
Srimad Bhagavatam
HADAPSAR 25-31-Day 2
25-12-2022
ISKCON Pune
हरि हरि!
निताई गौर प्रेमानन्दे हरि हरि बोल!
“राधा कृष्ण प्राण मोर युगल किशोर”…..( महाराज जी द्वारा कीर्तन)
स्क्रीन पर यह गीत दिखा दो।
राधा कृष्ण कैसे है ? प्राण मोर। ‘मोर’ मतलब मयूर नहीं। यह बांगला भाषा है, तो अर्थ है कि राधा कृष्ण मेरे प्राण हैं।
युगल मतलब दो हैं- किशोर और किशोरी है।
“ जीवने मरणे गति आर नाही मोर….”
जीवन में या मरण में मेरी गति या मेरा लक्ष्य राधा कृष्ण हों। हमारे आचार्य नरोत्तम दास ठाकुर अपने भाव व्यक्त कर रहे हैं। यह बातें तो बहुत ऊँची हैं, हमारी पहुंच के परे ही हैं। मुक्त अवस्था में हम कह रहे थे कि हम भक्त बनेंगे और भगवद धाम लौटेंगे, भगवान् की लीला में प्रवेश करेंगे,भगवान की भक्ति करेंगे, सेवा करेंगे। कैसी कैसी सेवा में करना चाहूंगा? यह बातें और भावों को नरोत्तम दास ठाकुर इस गीत में व्यक्त कर रहे है।
“कलिंदिर कुले केली-कदमबेर वन” …
यमुना मैया की जय! मै कालिंदी के तट पर पहुंच जाऊंगा।
“रतन-बेदिर उपर बसाबो दुजाना”…
इसको हम गाने वाले है लेकिन अगर थोड़ी समझ के साथ गाएंगे तो ऐसे भाव,ऐसे विचार हम में भी उदित हो सकते हैं। इस आशा से मैं समझा रहा हूँ और थोड़ी देर में हम गाएंगे भी। वहाँ रत्न की बेदी होगी और उस पर विराजमान होंगे दुइ जन। दो व्यक्ति बैठे होंगे और वे कौन होंगे ? राधा कृष्ण…प्राण मोर युगल किशोर।
हम ये कहते हैं, ये ध्यान भी है। हम भी बद्धजीव और पापीजन हैं।। कभी कभी बहुत बार सोचते हुए हम ये कहते होंगे कि फिर मैं ऐसा करूँगा वैसा करूँगा ,ऐसे स्वपन देखते रहते हैं, योजनाएँ बनाते रहते हैं। ये भी योजनाएं ही हैं नरोत्तम दास ठाकुर की और उनकी योजनाएं अगर हमारी योजना,हमारे विचार बन सकती हैं तो जीवन सफल है।
“श्याम गौरी अंगे दिब चन्दनेर गन्ध”…
श्याम और गौरी। आप ध्यानपूर्वक, श्रद्धा पूर्वक, प्रेम पूर्वक बातों को सुनिए और समझिये,ऐसे विचारों की स्थापना कीजिये।
भगवन कहते है भगवत गीता में :
“योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय ।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते” ॥ ४८ ॥ (2.48)
अनुवाद: हे अर्जुन! सफलता या असफलता की सारी आसक्ति त्यागकर, समभाव से अपना कर्तव्य करो। ऐसी समता को योग कहा जाता है। पहले योग में स्थित हो जाओ या समाधिस्थ हो जाओ और फिर कुरु कर्माणि याने कार्य करो तब वह भक्तिमय कार्य होगा। हरि हरि। फिर उस कर्म का फल अच्छा भी हो सकता है,बुरा भी हो सकता है। लेकिन हमको भोगना नहीं पड़ेगा अगर हम योग में स्थित होकर कार्य करेंगे, कर्म करेंगे। ये गीत हमें योगस्तः ध्यानस्थ समाधिस्त: कराने की क्षमता रखता है।
“श्याम गौरी अंगे दिब चन्दनेर गन्ध”…
मैं चन्दन लेपन करूँगा श्याम और गौरी के चरणों पे या सर्वाङ्गो को।
“चामर ढुलाब कबे हेरिब मुखचन्द्र”…
मैं चामर ढुलाऊँगा और देखूंगा ‘ हेरिबो मुखचंद्र’, किनका मुखचंद्र देखूंगा? ‘सुन्दर ते ध्याना’, श्रीकृष्ण का, द्वारकाधीश का। पांडुरंगा! पांडुरंगा! उनके मुखारबिंद का दर्शन करूँगा।
“गाँथिया मालतीर माला दिब दोंहार गले”…
फिर मै पुष्पों का चयन भी करूँगा और सुन्दर माला बनाऊंगा मालती के पुष्पों की या वैजयंती माला भी बना सकता हूँ, कमल के पुष्पों की माला बना सकता हूँ, फिर वो ‘पद्ममाली’ बनेंगे याने कमल के पुष्पों की माला पहने हुए।
“अधरे तुलिया दिब कर्पूर ताम्बूले”…
उनके अधरों पर या मुख में खिलाऊंगा कर्पूर और ताम्बूल, मसाला पान इत्यादि।
“ललिता विशाखा आदि यत सखीवृन्द”…
यह दृश्य वैसे वृन्दावन या कहिये गोलोक वृन्दावन का है। राधा कृष्ण कहाँ निवास करते है? “गोलोक एव निवसत्य अखिलात्म-भूतो” गोलोक में या वृन्दावन में निवास करते हैं राधा कृष्ण। मैं जब सेवा के लिए वह पहुचूंगा तो सर्वप्रथम मुझे क्या करना है? ललिता विशाखा वहाँ होंगी। जो अष्ट सखियाँ हैं उसमें भी प्रधान है यह दो सखियाँ- ललिता और विशाखा।
“ललिता विशाखा आदि यत सखीवृन्द ।
आज्ञाय करिब सेवा चरणारविन्द”…
उनकी आज्ञा से मैं राधाकृष्ण के चरणों की सेवा करूँगा। आप ऐसा कुछ करना चाहते हो? कभी सोचा आपने? कोई हाथ उपर जा रहा है? या मेरा हाथ दिख रहा है आपको? मैं थोड़ी जबरदस्ती करवारा रहा हूँ। हरि हरि! ।
कथा सुनते-सुनते आशा है, प्रार्थना है कि ऐसे विचार के हम भी बन जायेंगे, हमको बनना है। “हमारा जन्मसिद्ध हक़ है” ऐसा कहनेवाले लोकमान्य तिलक थे। देश को स्वतन्त्र करने के लिए इस प्रकार प्रतिज्ञा ले सकते हैं , अपना निश्चय प्रदर्शित कर सकते हैं देश को मुक्त करने के लिए। हरि हरि! देश मुक्त, ये मुक्त वो मुक्त,पर सबसे अधिक तो हमें मुक्त होना है, माया से मुक्त होना है। मुक्त होना अथार्थ किससे मुक्त होना है? हम बद्ध है,बंधन में हैं, किसका बंधन है? गुणमयी माया त्रिगुणमई माया के। ‘मम माया दुरात्यया’ बड़ी जबरदस्त है माया और होगी भी क्यों नहीं? माया किसकी है? भगवान की माया है, तो माया को तो ताकतवर होना ही है। आप देख रहे हो स्क्रीन पे सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण। यह जो गुण है , यह गुण हमको हिलाते, डुलाते, नचाते हैं , रुलाते और हँसाते भी हैं।
श्री कृष्ण भगवत गीता में कहे है :
“मयाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते सचराचरम् |
हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते” || ( गीता 9.10||
अनुवाद: हे कुन्तीपुत्र! यह भौतिक प्रकृति, जो मेरी शक्तियों में से एक है, मेरे निर्देशन में कार्य करती है तथा सभी चर तथा अचर प्राणियों को उत्पन्न करती है। इसके शासन में यह जगत बार-बार उत्पन्न तथा नष्ट होता रहता है।
हम में भी ये निश्चय होना चाहिए कि मुक्त होना ही है मुझे। ऐसा आप कोई संकल्प भी ले लो। हम मुक्त होना ही चाहते है। कौन कौन मुक्त होना चाहते हैं ? आप वैसे यह भी सोचते हो कि जीना यहाँ ,मरना भी यहाँ , और पुणे छोड़के अब जाना कहा? इतना सुन्दर, क्लीन एंड ग्रीन , पुणे छोड़कर अब जाना कहा? यह सब माया है इसलिए ऐसे विचारों से मुक्त होना है। भक्तों की आज्ञा/अनुमति से हमें भक्ति करनी है- आनुगत्य।
“सेवा अधिकार दिए करो निज दासी” हम तुलसी से प्रार्थना करते है, “तुलसी कृष्ण प्रेयसी नमो नमः” , तुलसी महारानी की जय! कैसी है तुलसी महारानी ? तुलसी भगवान को अति प्रिय है। इसीलिए कहते हैं “तुलसी हरगडा”, पंढरीनाथ तो गले में ही तुलसी धारण करते हैं। जो वस्तु प्रिय होती है उसे हम अपने गले से लगाते हैं, उसको गले में धारण करते है। तुलसी भगवान् के चरणों में भी सदैव रहती हैं और तुलसी के बिना तो “भगवान् एक नाही मानी “ । यदि आपने ५६ भोग या ३६ प्रकार के व्यंजन खिलाये हैं लेकिन अगर तुलसी नहीं है तो , भगवान् ग्रहण नहीं करते हैं चाहे ५६ भोग हो या राजभोग या बालभोग हो। तुलसी की आज्ञा से हम भगवान् की भक्ति करते हैं। वृन्दावन में तुलसी महारानी को वृंदादेवी कहते है, ये बहुत बड़ा व्यक्तित्व हैं जैसे कोई कार्यक्रम प्रबंधक या ईवैंट मैनेजर हों । भगवान की जितनी सारी लीलाएं होती हैं उसका संयोजन,आयोजन,व्यवस्था वृन्दादेवी /तुलसी महारानी करती हैं।
“मोर एहि अभिलाष विलास कुञ्ज दिवो वास”, मेरी अभिलाषा है कि विलास कुञ्ज में ( राधाकृष्णा की जहाँ रमन करते हैं या उनकी लीला होती है उसे कुञ्ज कहते है) मुझे भी आप निवास दीजिये।
“ऐई निवेदन कर सखीर अनुगत कर” और ये मेरा निवेदन है तुलसी महारानी से । आप अपने घर में तुलसी रखे हो कि नहीं? गाय वगैरह रखते हो? गाय भी कुछ लोग रखते है। कुत्ते भी रखते हो ? हाँ कुत्ते जरूर रखते हैं। गाय को बाहर रखते हैं और कुत्ते को घर के अंदर। फिर भी तुलसी तो जरूर रखनी चाहिए। घर होना चाहिए मंदिर। अभी जिनके घर हम गए, वह घर क्या मंदिर ही था। केवल दिल एक मंदिर है ही नहीं हमारा घर भी एक मंदिर होना चाहिए जहाँ राधा कृष्ण हों, पंढरीनाथ हों , सीताराम लक्ष्मण हनुमान की जय!
“श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभु दासेर अनुदास ।
सेवा अभिलाष करे नरोत्तमदास “…
हम इस संसार में दास नहीं बनना चाहते, बॉस बनना चाहते है, बौसों का बॉस। दासों का दास नहीं बनना चाहते हैं। हरि हरि! यह जगत कुछ उल्टा-सुल्टा है। सुल्टा है भगवद धाम में और यहाँ है सब उल्टा ।।
“ऊर्ध्वमूलमध:शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् ।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्” ॥ गीता १५.१ ॥
अनुवाद: भगवान ने कहा: ऐसा कहा जाता है कि एक अविनाशी बरगद का पेड़ है जिसकी जड़ें ऊपर की ओर और शाखाएँ नीचे की ओर हैं, जिसके पत्ते वैदिक स्तोत्र हैं। जो इस वृक्ष को जानता है, वह वेदों का ज्ञाता है।
यह संसार आध्यात्मिक जगत , गोलोक धाम की छाया है,प्रतिबिम्ब है और माया भी है यहाँ। बॉस के बॉस बनना चाहते है या भगवद धाम लौटना है? उनकी ही एंट्री होगी जो कैसे होंगे ? ‘दासेर अनुदास’ -जो दासों के दास होंगे।
“सेवा अभिलाष करे नरोत्तमदास”…
राधा कृष्ण प्राण मोर युगल किशोर….
(आप देखते हुए पढ़िए और गाइये)
जीवने मरणे गति आर नाहि मोर…
कलिंदिरा कुले केली-कदमबेर वन…
कालिन्दीर कूले केलि-कदम्बेर वन ।
रतन वेदीर उपर बसाब दुजन ॥2
सभी गाएंगे…गाईए…
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राधाकृष्ण प्राण मोर युगल-किशोर ।
श्याम गौरी अंगे दिब चन्दनेर गन्ध ।
चामर ढुलाब कबे हेरिब मुखचन्द्र ॥3
राधाकृष्ण प्राण मोर युगल-किशोर ।
हरि हरि! जय राधे!
गाँथिया मालतीर माला दिब दोंहार गले ।
अधरे तुलिया दिब कर्पूर ताम्बूले ॥4
राधाकृष्ण प्राण मोर युगल-किशोर ।
ललिता विशाखा आदि यत सखीवृन्द ।
आज्ञाय करिब सेवा चरणारविन्द ॥5
राधाकृष्ण प्राण मोर युगल-किशोर ।
गाइए…
श्रीकृष्णचैतन्य प्रभुर दासेर अनुदास ।
सेवा अभिलाष करे नरोत्तमदास ॥6
राधाकृष्ण प्राण मोर युगल-किशोर ।
राधाकृष्ण…..राधाकृष्ण…
राधाकृष्ण प्राण मोर युगल-किशोर ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
ओम नमो भगवते वासुदेवाय
वासुदेवाय…….वासुदेवाय……वासुदेवाय
ग्रंथराज श्रीमद्भागवत की जय
श्री श्री राधा कुंजबिहारी की जय
श्री श्री ग़ौर निताई की जय
पंचतत्व की जय
इस्कॉन प्रतिष्ठाता आचार्य श्रीला प्रभुपाद की जय
निताई गौर प्रेमानंदे….हरी हरी बोल
तो धन्यवाद! आपके पुनः पधारने के लिए। मैं भी अपनी ओर से आप सबका हार्दिक स्वागत करता हूँ। यह जब मैं कहता हूँ तो वो बात मुझे याद आयी कि ऐसा ही जैसे आज यहाँ आपका स्वागत हो रहा है वैसा ही आपका एक दिन वैकुण्ठ में या वृंदावन में स्वागत हो! कृष्ण आपका स्वागत करेंगे, वे आपको गले लगाएंगे। कृष्ण आप सभी को बहुत प्रेम करते हैं। कृष्ण हम सभी से क्या करते हैं ? प्रेम करते हैं और कृष्ण चाहते हैं कि हम पुनः लौटे उनकें पास । न जाने कबसे भगवान हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं अपने धाम में । आज लौटेगा, आज नहीं तो कल तो ज़रूर लौटना ही है। भगवान को और निराश नहीं करना, आप तैयारी कीजिए । ये भागवत कथा और हरे कृष्ण महोत्सव जो संपन्न हो रहा है यह तैयारी है, हम लोग तैयारी कर रहे हैं। तो जहाँ हमें जाना है, जाउ देवाच्य … कहा? गाँवा। “जाउ देवाच्य गाँवा , जाऊ देवाचिया गावा , देव देईंल विसावा” । ऐसा तुकाराम महाराज कहे कि भगवान यह दुनिया हमें आराम से जीने नहीं देगी, यहाँ आराम नहीं कर सकते, आराम हराम ही है। आराम हम तब तक नहीं करेंगे जब तक हम भगवान को पुनः प्राप्त नहीं करते या भगवान के धाम नहीं लौटते। भक्त कहते हैं, “देव देईंल विसावा” , भगवान देंगे हमें हमारा विश्राम ,स्वागत, आवास और निवास। हम सब मिस कर रहे हैं। तो जहाँ जाना है और जिनसे प्राप्त करना है उनके संबंध मे आज हम और चर्चा करेंगे। भगवान वैसे हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं और जब हम आते नहीं तो स्वयं भगवान ही यहाँ प्रकट हो जाते हैं, “ संभवामि क्या? युगे युगे” । भगवान प्रकट हो जाते हैं,जिसको हम अवतार कहते हैं।अवतार मतलब “अवतरति”, भगवान अवतार लेते हैं मतलब नीचे उतरते हैं, अपने धाम से इस धरातल पर प्रकट होते हैं। अवतार तो हमने कहा और हम अधिकतर अवतार अवतार ही कहते रहते हैं, लेकिन वैसे इन सारे अवतारों के जो स्रोत हैं, उनको अवतारी कहते हैं। आपने कभी सुना है ये शब्द ‘अवतारी’? अवतार तो नाना अवतार हैं किंतु अवतारी एक है ,और वे हैं कृष्ण। कृष्ण कन्हैया लाल की जय!
“एते चांशकला: पुंस: कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्” ।
श्रीमद् भागवत १ स्कन्ध के अध्याय ३ में कई अवतारों का उल्लेख है। २४ होना चाहिए था वैसे लेकिन २२ अवतारों का ही उल्लेख हुआ है। फिर आगे कहा है ‘एते’ मतलब ‘ये सब’, भगवान के अंश या अंशांश हैं या भगवान की कला है, भगवान का विस्तार हैं। “कृष्णस्तु”, संस्कृत में जब ‘तु’ आता है तो मतलब ‘किंतु’,या बट ये सारे तो अवतार हैं, विस्तार हैं कला हैं, अंश हैं, किन्तु कृष्ण तो है स्वयं भगवान, वही हैं अवतारी ।
“रामादिमूर्तिषु कलानियमेन तिष्ठन्
नानावतारमकरोद् भुवनेषु किन्तु।
कृष्णः स्वयं समभवत्परमः पुमान् यो
गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥”( ब्रह्म संहिता 5.39)
यह वचन ब्रह्मा जी का है। ब्रह्मा विष्णु महेश में से जो ब्रह्मा है वे भी अवतार हैं, उनको गुणावतार कहते हैं। वैसे ब्रह्मा केवल गुणावतार या रजोगुण के नियंता ही नहीं हैं, बल्कि साथ ही साथ ब्रह्मा आदिगुरु हैं, आदि आचार्य हैं। सर्वप्रथम धीरे धीरे हम वहाँ भी पहुँच जाएँगे। एक समय ऐसा था कि ब्रह्माण्ड में बस भगवान थे तथा और एक व्यक्ति थे, वे थे ब्रह्मा।
”तेने ब्रह्म हृदाय आदिकवये”, श्रीमद्भागवत १ स्कंध के १ अध्याय के १ श्लोक में यह बात कही है। आदिकवि तो ब्रह्मा ही हैं। उनके हृदय प्रांगण में भगवान् ने ज्ञान को उदित किया, प्रकाशित किया। अतः ब्रह्मा आचार्य भी है। हम लोग जो आपके समक्ष यह उत्सव प्रस्तुत कर रहे हैं हम हरेकृष्ण लोग, हम गौड़ीय वैष्णव ,हम लोग ब्रह्मा की परंपरा में आते हैं, “ ब्रह्म नारद मध्व गौड़ीय संप्रदाय” या परंपरा।
भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद की जय! इस संस्था के संस्थापक आचार्य इस परंपरा में आये थे। हमारे आचार्य ब्रह्मा है। ऐसे चार आचार्य ,चार परम्पराएँ हैं उसमें से एक ब्रह्मा थे। तो वे ब्रह्मा ऐसा कहते हैं। भगवान भी बने उनके गुरु, “कृष्णम् वन्दे जगतगुरुम्” । कृष्ण बन गए गुरु ब्रह्मा के, तो वे विद्वान हैं,सर्वज्ञ हैं, त्रिकालज्ञ हैं और उन्होंने कहा , उनका एक ग्रंथ भी प्रसिद्ध है जिसको “ ब्रह्म संहिता” कहते हैं। महाप्रभु जब दक्षिण भारत की यात्रा कर रहे थे तो आदिकेशव नामक मंदिर जो कन्या कुमारी के पास हैं, उनको यह ब्रह्म संहिता ग्रंथ प्राप्त हुआ था। वे इस ग्रंथ को लेकर जगन्नाथ पुरी पहुँचे, अपने अनुचर परिकरों को दिया यह ग्रंथ और फिर इस्कॉन ने उसको प्रकाशित किया है।
ब्रह्मा जी कहते हैं कि भगवान के,” नाना अवतारम् अकरोद भुवनेषु किंतु” अवतार कई सारे हुए हैं, “ रामादि मुर्तिशु “ राम इत्यादि और कृष्ण स्वयं भगवान् हैं, “ गोविंदम् आदि पुरुषम”, गोविंद आदि पुरुष हैं। कृष्ण में 64 गुण हैं ( वैसे तो असंख्य हैं) जिनका उल्लेख अलग अलग नाम देके किया है भक्ति रसामृत् सिंधु ग्रंथ में रूप गोस्वामी प्रभुपाद किए हैं। हम भगवान् के अंश हैं, कृष्ण ने कहा है “ ममेवांशो जीव लोके जीव भूत: सनातनः”, मतलब संसार में जो जीव हैं वे मेरे अंश हैं। अवतारी कृष्ण के अवतार भी अंश हैं और जीव भी अंश है, किंतु भेद है। हरि हरि! भगवान् के अवतार हैं उनको विभिन्न अंश कहा है और हम लोग भिन्न अंश हैं। भगवान् जब अवतरित होते हैं तो उनका पतन नहीं होता। इसलिए भगवान् के अवतारों को वैसे ‘अच्युत’ कहते हैं, जो कभी पतित नहीं होते। उनका फॉल डाउन नहीं होता। लेकिन हमारा पतन होता है। हम माया के चंगुल में बुरी तरह फंसे हुए हैं। “अचिंत्य भेदा भेद” ऐसा भी सिद्धांत है गौडीया वैष्णवों में। हमारे बलदेव विद्याभूषण आचार्य हुए हैं दो तीन सौ वर्ष पूर्व की बात है। सिद्धांत के अनुसार भगवान् में और हम में भेद है भी और नहीं भी। ये तत्व की बातें हमको सीखनी समझनी चाहिए, “ सिद्धांत बलिया न करह आलस” सिद्धांत की बातें करनी है तो आलस मत करो, तत्व को पुनः पुनः समझाओ। भगवान् को भी तत्व से जानना चाहिए।
कई सारे तत्व हैं जीव तत्व, गुरु तत्व,आदि। ये सब की साइंस है ,समझ है। जीवात्मा में भी
अधिक से अधिक पचास गुण हो सकते हैं। जो भगवान् में हैं उनमें से बहुत कम मात्रा में 50 गुण हैं जीव में। इसमें और अधिक 5 गुण याने 50+5 हमें ब्रह्मा और शिव में भी मिलेंगे। ये सब भक्ति रसामृत् सिंधु में आप पढ़ सकते हो। फिर और पांच गुण मतलब 50+5+5=60 भगवान् के अलग अलग अवतारों में मिलेंगे। किंतु केवल कृष्ण में ही चार गुण और अधिक हैं याने 64, जिनको माधुर्य भी कहा है। कृष्ण का ये वैभव है। वेणु माधुर्य, रूप माधुर्य( कृष्ण से सुंदर कोई नहीं), लीला माधुर्य ( बाल लीला etc) और प्रेम माधुर्य। कृष्ण किससे प्रेम करते हैं?मुझे से भी, आपसे भी,सिर्फ गोपियों नंद बाबा, यशोदा, सुबल इत्यादि मित्रों से ही नहीं)हर जीव से भगवान् को प्रेम है। जब इसका हम अनुभव करेंगे तो संसार का झूठमूठ के मायावी प्रेम की हम फिक्र नहीँ करेंगे। ये आया राम गया राम वाला लव तो लस्ट ही होता है। प्रेम मतलब दिव्य प्रेम, उसकी परछाई है काम। जब कोई कहता है ‘आई लव यू’ का मतलब होता है ‘आई ऐम लस्टी आफ्टर यू, आई वांट टू अंजॉय एंड एक्सप्लॉइट यू’ । लव तो जीवात्मा और भगवान् के मध्य ही हो सकता है या फिर आत्मा और आत्मा के बीच हो सकता है। हम सब आत्मा हैं, भक्त हैं तो भक्तों के बीच प्रेम होता है। ये शाश्वत या गेनूइन भी है। लेकिन हम झूठ मूठ के रिश्ते नातों में फंसे हैं। तो ये चार अधिक गुण केवल कृष्ण में प्राप्त होते हैं। कृष्ण हैं अवतारी और उनके कई प्रकार के अवतार हैं। चैतन्य महाप्रभु जो स्वयं भगवान् हैं वो सनातन गोस्वामी से मिले वराणसी में और दो मास तक उपदेश दिया उनको। कृष्ण तो कुरुक्षेत्र के मैदान में केवल 45 मिनिट तक गीता उपदेश दिये, लेकिन वही कृष्ण जब चैतन्य महाप्रभु बने तो सनातन गोस्वामी को अवतारों के प्रकार समझाते हैं, जैसे मन्वंतर अवतार, युग अवतार, गुणावतार, पुरुष अवतार, शक्त्यावेष अवतार और लीला अवतार।
नाना अवतार मतलब नाना-नानी नहीं,नाना अवतार या नानी अवतार नहीं। नाना मतलब अनेक अवतार। ऐसे असंख्य अवतार हैं जैसे राम लीला अवतार हैं , कृष्ण अवतारी हैं पर लीला अवतार भी कहे जा सकते हैं। नरसिंह, बुद्ध, आदि।
बुद्ध का जब मैंने नाम लिया तो “ कला नियमेन तिष्ठन” ब्रह्मा कहे । भगवान के अवतार का शेड्यूल ,टाइम टेबल होता है। पहले ये अवतार होंगे, फिर नेक्स्ट ये होंगे। कब किस युग में वे प्रकट होंगे, कैसे दिखेंगे, कैसी लीला खेलेंगे? ये सब कुछ ज्ञात है। फॉर एक्सम्पाल् शुकदेव गोस्वामी कथा कितने वर्ष पूर्व कहे? ५००० साल पहले। तो उस समय उन्होंने बुद्ध का उल्लेख किया, बुद्धदेव का वर्णन किया इसी श्रीमद्भागवत में। उल्लेख होने के बाद, कथा सुनाने के बाद, ढाई हज़ार वर्ष बीत चुके तब बुद्ध प्रकट हुए । अबसे ढाई हज़ार वर्ष पूर्व शुकदेव गोस्वामी के कथा कहने के उपरांत बुद्ध अवतार हुए । शुकदेव गोस्वामी आल्सो नोज़ या शास्त्रों मैं यह सब वर्णन है। कोई उटपटांग व्यक्ति कहे,” आई एम गॉड” तो क्या कहा जाए। ऐसे एक भगवान पुणे में भी भटकते हुए आये थे,आपको पता होगा। इस प्रकार हमें ठगाया भी जाता है। और कोई अवतार भी भटक रहा है जो घोषित करता है कि मैं कल्कि अवतार हूँ। अरे बाबा इस कल्कि अवतार को पता नहीं है कि कल्कि अवतार कब होना है ,अभी तक नहीं हुआ है । कलयुग के अंत में कल्कि का अवतार होगा, लेकिन जो घोषित कर रहा है ‘आई एम कल्कि अवतार’ उसको यह पता नहीं है कि कब उसको प्रकट होना था ?या होना चाहिए था? वो बात दूसरी है लेकिन मेरा कहने का तात्पर्य यह था कि शुकदेव गोस्वामी 5000 वर्ष पूर्व, बुद्ध देव का भी और कल्कि अवतार का भी उल्लेख किए हैं। तो शास्त्रों में उल्लेख होना चाहिए । फिर गुण अवतार आते है । कितने गुण हैं? तीन गुण हैं । वे हैं सत्वगुण, रजोगुण और तमोगुण। फिर इसी के मिश्रण से कई सारे गुण हो जाते हैं ।
वैसे बेसिक कलर्स कितने होते हैं? हम भी जब स्कूल में जाते थे तीन ट्यूबस लेकर जाते थे ,तीन कौन कौन सी? यैलो, रेड और ग्रीन। फिर ये ट्यूब का कलर उसमें मिला दो ,उसका उसमें मिला दो , ३ के ९, ९ के ८१, बनते जाते हैं, गोज़ ऑन् एन्ड ऑन। उस प्रकार से भी कई सारे गुण हो जाते हैं। इन तीन गुणों के नियंता तीन अवतार हैं । रजोगुण के नियंत्रक/ मुखिया ब्रह्मा हैं; सत्वगुण जो मेंटेन करते है वो विष्णु हैं; फिर आता हैं तमोगुण जो शिवजी का डिपार्टमेंट है। तमोगुण विनाश करता है। क्रिएशन में भगवान विष्णु या कृष्ण का भी योगदान होता है और डिस्ट्रक्शन/ विनाश में भी कृष्ण इनवॉल्व रहते हैं । इसीलिए जब कहते हैं ‘गॉड’ अंग्रेज़ी में G.O. D । तो गॉड मतलब — G फ़ोर जैनरेटर ,मतलब उत्पादन/ क्रिएशन; O फ़ोर ऑपरेशन; एंड D फ़ॉर डिस्ट्रक्शन । ये तीनों मिलकर कारोबार संभालते हैं इस सृष्टि का । भगवान की ओर भी एक सृष्टि है उसका भी अभी उल्लेख होने वाला है। जहाँ भगवान सदा के लिए रहते है उसको हम वैकुण्ठ कहते हैं। “परस तस्मातु भाव अन्या व्यक्तो अव्यक्ता सनातन:” कृष्ण कहे यह जगत कभी व्यक्त होता है मतलब सृष्टि होती है और फिर इस जगत का प्रलय भी होता है विनाश भी होता है । लेकिन ऐसे व्यक्त और फिर अंततोगत्वा अव्यक्त होने वाले जगत के परे और एक जगत है जिसको कृष्ण कह रहे हैं सनातन:। सनातन मतलब क्या? शाश्वत ,इंटरनल । वैसे कहा भी गया है, “ भूत्वा भूत्वा प्रलीयते” । ‘भू’ मतलब होना। ‘भूत्वा भूत्वा’ हो होकर क्या होता है? लय होता है इस संसार का लय होता है, ये विलीन होता है ,यह समाप्त होता है, विनाश होता है। लेकिन भगवान का जो दिव्य लोक हैं, वैकुण्ठ धाम हैं, वो कभी होता ही नहीं । तो फिर कभी नहीं होने का प्रश्न ही नहीं। वो सदा के लिए रहता है इसीलिए उसको सनातन कहा है । इनका धाम भी सनातन है, भगवान स्वयं भी सनातन/ शाश्वत हैं और हम भी सनातन हैं। अभी अभी आपने सुना था न “ ममे वानशो जीवलोके “ । हम भी सनातन हैं ,शाश्वत है। इसलिए कृष्ण और कहे ,” न जायते न म्रियते कदाचित् “ हमारी जो आत्मा है ,उसका जन्म नहीं होता । माताएँ बालक को जन्म देती है तो शरीर को जन्म दिया,आत्मा को नहीं । आत्मा का ना तो जन्म है ना तो मरण है । जिसका जन्म है उसका मरण निश्चित है। “ जातस्य हि ध्रुवो मृत्युम “ भगवान ने पुनः कहा सिंपल कुछ ही शब्दों में बहुत बड़ी बात कही कि जिसका जन्म होगा उसकी मृत्यु निश्चित है । जिसकी शुरूआत है उसका अंत होगा ही। हमारा जो धर्म है ,हमारा मतलब सभी का है। सनातन धर्म एक नाम है । जीव का धर्म “जैव धर्म” वो कैसा है? सनातन धर्म।
मतलब सनातन धर्म की शुरुआत नहीं हुई इसीलिए इस धर्म का अंत भी नहीं होने वाला है। लेकिन हम इस संसार में कई सारे धर्म को जानते हैं, एक धर्म ढाई हजार वर्ष पूर्व शुरू हुआ, नाम नहीं कहूंगा। अनदर वन 2000 वर्ष पहले शुरू हुआ। ईसा मसीह के जन्म के 2023 वर्ष पूर्व और एक धर्म शुरू हुआ। 1400 वर्ष और एक धर्म शुरू हुआ। दुर्भाग्यवश भारत में एक और धर्म 500 वर्ष पूर्व पंजाब में शुरू हुआ। आप कहे या नहीं कहे, आप समझे हो तो कह भी सकते हो या समझ सकते हो कि जिसका शुरुआत होती है उसका अंत भी होता । यह जो धर्म है, जिनमें धर्मांतरण वगैरह चलता रहता है ये अधिक समय तक टिकने वाले नहीं है। सदा के लिए निश्चित ही टिकने वाले नहीं हैं। सदा केलिए टिकने वाला धर्म कौन सा है? सनातन धर्म की जय! वैसे सभी जीवो का धर्म सनातन धर्म है। फिर वह अभी हिंदू हैं या मुसलमान हैं या ईसाई है या बौद्ध पंथी हैं वे सभी जीव हैं और सभी का धर्म सनातन धर्म ही है। दैर इज़ नो अदर रिलिजन।
मन्वंतर अवतार:- नाम का एक प्रकार है। मनु नाम सुने होंगे? ब्रह्मा के 1 दिन में 14 मनु होते हैं और अब सातवें मनु चल रहे हैं, उनका नाम है वैवस्वत मनु और जब मनु कारोबार संभालना प्रारंभ करते हैं, उन्हीं से ये मनु संहिता इत्यादि ग्रंथ आते हैं और मनु से हम मनुष्य भी बनते हैं। दनु से दानव बनते हैं। दनु नाम के एक व्यक्तित्व रहे हैं उनसे दानव बने और मनु से मानव। तो 14 मनु हैं तो हर मनु के कार्य के प्रारंभ के साथ एक अवतार होता है उनको मन्वंतर अवतार कहते हैं। ऐसे उनके साथ एक इंद्र भी होते हैं और उनके मनु पुत्र भी होते हैं, ऐसी टीम होती है। हर समय जब मनु कारोबार संभालते हैं तो अजीत,ऋषभ, वामन, मत्स्यसेन, ऐसे कुछ मन्वंतर अवतार के नाम भी हैं।
युग अवतार:- कितने युग हैं? चार। सत्य, त्रेता, द्वापर,कली। ये सब हमको पता होना चाहिए। हम हिंदू हैं, ये हैं वो हैं,लेकिन बहुत कम पता होता है। हमारे नाम भी होते हैं चतुर्वेदी, मतलब क्या? चार वेदों के जो ज्ञाता होते हैं उनको चतुर्वेदी कहते हैं। तीन वेदों के जाननेवाले को त्रिवेदी, दो को जाननेवाले को द्विवेदी। और ऐसे एक समय था कि सचमुच चतुर्वेदी चार वेदों को, त्रिवेदी तीन वेदों को जाननेवाले लोग हुआ करते थे। लेकिन आज नाम तो है चतुर्वेदी या त्रिवेदी या द्विवेदी लेकिन है वैसे निर्वेदी। उनसे पूछो चार वेदों के नाम क्या हैं? और उनमें क्या विषय वस्तु है? यह कहना तो दूर की बात है, चार वेदों का नाम भी नहीं कह पाएंगे लेकिन नाम तो है चतुर्वेदी। युग अवतार “संभवमी युगे युगे” हर युग में भगवान प्रकट होते हैं तो उनको युग अवतार कहते हैं। चार युग हैं, चार युगों को मिलाकर महायुग कहते हैं। यह किस लिए कहा जा रहा है? कलयुग कितने वर्षों का होता है? 432000 वर्षों का। इसमें कितने साल बीत गए? केवल 5000 वर्ष बीते हैं। 4 लाख 27 हजार वर्षों तक कलयुग अभी बाकी है। कलयुग का दुगुना होता है द्वापर युग और इसका तीन गुना होता है त्रेता युग। फिर इसका चौगुना होता है सत्य युग। ब्रह्मा के 1 दिन को कल्प कहते हैं।
इस्कॉन में हमारे मंदिरों में ऐसा कहते हैं कि भागवत क्लास या भगवत गीता क्लास हो रही है। उसी प्रकार से यह भी भागवत क्लास चल रही है और आप स्टूडेंट हैं। इसको इंटरएक्टिव बनाने से आप वैसे सोओगे भी नहीं और अगर इस उद्देश्य से भी आप सुनोगे कि जो मैंने बातें सुनी है, ये मुझे किसी को सुनानी हैं। मैं सुनाना चाहता हूं ऐसा सोचकर, ऐसी समझ के साथ आप सुनोगे तो पता है क्या होगा? सुनी हुई बातें आपको याद रहेगीं, आप याद रखोगे या सुनी हुई बातों को पुनः याद करने को ही मनन कहते हैं। कल मनन की भी बात चल रही थी कि, “इनको आप क्यों भगवत धाम नहीं ले जा रहे हैं? एक ही व्यक्ति को ले जा रहे हैं और लोगों का क्या कुसूर है? तो यही हुआ था कि बाकी लोगों ने सुन तो लिया, स्टोर किया लेकिन मनन नहीं किया था। तो केवल इनफॉरमेशन गैदरिंग नहीं होना चाहिए, इनफॉरमेशन का क्या होना चाहिए? ट्रांसफॉरमेंशन होना चाहिए। इनफॉरमेशन के साथ कुछ क्रांति होनी चाहिए, परिवर्तन होना चाहिए । केवल इसका एकुम्यूलेशन नहीं होना चाहिए, इसका असिमिलेशन होना चाहिए। एक होता है एकम्यूलेशन याने इकठ्ठा करना/ एकत्रित करना/संग्रहित करना। लेकिन उद्देश्य क्या है? असिमिलेशन। उसको हमारे भावों में,विचारों में, कार्यों में अनुवादित/ भाषांतरित करना मतलब असिमिलेशन हुआ या हमारे भाव को बदलना, हमारे प्रभुपाद कहा करते थे ‘रिवॉल्यूशन इन कॉन्शसनेस’। परिवर्तन करना है, क्रांति करनी है तो कहाँ करनी है? रिवॉल्यूशन इन कॉन्शसनेस, भाव का। क्या भाव चल रहा है? बाजार में सोने का भाव क्या है? कृष्ण कहते हैं, “ यम यम वापी स्मरण भावम् त्यजन्ते कलेवरम”। हमारे मृत्यु के समय जैसा भाव होगा उसके अनुसार हमारा भविष्य का शरीर है निर्भर करता है। शरीर छोड़ते समय हम जो जो भाव रखते हैं उस प्रकार हमारा भविष्य शरीर प्राप्त होता है। ये शरीर समाप्त हुआ लेकिन हम समाप्त नहीँ होते हैं। इट्स अ रीइनकारनैशन। हरि हरि!
“बेच दो बेच दो!” एक बूढ़ा और बीमार व्यक्ति सोने-चांदी का व्यापारी था, तो डॉक्टर आए टेंपरेचर लिया, डॉक्टर ने कहा 104। तो उसे बूढ़े ने, जो लगभग मृतप्राय था, ऑलमोस्ट मरने की स्थिति में था उसने कहा,”बेच दो बेच दो” । उसने सोचा कि मैंने जब सोना खरीदा तो ₹80 तोले का था और अब उसका भाव कितना हुआ है? 104 हुआ । इसलिए वो कहने लगा कि, “बेच दो,बेच दो इसको।” खरीदा था 80 रुपए में, अब उसका भाव 108 है। ऐसा कहते हुए ही प्राण त्यागे उसने।
और दूसरा एक व्यक्ति था ( हर घर की अपनी कोई कहानी होती है) जो मरने जा रहा था, परिवार इकठ्ठा हुआ था। सब सदस्य बेटे देख रहे थे की हमारे पिता की कुछ ही साँसे बची हुई हैं। भोलेनाथ शिव शंकर के वे सब भक्त थे, तो बेटे कहने लगे, “ पिताजी भोला कहो, भोला कहो”। लेकिन पिता ने कहा, “ कोका कोला “ क्युकी पिता कोला पीने का शौकीन था। हमको इसलिए पता चला क्युकी हमारे एक प्रचारक हरिद्वार में थे उन्होंने देखा कई ट्रक या लॉरी भरी थी कोका कोला से। गंगा के किनारे(“ गंगा तेरा पानी अमृत “) कुछ सज्जन लोग कोका कोला फ्री में बाँट रहे थे। तो हमारे प्रचारक ने पूछा, “क्या हुआ?क्यों फ्री में वितरित कर रहे हो?” तो उन्होंने कहा कि हमारे पिता की अंतिम इच्छा थी कोका कोला। उसको ही पीते हुए ही वे प्राण त्याग दिये। इसलिए हम उनकी इस आखिरी इच्छा को पूरा कर रहे हैं। ऐसे पिता और उनके बेटे भी ऐसे ही। तो अगले जनम में वो ‘कोका कोला लोक, कैनेडा’ गए होंगे क्युकी कोका कोला को ही याद किये थे। लगता होगा कि हंसी मज़ाक चल रहा है लेकिन हमें सावधान रहना चाहिए।
“ इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले
गोविंद नाम लेके तब प्राण तन से निकले “
ये प्रार्थना करें और उसकी तैयारी भी करें, ये भागवत कथा भी तैयारी ही है,ये अभ्यास या प्रैक्टिस है। राजा परीक्षित को भी कहा था ( जो भागवत कथा के श्रोता या जिनके लिए भागवत कथा कही गयी थी), कि पता है आपको क्या करना है? “अंते नारायण स्मृति।” बस इतना ही करना है आपको, अंत में आपको नारायण का स्मरण करना है। कैसे होगा ऐसा? आप कृष्ण की कथा सुनो।
“नष्टप्रायेषु अभद्रेशु नित्यं भागवत सेवया
भगवती उत्तमश्लोके भक्तिर भवति नैष्ठिकी”।।
हम भी सात दिवस् कथा सुनने का संकल्प लेकर कथाव्रती बने हैं( कल बताया था)। लेकिन वैसे व्रत कैसे होना चाहिए?
भक्तिवेदांत श्रील प्रभुपाद ने हम अनुयायियों शिष्यों को विश्व भर में भागवत व्रती बनाया है। हम सिर्फ साल मे एक ही बार नहीं करते ऐसा व्रत (जैसी उन्निस्वी बार यहाँ कथा हो रही है)। जब जब कथा डिक्लेयर होती है हम दौड़ पड़ते हैं। बट व्हाट अबाउट इन बिट्वीन? 52 सप्ताह होते हैं उसमे से एक सप्ताह तो हमने सुनी कथा लेकिन भागवत कहता, “नित्यं भागवत सेवया” । तो श्रील प्रभुपाद के कारण हमारे इस्कॉन के हर एक मन्दिर में, सौ से अधिक देशों में, प्रतिदिन भागवत की कथा होती है।
ग्रंथराज श्रीमद् भागवतम् की जय!
भागवत की कथा सुन सुन के हम लोग भागवत बन जाते हैं,छोटे-मोटे भागवत। शुकदेव गोस्वामी उच्च कोटी के भागवत हैं। वैसे द्वादश भागवत का एक दल या मंडल है।
“ स्वयंभू नारद: शंभू कुमारौ कपिलौ मनु
प्रहलाद जनको भीष्मौ बलिर वैयासकी वयं “।।
मैंने अभी अभी बारह नाम कहे, ये द्वादश भागवत हैं। स्वयंभू मतलब ब्रह्मा,नारद,शिवजी भी भागवत हैं, और भी कई हैं इंक्लूडिंग यमराज। यमराज भी भागवत हैं इसलिए आपको डरना नहीं चाहिए। अगर आप अगर स्वयं भी भागवत या वैष्णव बन गए तो हमारी मृत्यु के समय यमराज आके
“ वाँछा कल्पतरुभ्यश्च कृपासिंधुभ्येव च
पतितानाम पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः”
आपको नमस्कार करेंगे यमराज। वे बहुत ज्ञानवान हैं और ये सारे द्वादश भागवत भी। अगर कोई भागवत या धर्म को जानता है तो ये बारह व्यक्ति जानते हैं, दे आर अथॉरिटीज।
ब्रह्मा के एक दिन में 14 मनु होते हैं, सातवे मनु वैवस्वत मनु। मतलब अभी ब्रह्मा के दिन का , मध्याह्न के समय है, 7 मनु होचुके हैं। बाकी 7 मनु होने के उपरांत ब्रह्मा का एक दिन होगा। उनके एक दिन में 1000 बार ये महायुग बीतते हैं। phirr और 1000 महायुग बीतेंगे तो ब्रह्मा की एक रात्रि होगी। 2000 साईकल्स् या 2000 बार जब सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलयुग बीतेंगे तो ब्रह्मा के 24 घंटे होंगे। फिर उनका एक सप्ताह होगा, ऐसे 24 घंटे वाले सप्ताह तो चार सप्ताह से एक महीना होगा, ऐसे बारह महीने से एक वर्ष होगा। इस प्रकार 100 वर्षों तक ब्रह्मा जीवित/ कार्यरत रहते हैं। ब्रह्मा की पूरी आयु का जो समय है इतने में भगवान् महाविष्णु केवल उच्छश्वास लेते हैं। आप सुने होंगे श्वास – उच्छश्वास।