तो कल प्रभुजी बता रहे थे लकी लकी नारायण। यह कैसे नारायण है?लकी। नारायण इस वेरी लकी, उनको लक्ष्मी प्राप्त है इसलिए वो लकी हैं। हरि हरि! फिर से प्रोनाउनसीएशन का सेमिनार शुरू हो जाएगा …हम लोग पूरा प्रयत्न नहीं करते उच्चारण करते समय इसलिए फिर अलग-अलग उच्चारण बन जाते हैं । लक्ष्मी बोलना है तो इसके लिए बहुत प्रयास भी और और सांस भी सही करना होगा..लकी… लक्ष्मी.. तो भाषा तो मधुर है ,किंतु समस्या भी है। ब्रह्माजी कह रहे थे कि ये जो सोलह नाम मैंने कहे “ हरे कृष्ण हरे कृष्ण” कलि के जो कलमष है, जो दोष है “ कलेर दोषे निधे राजन “ वही बात यहां कही जा रही है। वो बात शुकदेव गोस्वामी कहते थे १२ वें स्कंद में
“कलेर दोष निधि राजन अस्ति एको महान गुण:
कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसंग: परम व्रजे”।
वही बात है तो कैसे मुक्त हो सकते हैं? मुच्च्ये:। तो यह कलि का कलमष, कलि के कई सारे दोष है, कलि में कई सारे पाप होते रहते हैं और पाप का फल भी भोगना ही पड़ता है पापी को। तो उपाय क्या है? “हरेर नामेव केवलम “।तो ब्रह्माजी कह ही रहे हैं “इति षोडश नामनम कलि कलमष नाशनम” यह जो हरि नाम हारेर नामएव केवलम ही है, हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन/उच्चारण/जप ही उपाय है । “ कलि कलमष नाशनम न अतः परतर उपाय:” देखिए क्या कहा जा रहा है ?’ न’ मतलब नहीं, ’अतः’ मतलब इससे, ’परतरः’ मतलब बढ़कर ,बेटर ; गुड बेटर बेस्ट। गुड से बैटर बैटर है बैटर से बैटर बेस्ट है। ब्रह्माजी कह रहे हैं कि “न अत:” इस से मतलब हरे कृष्ण महामंत्र से बढ़कर और कोई उपाय नहीं है ।” सर्व वेदेषु दृष्यते” और आप से जो में कह रहा हूं कि दूसरा उपाय नहीं है। मैं कौन हूं आप जानते हो? मैं सारे वेदों को जानता हूं, भलीभांति जानता हूं और मैं ही तो पहला व्यक्ति था जिसको स्वयं भगवान ने “ तेने ब्रह्म हृदाय आदि कवये “ मेरे हृदय प्रांगण मे वेदवाणी की स्थापना किए भगवान। ऐसा मैं ब्रह्मा कह रहा हूं कि दूसरा कोई उपाय वेदों में नहीं दिखता है। तो यहां जो नारद मुनि को प्रश्न पूछा जा रहा है प्राचीनब्रहिशत द्वारा और आगे जो उत्तर देंगे वही सही है ही। लेकिन ये तो स्टैंडर्ड का उत्तर है , रेडीमेड तैयार है । क्या उपाय है? ”हरेर नामेव केवलम , हरेर नामेव ही केवलम” जो रूप गोस्वामी एक आष्टक में भी लिखे हैं “हरेर नामेव ही केवलं”। “ दीनहीन यत छीलो हरीनामे उधारिलो तारे साक्षी जगाई मधाई” तो कोई कहेगा आप हरिनाम का इतना सारा महिमा तो कह रहे हो कि हरिनाम से उद्धार होता है। इसका कोई प्रूफ है ? हां हैं.. जगाई मधाई।वे जितने दीन-हीन पापी-तापी थे और कोई है आप में से ? कोई कह सकता है कि हम उनसे भी बड़े पापी हैं। ऐसे कृष्णदास कविराज गोस्वामी बड़ी विनम्रता के साथ कहते तो है मैं तो अधिक पापी हूं, जगाई मधाई से अधिक पापी हूं। ये उनकी नम्रता का प्रश्न है।इतना पाप किए थे ,इतना पाप किए थे ,कभी पूछो ये पाप किया था ? हां बहुत पहले किया था और उनको कोई पूछे कि ये पाप किया था ? यस ऑफकोर्स और वो वाला? हां उससे भी पहले किया था। तो संसार में जितने पाप है, कोई पाप छोड़ा नहीं था उन्होंने और गौरनिताई ने ऐसा उदाहरण सारे संसार के समक्ष रखा है ये जगाई मधाई का उद्धार। उनसे इतना पाप करवाए, इतना पाप करवाए ,इतना पाप करवाया। जबकि पहले वैसे थे वो जगदानंद और माधवानंद।
उनसे इतना पाप करवाए ,इतना पाप करवाए, इतना पाप करवाया। वैसे थे जगदानंद और माधवानंद , उनके नाम भी तो क्या बढ़िया नाम थे – जगदानंद माधवानंद। लेकिन लोग कहते जगाई-मधाई। उनसे सारे पाप करवाए देखो! देखो! बिफोर एंड आफ्टर जिसको कहते हैं। पहले ऐसे थे देख रहे हो न? दीन-हीन पापी-तापी यह जगाई मधाई अब जस्ट रुके रहिए, होल्ड ऑन फॉर अ मिनट । अब देखोगे क्या होने वाला है? मंत्र फूका या फिर उनसे अपराध भी करवाए। पापी लोग अपराध करते हैं वैष्णव अपराध करते हैं “अमानिना मानदेन” नहीं करते, अपराध ‘पापीयन में नामी’, जैसे सूरदास अपने एक गीत में (सूरदास बहुत बड़े संत वृंदावन के) कहते हैं “मैं पापियन में नामी, पापी लोगों में मेरा नाम है, नंबर वन पापी मतलब नामी ”। तो इनको ऐसा पापीयन में नामी बना दिया, उनसे सारे पाप करवाके क्योंकि हरिनाम की महिमा स्थापित करना चाहते हैं गौरंग और नित्यानंद । “ संकीर्तनेक पितरौ” संकीर्तन आंदोलन की स्थापना करनेवाले ‘फाउंडिंग फादर्स’ ऑफ हरे कृष्ण मूवमेंट के पिताश्री गौरांग-नित्यानंद। संसार के समक्ष एक डेमोंस्ट्रेशन, एक प्रत्यक्ष दिखाना चाहते हैं कि देखो क्या परिणाम होता है हरिनाम लेने से? तो इन पापियों को दे दिया हरिनाम दिया। वे पहले तो तैयार नहीं थे जब नित्यानंद प्रभु और हरिदास ठाकुर उनको प्रचार कर रहे थे । ऐसी प्रचार की टीम थी देखिए कौन कौन प्रचार कर रहे थे ? बलराम और ब्रह्मा। टीम में प्रचार करना चाहिए ऐसा प्रभुपाद निर्देश किया करते थे। ब्रह्मलोक से आए है ब्रह्मा और वृंदावन से आ गए बलराम , तो ब्रह्मा और हरिदास ठाकुर , ब्रह्महरिदास ठाकुर और नित्यान्द प्रभु दोनों प्रचार कर रहे थे, जगाई-मधाई को समझा रहे थे। लेकिन वे समझ नहीं रहे थे । उनने क्या किया? क्या फेंका ? शराब की मटकी फेंकी । तो नित्यानंद प्रभु के भाल पर प्रहार हुआ और खून बह रहा था , माथा फट गया था। और जब चैतन्य महाप्रभु को पता चला इस बात का ,कैसे पता चला? किसी ने फोन किया? एसएमएस मैसेज भेजा ? कैसे पता चलता है ? ये तो बात है यही तो भगवान हैं,भगवान “सर्वज्ञ वेदाहम समितितानी वर्तमानानि च अर्जुना ,भविष्यानि च भूतानि नत्व अंवेदना कष्शिना”। ऐसे कृष्ण कहे हैं हर जीव का भूतकाल(अतीतानि ), वर्तमान काल(भविष्याणी) अहं वेदं – मैं जानता हूं। तो जहां भी वो होते हैं वही से वो जान लेते हैं। जब चैतन्य महाप्रभु को पता चला कि मेरे भक्त के चरणों में कोई अपराध किया है, तो चैतन्य महाप्रभू दौड़ पड़े उस घटनास्थली की ओर , जहां ये घटना-दुर्घटना कहो और हाथ में क्या था? सुदर्शन..ऐसा उन्होंने आवाहन किया। जा रहे थे तो सुदर्शन को बुला लिए , सुदर्शन पहुंचा था उसको लेकर चैतन्य महाप्रभु दौड़ रहे थे वहां जहां जगाई मधाई थे । तो जगाई मधाई सोच रहे हैं । कुछ भूत होते हैं (भूत मतलब मनुष्य होते हैं) जो बातों से नहीं मानते, बात करने से नहीं मानेंगे । उनको क्या चाहिए लात चाहिए । हरिदास ठाकुर और नित्यानंद प्रभु बात तो कुछ सुना रहे थे, वो समझ में नहीं आ रही थी। जब चैतन्य महाप्रभु सुदर्शन चक्र लेकर आ रहे थे, तो ‘दैन दे केम टू द सेनसेज’ । तो उसमें से भी एक पहला सीधे पटरी पर आ गया ,कौन था जगाई था ? जगाई लेकिन दूसरा अभी भी नहीं मान रहा था, फिर दूसरा भी मान गया । उसी के साथ उन्होंने “ अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्ष्यश्यामि मा शुच: , सर्वधर्मां परित्यज्य माम एकम शरणं व्रज” । तो अब सब गौण धर्म-अधर्म को त्यागकर दोनों ने गौरंगा! गौरंगा ! नित्यानंद! इन दोनों की शरण ले ली । और देखिए इसी के साथ उन्होंने “नामाश्रय करि जतन तुमि ता कहा आपन काजे” ये नाम का आश्रय भी लेने वाले हैं, हरे कृष्ण हरे कृष्ण , बोलो बोलो भाई जगाई मधाई बोलो, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। और आज से हम चार नियमों का पालन करेंगे ,नो मोर इंटॉक्सिकेशन, माँस भक्षण नहीं करेंगे, अवैद्य स्त्रीसंग नहीं होगा अब हमसे, अब जुआ नहीं खेलेंगे और जलेर फल भी नहीं खाएंगे हम, तो हो गया उनका दीक्षा हो गया । वी फॉलो फोर रेगुलेटिव प्रिंसिपल्स ओके चैंट हरे कृष्ण मिनिमम 16 राउंडस तो “कृष्णम वंदे जगतगुरूम्” । नित्यानंद प्रभु तो आदिगुरु है ही और फिर देखिए उनका क्या हुआ?कैसा उद्धार हुआ? फिर उन्होंने शायद उनको यह बताया होगा कि आपने जो धनराशि को इकट्ठा किया है , जुटाया है इसका आप कुछ उपयोग करो । तो सभी के कल्याण के लिए उन्होंने घाट बनाया ( चैतन्य महाप्रभु का जो बर्थ प्लेस है वही बगल में, जहाँ गंगा के तट पर वहीं गंगा बहती थी एक समय में, आज भी कुछ अवशेष पाए जाते हैं – जगाई मधाई घाट । वहां जो भी लोग आते थे स्नान के लिए उनका स्वागत करते थे जगाई मधाई, उनको प्रणाम करते , उनके चरणस्पर्श करते ,चरण धोते, उनका मान सन्मान करते, पहले ऐसे करते थे? “हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे” वे जबसे करने लगे हरे कृष्ण हरे कृष्ण तो इससे वे ऐसे बन गए। उनकी सारी लाइफस्टाइल कहो या सारी विचारधारा, या क्रांति, इसी को रेवोल्यूशन इन कॉन्शसनेस प्रभुपाद कहते है, भाव में क्रांति हो गई । जैसे मृगारी द हंटर, मृगारी द शिकारी नाम सुने हो? उनके भी गुरु बन गए नारद मुनि । नारद मुनि के बहुत शिष्य है। वैसे एक दृष्टि से हम लोग भी उन्हीं के शिष्य है, उन्हीं की परंपरा के हैं । तो उन्होंने भी कहा था शिकार करना, पशु की हत्या करना छोड़ दो , हरिनाम करो । तो उन्होंने पूछा ‘फिर पति-पत्नी दोनों की पेट-पूजा कैसी होगी जब हमलोग हरिनाम ही करते रहेंगे ?’ नारद कहे ‘तुम उसकी चिंता मत करो ‘। हरिनाम कर रहे थे तो लोगों ने कहा ‘एक दिन का वो मृगारी देखो ,अभी क्या कर रहा है रात दिन?’हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। कई सारे लोग आते थे उनको देखने के लिए और जो जो देखने-मिलने आते थे कुछ भेट भी लेकर आते थे। “ददाती प्रतिगृहाति गुह्माख्याति पृच्छति……..प्रीति लक्षणं।” इतनी भेंट ,इतनी अन्न-सामग्री आई तो उन्होंने ’ फूड फॉर लाइफ’ शुरू कर दिया ।
“ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमाख्याति पृच्छति।
भुङ्क्ते भोजयते चैव षड्विधं प्रीतिलक्षणम्।।” (भक्ति रसामृत सिंधु)
इतनी भेंट, इतना अन्न सामग्री तो उन्होंने ‘फूड फॉर लाइफ’ शुरू कर दिया। तुम्हारा तो पेट भर ही जाएगा कोई चिंता नहीं तुम कीर्तन करो “योगक्षेमं वहामयं” कृष्ण का प्रॉमिस है, कृष्ण ने गीता में कहा।
“अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते ।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥’ ( गीता 9.22)
और फिर नारद मुनि आए थे उस क्षेत्र में जहां ये मृगारी द हंटर, उनका जपतप जपस्थली थी । तो जा रहे थे गुरु महाराज की ओर, नारद मुनि की ओर , उनको दौड़ के जाना चाहिए था तो 1 मिनट में पहुंचते, लेकिन उन्होंने एक घंटा लगा दिया। ‘ अरे क्या हुआ ? तुम् नीचे झुकते थे , ऐसे तिरछे जा रहे थे ,इधर झांक रहे थे , सीधा क्यों नहीं आए ?’ तो ये ‘मृग का अरि’ कहता है ‘रास्ते में चीटियां थी मैं कैसे आता? तो आता तो मर जाती बहुत सारी चींटियां , उनकी जान बचाने के लिए मै रास्ता साफ कर रहा था, धीरे धीरे आ रहा था ।’ यह बात जब नारद मुनि ने सुनी ‘ शाबाश! वेल्डन! ‘तो देखो मृगारि का कौन बन गया? एक महात्मा । वही वाल्मीकि जो रत्नाकर थे , अपने समय के डाकू नंबर-१, जब उस समय नारद मुनि को देखा था तो उनको लूटने का प्रयास किया। उनके पास क्या था ? एंप्टी पॉकेट। पॉकेट ही नहीं था , ऐसे वस्त्र पहने थे पॉकेट ही नहीं था , एम्टी होने का तो प्रश्न ही नहीं। तो जो भी उनके पास था वो नारद मुनि ने उन्हें दे दिया । क्या था उनके पास ? राम नाम । ‘राम नाम के हीरे मोती बिखराऊ मैं गली गली “ तो हरि नाम ले लो ,मुझे लूटना चाहते हैं तो हरिनाम ले लो । मेरे पास हरिनाम का धन है भाई । तो मरा मरा मरा मरा राम राम राम राम राम । तो ‘मरा मरा’ से शुरुआत हुआ अपराधपूर्ण,फिर धीरे-धीरे नामाभास और फिर शुद्धनाम जप। इतना शुद्धनाम का जप वे करने लगे कि रामलीला का दर्शन उनको होने लगा । रामलीला को देखते-देखते फिर उन्होंने रामायण लिखी । तो नाम नाम-रूप तक पहुंचाता है। नाम से ,रूप से, गुण से, लीला से धाम । ऐसा नाम प्रकट होता है , नामरूप का प्रकाट्य । तो यह सब उपाय है “हरेर नामेव केवलम” । वैसे रामायण में भी कहा गया है “राम नाम राम नाम राम नामैव केवलं, कलौ नास्तेव नास्तेव नास्तेव गतिर् अन्यथा “ रामायण महात्म्या में भी ऐसा मंत्र है ।और फिर जगाई-मधाई की समाधि है कटवा में , काटवा जानते हो? जहां चैतन्य महाप्रभु ने सन्यास दीक्षा ग्रहण की। “ सेई ग्रामे जगाई माधाई समाधि आछे “ हम लोग पदयात्रा में गए थे एक समय ,पदयात्रा कर रहे हम लोग तो आ गए कहां आ गए ? काटवा आ गए । हमने सुना कि जगाई मधाई की यहां समाधि है । यह बहुत समय पहले की बात है तो मैंने कहा क्या जगाई मधाई और उनकी समाधि? ऐसे में सोच रहा था कि कैसे ,जगाई मधाई की थोड़े न समाधि हो सकती हैं? तो सच या झूठ पता लगवाने पदयात्री गए, तो सचमुच वहां जगाई मधाई की समाधि आज भी है । और इतना ही नहीं वहां 500 सालों से अखंड “हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे , हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे “ अखंड कीर्तन हो रहा है ।” दीन हीन यत छिलो हरि नामे उद्दारिलो , तार साक्षी जगाई मधाई” जगाई मधाई की जय! आप सोच रहे थे की जय कहे कि नहीं? गौर निताई की जय ! गौर निताई की कृपा है ,वो कृपा केवल उन्होंने जगाई मधाई पर ही नहीं की, सारे संसार के ऊपर गौरांग नित्यानंद कृपा कर रहे हैं। इस तात्पर्य में मैंने देखा कि विदेश के लोगों भी, उनका क्या हाल हो रहा हैं ? हिप्पी बने हैं। उनके अपने देश की संपत्ति ने उन्हें सुखी नहीं बनाया, अमेरिकंस यूरोपियन को। ये तो जब श्रील प्रभुपाद गए और उन्होंने हरिनाम धन दिया ,वे धनी हो गए, धनाढ्य हो गए । तो हिप्पी थे और हरिनाम ने उनको हैप्पी कर दिया। वैसे जगाई मधाई भी हिप्पीज थे तो उस हैप्पी की यह परंपरा सारे संसार भर में फैल रही है। नाओ दैर आर हिप्पिस् इन जगाई मधाई कहो, अमेरिकन हिप्पिस्, यूरॉपियन हिप्पिस्, ऑस्ट्रेलियन हिप्पिस्, नाओ इंडियन हैप्पिज। इंडिया में भी कई सारा पाप चल रहा है । कल हम लोग ‘दंड महोत्सव’ यहां मना रहे थे , ‘दही चिवड़ा’ का वितरण कर रहे थे । कुछ समय पहले मैं पुणे से बेलगांव जा रहा था, नाम सुने बेलगांव? रास्ते में हमने साइनबोर्ड पढ़ा ,लिखा था मटन महोत्सव । तो यह सब जगाई-मधाई बन रहे हैं, यहां इस देश में भी। वैसे भी इंडिया में बहुत सारे लोग अब नाम से प्रभावित हो रहे हैं इंक्लूडिंग यूथस पर जो हिप्पी बने थे अमेरिका में ,एडिक्शन वहां नशा पान, एलसीडी , नशे की गोली खाया करते थे । तो एडिक्शन से डी-एडिक्शन हो ,लोग छोड़ें नशा इसके लिए अमेरिका की जो सरकार है दे स्पेंडिंग मिलियन आफ डॉलर्स ,लाखों करोड़ रुपए खर्च कर रहे थे ताकि वहां की जनता, एस्पेशली यूथ ,क्या करें ? नशापान ना करें । लेकिन सफल नहीं हो रहे थे परंतु श्रील प्रभुपाद के दिए हुए “हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, राम हरे राम राम राम राम हरे हरे “ यह डी- एडिक्शन अनायास हो रहा था। श्रील प्रभुपाद अभी अभी आए थे, न्यूयॉर्क पहुंचे थे और कुछ लोग अमेरिकन बॉयज एंड गर्ल्स 26 सेकंड एवेन्यू, जो प्रभुपाद का एड्रेस रहा वहां आ रहे थे। कुछ महीनों के उपरांत श्रील प्रभुपाद ने कुछ गंभीर फॉलोअर्स जो बन रहे थे उनको इकट्ठा बुलाया और पूछा, आप में से मेरी कौन-कौन सहायता करना चाहते हो ? मैं एक संगठन की स्थापना करना चाहता हूं। हम सदस्य चाहते हैं लेकिन जो ज्वाइन करना चाहेंगे मुझे , दे हैव टू फॉलो फोर रेगुलेटिव प्रिंसिपल्स, उन्हें चार नियमों का पालन करना होगा । स्वामीजी क्या रूल हैं? कौन से रूल्स है? प्रभुपाद पहली बार वैसे इनफॉर्मल औपचारिक दृष्टी से ये सुना रहे थे चार नियम । तो प्रभुपाद ने कहा “नो इंटॉक्सिकेशन, नो मीट ईटिंग, ना इलिसिट सेक्स, नो गैंबलिंग।” तो आप में से कौन-कौन तैयार हो हाथ
ऊपर कीजिए। नो नो आपको थोड़े ही पूछा जा रहा है । प्रभुपाद पूछ रहे थे न्यूयॉर्क में, ये न्यूयॉर्क नही है यह पानीहाट्टी हैं।
प्रभुपाद पूछ रहे थे न्यूयॉर्क में ,ये न्यूयॉर्क नहीं है ,ये तो पानीहाटी है। वहां जितने भी लड़के-लड़कियाँ थे उन सभी ने हाथ उपर किये, दे वर रेडी “गौर हरि बोल”! तो एक बहुत बड़ी ऐतिहासिक घटना घटी उस दिन उस क्षण ।उसी के साथ मैं कहता हूँ कि इट वास द बिगिनिंग ऑफ द एन्ड ऑफ कलि मतलब कली के अंत की शुरुआत हुई उस दिन और ये एक क्रांति थी, इट वास अ रिवोल्यूशन । श्रील प्रभुपाद की जय! ऐसे थे हमारे संस्थापक आचार्य और ऐसे संस्थापक आचार्य के नाम के सेमिनार भी देते थे भक्तिचारू स्वामी महाराज। श्रील प्रभुपाद की महिमा का व्याख्यान और प्रचार किया भक्तिचारु महाराज ने। श्रील प्रभुपाद के महात्म्य की स्थापना विश्वभर में करनेवाले भक्तिचारू महाराज की जय। “ इस्कॉन संस्थापक आचार्य” के नाम से उनका प्रसिद्ध सेमिनार वे विश्व भर में देते थे। उन्होंने अभयचरण नामक टीवी सीरियल भी बनाया। जो आज भी लोग विश्वभर में कई भाषाओं में देख रहे हैं। मैंने पहले भी कहा है श्रील प्रभुपाद के सारे ग्रंथों का बंगला भाषा में अनुवाद भी किये भक्तिचारू महाराज । कम समय में वे श्रील प्रभुपाद के प्रिय अंतरंग शिष्य बन गए। हम लोग कुछ १९६५ में ज्वाइन किए गए थे, तो कोई ६६ ,७० । मैंने १९७१-७२ में ज्वाइन किया था और भी जॉइन कर रहे थे,लेकिन भक्तिचारू महाराज इस्कॉन को जॉइन किये १९७७ में। वे हमसे पीछे से आए लेकिन आगे बढ़ गए । लव ऐट द फर्स्ट साइट, पहली मुलाकात में प्रेम, पहली बार वे जैसे ही मिले तो वे प्रभुपाद के हो गए। वे प्रभुपादचारु बन गए | प्रभुपाद के मैन बन गए। प्रभुपाद को क्लोस्ली फॉलो करने वाले जो भी फॉलोअर्स हैं उनको प्रभुपादस् मैन कहते हैं ।
प्रभुपाद के सभी अनुयायी कहते थे कि ये प्रभुपाद के व्यक्ति है। ऐसे थे भक्तिचारु महाराज भी हमारे गुरु भ्राता है और बहुत ही घनिष्ठ मित्र भी रहे। निताई गौर प्रेमानंदे, हरि हरि बोल!!
जो प्रिय थे, भक्तिचारु महाराज के प्रिय है आप सब उनके प्रिय शिष्य हो, तो मेरे लिए भी आप सभी प्रिय हो। भक्तिप्रेम स्वामी महाराज से भी हम प्रेम करते हैं, एक विशेष प्रेम करते हैं हम महाराज से। आज दिन भर यहीं रुकूँगा। देखते हैं हमारी सारी ट्रेन वगैरह कैंसिल है।
क्या आप सभी ने सुना है? हम यह बैड न्यूज़ आप सभी से शेयर नहीं करना चाहते हैं परन्तु फिर भी हम कह रहे हैं । बालेश्वर है उड़ीसा में, आप जानते हो? उसके पास एक भीषण रेलवे एक्सीडेंट तीन ट्रेन का हुआ है। २००-२५० लोगों की मृत्यु हुई है और ५०० या १००० लोगों घायल है। तो उस रूट की सारी ट्रेन कैंसिल है, तो हम प्रार्थना करते हैं कि उन सभी जीवों केलिए। बालेश्वर के पास में ही है क्षीरचोर गोपीनाथ। क्षीरचोर गोपीनाथ मन्दिर के पास मे ही ये दुर्घटना घटी । भगवान के चरणों में प्रार्थना है हमारी उन सभी जीव आत्माओं का कल्याण हो , उनकी आत्मा को शांति और सद्गति प्राप्त हो । हो सकता है कि कुछ लोग जगन्नाथ पुरी की ओर भी कल की स्नानयात्रा के लिए जा रहे होंगे, ऐसी संभावना है । तो सभी एक बार हरे कृष्ण महामंत्र का उच्चारण करके प्रार्थना करते हैं।
“ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।”
जय जगन्नाथ बल्देव सुभद्रा की जय !
क्षीरचोर गोपीनाथ की जय!
ग़ौर निताई की जय!