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“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय “

वासुदेव कितने हैं? आप तो नॉर्मली सोचते हो एक ही वासुदेव है और वे कृष्ण हैं किंतु बलराम भी वासुदेव है। वसुदेव के पुत्र वासुदेव कहलाते हैं। तो वसुदेव के दो पुत्र थे, आठ होने चाहिए थे लेकिन दो ही बचे , तो वसुदेव के दोनों पुत्र वासुदेव कहलाते हैं। तो कृष्ण भी वासुदेव है और बलराम भी वासुदेव है। वैसे और कई सारी तिथियां आज है, श्यामानंद पंडित आविर्भाव तिथि महोत्सव, इत्यादि और उसके अंतर्गत ऑफ कोर्स आज बलदेव रास पूर्णिमा भी है।आज चैत्र पूर्णिमा है तो आज के दिन बलराम रासक्रीड़ा खेले, ऑफ कोर्स रासक्रीड़ा केवल वृंदावन में ही होती है। रासक्रीड़ा वैकुंठ में नहीं होती ,अयोध्या में नहीं होती ,द्वारका में भी नहीं हो सकती, न तो मथुरा में , केवल और केवल वृंदावन में ही रास क्रीड़ाएं संभव होती है । तो फिर पुनः ये अज्ञान की बात है हम सोचते हैं कि केवल कृष्ण ही रासक्रीड़ा खेलते हैं । नहीं ,नहीं, बलराम भी रासक्रीड़ा खेलते हैं । “अद्वैत अच्युत अनादि अनंत रूपम” कृष्ण के कई सारे रूप है “केशव धृत शूकर रूप, केशव धृत राम शरीर, केशव धृत नरहरि रूप, केशव धारण करते हैं कई सारे रूप तो उन रूपों में से केशव धृत हलधर रूप, जो बलराम रूप है एक ये बलराम रूप ही (कृष्ण के अलावा) एक ऐसा रूप है जो गोपियों के साथ रास क्रीड़ा खेलने में समर्थ है , कॉम्पटेंट है। और रूपों की एक–एक ही ह्लादिनी शक्ति होती है या लक्ष्मी होती है कहो ।

“लक्ष्मी सहस्त्र शत संभ्रम सेव्य मानम , गोविंद आदिपुरुषम तमहं भजामि” तो गोविंद की कितनी लक्ष्मियां है? वे सहस्त्र हैं, ’तदवत’ वैसे ही बलराम की भी “लक्ष्मी सहस्त्र शत संभ्रम सेव्य मानम” , असंख्य या करोड़ों गोपियां बलराम की सेवा के लिए उत्कण्ठित रहती है ,सेवा करती है ,उनके साथ रासक्रीड़ा खेलती है।वो आज की रात है चैत्र पूर्णिमा, वैसे वसंत ऋतु भी है तो इसको वसंत रास भी कहते हैं ।वैसे हम सब परिचित है शरद पूर्णिमा के साथ, शरद पूर्णिमा को श्रीकृष्ण की रास क्रीड़ा प्रसिद्ध है, तो चैत्रपूर्णिमा जो आज है ,आज की बलराम पूर्णिमा वैसे बलराम प्रकट भी हुए थे पूर्णिमा के दिन ही । तो वो भी एक बलराम पूर्णिमा होती है जिस दिन बलराम प्रकट हुए थे। अष्टमी को कृष्ण प्रकट हुए ,पूर्णिमा को बलराम प्रकट हुए। तो आज की जो चैत्र पूर्णिमा है इस पूर्णिमा की रात्रि को बलराम वृंदावन में रास क्रीड़ा खेलते हैं और यह रासक्रीड़ा का वर्णन वैसे उतना विस्तार से नहीं है जैसे कृष्ण के रास क्रीड़ा का वर्णन पांच अध्यायों में हुआ है ,” रास पंचाध्यायी भी उनको कहते हैं । ये बलराम की रास क्रीड़ा का वर्णन शुकदेव गोस्वामी बस एक ही अध्याय में दशम स्कंध ,नोट करो दसवा स्कंद है और 65 वां अध्याय,इसमें शुकदेव गोस्वामी
एक तो बलराम की वृंदावन विजिट, वृंदावन की भेंट और फिर साथ ही साथ बलराम की रास क्रीड़ा का वर्णन करते हैं। हरि हरि!

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